📜 “संविधान की छठी अनुसूची: पूर्वोत्तर भारत की जनजातीय स्वायत्तता और सांस्कृतिक संरक्षण का संवैधानिक आधार”
प्रस्तावना
भारत का संविधान न केवल एक कानूनी दस्तावेज है, बल्कि यह भारत की विविधता, परंपराओं, संस्कृतियों और विभिन्न समुदायों के अधिकारों का संरक्षक भी है। संविधान निर्माताओं ने यह भलीभांति समझा कि भारत एक बहुजातीय, बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश है, जहाँ हर क्षेत्र की अपनी विशिष्टता और सामाजिक पृष्ठभूमि है। विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत के राज्यों — असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम — में जनजातीय समुदायों की जनसंख्या अधिक है, जिनकी संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली देश के अन्य हिस्सों से भिन्न है।
इन्हीं जनजातीय समुदायों के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक हितों की रक्षा करने और उन्हें स्वायत्तता प्रदान करने के लिए भारतीय संविधान में “छठी अनुसूची” (Sixth Schedule) का प्रावधान किया गया।
संवैधानिक आधार और उत्पत्ति
संविधान की छठी अनुसूची का संबंध अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275(1) से है।
इन अनुच्छेदों के अंतर्गत यह सुनिश्चित किया गया कि पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिए विशेष व्यवस्था की जाए।
संविधान सभा की उपसमिति, जिसे “बोर्डोली समिति” (Bordoloi Committee) के नाम से जाना जाता है, ने जनजातीय स्वायत्तता की इस अवधारणा को आकार दिया।
यह समिति असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपालचंद्र बोर्डोलोई की अध्यक्षता में गठित की गई थी, जिसने यह सिफारिश की कि जनजातीय समुदायों को उनके सामाजिक और सांस्कृतिक ढांचे के अनुसार शासन करने की स्वतंत्रता दी जाए।
छठी अनुसूची का उद्देश्य
छठी अनुसूची का मुख्य उद्देश्य उन क्षेत्रों को स्वायत्तता (Autonomy) प्रदान करना है, जहाँ जनजातीय जनसंख्या प्रमुख है।
इसका उद्देश्य इन समुदायों को आत्मनिर्णय (Self-Determination) और स्वशासन (Self-Governance) का अधिकार देना है ताकि वे अपनी पारंपरिक संस्थाओं, रीति-रिवाजों और स्थानीय प्रशासनिक ढांचे के अनुसार कार्य कर सकें।
मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- जनजातीय क्षेत्रों की संस्कृति और परंपराओं की रक्षा करना।
- स्थानीय प्रशासन में जनजातीय प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।
- आर्थिक और सामाजिक विकास के साथ-साथ पारंपरिक पहचान को सुरक्षित रखना।
- बाहरी हस्तक्षेप को सीमित कर आत्मनिर्भर शासन प्रणाली को प्रोत्साहन देना।
- जनजातीय क्षेत्रों को संविधान के तहत विशिष्ट दर्जा प्रदान करना।
छठी अनुसूची के अंतर्गत क्षेत्र
छठी अनुसूची का अनुप्रयोग चार राज्यों पर होता है —
असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम।
भाग I – असम
- उत्तर-कछार हिल्स जिला (दिमा हाओ)
- कार्बी आंगलोंग जिला
- बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र जिला
भाग II – मेघालय
- खासी हिल्स जिला
- जयंतिया हिल्स जिला
- गारो हिल्स जिला
भाग IIA – त्रिपुरा
- त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र जिला (Tripura Tribal Areas District)
भाग III – मिजोरम
