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श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015): धारा 66A और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संवैधानिक संरक्षण

श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015): धारा 66A और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संवैधानिक संरक्षण

प्रस्तावना

भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नागरिकों का मूल अधिकार है। संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) प्रत्येक नागरिक को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है। किंतु यह स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है, बल्कि उस पर अनुच्छेद 19(2) के तहत युक्तिसंगत प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। डिजिटल युग में जब सोशल मीडिया और इंटरनेट ने संवाद का स्वरूप बदल दिया, तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रतिबंधों के बीच संतुलन की चुनौती सामने आई। इसी संदर्भ में श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) का ऐतिहासिक मामला उभरा, जिसने भारतीय लोकतंत्र और ऑनलाइन अभिव्यक्ति की दिशा बदल दी।


पृष्ठभूमि: धारा 66A, आईटी अधिनियम

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) को इंटरनेट से जुड़े अपराधों और दुरुपयोग पर नियंत्रण के लिए बनाया गया था। वर्ष 2008 में इस अधिनियम में संशोधन के बाद धारा 66A जोड़ी गई।

धारा 66A का प्रावधान:

  • यदि कोई व्यक्ति किसी कंप्यूटर/इंटरनेट माध्यम से
    • अपमानजनक (Offensive),
    • डराने वाला (Menacing),
    • झूठी जानकारी (False Information)
    • या असुविधा/कष्ट उत्पन्न करने वाली जानकारी (Annoyance, Inconvenience)
      भेजता है, तो उसे 3 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान था।

समस्या:

  • धारा 66A की भाषा बहुत अस्पष्ट और व्यापक थी।
  • “अपमानजनक” या “कष्टप्रद” शब्दों की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं थी।
  • इसका दुरुपयोग करके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाया जाने लगा।

विवाद और याचिका

कई मामलों में देखा गया कि धारा 66A का इस्तेमाल लोगों को गिरफ्तार करने और उनकी राय दबाने के लिए किया गया।

कुछ प्रमुख घटनाएँ:

  1. 2012, महाराष्ट्र – दो लड़कियों को फेसबुक पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया गया।
  2. कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी – सरकार की आलोचना करने वाले कार्टून बनाने पर गिरफ्तार हुए।
  3. कई पत्रकारों और सोशल मीडिया यूज़र्स को केवल विचार प्रकट करने के लिए पुलिस ने पकड़ा।

इन घटनाओं से यह प्रश्न उठा कि क्या धारा 66A संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है। इसी संदर्भ में कानून की छात्रा श्रेया सिंघल ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की।


सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (24 मार्च 2015)

मामला दो-न्यायाधीशों की पीठ – न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन – के समक्ष आया।

निर्णय के मुख्य बिंदु:

  1. धारा 66A असंवैधानिक घोषित – अदालत ने कहा कि यह धारा अनुच्छेद 19(1)(a) में प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है और अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत लगाए गए प्रतिबंधों से परे है।
  2. अस्पष्टता और मनमानी – इस धारा की भाषा इतनी अस्पष्ट थी कि किसी भी टिप्पणी को “अपमानजनक” या “कष्टप्रद” मानकर गिरफ्तार किया जा सकता था। यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर आघात था।
  3. अभिव्यक्ति और लोकतंत्र – न्यायालय ने कहा कि लोकतंत्र में असहमति (Dissent) और आलोचना की स्वतंत्रता आवश्यक है। नागरिकों को सरकार और नीतियों की आलोचना करने का अधिकार है।
  4. धारा 69A और 79 – न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आईटी अधिनियम की धारा 69A (वेबसाइट ब्लॉक करने की शक्ति) और धारा 79 (इंटरमीडियरी की जिम्मेदारी) संवैधानिक हैं, क्योंकि इनमें उचित सुरक्षा प्रावधान मौजूद हैं।

निर्णय का महत्व

  1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा – इस फैसले ने यह सुनिश्चित किया कि ऑनलाइन माध्यम में नागरिक अपने विचार स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकें।
  2. लोकतंत्र की मजबूती – असहमति और आलोचना को लोकतंत्र का मूल तत्व बताया गया।
  3. न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका – न्यायालय ने नागरिक अधिकारों की रक्षा करते हुए कार्यपालिका और विधायिका के बनाए कानून को निरस्त करने का साहस दिखाया।
  4. डिजिटल अधिकारों की नींव – इस फैसले ने डिजिटल युग में नागरिक अधिकारों की सुरक्षा को नया आधार दिया।

धारा 66A की आलोचना

  • यह अत्यधिक व्यापक (Over-broad) थी।
  • इसमें स्पष्ट परिभाषाएँ नहीं थीं।
  • पुलिस और प्रशासन द्वारा दुरुपयोग का खतरा अधिक था।
  • इससे नागरिकों में भय और आत्म-सेंसरशिप की प्रवृत्ति बढ़ रही थी।

