शीर्षक: समायोजन में देरी कर्मचारी का दोष नहीं — सेवा अवधि पेंशन के लिए गणनीय: कलकत्ता उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय
परिचय:
न्यायपालिका बार-बार यह स्पष्ट कर चुकी है कि सरकारी सेवक की पेंशन संबंधी अधिकारिता उसके कार्यकाल और समर्पित सेवा पर निर्भर करती है, न कि विभागीय प्रशासन की प्रक्रियात्मक देरी पर। इस सिद्धांत को और अधिक स्पष्ट करते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय ने डॉ. सतीनाथ सामंता बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य [W.P.S.T. 210 of 2024] में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें कहा गया है कि यदि सरकार किसी कर्मचारी के समायोजन (adjustment) में देरी करती है, तो उस देरी की अवधि को भी पेंशन हेतु पात्र सेवा अवधि (qualifying service) के रूप में गिना जाना चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता डॉ. सतीनाथ सामंता एक सरकारी चिकित्सक थे, जिनकी सेवा नियमित नियुक्ति से पहले संविदा या अस्थायी रूप में प्रारंभ हुई थी। नियुक्ति के समायोजन में प्रशासनिक स्तर पर विलंब हुआ, जिससे उनके सेवा की निरंतरता और पेंशन हेतु पात्रता पर प्रश्नचिह्न लग गया।
सरकार ने उनके समायोजन की तिथि को वास्तविक सेवा की तिथि मानकर पूर्व की सेवा अवधि को पेंशन के लिए अयोग्य माना। इसके विरुद्ध डॉ. सामंता ने कलकत्ता उच्च न्यायालय की शरण ली।
न्यायालय का निर्णय:
महोदय न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद और न्यायमूर्ति सुप्रतिम भट्टाचार्य की खंडपीठ ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की:
“कर्मचारी को उसकी सेवा की पात्रता से वंचित नहीं किया जा सकता, केवल इसलिए कि समायोजन की प्रक्रिया में प्रशासनिक स्तर पर देरी हुई। यदि कर्मचारी सेवा दे रहा था, भले ही उसका औपचारिक समायोजन बाद में हुआ हो, वह सेवा अवधि पेंशन के लिए गिनी जानी चाहिए।”
मुख्य बिंदु:
- प्रशासनिक देरी का दुष्परिणाम कर्मचारी पर नहीं डाला जा सकता।
न्यायालय ने दोहराया कि यदि कर्मचारी सेवा में था और उसने नियमित दायित्वों का निर्वहन किया, तो विभागीय विलंब उसका अधिकार नहीं छीन सकता। - न्यायालय का संतुलित दृष्टिकोण:
अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता की सेवा में कोई अंतराल नहीं था, और उन्होंने पूरे समय काम किया, इसलिए यह सेवा अवधि पेंशन की गणना में शामिल की जानी चाहिए। - पेंशन एक अर्जित अधिकार है:
निर्णय में पेंशन को “earned benefit” (अर्जित लाभ) बताया गया और यह भी कहा गया कि यह केवल तकनीकी आपत्तियों के आधार पर छीना नहीं जा सकता। - संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का भी इस संदर्भ में समर्थन दिया गया।
न्यायालय की दिशा-निर्देश:
- संबंधित विभाग को आदेश दिया गया कि याचिकाकर्ता की प्रारंभिक सेवा अवधि को भी पेंशन की पात्र सेवा अवधि में शामिल किया जाए।
- पेंशन और अन्य सेवानिवृत्त लाभों की पुन: गणना कर निर्धारित समयावधि में भुगतान किया जाए।
निष्कर्ष:
यह निर्णय केवल डॉ. सतीनाथ सामंता के लिए नहीं, बल्कि उन हजारों कर्मचारियों के लिए भी मार्गदर्शक है जिनकी सेवाओं के समायोजन में प्रशासनिक स्तर पर देरी हुई हो। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सेवा की वास्तविकता ही निर्णायक है, औपचारिकता नहीं।
इस निर्णय का प्रभाव:
- भविष्य में ऐसे कई मामले इस निर्णय का हवाला देकर लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
- यह निर्णय प्रशासनिक अनुशासन और कर्मचारी अधिकारों की रक्षा के बीच संतुलन स्थापित करता है।
- इससे सेवा न्यायशास्त्र (Service Jurisprudence) में न्यायप्रियता और मानवतावादी दृष्टिकोण की पुष्टि होती है।