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“संघ में दृढता: CJI B. R. Gavai और संविधान व अम्बेडकर के प्रति श्रद्धांजलि — संघर्ष, विषयार्थ और संदेश”

“संघ में दृढता: CJI B. R. Gavai और संविधान व अम्बेडकर के प्रति श्रद्धांजलि — संघर्ष, विषयार्थ और संदेश”


प्रस्तावना

मुख्य न्यायाधीश (CJI) B. R. Gavai ने हाल ही में एक समारोह में कहा:

“The country has remained united and on the path of development in war and peace. We have seen internal Emergency as well, but we have remained strong and united. It is because of Dr. Babasaheb Ambedkar’s Constitution.”

यह कथन केवल एक भाषण नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र, संविधान, सामाजिक समरसता और दीर्घकालीन स्थिरता पर गहरा विचारार्थ प्रस्तुत करता है। यह बताता है कि वर्तमान न्यायपालिका किस दृष्टिकोण से संविधान को देखती है — एक संरक्षक, एक प्रेरक और एक एकता-संग्रहक रूप में।

इस लेख में हम निम्न पहलुओं की बड़े विस्तार से विवेचना करेंगे:

  1. इस कथन का पृष्ठभूमि एवं अवसर
  2. CJI Gavai के विचारों का विश्लेषण
  3. संविधान-निर्माता Dr. B. R. Ambedkar का योगदान और उनका दृष्टिकोण
  4. “संघ और संविधान” के बीच तनाव, विशेषधिकार और रक्षा
  5. विविध आलोचनाएँ और बहस
  6. निष्कर्ष: इस वक्तव्य का संदेश और इसका समयोचित महत्व

1. पृष्ठभूमि एवं अवसर

समारोह और सन्दर्भ

CJI Gavai ने यह कथन Ratnagiri (महाराष्ट्र) में Mandangad नामक स्थान पर एक नए न्यायालय भवन के उद्घाटन समारोह में कहा। इस स्थान का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह Ambedkar की पैतृक क्षेत्र से नज़दीक है।

उद्घाटन के अवसर पर उन्होंने कहा कि संविधान ने युद्धकाल, शांतिपूर्ण समय और आंतरिक संकट — जैसे आपातकाल — सब समय देश को एकता और स्थिरता के पथ पर रखा है।

उन्होंने यह भी कहा कि संविधान वह धुरी है जिसके कारण भारत ने विभाजन, तनाव और चुनौतियों के बावजूद एक राष्ट्र के रूप में खड़ा रह सका।

इस वक्तव्य ने मीडिया और सार्वजनिक विमर्श में व्यापक चर्चा उत्पन्न की। नागरिक, विधिवेत्ता, सामाजिक विचारक — सभी इस विचार पर रुके कि क्या वास्तव में संविधान ने इतना बड़ा योगदान किया है या यह केवल एक आदर्शवाद की अभिव्यक्ति है।


2. CJI Gavai के विचारों का विश्लेषण

CJI Gavai अपने वक्तव्यों में एक स्पष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं — कि संविधान केवल कागज़ की किताब नहीं, बल्कि जीवंत संरचना है जो राष्ट्रीय एकता, न्याय और विकास का आधार रही है।

(a) “War and Peace / Internal Emergency”

  • उनके अनुसार, भारत ने युद्धकाल (War) — जहां आंतरिक या बाह्य युद्ध हो सकते थे — और शांति काल (Peace) — जब देश सामान्य गतिविधियों पर था — दोनों परिस्थितियों में संविधान की शक्ति ने देश को स्थिर रखा।
  • उन्होंने विशेष रूप से आंतरिक आपातकाल (Internal Emergency) का उल्लेख किया — 1975–1977 की अवधि — जब संविधान और लोकतंत्र पर बड़ा संकट आया। फिर भी उन्होंने कहा कि संविधान ही वह ढांचा था जिसने राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक शासन को बनाए रखा।

यह कथन यह सुझाव देता है कि संविधान केवल कानून निर्माण का उपकरण नहीं है, बल्कि एक संविधानिक ढाल (constitutional bulwark) है जो संकटों में देश को जोड़ता है।

(b) “Because of Dr. Babasaheb Ambedkar’s Constitution”