- चकमा जिला
- मारा जिला
- लाई जिला
इन सभी जिलों में स्वायत्त जिला परिषदें (Autonomous District Councils – ADCs) कार्यरत हैं, जो स्थानीय शासन की मुख्य इकाई हैं।
प्रशासनिक संरचना
छठी अनुसूची के अंतर्गत मुख्य प्रशासनिक इकाई है —
स्वायत्त जिला परिषद (Autonomous District Council – ADC)
1. गठन और संरचना
- प्रत्येक जिला परिषद में अधिकतम 30 सदस्य होते हैं।
- इनमें से 26 सदस्य प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने जाते हैं, जबकि 4 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाते हैं।
- परिषद का कार्यकाल सामान्यतः 5 वर्ष का होता है।
2. राज्यपाल की शक्तियाँ
- राज्यपाल को नए स्वायत्त जिले बनाने, उनकी सीमाएँ बदलने या नाम परिवर्तित करने का अधिकार है।
- राज्यपाल परिषद द्वारा बनाए गए कानूनों को स्वीकृति या अस्वीकृति देने का भी अधिकार रखते हैं।
3. परिषद की समितियाँ और संस्थान
- परिषदें अपने कार्यों को पूरा करने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, वन, भूमि, राजस्व, पंचायत, और न्यायिक विषयों पर समितियाँ गठित कर सकती हैं।
- प्रत्येक परिषद के अंतर्गत स्वायत्त क्षेत्रीय परिषदें भी बनाई जा सकती हैं।
विधायी शक्तियाँ
स्वायत्त जिला परिषदों को सीमित परंतु प्रभावी विधायी शक्तियाँ प्राप्त हैं।
वे निम्नलिखित विषयों पर कानून बना सकती हैं:
- भूमि का उपयोग और स्थानांतरण
- वन प्रबंधन (राज्य के अधीन वन छोड़कर)
- ग्राम या नगर प्रशासन
- विवाह और तलाक के स्थानीय रीति-रिवाज
- उत्तराधिकार, सामाजिक रीति-रिवाज और जनजातीय कानून
शर्त:
किसी भी कानून को प्रभावी होने के लिए राज्यपाल की स्वीकृति आवश्यक है।
कार्यकारी शक्तियाँ
स्वायत्त परिषदें अपने अधिकार क्षेत्र में कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करती हैं। इनमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित शामिल हैं:
- शैक्षणिक संस्थान: स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना और संचालन।
- स्वास्थ्य सेवाएँ: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और औषधालयों की स्थापना।
- बाज़ार और सड़कें: स्थानीय बाजारों, सड़कों और पुलों का निर्माण व रखरखाव।
- कृषि और जल संसाधन: कृषि योजनाओं का क्रियान्वयन और जल संसाधनों का प्रबंधन।
न्यायिक शक्तियाँ
छठी अनुसूची के तहत परिषदों को सीमित न्यायिक अधिकार भी प्राप्त हैं।
वे जनजातीय रीति-रिवाजों और परंपराओं पर आधारित ग्राम न्यायालय (Village Courts) गठित कर सकती हैं, जो स्थानीय विवादों का निपटारा करती हैं।
- इन न्यायालयों का अधिकार केवल जनजातीय मामलों और परंपरागत अपराधों तक सीमित है।
- गंभीर अपराधों या गैर-जनजातीय मामलों में राज्य सरकार के अधीन न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र बना रहता है।
वित्तीय शक्तियाँ
स्वायत्त परिषदों को सीमित वित्तीय अधिकार प्राप्त हैं, जिनमें शामिल हैं:
- भू-राजस्व और भूमि कर का निर्धारण व वसूली।
- स्थानीय व्यापार, बाज़ार, जल और परिवहन पर कर लगाना।
- राज्य सरकार से वार्षिक अनुदान (Grant-in-aid) प्राप्त करना।
- परिषदों को केंद्र और राज्य सरकार से वित्तीय सहायता भी दी जाती है।
इस प्रकार, परिषदें अपने आर्थिक स्रोतों के माध्यम से क्षेत्रीय विकास योजनाएँ संचालित करती हैं।
