श्रमिक विधि (labour law) -II से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

  1. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के अन्तर्गत कर्मचारी को परिभाषित करें।
    कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 के तहत “कर्मचारी” वह व्यक्ति है, जो एक संगठन में काम करता है और जिसे कर्मचारी राज्य बीमा योजना के अंतर्गत चिकित्सा लाभ, बीमारी, गर्भावस्था, मृत्यु, आदि के लिए बीमा कवरेज प्राप्त होता है। यह व्यक्ति विशेष रूप से 10 या उससे अधिक कर्मचारियों वाली किसी भी संस्था में काम करता है।

  2. “कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 एक सामाजिक सुरक्षा विधि है।” व्याख्या कीजिए।
    कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 एक सामाजिक सुरक्षा विधि है जो कर्मचारियों को उनके कार्य के दौरान किसी भी दुर्घटना, बीमारी, गर्भावस्था या मृत्यु की स्थिति में वित्तीय सहायता प्रदान करता है। यह कानून कार्यस्थल पर होने वाली दुर्घटनाओं या अस्वस्थता के कारण कर्मचारियों के जीवन को सुरक्षित और स्थिर बनाने के उद्देश्य से लागू किया गया है। इसके तहत चिकित्सा सहायता, नकद लाभ, और अन्य सहायता प्रदान की जाती है।
  3. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के तहत स्थायी आंशिक निर्योग्यता क्या है?
    स्थायी आंशिक निर्योग्यता ऐसी स्थिति है, जिसमें कर्मचारी किसी दुर्घटना या बीमारी के कारण अपनी शारीरिक क्षमता का कुछ हिस्सा खो देता है, लेकिन वह पूरी तरह से कार्य करने के लिए अक्षम नहीं होता। इसके तहत कर्मचारियों को स्थायी आंशिक विकलांगता के लिए मुआवजा दिया जाता है।
  4. नियोजक द्वारा अभिदान करने के तरीकों की व्याख्या कीजिए।
    कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के तहत, नियोजक कर्मचारी से एक निर्धारित अंशदान काटता है और उसी को कर्मचारी राज्य बीमा निगम को भेजता है। यह अंशदान कर्मचारियों और नियोजकों दोनों द्वारा मिलकर चुकाया जाता है। नियोजक का योगदान कर्मचारी के मासिक वेतन का एक निश्चित प्रतिशत होता है। यह अंशदान ऑनलाइन या अन्य निर्धारित विधियों से किया जा सकता है।
  5. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत स्थायी समिति के गठन की व्याख्या कीजिए।
    कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के अंतर्गत स्थायी समिति एक संगठनात्मक इकाई होती है, जो निगम के कार्यों और प्रबंधन में सहायता करती है। यह समिति कर्मचारियों, नियोजकों और सरकार के प्रतिनिधियों से मिलकर गठित की जाती है और इसका कार्य निगम के निर्णयों को लागू करना और योजनाओं के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना है।
  6. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत कौन सी विभिन्न सुविधायें उपलब्ध हैं?
    कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 के तहत कर्मचारियों को निम्नलिखित सुविधाएँ मिलती हैं:
  • चिकित्सा लाभ
  • अस्थायी और स्थायी विकलांगता के लिए नकद लाभ
  • गर्भावस्था के लाभ
  • परिवार के सदस्य की मृत्यु पर जीवन बीमा लाभ
  • दुर्घटनाओं या कार्यस्थल पर होने वाली बीमारियों से संबंधित सहायता
  1. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के अन्तर्गत निगम बोर्ड के गठन का क्या तरीका है?
    कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के तहत, एक निगम बोर्ड का गठन किया जाता है, जिसमें सरकार, कर्मचारी और नियोजक के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। यह बोर्ड निगम की नीतियों और कार्यों का पर्यवेक्षण करता है और योजना के प्रबंधन में सहायता करता है।
  2. (क) चिकित्सा हितलाभ परिषद क्या है? व्याख्या कीजिए।
    चिकित्सा हितलाभ परिषद एक संस्था है जो कर्मचारी राज्य बीमा योजना के तहत चिकित्सा लाभ की योजना को लागू करने का कार्य करती है। यह परिषद कर्मचारियों और उनके परिवारों को चिकित्सा सेवाएं और उपचार प्रदान करती है, जैसे अस्पताल में भर्ती, दवाइयाँ, शल्य चिकित्सा आदि।

