समाजशास्त्र – I (Sociology – I) Part-1

1. समाजशास्त्र की परिभाषा एवं प्रकृति

समाजशास्त्र सामाजिक जीवन, समाज की संरचना, क्रियाओं एवं सामाजिक संबंधों का वैज्ञानिक अध्ययन है। यह मनुष्य के सामाजिक व्यवहार, संस्थाओं, परंपराओं एवं सामाजिक परिवर्तनों को समझने का कार्य करता है। समाजशास्त्र की प्रकृति विश्लेषणात्मक, वैज्ञानिक, अनुभवजन्य और तुलनात्मक होती है। यह एक सामाजिक विज्ञान है जो समाज के विविध पहलुओं को तर्क और प्रमाण के आधार पर समझता है। समाजशास्त्र व्यक्ति और समाज के परस्पर संबंधों का गहराई से विश्लेषण करता है।


2. समाज और संस्कृति में अंतर

समाज एक समूह है जिसमें व्यक्ति आपसी संबंधों में बंधे होते हैं, जबकि संस्कृति उस समूह के जीवन के तरीके, विश्वास, मूल्य, परंपराएँ और व्यवहार हैं। समाज एक संरचनात्मक व्यवस्था है जबकि संस्कृति उसकी आत्मा। समाज परिवर्तनशील हो सकता है लेकिन संस्कृति धीरे-धीरे विकसित होती है। समाज बिना संस्कृति के अधूरा है और संस्कृति बिना समाज के अस्तित्व में नहीं आ सकती।


3. समाजशास्त्र और मनोविज्ञान में अंतर

समाजशास्त्र समाज और सामाजिक व्यवहार का अध्ययन करता है जबकि मनोविज्ञान व्यक्ति के मानसिक क्रियाओं और व्यवहारों का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र सामूहिक अनुभवों, संस्थाओं और सामाजिक ढाँचों पर केंद्रित होता है जबकि मनोविज्ञान व्यक्तिविशेष की मानसिक प्रक्रियाओं पर। समाजशास्त्र व्यापक सामाजिक समस्याओं की व्याख्या करता है, वहीं मनोविज्ञान व्यक्तिगत समस्याओं की।


4. प्राथमिक समूह और गौण समूह में अंतर

प्राथमिक समूह वे होते हैं जहाँ सदस्यों के बीच घनिष्ठ, आत्मीय और व्यक्तिगत संबंध होते हैं, जैसे परिवार। जबकि गौण समूह औपचारिक, उद्देश्यपूर्ण और अस्थायी होते हैं, जैसे कार्यालय या व्यापारिक संगठन। प्राथमिक समूह सामाजिकरण का आधार होते हैं जबकि गौण समूह कार्यपूर्ति के लिए बनाए जाते हैं।


5. सामाजिककरण की प्रक्रिया

सामाजिककरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति समाज के मूल्यों, मानदंडों और व्यवहारों को सीखता है। यह प्रक्रिया जन्म से मृत्यु तक चलती है। इसके माध्यम से व्यक्ति सामाजिक प्राणी बनता है। परिवार, विद्यालय, मित्र समूह, मीडिया आदि इसके प्रमुख कारक हैं। इसके बिना व्यक्ति समाज में समायोजित नहीं हो सकता।


6. सामाजिक संस्था क्या है? उदाहरण सहित समझाइए।

सामाजिक संस्था वह संगठित व्यवस्था है जिसके माध्यम से समाज अपने मूल्यों, नियमों और उद्देश्यों को बनाए रखता है। यह समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्थापित होती है। उदाहरण: परिवार, शिक्षा संस्था, धार्मिक संस्था, राजनीतिक संस्था आदि। परिवार जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करता है, शिक्षा संस्था ज्ञान का स्थान है, धार्मिक संस्था आध्यात्मिक चेतना को बनाए रखती है। ये संस्थाएँ सामाजिक नियंत्रण और सामाजिकरण में सहायक होती हैं।


7. सामाजिक संरचना क्या है?

