“संपत्ति के स्वामित्व विवाद के आधार पर पंजीकरण अस्वीकृत नहीं किया जा सकता: गुजरात उच्च न्यायालय का निर्णय”

📘 लेख शीर्षक:
“संपत्ति के स्वामित्व विवाद के आधार पर पंजीकरण अस्वीकृत नहीं किया जा सकता: गुजरात उच्च न्यायालय का निर्णय”
(Registration Act, 1908 – Sections 32 & 35 | Registration Rules – Rule 45)


🔍 परिचय:

गुजरात उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि पंजीयन अधिकारी (Registering Authority) को संपत्ति के स्वामित्व विवाद (title disputes) या लेन-देन की वैधता को लेकर दस्तावेज़ों के पंजीकरण से इन्कार करने का कोई अधिकार नहीं है।
Registration Rules, Rule 45 के अनुसार, अधिकारी की भूमिका केवल औपचारिकताओं की जांच तक सीमित है और वह दस्तावेज़ की कानूनी वैधता या स्वामित्व विवाद में नहीं पड़ सकता।


⚖️ प्रमुख विधिक प्रावधानों का विश्लेषण:

1. पंजीकरण अधिनियम, 1908 – धारा 32:

दस्तावेज़ का पंजीकरण केवल तभी किया जा सकता है जब वह उचित पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत किया जाए।

2. पंजीकरण अधिनियम – धारा 35:

पंजीयन अधिकारी को दस्तावेज़ प्रस्तुत करने वाले की पहचान और हस्ताक्षर की पुष्टि करनी होती है।
यदि पक्षकार उपस्थित नहीं है या उसकी पहचान संदेहास्पद है, तभी अधिकारी पंजीकरण रोक सकता है।

3. पंजीकरण नियम – नियम 45:

अधिकारी को दस्तावेज़ की कानूनी वैधता, स्वामित्व विवाद या अतिक्रमण (encumbrances) की जांच नहीं करनी चाहिए।
केवल प्रक्रिया और औपचारिकताओं (जैसे स्टांप शुल्क, पहचान, गवाह) की पूर्ति ही उसके अधिकार-क्षेत्र में आती है।


🧾 गुजरात उच्च न्यायालय का निर्णय – प्रमुख बिंदु:

  1. पंजीयन अधिकारी दस्तावेज़ को खारिज नहीं कर सकता यदि सभी औपचारिकताएं पूरी हैं, भले ही संपत्ति पर स्वामित्व विवाद हो।
  2. स्वामित्व या वैधता का विवाद सिविल न्यायालय द्वारा तय किया जाना है, न कि पंजीकरण कार्यालय द्वारा।
  3. पंजीयन प्रक्रिया को सरल, निष्पक्ष और बाधारहित बनाए रखने के लिए यह सीमाएं महत्वपूर्ण हैं।
  4. अधिकारी को पंजीकरण के दौरान केवल निम्न बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए:
    • क्या दस्तावेज़ स्टांप अधिनियम के अनुसार पर्याप्त शुल्क पर है?
    • क्या प्रस्तुतकर्ता अधिकृत व्यक्ति है?
    • क्या पहचान और हस्ताक्षर वैध हैं?
    • क्या नियमानुसार गवाह उपस्थित हैं?

🧠 न्यायिक नीति और प्रशासनिक सीमाएं:

  • यह निर्णय प्रशासनिक अधिकारियों के अधिकारों की सीमाएं तय करता है।
  • यदि अधिकारी को दस्तावेज़ में वैधता संबंधी आपत्ति है, तो उसे संबंधित पक्ष को सिविल न्यायालय जाने की सलाह देनी चाहिए, न कि दस्तावेज़ खारिज करना।
  • इस प्रकार का निर्णय संपत्ति लेन-देन की प्रक्रिया को प्रशासनिक अड़चनों से मुक्त करता है।

📌 निर्णय का प्रभाव और महत्व:

  • यह निर्णय उन लोगों के लिए राहत है जिन्हें पंजीयन कार्यालय द्वारा अनुचित रूप से रोक दिया जाता है।
  • इससे यह स्पष्ट होता है कि पंजीयन अधिकारी न्यायिक अधिकारी नहीं है, और उन्हें केवल प्रक्रियात्मक जांच करनी होती है।
  • न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि संपत्ति से संबंधित कोई विवाद केवल प्रासंगिक न्यायालय द्वारा ही सुलझाया जा सकता है।

✍️ निष्कर्ष:

गुजरात उच्च न्यायालय का यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि पंजीकरण प्रक्रिया केवल औपचारिकताओं पर आधारित होनी चाहिए, न कि संपत्ति की वैधता या स्वामित्व विवाद की जांच पर। यह निर्णय विधिक प्रक्रिया की दक्षता, नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा, और प्रशासनिक न्यायिक सीमाओं के स्पष्ट निर्धारण की दिशा में एक सशक्त कदम है।