महत्व और उद्देश्य
छठी अनुसूची का महत्व केवल प्रशासनिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मुख्य उद्देश्यों में शामिल हैं:
- संस्कृति और परंपरा की रक्षा:
जनजातीय समाज की विशिष्टता, परंपराएँ और सामाजिक प्रणाली को संविधानिक संरक्षण देना। - स्वशासन का अधिकार:
जनजातीय लोगों को उनकी भूमि और संसाधनों पर नियंत्रण का अधिकार देना। - राजनीतिक सशक्तिकरण:
स्वायत्त परिषदों के माध्यम से स्थानीय नेतृत्व को विकसित करना। - संघीय ढांचे की मजबूती:
संविधान में एकता के साथ विविधता का सिद्धांत (Unity in Diversity) साकार करना।
छठी अनुसूची और पंचायती राज व्यवस्था में अंतर
| बिंदु | छठी अनुसूची क्षेत्र | पंचायती राज व्यवस्था |
|---|---|---|
| क्षेत्राधिकार | जनजातीय क्षेत्र (पूर्वोत्तर भारत) | सामान्य ग्रामीण क्षेत्र |
| संवैधानिक आधार | अनुच्छेद 244(2) और छठी अनुसूची | अनुच्छेद 243 और ग्यारहवीं अनुसूची |
| प्रशासनिक इकाई | स्वायत्त जिला परिषद | ग्राम पंचायत / जिला परिषद |
| विधायी शक्तियाँ | सीमित परंतु स्वशासी | सीमित (राज्य सरकार के अधीन) |
| संस्कृति पर ध्यान | स्थानीय परंपराओं और रीति-रिवाजों की रक्षा | सामान्य ग्रामीण प्रशासन |
छठी अनुसूची की उपलब्धियाँ
- जनजातीय पहचान और परंपराओं की सुरक्षा।
- शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार।
- राजनीतिक भागीदारी और स्वायत्त प्रशासन का विकास।
- स्थानीय विवादों के समाधान में न्यायिक सरलता।
- संसाधनों के स्थानीय प्रबंधन की प्रणाली।
चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
हालांकि छठी अनुसूची का उद्देश्य सराहनीय है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में कुछ व्यावहारिक समस्याएँ सामने आई हैं:
- वित्तीय संसाधनों की कमी: परिषदों के पास पर्याप्त वित्तीय साधन नहीं हैं।
- राज्य सरकार से टकराव: कुछ मामलों में राज्य सरकार और परिषदों के बीच अधिकार क्षेत्र को लेकर विवाद।
- भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप: कुछ परिषदों में पारदर्शिता की कमी देखी गई है।
- असमान विकास: सभी जिलों में समान रूप से विकास नहीं हुआ।
- आधुनिक प्रशासन से टकराव: पारंपरिक शासन प्रणाली और आधुनिक कानूनी व्यवस्था के बीच तालमेल की कमी।
निष्कर्ष
संविधान की छठी अनुसूची भारतीय लोकतंत्र की एक अनूठी और दूरदर्शी व्यवस्था है, जिसने जनजातीय समुदायों को न केवल संवैधानिक पहचान दी, बल्कि उन्हें अपने सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक भविष्य को स्वयं आकार देने का अधिकार भी प्रदान किया।
यह अनुसूची भारत के संघीय ढांचे में विविधता की स्वीकार्यता और आत्मनिर्णय के सिद्धांत की सजीव मिसाल है।
हालांकि, इसके सफल क्रियान्वयन के लिए आवश्यक है कि राज्य और केंद्र सरकारें मिलकर इन परिषदों को पर्याप्त वित्तीय और प्रशासनिक सहायता दें, ताकि इन क्षेत्रों में विकास और सांस्कृतिक संरक्षण दोनों साथ-साथ आगे बढ़ सकें।
इस प्रकार, छठी अनुसूची न केवल भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए, बल्कि पूरे भारतीय संघ के लोकतांत्रिक और सांस्कृतिक ताने-बाने के लिए एक मजबूत स्तंभ है —
“जहाँ विविधता में एकता, और परंपरा में प्रगति का संतुलन दिखाई देता है।”