सामाजिक संरचना से तात्पर्य समाज के विभिन्न तत्वों – जैसे कि संस्था, समूह, वर्ग, मानदंड और भूमिकाओं – के आपसी संबंधों की व्यवस्था से है। यह यह दर्शाती है कि समाज में व्यक्ति और समूह किस प्रकार से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और कैसे कार्य करते हैं। सामाजिक संरचना स्थिर होती है, परंतु समय के साथ बदलती भी रहती है। यह किसी भवन की नींव की तरह होती है जिस पर सामाजिक जीवन टिका होता है।


8. सामाजिक नियंत्रण के साधन क्या हैं?

सामाजिक नियंत्रण वे साधन होते हैं जिनके माध्यम से समाज अपने सदस्यों के व्यवहार को नियमित और नियंत्रित करता है। ये दो प्रकार के होते हैं:

  1. औपचारिक साधन: कानून, न्यायालय, पुलिस, शिक्षा प्रणाली।
  2. अनौपचारिक साधन: परंपराएँ, रीति-रिवाज, लोकमत, धर्म, परिवार।
    इन साधनों के माध्यम से व्यक्ति को समाज के अनुकूल ढाला जाता है ताकि सामाजिक व्यवस्था बनी रहे।

9. सांस्कृतिक लैग क्या है?

सांस्कृतिक लैग (Cultural Lag) एक समाजशास्त्रीय सिद्धांत है जिसका अर्थ है – संस्कृति के विभिन्न अंगों में परिवर्तन की गति में असमानता। विशेष रूप से भौतिक संस्कृति (जैसे टेक्नोलॉजी) तेजी से बदलती है, जबकि अमूर्त संस्कृति (जैसे मूल्य, विश्वास) धीरे-धीरे बदलती है। इसका परिणाम यह होता है कि समाज में असंतुलन उत्पन्न होता है। यह अवधारणा ओगबर्न द्वारा प्रस्तुत की गई थी।


10. जाति और वर्ग में अंतर

जाति जन्म पर आधारित एक स्थायी सामाजिक श्रेणी है जिसमें व्यक्ति का स्थान जन्म से तय हो जाता है। जबकि वर्ग एक गतिशील व्यवस्था है जो आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक मानकों पर आधारित होती है। जाति बंद व्यवस्था है, वर्ग खुली। जाति में सामाजिक गतिशीलता सीमित होती है जबकि वर्ग में ऊपर-नीचे जाने की संभावना होती है।


11. सामाजिक परिवर्तन क्या है?

सामाजिक परिवर्तन का तात्पर्य है – समाज की संरचना, संस्थाओं, मूल्यों और व्यवहारों में समय के साथ होने वाला परिवर्तन। यह परिवर्तन धीरे-धीरे या तीव्र गति से हो सकता है। सामाजिक परिवर्तन के कारणों में तकनीकी प्रगति, जनसंख्या, शिक्षा, युद्ध, और विचारधाराएं शामिल हैं। उदाहरण: भारत में महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों में वृद्धि सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक है।


12. धार्मिक संस्था की भूमिका

धार्मिक संस्था व्यक्ति के नैतिक और आध्यात्मिक जीवन को दिशा देती है। यह समाज में नैतिकता, एकता, अनुशासन और सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने में सहायता करती है। यह जीवन के उद्देश्यों, जन्म-मरण की अवधारणाओं और कर्म-सिद्धांतों की व्याख्या करती है। साथ ही, यह समाज में सामाजिक एकजुटता को भी बढ़ावा देती है।


13. सामाजिक स्तरीकरण क्या है?

सामाजिक स्तरीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज में व्यक्तियों या समूहों को अलग-अलग श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। यह स्तरीकरण आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, जातिगत या लिंग के आधार पर हो सकता है। यह असमानता को दर्शाता है। यह समाज के संसाधनों के वितरण को प्रभावित करता है। जैसे – उच्च वर्ग, मध्य वर्ग और निम्न वर्ग।


14. सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) क्या है?

