श्री स्वामी समर्थ कंस्ट्रक्शन एंड फाइनेंस सॉल्यूशन बनाम एनकेजीएसबी को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड एवं अन्य – MSME क्षेत्र के लिए सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय
प्रस्तावना
भारत की अर्थव्यवस्था में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र न केवल रोजगार सृजन में बल्कि औद्योगिक विकास, निर्यात वृद्धि और स्थानीय आर्थिक गतिविधियों में भी योगदान देता है। लेकिन अनेक MSMEs वित्तीय संकट, कर्ज का दबाव, बाज़ार की अस्थिरता और नीतिगत जटिलताओं के कारण समय-समय पर कठिनाइयों का सामना करते हैं। इसी समस्या के समाधान के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने 29 मई 2015 को “MSME के पुनरुद्धार और पुनर्वास के लिए रूपरेखा” जारी की थी। इसका उद्देश्य संकटग्रस्त MSMEs को समय रहते राहत देना और उन्हें पुनर्जीवित करना था।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने श्री स्वामी समर्थ कंस्ट्रक्शन एंड फाइनेंस सॉल्यूशन बनाम एनकेजीएसबी को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड एवं अन्य मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि बैंक और अन्य सुरक्षित ऋणदाता (secured creditors) तब तक किसी MSME खाते में “incipient stress” यानी प्रारंभिक वित्तीय संकट की पहचान करने के लिए बाध्य नहीं हैं, जब तक कि MSME स्वयं 2015 की Framework के तहत सहायता प्राप्त करने के लिए आवेदन न करे। यह निर्णय MSME क्षेत्र के लिए दूरगामी प्रभाव रखने वाला है क्योंकि इससे न केवल बैंकों की जिम्मेदारी स्पष्ट हुई है बल्कि MSME को अपने अधिकारों का उपयोग करने की प्रक्रिया भी समझ में आई है।
मामले का तथ्यात्मक परिप्रेक्ष्य
श्री स्वामी समर्थ कंस्ट्रक्शन एंड फाइनेंस सॉल्यूशन एक MSME इकाई थी, जिसने एनकेजीएसबी को-ऑपरेटिव बैंक से ऋण लिया था। समय पर ऋण चुकता न कर पाने के कारण बैंक ने इसे नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) घोषित किया। बैंक ने 13 मई 2024 को SARFAESI अधिनियम, 2002 की धारा 13(2) के अंतर्गत डिमांड नोटिस जारी कर दिया, जिसमें बकाया चुकाने की मांग की गई। MSME ने न तो इस नोटिस का विधिवत उत्तर दिया और न ही RBI की 2015 Framework के तहत सहायता प्राप्त करने का आवेदन किया। बाद में बैंक ने धारा 14 के तहत संपत्ति की कुर्की की प्रक्रिया शुरू कर दी। कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति कर कार्यवाही आगे बढ़ाई गई।
MSME ने इस प्रक्रिया को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में यह तर्क दिया गया कि बैंक ने प्रारंभिक संकट की पहचान किए बिना सीधे NPA घोषित कर दिया, जो कि RBI की 2015 Framework का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट का विचार
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद निम्नलिखित बिंदुओं पर अपने विचार स्पष्ट किए:
1. Framework केवल आवेदन करने वाले MSMEs पर लागू है
अदालत ने कहा कि 2015 की Framework उन MSMEs के लिए बनाई गई है जो वित्तीय संकट की स्थिति में सहायता प्राप्त करना चाहते हैं। इसलिए बैंक को तब तक किसी खाते में संकट पहचानने की जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती जब तक MSME स्वयं आवेदन न करे। यदि MSME आवेदन करता है तो बैंक को उसके आवेदन पर विचार करना होगा और नियमानुसार राहत प्रदान करनी होगी।
2. बैंक का अधिकार सुरक्षित है
अदालत ने माना कि बैंक और अन्य सुरक्षित ऋणदाता को अपने अधिकारों के उपयोग से रोका नहीं जा सकता। यदि कोई MSME समय पर भुगतान नहीं कर पा रहा है और Framework का उपयोग नहीं कर रहा है तो बैंक को अपने ऋण वसूली के अधिकार का उपयोग करने से नहीं रोका जा सकता। अतः धारा 13 और 14 के तहत कार्यवाही वैध है।
3. MSME की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है
Framework का लाभ पाने के लिए MSME को सक्रिय होकर आवेदन करना होगा। केवल यह दावा कर देना कि खाते में संकट था पर्याप्त नहीं है। आवेदन के बिना बैंक की जिम्मेदारी नहीं बनती।
4. Framework का उद्देश्य सहायता देना है, न कि अधिकारों का उल्लंघन