  • CJI Gavai ने स्पष्ट किया कि यह संविधान Dr. B. R. Ambedkar की दूरदृष्टि और संघर्ष का फल है — एक ऐसा संविधान जो विविधता और एकता दोनों को समेट सके।
  • उन्होंने यह भी कहा कि Ambedkar ने संविधान को इस तरह रचा कि वह न केवल कानूनी दृष्टिकोण से सुसंगत हो, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और अधिकारों की रक्षा में भी सक्षम हो।
  • अन्य संबोधित अवसरों में भी Gavai ने Ambedkar की विचारधारा को लगातार उद्धृत किया है — जैसे उन्होंने आर्टिकल 370 को Ambedkar के “one constitution / one nation” दृष्टिकोण के खिलाफ बताया।

इस तरह, वह वर्तमान संवैधानिक संकटों, विवादों और चुनौतियों के संदर्भ में Ambedkar की अवधारणा को पुनर्जीवित करना चाहते हैं।


3. Dr. B. R. Ambedkar — संविधान निर्माता की दृष्टि

(a) संविधान निर्माण एवं प्रमेय

Dr. B. R. Ambedkar को आजीवन इस तथ्य से जाना जाता है कि उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण समिति (Drafting Committee) के प्रमुख के रूप में एक विविध और समावेशी दस्तावेज तैयार किया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि संविधान न केवल कानूनी ढाँचा हो, बल्कि सामाजिक न्याय और अधिकारों की गारंटी भी हो।

Ambedkar ने न केवल विधायी अधिकारों (Fundamental Rights) की रक्षा सुनिश्चित की, बल्कि दिशात्मक सिद्धांत (Directive Principles of State Policy) को भी संविधान में शामिल किया ताकि शासन नीति सामाजिक और आर्थिक न्याय की दिशा में ही हो।

(b) एक संविधान, एक राष्ट्र — संघवाद की सीमा

Ambedkar की दृष्टि में भारत को एक राष्ट्र के रूप में बनाये रखना निहायत आवश्यक था। उन्होंने यह माना कि विभिन्न राज्यों और भाषाई विविधताओं के बावजूद एक ही संविधान होना चाहिए। इस कारण उन्होंने भारत के लिए “एक संविधान — एक राष्ट्र” की अवधारणा का समर्थन किया।

Example के रूप में, CJI Gavai ने यह कहा कि Article 370 (जिसने जम्मू एवं कश्मीर को विशेष दर्जा दिया था) Ambedkar की “एक संविधान” की दृष्टि के विरोधी था, और सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द किया, जिसे उन्होंने संविधान की अखंडता के पक्ष में एक कदम माना।

(c) संविधान की “स्वयं संतुलन” क्षमता

Ambedkar ने यह भरोसा जताया कि संविधान को इस तरह तैयार किया जाए कि वह स्वयं समय के अनुसार परिवर्तित हो सके — यानी वह एक स्थिर लेकिन लचीला दस्तावेज हो। Gavai ने इसे “living document” कहा है — जो बदलती परिस्थितियों में भी प्रयुक्त हो सके।

इसलिए, जब Gavai कहता है कि संविधान ने युद्ध और संकटों में देश को एक बनाए रखा, तो वह Ambassador की उस उम्मीद और ढाँचे को पुनर्स्थापित करना चाहता है जिसे Ambedkar ने सुपुर्द किया था।


4. संविधान और राष्ट्र: संघर्ष, तनाव व रक्षा

जब हम इस कथन को व्यापक दृष्टिकोण से देखें, तो कई विरोधाभासी और जटिल पहलू सामने आते हैं:

(a) लोकतंत्र बनाम संकट

भारत ने विभाजन, युद्ध, युद्धपाठ, आपातकाल — अनेक चुनौतियाँ देखी हैं। कभी संघीय ढाँचे पर परीक्षण हुआ है, कभी सामाजिक संघर्षों ने एकता को झँका लिया। इस बीच संविधान ने एक “साझा बंधन” का काम किया — यानी लोगों को यह याद दिलाया कि हम विधि के अंतर्गत बँधे हैं।

CJI Gavai का कथन इस भरोसे का सुदृढीकरण है कि संकट में भी संविधान और न्याय की प्रणाली रक्षा करती है।