सामाजिक गतिशीलता का तात्पर्य है – एक व्यक्ति या समूह का एक सामाजिक स्तर से दूसरे स्तर पर स्थानांतरित होना। यह ऊपर या नीचे की दिशा में हो सकती है – जैसे निम्न वर्ग से मध्य वर्ग में पहुँचना। यह दो प्रकार की होती है – आवासीय गतिशीलता (स्थान आधारित) और व्यावसायिक गतिशीलता (कार्य आधारित)। यह समाज के खुलेपन और व्यक्ति की क्षमता को दर्शाती है।


15. परिवार की परिभाषा और प्रकार

परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई है जिसमें पति, पत्नी, बच्चे और अन्य संबंधी रहते हैं। यह व्यक्ति की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। परिवार दो प्रकार के होते हैं:

  1. सहसंयुक्‍त परिवार – जिसमें एक से अधिक पीढ़ियाँ साथ रहती हैं।
  2. नाभिकीय परिवार – जिसमें केवल माता-पिता और बच्चे होते हैं।
    परिवार सामाजिककरण, नैतिकता, संस्कार और सुरक्षा का केंद्र होता है।

16. समूह (Group) क्या है?

समूह दो या दो से अधिक व्यक्तियों का वह संग्रह होता है जो एक दूसरे के साथ नियमित संपर्क में रहते हैं और आपसी संबंधों को साझा करते हैं। समूह दो प्रकार के होते हैं:

  1. प्राथमिक समूह – जैसे परिवार, मित्र समूह।
  2. गौण समूह – जैसे स्कूल, संस्था, कंपनी।
    समूह व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार और सामाजिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

17. मानव और समाज में संबंध

मानव एक सामाजिक प्राणी है और उसका अस्तित्व समाज के बिना अधूरा है। समाज व्यक्ति को भाषा, व्यवहार, मूल्य और संस्कृति सिखाता है। वहीं व्यक्ति समाज को बनाए रखता है। यह संबंध परस्पर सहयोग पर आधारित है। जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म आदि संस्थाएँ व्यक्ति को समाज के अनुरूप बनाती हैं। इसीलिए कहा गया है – “मनुष्य समाज में जन्म लेता है, समाज के लिए।”


18. लोक और जन में अंतर

लोक समाज सीमित क्षेत्र, एकरूप संस्कृति, परंपरागत जीवन और भावनात्मक संबंधों पर आधारित होता है, जबकि जन समाज विशाल, विविधता भरा, औपचारिक और आधुनिक होता है। लोक समाज में रिश्ते घनिष्ठ होते हैं, जबकि जन समाज में औपचारिक। लोक समाज ग्रामीण क्षेत्रों में और जन समाज शहरी क्षेत्रों में पाया जाता है।


19. सांस्कृतिक सर्व relativism

यह अवधारणा कहती है कि किसी भी संस्कृति को उसकी अपनी दृष्टि से ही समझना चाहिए, न कि किसी अन्य संस्कृति के मानदंडों से। यह सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करता है और कहता है कि कोई भी संस्कृति श्रेष्ठ या हीन नहीं होती। यह दृष्टिकोण नस्लभेद और सांस्कृतिक पूर्वाग्रह को रोकने में सहायक होता है।


20. जनसंख्या वृद्धि का समाज पर प्रभाव

जनसंख्या वृद्धि समाज पर व्यापक प्रभाव डालती है – जैसे संसाधनों पर दबाव, बेरोजगारी, गरीबी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी। शहरी क्षेत्रों में झुग्गी-झोपड़ियाँ, जल प्रदूषण और यातायात की समस्याएँ भी जनसंख्या वृद्धि के परिणाम हैं। इसके प्रभाव को नियंत्रित करने हेतु परिवार नियोजन और जन-जागरूकता जरूरी है।


21. सामाजिक मूल्य (Social Values) क्या हैं?

सामाजिक मूल्य वे आदर्श और मान्यताएँ हैं जो समाज में यह निर्धारित करते हैं कि क्या सही है और क्या गलत। ये मूल्य व्यक्ति के आचरण को दिशा देते हैं और सामाजिक नियंत्रण में सहायक होते हैं। जैसे – ईमानदारी, सहयोग, सम्मान, करुणा आदि। सामाजिक मूल्यों के बिना समाज में अराजकता फैल सकती है। ये पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कृति और परंपरा के रूप में हस्तांतरित होते हैं।


22. सामाजिक मान्यता (Norms) क्या होती है?

