श्रम और औद्योगिक कानूनः श्रमिकों के अधिकार और कानूनों की समीक्षा

श्रम और औद्योगिक कानून: श्रमिकों के अधिकार और कानूनों की समीक्षा :
परिचय:

भारत जैसे विकासशील देश में श्रमिकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। औद्योगिक प्रगति, आर्थिक विकास और सामाजिक स्थिरता श्रमिकों की मेहनत पर निर्भर करती है। श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और उनके कल्याण के लिए भारत में कई श्रम एवं औद्योगिक कानून बनाए गए हैं, जो उन्हें न केवल कार्यस्थल पर सुरक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि उन्हें न्याय, सम्मान और समान अवसर भी उपलब्ध कराते हैं।


I. श्रमिकों के प्रमुख अधिकार (Major Rights of Workers)

  1. कार्य के अधिकार (Right to Work):
    • प्रत्येक श्रमिक को अपनी योग्यता के अनुसार रोजगार पाने का अधिकार है।
    • यह अधिकार सामाजिक न्याय और जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक है।
  2. न्यायोचित पारिश्रमिक का अधिकार (Right to Fair Wages):
    • न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के अंतर्गत सरकार न्यूनतम वेतन तय करती है।
    • श्रमिकों को समय पर और पूर्ण पारिश्रमिक मिलना अनिवार्य है।
  3. समान पारिश्रमिक का अधिकार (Right to Equal Pay):
    • समान कार्य के लिए पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन देने का प्रावधान है (समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976)।
  4. काम की सुरक्षा और सुरक्षित कार्यस्थल का अधिकार (Right to Safe Working Conditions):
    • फैक्ट्री अधिनियम, 1948 श्रमिकों को स्वास्थ्य, स्वच्छता, सुरक्षा और कार्य की सीमा संबंधी प्रावधान प्रदान करता है।
  5. संघ बनाने और सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार (Right to Form Union & Collective Bargaining):
    • श्रमिक यूनियन अधिनियम, 1926 के अंतर्गत श्रमिक यूनियन गठित करने और सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार सुनिश्चित किया गया है।
  6. श्रमिक कल्याण योजनाओं का लाभ लेने का अधिकार (Right to Welfare Schemes):
    • जैसे – कर्मचारी भविष्य निधि (EPF), कर्मचारी राज्य बीमा योजना (ESI), मातृत्व लाभ, पेंशन आदि।
  7. शोषण और भेदभाव से संरक्षण का अधिकार (Protection from Exploitation & Discrimination):
    • बाल श्रम निषेध अधिनियम, बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम, अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम आदि।
  8. न्याय प्राप्त करने का अधिकार (Right to Legal Remedy):
    • श्रमिक श्रम न्यायालय, औद्योगिक न्यायाधिकरण और उपयुक्त विधिक मंचों पर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

II. श्रमिकों से संबंधित प्रमुख कानून (Major Labour & Industrial Laws)

  1. कारखाना अधिनियम, 1948 (Factories Act, 1948):
    • श्रमिकों के स्वास्थ्य, सुरक्षा, स्वच्छता, कार्य घंटे, विश्राम, और मातृत्व लाभ जैसे प्रावधान करता है।
  2. मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 (Payment of Wages Act, 1936):
    • समय पर और बिना किसी कटौती के मजदूरी सुनिश्चित करता है।
  3. न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 (Minimum Wages Act, 1948):
    • विभिन्न उद्योगों में न्यूनतम वेतन तय करने के लिए कानूनी ढांचा उपलब्ध कराता है।
  4. समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 (Equal Remuneration Act, 1976):
    • लिंग आधारित वेतन भेदभाव को समाप्त करता है।
  5. औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (Industrial Disputes Act, 1947):
    • श्रमिकों और मालिकों के बीच विवादों का समाधान, हड़ताल, तालाबंदी, अवकाश आदि का प्रावधान करता है।
  6. श्रमिक यूनियन अधिनियम, 1926 (Trade Unions Act, 1926):
    • श्रमिकों को यूनियन गठित करने और उसके संचालन का अधिकार देता है।
  7. मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 (Maternity Benefit Act, 1961):
    • महिला श्रमिकों को मातृत्व अवकाश और भत्ते प्रदान करता है।
  8. बच्चों का श्रम निषेध अधिनियम, 1986 (Child Labour Prohibition Act, 1986):
    • 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से खतरनाक कार्य करवाने पर रोक लगाता है।
  9. कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम, 1952 (Employees’ Provident Fund Act, 1952):
    • श्रमिकों की सेवानिवृत्ति के बाद सुरक्षा हेतु भविष्य निधि योजना लागू करता है।
  10. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (Employees’ State Insurance Act, 1948):
    • बीमारियों, दुर्घटनाओं, मातृत्व आदि स्थितियों में स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।

III. नये श्रम संहिताएँ (New Labour Codes):

भारत सरकार ने श्रम सुधार के लिए 29 पुराने श्रम कानूनों को मिलाकर 4 नए Labour Codes बनाए हैं:

  1. Code on Wages, 2019
  2. Industrial Relations Code, 2020
  3. Occupational Safety, Health and Working Conditions Code, 2020
  4. Social Security Code, 2020

इन संहिताओं का उद्देश्य श्रमिकों को बेहतर सुरक्षा, पारदर्शिता, डिजिटल पंजीकरण, न्यूनतम पारिश्रमिक और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है।


IV. श्रमिकों के अधिकारों की चुनौतियाँ (Challenges to Workers’ Rights)

  • असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों को कानूनों का लाभ नहीं मिल पाता।
  • श्रमिकों की जागरूकता की कमी।
  • महिला श्रमिकों के साथ भेदभाव।
  • अनुबंध आधारित रोजगार और “गिग इकॉनॉमी” की बढ़ती प्रवृत्ति।
  • श्रम कानूनों का कमजोर क्रियान्वयन।

निष्कर्ष (Conclusion):

श्रमिकों के अधिकार और उनके संरक्षण के लिए भारत में विस्तृत कानून व्यवस्था मौजूद है। लेकिन वास्तविकता में इन अधिकारों का पूर्ण लाभ तभी संभव है जब श्रमिक स्वयं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों, सरकार कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करे और नियोक्ता श्रमिक हितों का सम्मान करें। श्रम कल्याण और औद्योगिक शांति तभी संभव है जब श्रमिकों को गरिमा, न्याय और समानता का अनुभव हो।