शीर्षक: संविदा पर कार्यरत सरकारी वकीलों को नियमित नियुक्ति का हक नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी, कहा – संविदा सेवा स्थायी नियुक्ति का आधार नहीं
प्रस्तावना
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट कर दिया है कि संविदा (Contractual) आधार पर कार्यरत सरकारी वकील नियमित नियुक्ति (Regularisation) के हकदार नहीं हैं। इस निर्णय में अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि संविदा पर कार्य करना स्थायी नियुक्ति का कानूनी या संवैधानिक आधार नहीं हो सकता। यह फैसला न केवल संविदा कर्मचारियों के लिए दिशा-निर्देशक है, बल्कि सरकारी सेवाओं में नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता और संविधानसम्मतता को भी पुष्ट करता है।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता एक राज्य सरकार के अधीन संविदा पर कार्यरत सरकारी वकील (Government Counsel) थे, जिन्होंने वर्षों तक सेवा दी थी। उनका तर्क था कि चूंकि उन्होंने दीर्घकाल तक सरकार के लिए कार्य किया है, इसलिए उन्हें स्थायी पद पर नियुक्त किया जाना चाहिए। याचिका में उन्होंने समान कार्य के लिए समान वेतन और नियमितीकरण की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और निर्णय
न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा की पीठ ने स्पष्ट किया कि–
“केवल लंबे समय तक संविदा पर सेवा देना नियमित नियुक्ति का आधार नहीं बन सकता। यदि नियुक्ति संविदा पर की गई थी और वह भी बिना उचित चयन प्रक्रिया के, तो ऐसी सेवा से किसी प्रकार का अधिकार उत्पन्न नहीं होता।”
अदालत ने यह भी कहा कि संवैधानिक पदों और सरकारी सेवाओं में नियुक्ति एक सुनियोजित चयन प्रक्रिया के माध्यम से ही होनी चाहिए। नियमितीकरण की मांग तभी उचित मानी जा सकती है जब नियुक्ति नियमबद्ध प्रक्रिया के अंतर्गत हुई हो।
न्यायशास्त्रीय आधार
सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्ववर्ती निर्णयों का भी उल्लेख किया, विशेषतः “State of Karnataka v. Umadevi (2006)” केस, जिसमें यह सिद्धांत स्थापित किया गया था कि अस्थायी या संविदा कर्मियों को नियमित करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन हो सकता है, क्योंकि इससे समान अवसर के सिद्धांत पर आघात होता है।
प्रभाव और निहितार्थ
यह फैसला देशभर के उन लाखों संविदा कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ बिंदु है, जो वर्षों तक सेवा देने के बाद नियमितीकरण की अपेक्षा रखते हैं। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि नियुक्तियों में पारदर्शिता, योग्यता और चयन प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है और सेवा की अवधि या अनुभव इसका विकल्प नहीं हो सकता।
विधिक विश्लेषण
यह निर्णय न्यायालय की उस स्थायी मान्यता को पुनः पुष्टि करता है कि सरकारी नौकरियों में ‘Backdoor Entry’ को मान्यता नहीं दी जा सकती। संविदा कर्मियों की स्थिति और अधिकार सीमित होते हैं और उन्हें नियमित कर्मचारियों के समकक्ष नहीं माना जा सकता, जब तक कि नियुक्ति की प्रक्रिया विधिसम्मत न हो।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था में नियुक्ति प्रक्रिया की मर्यादा को बनाए रखने के लिए एक मजबूत कदम है। यह आदेश स्पष्ट संदेश देता है कि सरकारी सेवा में स्थायित्व का अधिकार केवल चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता और नियमबद्धता से ही प्राप्त किया जा सकता है, न कि संविदा की अवधि या सेवा के अनुभव से। यह निर्णय संविदा पर कार्यरत कर्मियों के लिए एक यथार्थवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है और विधिसम्मत मार्ग से नियुक्ति की आवश्यकता को रेखांकित करता है।