सामाजिक मान्यताएँ वे नियम और अपेक्षाएँ हैं जिनका पालन समाज का प्रत्येक सदस्य करता है। यह बताती हैं कि किस परिस्थिति में कैसा व्यवहार उचित है। उदाहरण: बड़ों का सम्मान करना, सड़क पर ट्रैफिक नियमों का पालन करना आदि। मान्यताओं के उल्लंघन पर समाज दंड या अस्वीकार करता है। ये अनलिखित परंतु प्रभावशाली होती हैं।


23. समाज और समुदाय में अंतर

समाज एक विस्तृत अवधारणा है जिसमें विविध सामाजिक संस्थाएँ और संबंध शामिल होते हैं, जबकि समुदाय एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले लोगों का समूह होता है। समाज व्यापक और निराकार होता है जबकि समुदाय सीमित और स्थानीय होता है। जैसे – भारत एक समाज है, लेकिन एक गाँव एक समुदाय।


24. सामाजिक अनुसंधान (Social Research) क्या है?

सामाजिक अनुसंधान वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से समाजशास्त्री सामाजिक घटनाओं, व्यवहारों और संबंधों का वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं। इसका उद्देश्य समाज को बेहतर समझना, समस्याओं का समाधान खोजना और नए ज्ञान की प्राप्ति करना होता है। यह गुणात्मक (Qualitative) और मात्रात्मक (Quantitative) दोनों प्रकार का हो सकता है।


25. आदर्श प्रकार (Ideal Type) क्या है?

आदर्श प्रकार समाजशास्त्र में मैक्स वेबर द्वारा प्रतिपादित एक विश्लेषणात्मक उपकरण है। यह वास्तविकता का सामान्यीकृत रूप है जिसे अध्ययन की सुविधा के लिए तैयार किया जाता है। यह किसी सामाजिक घटना का एक शुद्ध रूप होता है, जैसे – “आदर्श नौकरशाही”। इसका उद्देश्य वास्तविक घटनाओं की तुलना करना और उनके विचलन को समझना है।


26. मानवशास्त्र और समाजशास्त्र में अंतर

मानवशास्त्र मानव की उत्पत्ति, विकास और संस्कृति का अध्ययन करता है, जबकि समाजशास्त्र वर्तमान समाज, सामाजिक संबंधों और संस्थाओं का अध्ययन करता है। मानवशास्त्र अधिकतर आदिवासी और पारंपरिक समाजों पर केंद्रित होता है, जबकि समाजशास्त्र आधुनिक समाज पर। दोनों में क्षेत्र और दृष्टिकोण का अंतर होता है।


27. सामाजिक कार्यविभाजन क्या है?

सामाजिक कार्यविभाजन वह प्रक्रिया है जिसमें समाज के विभिन्न कार्यों को विभिन्न व्यक्तियों या समूहों के बीच बाँट दिया जाता है। इसका उद्देश्य दक्षता और उत्पादन में वृद्धि करना होता है। उदाहरण के लिए – शिक्षक शिक्षा देता है, डॉक्टर इलाज करता है, किसान खेती करता है। यह समाज को संगठित और क्रियाशील बनाता है।


28. जाति व्यवस्था की विशेषताएँ

भारतीय जाति व्यवस्था जन्म आधारित है, जिसमें एक व्यक्ति का स्थान जन्म से निर्धारित होता है। इसकी विशेषताएँ हैं:

  1. जन्म से निर्धारित स्थान
  2. व्यवसाय की अनिवार्यता
  3. सामाजिक संपर्क में प्रतिबंध (छुआछूत)
  4. ऊँच-नीच की भावना
  5. अंतर-विवाह निषेध
    यह व्यवस्था स्थिर होती है परंतु आधुनिक समाज में इसका प्रभाव घट रहा है।

29. समाजीकरण के प्रमुख चरण

सामाजीकरण के प्रमुख चरण इस प्रकार हैं:

  1. प्राथमिक चरण – परिवार के माध्यम से प्रारंभिक शिक्षा।
  2. माध्यमिक चरण – विद्यालय और सहपाठियों से व्यवहार सीखना।
  3. वयस्क चरण – कार्यस्थल, विवाह, समाज में भूमिका निभाना।
    इन सभी चरणों में व्यक्ति समाज के मूल्यों और व्यवहारों को आत्मसात करता है।

30. नगरीकरण (Urbanization) क्या है?

नगरीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें जनसंख्या का एक बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर स्थानांतरित होता है। इसके कारण होते हैं – औद्योगीकरण, रोजगार की उपलब्धता, आधुनिक सुविधाएँ आदि। इसके परिणामस्वरूप शहरों में जनसंख्या दबाव, आवास की कमी, प्रदूषण, ट्रैफिक और अपराध जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।


31. सामाजिक संरचना में स्त्री की भूमिका

स्त्री सामाजिक संरचना का अभिन्न अंग है। वह परिवार की धुरी होती है – माँ, पत्नी, बहन और बेटी के रूप में। वह समाज में शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीति, अर्थव्यवस्था सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान देती है। हालांकि पारंपरिक समाज में उसे निम्न दर्जा प्राप्त था, परंतु आज वह समानता और स्वतंत्रता की दिशा में अग्रसर है।


32. समाजशास्त्र के प्रमुख संस्थापक विचारक

समाजशास्त्र के संस्थापक विचारकों में ऑगस्ट कॉम्टे (जिसने समाजशास्त्र शब्द गढ़ा), हर्बर्ट स्पेंसर, कार्ल मार्क्स, मैक्स वेबर, और एमिल दुर्खीम प्रमुख हैं। इन विचारकों ने समाज की व्याख्या विभिन्न दृष्टिकोणों – जैसे कि सामाजिक तथ्य, वर्ग संघर्ष, नौकरशाही, विकासवाद – के माध्यम से की। आज के समाजशास्त्र का आधार इन्हीं विचारों पर टिका है।


33. सामाजिक समस्याएँ क्या हैं?

सामाजिक समस्याएँ वे स्थितियाँ हैं जो समाज के बड़े हिस्से को प्रभावित करती हैं और जिनका समाधान आवश्यक होता है। उदाहरण – बेरोजगारी, गरीबी, बाल श्रम, दहेज प्रथा, नशाखोरी आदि। ये समस्याएँ सामाजिक ढाँचे, मूल्य और संसाधनों के असमान वितरण से उत्पन्न होती हैं। इनके समाधान हेतु सरकार और समाज दोनों को मिलकर प्रयास करना होता है।


34. सामूहिक व्यवहार क्या है?

सामूहिक व्यवहार वह सामाजिक घटना है जिसमें लोग किसी विशेष स्थिति में एकजुट होकर कार्य करते हैं। यह भीड़, आंदोलन, हड़ताल, दंगे आदि रूप में हो सकता है। यह व्यवहार कभी-कभी तर्कसंगत नहीं होता। यह अचानक उत्पन्न होता है और तेजी से फैलता है। इसकी विशेषता होती है – अस्थायित्व, भावनात्मकता और एकजुटता।


35. संस्कृति के घटक तत्व

संस्कृति के प्रमुख घटक तत्व हैं:

  1. भाषा – विचारों का आदान-प्रदान।
  2. मान्यता (Norms) – सामाजिक व्यवहार के नियम।
  3. मूल्य (Values) – अच्छे-बुरे का निर्धारण।
  4. विश्वास – धार्मिक और सामाजिक विश्वास प्रणाली।
  5. कला और साहित्य – सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के माध्यम।
    ये सभी तत्व समाज को दिशा और पहचान प्रदान करते हैं।

36. सामाजिक एकता क्या है?

