सरकारी नौकरी के बावजूद ‘बेसहारा गृहणी’ बताने वाली पत्नी पर मुकदमा – इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भरण-पोषण पर लगाई रोक
भारतीय न्याय व्यवस्था में भरण-पोषण (Maintenance) का प्रावधान उन आश्रितों की सहायता के लिए किया गया है जो आर्थिक रूप से स्वयं का जीवन-निर्वाह करने में सक्षम नहीं हैं। इसमें पत्नी, बच्चे, और कुछ परिस्थितियों में माता-पिता भी शामिल होते हैं। इसका उद्देश्य परिवार के कमजोर वर्गों को संरक्षण प्रदान करना है ताकि वे आर्थिक अभाव के कारण दयनीय जीवन न जिएं।
लेकिन यदि कोई व्यक्ति झूठे आधार और गलत तथ्यों पर भरण-पोषण का दावा करता है, तो यह न केवल न्यायिक प्रक्रिया के साथ धोखा है, बल्कि वास्तविक जरूरतमंदों के अधिकारों का भी हनन है। इलाहाबाद हाईकोर्ट का हालिया निर्णय इसी संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण है।
1. मामला क्या था?
कन्नौज निवासी मसरूफ अली की पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय में आवेदन देकर अपने और दो बच्चों के लिए भरण-पोषण की मांग की। पत्नी ने दावा किया कि वह एक बेसहारा गृहणी (Housewife) है, जिसकी आय का कोई स्रोत नहीं है, और इसलिए उसके व बच्चों के जीवनयापन के लिए पति को खर्च देना चाहिए।
पारिवारिक न्यायालय ने इस आधार पर पति को 14,000 रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण देने का आदेश दे दिया।
लेकिन इसके बाद मसरूफ अली ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की और कहा कि उसकी पत्नी ने झूठा हलफनामा (False Affidavit) देकर अदालत को गुमराह किया है।
2. पति की दलील
पति के अधिवक्ता सुनील चौधरी ने अदालत को बताया कि याची की पत्नी वास्तव में फिरोजाबाद के एफएच मेडिकल कॉलेज में सरकारी नौकरी कर रही है और 70,000 रुपये प्रतिमाह वेतन प्राप्त कर रही है।
इसके बावजूद उसने अदालत में खुद को “बेसहारा गृहणी” बताया और यह झूठा दावा किया कि वह किसी आय के स्रोत के बिना है। इस आधार पर उसने भरण-पोषण का आदेश हासिल किया।
3. हाईकोर्ट का आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह की एकल पीठ ने पति की दलीलों को स्वीकार करते हुए महत्वपूर्ण आदेश दिया –
- पत्नी द्वारा दाखिल किए गए झूठे हलफनामे (False Affidavit) को गंभीर अपराध माना।
- पारिवारिक न्यायालय को निर्देश दिया कि पत्नी के खिलाफ झूठा हलफनामा देने पर मुकदमा चलाया जाए।
- पारिवारिक न्यायालय द्वारा दिए गए भरण-पोषण आदेश पर रोक लगा दी गई।
4. कानूनी आधार
यह निर्णय भारतीय विधि में मौजूद कई सिद्धांतों पर आधारित है –
- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 125 – इसके तहत पत्नी, बच्चे और माता-पिता भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं, लेकिन शर्त यह है कि वे स्वयं का पालन-पोषण करने में असमर्थ हों।
- झूठा हलफनामा देना (False Affidavit) – भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत यह अपराध है। धारा 191 (झूठी गवाही), धारा 193 (झूठी गवाही पर दंड) और धारा 199 (झूठा बयान हलफनामे के रूप में देना) के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
- न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court) – अदालत को गुमराह करना न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, जिस पर कठोर कदम उठाए जा सकते हैं।
5. फैसले का महत्व
- भरण-पोषण के सिद्धांत की रक्षा – यह फैसला स्पष्ट करता है कि भरण-पोषण केवल उन लोगों के लिए है जो सचमुच असहाय और जरूरतमंद हैं, न कि उनके लिए जो आर्थिक रूप से सक्षम होते हुए भी अनुचित लाभ लेना चाहते हैं।
- झूठे हलफनामों पर सख्ती – यह निर्णय न्यायपालिका का यह संदेश है कि अदालत को गुमराह करने वाले झूठे हलफनामे कभी बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।
- महिलाओं की गरिमा बनाम न्यायिक ईमानदारी – यह सही है कि महिलाओं को भरण-पोषण का अधिकार है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वे अपनी वास्तविक आर्थिक स्थिति छिपाकर पति पर अनावश्यक बोझ डालें।
- पति के अधिकारों की सुरक्षा – अक्सर माना जाता है कि पति को हमेशा भरण-पोषण देना ही पड़ेगा, लेकिन यह फैसला दिखाता है कि यदि पत्नी आर्थिक रूप से स्वतंत्र है तो पति पर ऐसा बोझ नहीं डाला जा सकता।
6. सामाजिक परिप्रेक्ष्य
भारत जैसे देश में, जहां बड़ी संख्या में महिलाएं वास्तव में आर्थिक रूप से निर्भर हैं, भरण-पोषण कानून उनके लिए एक मजबूत सुरक्षा कवच है। लेकिन यदि कोई महिला सरकारी नौकरी जैसी उच्च आय अर्जित करने के बावजूद झूठा दावा करती है, तो यह न केवल पति पर अन्याय है बल्कि उन जरूरतमंद महिलाओं के अधिकारों का भी हनन है जो सचमुच भरण-पोषण पर निर्भर हैं।
7. आलोचना और संभावित चुनौतियाँ
कुछ आलोचकों का मानना है कि ऐसे मामलों में अदालत को बच्चों के भरण-पोषण के पहलू को भी ध्यान में रखना चाहिए। यदि पति और पत्नी दोनों कमाते हैं, तो बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी साझा होनी चाहिए।
इसके अलावा, मुकदमेबाजी के दौरान कई बार यह सवाल उठता है कि आय का सही आकलन कैसे किया जाए और पत्नी की वास्तविक आर्थिक स्थिति क्या है। इस कारण झूठे हलफनामे के मामलों की जाँच में समय और संसाधन खर्च हो सकते हैं।
8. निष्कर्ष
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल भरण-पोषण कानून की सटीक व्याख्या है बल्कि न्यायालय की गंभीरता को भी दर्शाता है। यह साफ संदेश देता है कि –
- भरण-पोषण का हक केवल वास्तविक जरूरतमंदों का है।
- अदालत में झूठा हलफनामा देकर गुमराह करने वालों पर कठोर कार्रवाई होगी।
- पति को अनुचित रूप से बोझ डालने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
यह फैसला आगे आने वाले मामलों में मिसाल बनेगा और सुनिश्चित करेगा कि भरण-पोषण का अधिकार ईमानदारी और वास्तविक जरूरत के आधार पर ही दिया जाए।
✅ संक्षेप में
- पत्नी ने खुद को बेसहारा गृहणी बताकर झूठा हलफनामा दाखिल किया, जबकि वह 70,000 रुपये मासिक वेतन वाली सरकारी नौकरी में थी।
- हाईकोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय के भरण-पोषण आदेश पर रोक लगाई।
- पत्नी पर झूठा हलफनामा देने के लिए मुकदमा चलाने का निर्देश दिया।
- यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता, पति के अधिकारों और वास्तविक जरूरतमंदों के संरक्षण की दिशा में अहम कदम है।