(b) विवाद: शक्ति संघर्ष और संसदीय संशोधनों

संविधान में समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं। कुछ संशोधन विवादित रहे — ज्यूँ 42वां, 44वां संशोधन (आपातकाल बाद) — यह प्रश्न खड़ा करता है कि संविधान कितनी हद तक संसदीय इच्छानुसार बदला जाना चाहिए।

CJI Gavai ने “Constitution is supreme, not Parliament” की पंक्ति कही है, यह संकेत देते हुए कि संसद को संविधान की मूल संरचना (basic structure) को नहीं तोड़ना चाहिए।

(c) आलोचनाएँ और सीमाएँ

  • यह कहा जा सकता है कि संविधान ने कुछ क्षेत्रों में अपेक्षानुसार न्याय नहीं किया है — जाति आधारित भेदभाव, सामाजिक विसंगतियाँ, आर्थिक असमानताएँ अभी भी मौजूद हैं।
  • यह दावा कि “हम आपातकाल में भी एक रहे” थोड़ा आदर्श हो सकता है — आपातकाल की अवधि में नागरिक अधिकार निलंबित हुए थे, मीडिया पर नियंत्रण था, और राजनीतिक प्रतिरोध दबा दिया गया था।
  • इसलिए यह वक्तव्य पूरी तरह सकारात्मक भव्य वक्तव्य हो सकता है — जो चुनौतीपूर्ण समय में प्रेरणा देता है, पर वास्तविकता की कड़ी समीक्षा से नहीं बचे।

5. बहस एवं आलोचनाएँ

इस प्रकार के वक्तव्यों पर अक्सर निम्न प्रकार की बहस होती है:

  1. वास्तविकता बनाम आदर्शवाद
    क्या वास्तव में संविधान ने संकटों में एकता का अभूतपूर्व योगदान दिया, या यह उम्मीद, प्रेरणा और अपेक्षा की अभिव्यक्ति है?
  2. संविधानात्मक संरक्षण बनाम राजनीतिक ज़रूरतें
    क्या संविधान ने हमेशा राजनीतिक तर्कों और सत्ता संघर्षों के बीच संतुलन बनाए रखा, या उसकी सीमाएँ दिखाई दीं?
  3. सामाजिक न्याय और असमानता
    यदि संविधान ने देश को एक रखा, तो पिछले 75 वर्षों में जनता को प्रत्यक्ष लाभ कैसे मिला?
    विशेष रूप से, आदिवासी, दलित, महिलाओं को संरचनात्मक असमानताओं से आज भी जूझना पड़ता है।
  4. संविधान की व्यवहार्यता और Judicial activism
    जब न्यायपालिका संविधान को “जीवित दस्तावेज” कहती है और समय-समय पर इसे व्याख्या करती है, तो क्या यह विधायिका की मंशा को नकारने जैसा नहीं?
  5. राष्ट्रीयता विचारों का उपयोग
    इस तरह के वक्तव्य अक्सर राष्ट्रीयता का प्रचार बन जाते हैं और आलोचनात्मक विमर्श को कठिन बना सकते हैं।

6. निष्कर्ष: संदेश और समयोचित महत्व

CJI Gavai का यह वक्तव्य न केवल तारीफ़ का प्रस्ताव है, बल्कि एक संवैधानिक दर्शन का पुनरुच्चार है: कि भारत का संविधान उसे संकट से सुरक्षित रखने वाला कवच है।

निम्नलिखित बिंदु निष्कर्ष तक पहुँचने में सहायक होंगे:

  • इस वक्तव्य ने हमें याद दिलाया कि लोकतंत्र, संविधान और संविधान निर्माता का योगदान केवल तब याद किया जाता है, जब संकट आता है।
  • Ambedkar का सपना — सामाजिक न्याय, समान अवसर, एकता — आज भी प्रासंगिक है।
  • हालांकि संविधान पूर्ण नहीं है, लेकिन उसकी संरचना और मूल उद्देश्य ने भारत को विभाजन, संघर्ष और दमन के बीच बचे रहने में मदद की।
  • इस तरह के वक्तव्य समाज को प्रेरणा देते हैं, लेकिन उन्हें आलोचनात्मक दृष्टि से भी परखा जाना चाहिए — कि कितनी दूर हमने इसे पूर्ण किया है।