सामाजिक एकता (Social Unity) का अर्थ है – समाज के विभिन्न वर्गों, समुदायों और समूहों में एकजुटता, सहयोग और समन्वय की भावना। यह समाज के विकास और स्थायित्व के लिए आवश्यक है। सामाजिक एकता के बिना समाज में विघटन, संघर्ष और अराजकता फैल सकती है। सामाजिक एकता को बढ़ावा देने वाले तत्वों में समान मूल्य, भाषा, धर्मनिरपेक्षता, समान शिक्षा, सहिष्णुता आदि आते हैं। भारत जैसे विविधताओं वाले देश में सामाजिक एकता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।


37. समाजशास्त्र का उद्देश्य

समाजशास्त्र का उद्देश्य समाज की संरचना, संस्थाओं, प्रक्रियाओं और समस्याओं का वैज्ञानिक विश्लेषण करना है। यह व्यक्ति और समाज के बीच संबंधों को समझने में सहायता करता है। इसका मुख्य उद्देश्य सामाजिक यथार्थ की खोज करना, सामाजिक समस्याओं का समाधान खोजना, सामाजिक चेतना जागृत करना और सामाजिक सुधार की दिशा में मार्गदर्शन करना है।


38. परिवार और विवाह में अंतर

परिवार एक सामाजिक संस्था है जिसमें पति-पत्नी, बच्चे और अन्य संबंधी साथ रहते हैं, जबकि विवाह वह सामाजिक अनुबंध है जो पुरुष और स्त्री को पति-पत्नी के रूप में जोड़ता है। विवाह परिवार की स्थापना की आधारशिला है। विवाह एक विशेष आयोजन है, जबकि परिवार एक जीवनशैली है। विवाह एक घटना है, परिवार एक संस्था।


39. सामाजिक परिवर्तन के कारक

सामाजिक परिवर्तन के मुख्य कारक हैं:

  1. तकनीकी प्रगति – जैसे इंटरनेट, मशीनें।
  2. शिक्षा – चेतना और दृष्टिकोण में परिवर्तन।
  3. जनसंख्या वृद्धि – संसाधनों पर दबाव।
  4. आर्थिक विकास – रोज़गार, जीवनशैली में बदलाव।
  5. राजनीतिक परिवर्तन – लोकतंत्र, कानून।
  6. धार्मिक आंदोलन – चेतना और जागरूकता।
    ये सभी समाज की संरचना और कार्यप्रणाली को प्रभावित करते हैं।

40. लोकाचार (Folkways) और नैतिकता (Mores) में अंतर

लोकाचार वे साधारण सामाजिक नियम हैं जिनका पालन करने से व्यक्ति समाज में स्वीकार्य बनता है, जैसे – अभिवादन करना।
नैतिकता वे अनिवार्य नियम हैं जिनका उल्लंघन सामाजिक दंड का कारण बनता है, जैसे – चोरी न करना।
लोकाचार का उल्लंघन केवल उपेक्षा पैदा करता है, जबकि नैतिकता का उल्लंघन समाज में अपमानजनक होता है।


41. शहरीकरण की विशेषताएँ

शहरीकरण की मुख्य विशेषताएँ हैं:

  1. जनसंख्या का शहरों की ओर पलायन।
  2. औद्योगीकरण और रोजगार के नए अवसर।
  3. जीवनशैली में बदलाव और व्यक्तिवाद।
  4. आवास, जल, बिजली की समस्याएँ।
  5. सामाजिक संबंधों में औपचारिकता।
    शहरीकरण आधुनिक समाज का संकेत है, परंतु यह कई सामाजिक समस्याओं को भी जन्म देता है।

42. सामाजिक गतिशीलता के प्रकार

सामाजिक गतिशीलता दो मुख्य प्रकार की होती है:

  1. ऊर्ध्वगामी गतिशीलता – जब व्यक्ति ऊँचे सामाजिक स्तर पर पहुँचता है।
  2. निम्नगामी गतिशीलता – जब व्यक्ति निम्न स्तर पर गिरता है।
    इसके अलावा:
  • आवधिक गतिशीलता (Inter-generational) – पीढ़ियों के बीच परिवर्तन।
  • आंतरिक गतिशीलता (Intra-generational) – एक ही जीवनकाल में परिवर्तन।
    यह समाज के खुलेपन और व्यक्तियों की योग्यता को दर्शाता है।