RBI की Framework MSME को पुनर्जीवित करने के लिए एक स्वैच्छिक तंत्र प्रदान करती है, न कि बैंक की वसूली प्रक्रिया में बाधा डालने का साधन। इसलिए अदालत ने स्पष्ट किया कि इसका उपयोग तभी संभव है जब MSME स्वयं सहायता प्राप्त करना चाहे।
कानून की दृष्टि से विश्लेषण
MSME और वित्तीय संकट
MSME क्षेत्र में संकट कई कारणों से उत्पन्न होता है – कच्चे माल की कमी, नकदी प्रवाह की समस्या, ऋण चुकौती में असमर्थता, बाज़ार में प्रतिस्पर्धा आदि। ऐसे समय में यदि समय पर राहत नहीं दी जाए तो संस्था बंद होने की कगार पर पहुँच सकती है। RBI की Framework का उद्देश्य संकट की पहचान होने पर MSME को पुनर्वास का मार्ग प्रदान करना है।
SARFAESI अधिनियम और बैंक की भूमिका
SARFAESI अधिनियम, 2002 बैंकों को सक्षम बनाता है कि वे बिना अदालत की अनुमति के, सुरक्षित संपत्ति की कुर्की कर सकते हैं और ऋण वसूली प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकते हैं। यह अधिनियम वित्तीय अनुशासन को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक MSME Framework का उपयोग न करे, बैंक SARFAESI अधिनियम का उपयोग कर सकते हैं।
RBI की Framework और उसका सीमित दायरा
Framework एक नीति दस्तावेज है जिसका उद्देश्य MSMEs को संकट की स्थिति में सहायता प्रदान करना है। यह किसी अनिवार्य कानून की तरह नहीं है। अतः इसे केवल उन मामलों में लागू माना जाएगा जहाँ MSME ने स्वयं सहायता की प्रक्रिया शुरू की हो। सुप्रीम कोर्ट ने Framework और SARFAESI अधिनियम के बीच के संतुलन को स्पष्ट किया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय – प्रभाव
MSME के लिए संदेश
- MSME को यह समझना होगा कि सहायता प्राप्त करने के लिए उन्हें समय रहते आवेदन करना आवश्यक है।
- केवल संकट का दावा करना पर्याप्त नहीं है; दस्तावेजी प्रमाण और आवेदन प्रक्रिया पूरी करनी होगी।
- यदि आवेदन नहीं किया गया तो बैंक अपने वैधानिक अधिकारों का उपयोग कर सकते हैं।
बैंकों के लिए संदेश
- बैंक को हर खाते में संकट पहचानने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
- यदि MSME आवेदन नहीं करता है तो SARFAESI अधिनियम के तहत कार्रवाई करना वैध है।
- बैंक की कार्रवाई MSME के अधिकारों का उल्लंघन नहीं मानी जाएगी।
नीति निर्माताओं के लिए संकेत
- Framework को स्पष्ट रूप से लागू करने और जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि MSMEs समय पर राहत प्राप्त कर सकें।
- बैंकों और MSMEs के बीच संवाद तंत्र को मजबूत किया जा सकता है।
न्यायालय का अंतिम निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि:
“MSME को स्वयं पहल कर Framework का लाभ उठाना होगा। बैंक और अन्य सुरक्षित ऋणदाता तब तक किसी खाते में प्रारंभिक संकट की पहचान करने के लिए बाध्य नहीं हैं जब तक कि MSME ने स्वयं सहायता का आवेदन न किया हो।”
इस निर्णय ने स्पष्ट कर दिया कि सहायता तंत्र स्वैच्छिक है और केवल सक्रिय भागीदारी से ही लागू होगा। बैंक की वसूली प्रक्रिया बाधित नहीं होगी और MSME को समय पर राहत पाने के लिए अपने अधिकारों का सही उपयोग करना होगा।
निष्कर्ष
यह निर्णय MSME क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इसमें बैंक और MSME दोनों के अधिकारों और दायित्वों को संतुलित करते हुए स्पष्ट किया गया कि सहायता तभी संभव है जब MSME स्वयं इसके लिए आवेदन करे। इससे बैंकों को राहत मिली है कि वे अपने वैधानिक अधिकारों का उपयोग कर सकते हैं, जबकि MSMEs को यह संदेश मिला है कि समय रहते आवेदन कर सहायता प्राप्त करनी चाहिए। भविष्य में यह निर्णय MSME नीति निर्माण, बैंकिंग प्रक्रिया और वित्तीय अनुशासन के लिए दिशा प्रदान करेगा।
यह मामला यह भी दर्शाता है कि किसी नीति या Framework का उद्देश्य केवल सहायता देना है, न कि किसी पक्ष के अधिकारों को सीमित करना। अतः MSMEs को जागरूक होकर अपने संकट की स्थिति में नियमानुसार आवेदन करना चाहिए ताकि वे समय रहते राहत पा सकें।
यह विस्तृत विश्लेषण MSME क्षेत्र, बैंकिंग प्रणाली और न्यायिक दृष्टिकोण को समझने में सहायक है। यह न केवल नीति निर्धारण में बल्कि व्यावहारिक क्रियान्वयन में भी मार्गदर्शन प्रदान करता है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय MSME की वित्तीय संरचना को सुदृढ़ करने की दिशा में एक संतुलित और न्यायसंगत कदम है।