निर्णय के बाद की स्थिति

  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 66A को असंवैधानिक घोषित करने के बावजूद, कई बार निचली अदालतें और पुलिस ने अनजाने में या जानबूझकर इसका इस्तेमाल जारी रखा।
  • 2021 में भी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि धारा 66A मृत कानून है, इसका उपयोग न किया जाए।
  • इससे यह स्पष्ट हुआ कि न्यायिक निर्णयों के बाद भी कानून के क्रियान्वयन और प्रशासनिक जागरूकता में कमी रहती है।

अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

  • अमेरिका में “First Amendment” अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
  • यूरोपियन देशों में भी ऑनलाइन अभिव्यक्ति को सीमित करने के लिए स्पष्ट नियम बनाए गए हैं।
  • श्रेया सिंघल का फैसला विश्व स्तर पर भी ऑनलाइन फ्री स्पीच की दिशा में महत्वपूर्ण माना गया।

आलोचना और सीमाएँ

  • कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि ऑनलाइन हेट स्पीच, फेक न्यूज़ और साइबर बुलिंग जैसी समस्याओं से निपटने के लिए धारा 66A जैसे प्रावधान आवश्यक थे।
  • हालाँकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए अलग और स्पष्ट कानून बनाए जा सकते हैं, लेकिन मौलिक अधिकारों को दबाने वाला कोई भी प्रावधान असंवैधानिक होगा।

निष्कर्ष

श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) का निर्णय भारतीय लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वतंत्रता का प्रमाण है। इसने यह संदेश दिया कि संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता इंटरनेट और डिजिटल युग में भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी पारंपरिक माध्यमों में।

यह फैसला न केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और डिजिटल अधिकारों के संरक्षण का एक मील का पत्थर है।

न्यायमूर्ति नरीमन के शब्दों में, “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का मेरुदंड है और इसके बिना लोकतंत्र अधूरा है।”


5 महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (Q&A)

प्रश्न 1.

धारा 66A, आईटी अधिनियम क्या थी और उसमें क्या प्रावधान थे?
👉 धारा 66A सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में 2008 के संशोधन द्वारा जोड़ी गई थी। इसके तहत यदि कोई व्यक्ति इंटरनेट या कंप्यूटर के माध्यम से “अपमानजनक, डराने वाला, झूठा या कष्टप्रद संदेश” भेजता है तो उसे 3 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता था। समस्या यह थी कि “अपमानजनक” और “कष्टप्रद” जैसे शब्दों की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं थी।


प्रश्न 2.

श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ मामला क्यों दाखिल किया गया?
👉 कई घटनाओं में देखा गया कि लोगों को केवल सोशल मीडिया पोस्ट या ऑनलाइन विचार व्यक्त करने पर गिरफ्तार किया जा रहा था। इससे नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा मंडराने लगा। कानून की छात्रा श्रेया सिंघल ने याचिका दायर की और सुप्रीम कोर्ट से धारा 66A को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की।


प्रश्न 3.

सुप्रीम कोर्ट ने 66A को असंवैधानिक क्यों घोषित किया?
👉 सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 66A अस्पष्ट (Vague) और अत्यधिक व्यापक (Over-broad) है। यह अनुच्छेद 19(1)(a) में प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है और अनुच्छेद 19(2) के तहत लगाए गए युक्तिसंगत प्रतिबंधों से कहीं आगे बढ़ जाती है। इसलिए यह असंवैधानिक है।


प्रश्न 4.

फैसले का डिजिटल युग में क्या महत्व है?
👉 यह फैसला इंटरनेट और सोशल मीडिया पर नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता है। अब नागरिक बिना डर के सरकार या नीतियों की आलोचना कर सकते हैं। इसने भारत में डिजिटल अधिकारों और ऑनलाइन स्वतंत्रता की नींव को मजबूत किया।


प्रश्न 5.

क्या धारा 66A के निरस्त होने से ऑनलाइन अपराधों पर प्रभाव पड़ा?
👉 आलोचकों का मानना है कि 66A हटने से साइबर बुलिंग, हेट स्पीच और फेक न्यूज़ जैसी समस्याओं पर नियंत्रण कठिन हो गया। लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसे अपराधों से निपटने के लिए अलग, स्पष्ट और संतुलित कानून बनाए जा सकते हैं, परंतु अस्पष्ट और मौलिक अधिकारों को दबाने वाले प्रावधान असंवैधानिक रहेंगे।


📘 श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) – महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (Q&A)

प्रश्न 1.

श्रेया सिंघल केस किससे संबंधित था?
👉 यह मामला सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66A की संवैधानिक वैधता से संबंधित था, जिसे ऑनलाइन अभिव्यक्ति पर नियंत्रण के लिए लाया गया था।


प्रश्न 2.

धारा 66A में क्या प्रावधान था?
👉 यदि कोई व्यक्ति इंटरनेट पर “अपमानजनक, डराने वाला, झूठा या कष्टप्रद” संदेश भेजे तो उसे 3 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता था।


प्रश्न 3.