43. धर्म का समाज में महत्व

धर्म समाज में नैतिकता, अनुशासन, एकता और उद्देश्य की भावना को जन्म देता है। यह व्यक्ति को आध्यात्मिकता, सहिष्णुता और कर्तव्यबोध सिखाता है। धर्म सामाजिक एकता को बढ़ाता है, परंतु जब कट्टरता आती है तो यह संघर्ष का कारण बनता है। धर्म सामाजिक नियंत्रण का एक शक्तिशाली साधन है।


44. जनजाति और जाति में अंतर

जनजाति एक प्राचीन, सरल और स्वशासित समाज है जो जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करता है। जबकि जाति जन्म आधारित सामाजिक व्यवस्था है जो हिंदू समाज में पाई जाती है।
जनजातियों में समानता और सामूहिक जीवन होता है, जबकि जाति व्यवस्था में ऊँच-नीच और भेदभाव होता है।


45. सामाजिक भिन्नता क्या है?

सामाजिक भिन्नता का अर्थ है – समाज में विभिन्न लक्षणों के आधार पर व्यक्तियों और समूहों में पाया जाने वाला अंतर। जैसे – लिंग, जाति, धर्म, भाषा, संस्कृति आदि के आधार पर विविधता। यह भिन्नता कभी सामाजिक विविधता बनती है और कभी भेदभाव का कारण। लोकतांत्रिक समाजों में इसे पहचान और अधिकार के रूप में स्वीकारा जाता है।


46. समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण क्या होता है?

समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण का अर्थ है – किसी सामाजिक घटना या व्यवहार को सामाजिक संदर्भ में देखकर समझना। यह व्यक्ति के व्यक्तिगत अनुभवों को सामाजिक संरचना, संस्थाओं और मूल्यों से जोड़कर विश्लेषण करता है। यह दृष्टिकोण व्यापक, निष्पक्ष और वैज्ञानिक होता है, जो “व्यक्तिगत मुसीबतों को सामाजिक समस्याओं” से जोड़ता है।


47. लिंग और जेंडर में अंतर

लिंग (Sex) जैविक आधार पर पुरुष और स्त्री में भेद को दर्शाता है।
जेंडर (Gender) सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिका है, जैसे – पुरुषों से उम्मीद कि वे कमाएँ और स्त्रियों से कि वे घर चलाएँ।
लिंग जन्मजात होता है, जबकि जेंडर सीखा हुआ व्यवहार है। समाजशास्त्र में जेंडर असमानता एक प्रमुख अध्ययन विषय है।


48. बहुविवाह और एकविवाह में अंतर

एकविवाह वह प्रणाली है जिसमें एक समय में केवल एक पति या पत्नी होती है।
बहुविवाह वह है जिसमें एक से अधिक विवाह एक ही समय में होते हैं।
बहुविवाह दो प्रकार का होता है:

  1. बहुपत्नीत्व – एक पुरुष, कई पत्नियाँ।
  2. बहुपतित्व – एक स्त्री, कई पति।
    आधुनिक समाज में एकविवाह को अधिक नैतिक और व्यावहारिक माना जाता है।

49. समाज में शिक्षा की भूमिका

शिक्षा समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह व्यक्ति को ज्ञान, कौशल, नैतिकता और सामाजिक मूल्यों से संपन्न बनाती है। शिक्षा सामाजिक समानता, सामाजिकरण और सामाजिक परिवर्तन का माध्यम है। यह वर्ग भेद, जातिवाद और लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने का मार्ग प्रशस्त करती है। शिक्षित समाज ही प्रगतिशील समाज होता है।


50. समाज और संस्कृति में संबंध

समाज और संस्कृति परस्पर पूरक हैं। समाज में रहने वाले लोग संस्कृति का पालन करते हैं और संस्कृति समाज में व्यवस्था बनाए रखती है। समाज संस्कृति का वाहक है और संस्कृति समाज का जीवन रूप। समाज के बिना संस्कृति नहीं, और संस्कृति के बिना समाज अधूरा है। दोनों के बीच घनिष्ठ संबंध होता है जो मानव जीवन को दिशा प्रदान करता है।