“समान साक्ष्य के आधार पर एक आरोपी को दोषी और दूसरे को बरी नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट का महत्त्वपूर्ण निर्णय” (2025(1) Criminal Court Cases 629 (S.C.))

शीर्षक:
“समान साक्ष्य के आधार पर एक आरोपी को दोषी और दूसरे को बरी नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट का महत्त्वपूर्ण निर्णय”
(2025(1) Criminal Court Cases 629 (S.C.))


परिचय:
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के तहत निष्पक्ष सुनवाई और न्याय का सिद्धांत सर्वोपरि है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया निर्णय 2025(1) Criminal Court Cases 629 (S.C.) में स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि दो आरोपियों के खिलाफ समान या लगभग एक जैसे साक्ष्य प्रस्तुत किए जाते हैं, तो अदालत एक को दोषी ठहराकर दूसरे को बरी नहीं कर सकती। यह निर्णय भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में साक्ष्य के मूल्यांकन और समरूपता के सिद्धांत की पुष्टि करता है।


मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में दो व्यक्तियों के खिलाफ एक ही घटना के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा आरोप लगाए गए थे। दोनों के खिलाफ अभियोजन ने एक समान या लगभग समान साक्ष्य प्रस्तुत किए। निचली अदालत ने एक आरोपी को दोषी ठहराते हुए दूसरे को बरी कर दिया। यह निर्णय उच्च न्यायालय में भी बरकरार रहा।


सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियाँ:
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया:

  1. समान साक्ष्य का भेदभावपूर्ण मूल्यांकन अनुचित:
    जब दो आरोपियों के खिलाफ एक ही प्रकार का साक्ष्य प्रस्तुत किया गया हो, तो अदालत को दोनों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। एक को दोषी और दूसरे को निर्दोष ठहराना न्यायसंगत नहीं।
  2. साक्ष्य की समरूपता और निष्पक्षता:
    यदि अदालत एक आरोपी को बरी करती है, तो समान साक्ष्य के आधार पर दूसरे को दोषी ठहराना न्यायिक असंगति (judicial inconsistency) का परिचायक है।
  3. न्याय का मूल सिद्धांत:
    अदालत को ‘संदेह का लाभ’ (benefit of doubt) दोनों आरोपियों को देना चाहिए यदि साक्ष्य में स्पष्ट, ठोस और स्वतंत्र प्रमाण नहीं हैं जो किसी एक की विशेष संलिप्तता को दर्शाएं।

निर्णय का महत्व:
यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका द्वारा समानता के अधिकार और न्यायिक तर्कसंगतता को बनाए रखने का स्पष्ट संकेत है। यह उन मामलों के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान करता है, जहाँ दो या अधिक आरोपियों के खिलाफ समान साक्ष्य प्रस्तुत किए जाते हैं।


निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय आपराधिक न्याय व्यवस्था के उस सिद्धांत को और अधिक सुदृढ़ करता है, जिसमें कहा गया है कि न्याय सिर्फ किया ही नहीं जाना चाहिए, बल्कि होता हुआ दिखना भी चाहिए। अगर अदालत एक आरोपी को संदेह के लाभ के आधार पर बरी करती है, तो समान साक्ष्य के आधार पर दूसरे आरोपी को दोषी ठहराना न केवल विधिक दृष्टि से अनुचित है, बल्कि यह न्याय के सिद्धांतों का भी उल्लंघन है।


महत्वपूर्ण उद्धरण (Court’s Observation):

“Where the evidence against two accused is identical in all material aspects, it is not open to the Court to convict one and acquit the other without providing cogent reasons for such distinction.”