श्री मलाकप्पा एवं अन्य बनाम इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं अन्य (भारत का सर्वोच्च न्यायालय) :
भूमिका:
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि बीमा मुआवजे के निर्धारण में मृतक महिला के पति को केवल इस आधार पर आश्रित मानने से इंकार नहीं किया जा सकता कि वह एक सक्षम पुरुष है। यह निर्णय महिलाओं की आर्थिक भूमिका को मान्यता देने और पारिवारिक आश्रितों के संदर्भ में न्यायोचित दृष्टिकोण अपनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में मृतका एक गृहिणी अथवा कार्यरत महिला थी, जिसकी मृत्यु एक सड़क दुर्घटना में हो गई थी। उनके परिवारजनों ने बीमा कंपनी से मुआवजे की मांग की। बीमा कंपनी और निचली अदालतों द्वारा यह तर्क दिया गया कि मृतका के पति को मुआवजा नहीं मिल सकता क्योंकि वह एक सक्षम व्यक्ति है और वह अपनी आजीविका कमा सकता है। इसलिए उसे आश्रित नहीं माना जा सकता।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
सर्वोच्च न्यायालय ने इस सोच को अनुचित और असंवेदनशील मानते हुए यह कहा कि—
- सामाजिक यथार्थ की उपेक्षा नहीं की जा सकती:
भारतीय समाज में महिलाओं की आय भी पारिवारिक जीवन का एक महत्त्वपूर्ण आधार है। यदि पति बेरोजगार है या आर्थिक रूप से पत्नी की आय पर आश्रित है, तो उसे केवल “सक्षम पुरुष” कहकर मुआवजे से वंचित नहीं किया जा सकता। - निर्भरता का आकलन तथ्यों के आधार पर किया जाना चाहिए:
यदि यह स्पष्ट नहीं है कि पति का कोई नियमित या निश्चित रोजगार है, तो यह मान लेना कि वह आश्रित नहीं है, पूरी तरह न्यायसंगत नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में पति को आंशिक रूप से आश्रित माना जाना चाहिए। - बीमा कंपनियों की कठोर व्याख्या अनुचित:
बीमा कंपनियाँ अक्सर तकनीकी आधारों पर दावा खारिज करती हैं। न्यायालय ने चेताया कि बीमा कंपनियों को मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, विशेषकर तब जब दुर्घटना से पूरा परिवार प्रभावित होता है।
महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:
- यह निर्णय नारी-सशक्तिकरण और लैंगिक समानता की दिशा में भी एक सकारात्मक कदम माना जा सकता है।
- पति की आश्रितता को नकारना यह मान लेना है कि केवल महिलाएं ही पति की आश्रित होती हैं, जबकि आधुनिक युग में यह धारणा व्यावहारिक नहीं रह गई है।
- न्यायालय ने यह भी संकेत दिया कि यदि कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है कि पति स्वावलंबी है, तो उसे मुआवजे से वंचित नहीं किया जा सकता।
न्यायिक सिद्धांत:
यह निर्णय “न्याय, समानता और मानवीय गरिमा” के मूलभूत संवैधानिक सिद्धांतों पर आधारित है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बीमा मुआवजा केवल तकनीकी या रूढ़िगत सोच के आधार पर नहीं, बल्कि सामाजिक और मानवीय दृष्टिकोण से निर्धारित किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष:
श्री मलाकप्पा बनाम इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड का यह निर्णय बीमा कानून और दुर्घटना मुआवजा संबंधी मामलों में एक नई दिशा देता है। यह निर्णय बताता है कि न्यायालय अब पारंपरिक भूमिकाओं से आगे बढ़कर अधिक व्यावहारिक और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने के लिए तत्पर हैं। इससे न केवल मृतक के परिजनों को न्याय मिला, बल्कि यह भी संदेश गया कि हर नागरिक को गरिमापूर्ण ढंग से सुना और समझा जाएगा, चाहे वह किसी भी लिंग या स्थिति से संबंधित हो।