(ख) अंशदान के संदाय का ढंग क्या है? समझाइए।
अंशदान का संदाय एक नियमित प्रक्रिया है, जिसमें कर्मचारी और नियोजक दोनों द्वारा निर्धारित अंशदान कर्मचारियों के वेतन के आधार पर तय किया जाता है। यह अंशदान मासिक रूप से बीमा निगम को भेजा जाता है, और यह ऑनलाइन, बैंक के माध्यम से या अन्य विधियों से किया जा सकता है।

  1. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के अन्तर्गत हित लाभ की व्याख्या कीजिए।
    कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के तहत “हित लाभ” से तात्पर्य उन लाभों से है जो कर्मचारियों को दुर्घटना, बीमारी, गर्भावस्था, विकलांगता या मृत्यु के कारण आर्थिक सहायता और चिकित्सा उपचार प्राप्त करने के रूप में प्रदान किए जाते हैं। इन लाभों में चिकित्सा लाभ, नकद लाभ (जैसे अस्थायी या स्थायी विकलांगता के लिए), और परिवार के सदस्य की मृत्यु पर जीवन बीमा शामिल होते हैं।
  2. पूर्ण और आंशिक अंगहानि क्या है?
    पूर्ण अंगहानि तब होती है जब किसी कर्मचारी का कोई अंग पूरी तरह से कार्य करने में अक्षम हो जाता है, जैसे कि हाथ या पैर का पूरी तरह से कटना। आंशिक अंगहानि तब होती है जब अंग की कुछ क्षमता या कार्यक्षमता कम हो जाती है, लेकिन वह पूरी तरह से अक्षम नहीं होता। उदाहरण के लिए, हाथ की अंगुली का एक हिस्सा काटा जाना।

न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 (The Minimum Wages Act, 1948)

  1. न्यूनतम मजदूरी से आप क्या समझते हैं?
    न्यूनतम मजदूरी वह न्यूनतम वेतन है जिसे किसी भी कर्मचारी को किसी विशेष कार्य या सेवा के बदले कानूनी रूप से प्राप्त करना चाहिए। यह मजदूरी एक निर्धारित सीमा से कम नहीं हो सकती और इसका उद्देश्य कर्मचारियों को उनके श्रम के लिए एक न्यायपूर्ण और मानवीय वेतन सुनिश्चित करना है।
  2. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण एवं पुनरीक्षण करने सम्बन्धी प्रक्रिया का उल्लेख करें।
    न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत, न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण सरकार द्वारा किया जाता है और इसे समय-समय पर पुनरीक्षित किया जाता है। इसके लिए सरकार श्रम और रोजगार मंत्रालय के तहत एक समिति गठित करती है, जो विभिन्न क्षेत्रों के लिए उचित न्यूनतम मजदूरी दर तय करती है। पुनरीक्षण का काम नियमित रूप से होता है ताकि महंगाई और आर्थिक परिवर्तनों के साथ मजदूरी की दरें अद्यतित रहें।
  3. अतिकाल (Overtime) से क्या तात्पर्य है?
    अतिकाल का तात्पर्य उस अतिरिक्त समय से है जब कोई कर्मचारी अपनी सामान्य कार्यघंटों के बाद अतिरिक्त काम करता है। अतिकाल के काम के लिए कर्मचारी को सामान्य दर से अधिक वेतन (अतिकाल मजदूरी) प्रदान किया जाता है।
  4. निर्वाह वेतन, उचित वेतन एवं न्यूनतम वेतन की संकल्पनाओं की व्याख्या कीजिए।
  • निर्वाह वेतन: यह वह वेतन है जो कर्मचारियों के जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त हो। इसमें कर्मचारियों और उनके परिवार के लिए भोजन, आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य बुनियादी आवश्यकताएँ शामिल होती हैं।
  • उचित वेतन: यह एक ऐसा वेतन है जो कर्मचारी की क्षमताओं, कार्यक्षमता और कार्यस्थल की स्थितियों के अनुरूप हो।
  • न्यूनतम वेतन: यह वह न्यूनतम वेतन है जो किसी कर्मचारी को श्रम के लिए कानूनी रूप से मिलना चाहिए, जिसे सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है।
  1. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड के गठन के विषय में वर्णन कीजिए।
    केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड के गठन में सरकार, नियोजक और श्रमिकों के प्रतिनिधियों का सम्मिलन होता है। यह बोर्ड न्यूनतम मजदूरी दरों के निर्धारण और समीक्षा की प्रक्रिया में सरकार को सलाह प्रदान करता है। इसमें श्रमिकों और नियोजकों का बराबरी से प्रतिनिधित्व होता है।
  2. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत दी गई “मजदूरी” की संकल्पना को समझाइए।
    न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत “मजदूरी” का अर्थ वह वेतन है जो किसी कर्मचारी को काम के बदले मिलती है। इसमें मौजूदा मजदूरी के अलावा बोनस, भत्ते, ओवरटाइम और अन्य किसी भी प्रकार की नकद भुगतान शामिल हो सकते हैं जो कार्यस्थल पर कर्मचारियों को उनकी सेवाओं के बदले मिलते हैं।
  3. पुरुष तथा स्त्री कर्मचारियों के समान कार्य के लिए समान वेतन के बारे में क्या प्रावधान हैं?
    न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत पुरुष और स्त्री कर्मचारियों के समान कार्य के लिए समान वेतन का प्रावधान है। इसका उद्देश्य लैंगिक समानता को बढ़ावा देना है और यह सुनिश्चित करता है कि दोनों लिंगों को समान श्रम के लिए समान भुगतान प्राप्त हो।

मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 (The Payment of Wages Act, 1936)

  1. मजदूरी भुगतान अधिनियम के अन्तर्गत “मजदूरी” को परिभाषित कीजिए।
    मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 के तहत, “मजदूरी” का अर्थ है वह राशि जो किसी कर्मचारी को उनके श्रम के बदले उनके नियोजक से प्राप्त होती है, जिसमें सामान्य वेतन, बोनस, ओवरटाइम की राशि, और अन्य भत्ते शामिल हो सकते हैं।
  2. मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 के उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
    मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 का उद्देश्य कर्मचारियों को समय पर और पूरी तरह से मजदूरी भुगतान सुनिश्चित करना है। यह अधिनियम कर्मचारियों को उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए बनाया गया है ताकि उन्हें वेतन में कोई कमी न हो और समय पर उनका भुगतान हो सके।
  1. कटौती क्या है?
    कटौती से तात्पर्य उस राशि से है जो कर्मचारियों की मजदूरी से नियोजक द्वारा किसी विशेष उद्देश्य के लिए काटी जाती है। यह कटौती सामान्यत: कर्मचारियों के वेतन से एक निश्चित प्रतिशत के रूप में की जाती है, जो कानूनी प्रावधानों के तहत वैध होती है।
  2. मजदूरी भुगतान का समय।
    मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 के तहत, मजदूरी का भुगतान कार्यस्थल पर कर्मचारियों को एक निश्चित समय सीमा में करना आवश्यक होता है। यदि कर्मचारी माह के पहले सप्ताह में काम करता है, तो उसे भुगतान उसी महीने के अंत तक किया जाना चाहिए।
  3. मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 के अन्तर्गत मान्य कटौतियाँ कौन सी हैं?
    मजदूरी भुगतान अधिनियम के तहत कुछ मान्य कटौतियाँ हैं:
  • कर्मचारियों द्वारा प्राप्त अग्रिम राशि की वापसी
  • कर्मचारी को दी गई सामग्रियों का मूल्य
  • कर्मचारी को प्रदान की गई अन्य सेवाओं या सुविधाओं का मूल्य
  • कानूनी शुल्क और अन्य प्राधिकृत कटौतियाँ
  1. अधिकृत कटौतियों के प्रकार गिनाइये।
    अधिकृत कटौतियाँ निम्नलिखित प्रकार की हो सकती हैं:
  • कर्मचारियों की स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम
  • कर्मचारी संघों के द्वारा अनुमोदित योगदान
  • कर्मचारी द्वारा लिए गए ऋण की चुकौती
  • सरकारी करों की कटौती
  1. प्राधिकारियों की शक्तियों से सम्बन्धित उपबन्ध क्या हैं? बतलाइये।
    प्राधिकृत अधिकारियों के पास यह शक्ति होती है कि वे मजदूरी भुगतान अधिनियम के तहत कर्मचारियों से संबंधित किसी भी विवाद को हल कर सकते हैं और नियोजक के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, अधिकारी कर्मचारियों की मजदूरी के भुगतान के संदर्भ में निरीक्षण कर सकते हैं और आवश्यक सुधारात्मक कार्रवाई की सिफारिश कर सकते हैं।
  2. निर्धारक से आप क्या समझते हैं?
    निर्धारक (Inspector) वह व्यक्ति है जिसे श्रम विभाग द्वारा नियोजित किया जाता है और जो यह सुनिश्चित करता है कि श्रम कानूनों का पालन किया जा रहा है। यह निरीक्षक कार्यस्थल पर मजदूरी भुगतान, काम के घंटे और कर्मचारियों के अधिकारों की जांच करता है।

कारखाना अधिनियम, 1948 (The Factories Act, 1948)

