समाप्त और मसौदा डीएसआर के आधार पर बालू खनन की नीलामी अवैध: सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की ई-नीलामी अधिसूचना को रद्द किया

समाप्त और मसौदा डीएसआर के आधार पर बालू खनन की नीलामी अवैध: सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की ई-नीलामी अधिसूचना को रद्द किया

(State of Uttar Pradesh & Anr. बनाम Gaurav Kumar & Ors., SUPREME COURT OF INDIA)


🔍 भूमिका:

खनन नीति और पर्यावरणीय संसाधनों का न्यायसंगत और पारदर्शी प्रबंधन आज के भारत में नीतिगत और कानूनी दोनों स्तरों पर गहन चिंता का विषय है। इस परिप्रेक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार की बालू खनन ई-नीलामी अधिसूचना को रद्द कर दिया गया है, न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पारदर्शिता और पर्यावरणीय नीति निर्धारण में शासन की जवाबदेही को भी रेखांकित करता है।


⚖️ मामले की पृष्ठभूमि:

उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2023 में बालू खनन पट्टों (sand mining leases) के लिए ई-नीलामी (e-auction) की अधिसूचना जारी की थी। इस अधिसूचना के समर्थन में दो प्रमुख दस्तावेजों का हवाला दिया गया:

  1. 2017 की जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (District Survey Report – DSR), जिसकी वैधता वर्ष 2022 में समाप्त हो चुकी थी।
  2. 2023 की एक मसौदा DSR (Draft DSR), जो अब तक अंतिम रूप (finalize) नहीं की गई थी।

इस अधिसूचना को Gaurav Kumar एवं अन्य याचिकाकर्ताओं ने चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि समाप्त हो चुकी और अनधिकृत मसौदा रिपोर्टों के आधार पर की जा रही नीलामी अवैध, मनमानी और गैरकानूनी है।


🧑‍⚖️ सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए निम्नलिखित महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:

  1. DSR (District Survey Report) खनन नीति का मूलभूत दस्तावेज है, जो किसी क्षेत्र में पर्यावरणीय दृष्टिकोण से उपयुक्त खनन की अनुमति का आधार बनता है।
  2. एक समाप्त DSR (2017) का प्रयोग अवैध है, क्योंकि पर्यावरणीय और भौगोलिक परिस्थितियाँ समय के साथ बदलती हैं और पुरानी रिपोर्टों का प्रयोग वास्तविक स्थिति का सही आकलन नहीं करता
  3. इसी तरह, Draft DSR 2023, जो केवल एक प्रारंभिक मसौदा था और न तो अनुमोदित था, न ही अंतिम, कानूनी रूप से नीलामी का आधार नहीं बन सकता।
  4. कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार की नीलामी प्रक्रिया में, जहां खनिज संसाधनों का दोहन हो रहा हो, राज्य सरकार को पूर्ण पारदर्शिता, अद्यतन तथ्यों और विधिसम्मत प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है।
  5. अतः सुप्रीम कोर्ट ने उक्त ई-नीलामी अधिसूचना को असंवैधानिक और असंवैधानिक प्रक्रिया से युक्त घोषित कर रद्द कर दिया।

📚 कानूनी महत्व:

  • सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्पष्ट करता है कि खनन जैसे पर्यावरणीय विषयों पर राज्य की मनमानी स्वीकार नहीं की जा सकती
  • यह निर्णय “Public Trust Doctrine” की पुनः पुष्टि करता है, जिसमें राज्य प्राकृतिक संसाधनों का ट्रस्टी होता है और उसका कर्तव्य होता है कि वह इनका दोहन जनहित में और कानूनी प्रक्रियाओं के तहत करे।
  • यह फैसला पर्यावरणीय नियमों के तहत आवश्यक सर्वेक्षण, अनुमोदन और रिपोर्टिंग प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखने का भी संदेश देता है।

📌 प्रभाव और निष्कर्ष:

  • यह निर्णय उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य राज्यों के लिए एक सख्त चेतावनी है कि वे खनन संबंधी नीतियों में वैधता, पारदर्शिता और पर्यावरणीय समर्पण का पालन करें।
  • इसके प्रभाव से संभावित रूप से राज्य में बालू खनन की पुनः नीतिगत समीक्षा की जाएगी और केवल अंतिम और अनुमोदित DSR के आधार पर ही नीलामी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा।
  • यह निर्णय न्यायपालिका की इस भूमिका को भी रेखांकित करता है कि वह प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर निगरानी रखने वाली एक संवैधानिक प्रहरी है।

निष्कर्ष:

State of U.P. बनाम Gaurav Kumar प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का फैसला केवल कानूनी दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि नीतिगत पारदर्शिता, पर्यावरणीय उत्तरदायित्व और शासन के अनुशासन के लिए भी ऐतिहासिक है।
यह निर्णय साबित करता है कि कोई भी सरकार यदि जनता के संसाधनों के प्रबंधन में लापरवाही या मनमानी करती है, तो न्यायपालिका न्याय, पारदर्शिता और संविधान के मूल्यों की रक्षा हेतु हस्तक्षेप कर सकती है।