धारा 66A विवादास्पद क्यों थी?
👉 क्योंकि इसमें प्रयुक्त शब्द जैसे “अपमानजनक” या “कष्टप्रद” की कोई परिभाषा नहीं थी। इससे पुलिस को मनमानी कार्रवाई का अधिकार मिल जाता था।


प्रश्न 4.

श्रेया सिंघल कौन थीं?
👉 वे कानून की छात्रा थीं, जिन्होंने धारा 66A के दुरुपयोग के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की।


प्रश्न 5.

धारा 66A के दुरुपयोग के उदाहरण क्या थे?
👉 2012 में दो लड़कियों को फेसबुक पोस्ट पर गिरफ्तार करना, कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी, पत्रकारों की ऑनलाइन राय पर गिरफ्तारी आदि।


प्रश्न 6.

इस मामले की सुनवाई किस पीठ ने की थी?
👉 सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ – न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन ने।


प्रश्न 7.

सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय कब आया?
👉 24 मार्च 2015 को।


प्रश्न 8.

सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66A को क्यों असंवैधानिक घोषित किया?
👉 क्योंकि यह अनुच्छेद 19(1)(a) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करती थी और अनुच्छेद 19(2) के तहत दिए गए युक्तिसंगत प्रतिबंधों से परे थी।


प्रश्न 9.

क्या न्यायालय ने धारा 66A को आंशिक रूप से बचाया?
👉 नहीं, अदालत ने इसे पूरी तरह से असंवैधानिक घोषित किया।


प्रश्न 10.

न्यायालय ने किस आधार पर धारा 66A को ‘वाग और ओवर-ब्रॉड’ कहा?
👉 क्योंकि इसमें इस्तेमाल शब्द इतने अस्पष्ट थे कि किसी भी पोस्ट को अपराध मानकर गिरफ्तारी की जा सकती थी।


प्रश्न 11.

क्या धारा 66A का निरसन अन्य धाराओं को प्रभावित करता है?
👉 नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आईटी अधिनियम की धारा 69A (वेबसाइट ब्लॉक करना) और धारा 79 (इंटरमीडियरी की जिम्मेदारी) संवैधानिक हैं।


प्रश्न 12.

इस निर्णय का अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर क्या प्रभाव पड़ा?
👉 ऑनलाइन माध्यम में नागरिकों की राय, आलोचना और असहमति व्यक्त करने की स्वतंत्रता को मजबूत सुरक्षा मिली।


प्रश्न 13.

क्या धारा 66A के निरस्त होने के बाद भी इसका इस्तेमाल होता रहा?
👉 हाँ, कई बार निचली अदालतें और पुलिस अनजाने में धारा 66A के तहत कार्रवाई करती रहीं। सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में इसे “मृत कानून” बताकर इसके प्रयोग पर रोक लगाई।


प्रश्न 14.

इस फैसले का लोकतंत्र में क्या महत्व है?
👉 लोकतंत्र तभी मजबूत होता है जब नागरिक स्वतंत्र रूप से सरकार की आलोचना कर सकें। इस फैसले ने असहमति की स्वतंत्रता को संरक्षित किया।


प्रश्न 15.

क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण अधिकार है?
👉 नहीं। अनुच्छेद 19(2) के तहत इसमें युक्तिसंगत प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, जैसे – राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, मानहानि, अश्लीलता आदि।


प्रश्न 16.

क्या 66A का उद्देश्य सही था?
👉 उद्देश्य साइबर अपराध और ऑनलाइन दुरुपयोग रोकना था, लेकिन अस्पष्टता और दुरुपयोग के कारण यह संविधान-विरोधी साबित हुआ।


प्रश्न 17.

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में यह निर्णय क्यों महत्वपूर्ण है?
👉 इसे ऑनलाइन फ्री स्पीच की दिशा में ऐतिहासिक माना गया। विश्व स्तर पर यह उदाहरण है कि अदालतें नागरिक अधिकारों की रक्षा कर सकती हैं।


प्रश्न 18.

इस फैसले के आलोचक क्या तर्क देते हैं?
👉 उनका कहना है कि धारा 66A हटने से हेट स्पीच, फेक न्यूज़ और साइबर बुलिंग जैसी समस्याओं से निपटना कठिन हो गया।


प्रश्न 19.

सुप्रीम कोर्ट ने इस आलोचना पर क्या कहा?
👉 अदालत ने कहा कि ऐसी समस्याओं के लिए अलग और स्पष्ट कानून बनाए जा सकते हैं, लेकिन मौलिक अधिकारों को दबाने वाला कानून असंवैधानिक रहेगा।


प्रश्न 20.

संक्षेप में, श्रेया सिंघल केस का महत्व क्या है?
👉 यह मामला भारत में डिजिटल युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा और संवैधानिक लोकतंत्र की मजबूती का प्रतीक है।