  1. अधिसमय (Overtime) से आप क्या समझते हैं?
    अधिसमय का मतलब है जब कर्मचारी अपनी सामान्य कार्य घण्टों से अधिक समय तक काम करता है। अधिसमय काम के लिए नियोजक को कर्मचारी को अतिरिक्त वेतन देने का कर्तव्य होता है, जो सामान्य वेतन से अधिक होता है।
  2. कर्मकार को परिभाषित कीजिए।
    कर्मकार से तात्पर्य उन व्यक्तियों से है जो कारखाने में श्रमिक के रूप में काम करते हैं, चाहे वे स्थायी हों या अस्थायी। इन कर्मकारों का काम किसी भी उत्पादन प्रक्रिया में सहायक होता है।
  3. दिहाड़ी मजदूर किसे कहते हैं?
    दिहाड़ी मजदूर वह व्यक्ति होते हैं जिन्हें उनके द्वारा किए गए काम के लिए दैनिक आधार पर वेतन दिया जाता है, यानी उन्हें प्रति दिन काम करने के बदले मजदूरी मिलती है, जो सप्ताहिक या मासिक भुगतान से अलग होती है।
  4. निरीक्षकों की नियुक्ति।
    निरीक्षकों की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है ताकि वे कारखानों में श्रम कानूनों के पालन का निरीक्षण करें। ये निरीक्षक यह सुनिश्चित करते हैं कि कर्मचारियों को उनकी श्रमिक अधिकारों का लाभ मिल रहा हो और कार्यस्थल पर सभी नियमों का पालन हो रहा हो।
  5. सक्षम व्यक्ति को परिभाषित करें।
    सक्षम व्यक्ति वह होता है जिसे कारखाने के भीतर कार्यस्थल की सुरक्षा, स्वास्थ्य और अन्य कानूनी मानकों को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गई होती है। यह व्यक्ति किसी विशेष कार्य के लिए प्रमाणित और प्रशिक्षित होता है।
  6. शिशु-गृह क्या होता है?
    शिशु-गृह (Creches) एक ऐसी सुविधा है जो कर्मचारियों के बच्चों के लिए कामकाजी घंटों के दौरान बच्चों की देखभाल प्रदान करती है। यह खासकर महिला कर्मचारियों के लिए होता है, ताकि वे अपने कार्यस्थल पर काम करते हुए अपने बच्चों की देखभाल कर सकें।
  7. विनिर्माण प्रक्रिया (Manufacturing Process)
    विनिर्माण प्रक्रिया वह प्रक्रिया होती है जिसके द्वारा कच्चे माल को उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है। यह प्रक्रिया विभिन्न कार्यों, उपकरणों और श्रमिकों की मदद से की जाती है, जो किसी विशिष्ट उत्पाद को बनाने के लिए आवश्यक होते हैं।
  8. कारखाना (Factories)
    कारखाना एक संरचना है जहाँ पर किसी उत्पाद का उत्पादन किया जाता है। इसमें श्रमिकों द्वारा काम किया जाता है, और यह स्थान बड़ी मात्रा में वस्तुएं बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया होता है।
  9. निरीक्षकों की शक्तियाँ एवं कर्त्तव्य।
    निरीक्षकों की शक्तियाँ में कार्यस्थल पर निरीक्षण करने, रिकॉर्ड की जांच करने, श्रम कानूनों का पालन सुनिश्चित करने और आवश्यकता पड़ने पर जुर्माना लगाने का अधिकार होता है। उनके कर्तव्यों में कार्यस्थल की सुरक्षा और कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करना शामिल है।
  10. दखलकार को परिभाषित कीजिए।
    दखलकार वह व्यक्ति होता है जो किसी कारखाने में प्रबंधकीय भूमिका निभाता है और उसके लिए जिम्मेदार होता है। यह व्यक्ति कारखाने के संचालन, कर्मचारियों की भलाई और सुरक्षा के मामलों में निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार होता है।
  11. दखलकार के कर्तव्यों का वर्णन कीजिए।
    दखलकार के कर्तव्यों में शामिल हैं:
  • कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य मानकों का पालन सुनिश्चित करना।
  • श्रमिकों के कार्य समय और आराम का ध्यान रखना।
  • कर्मचारियों की भलाई और उनके अधिकारों की रक्षा करना।
  • श्रम कानूनों के अनुसार कार्यस्थल का संचालन सुनिश्चित करना।
  1. कारखानों में स्वास्थ्य सम्बन्धी उपबन्धों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
    कारखानों में स्वास्थ्य संबंधी उपबन्धों में कर्मचारियों के स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जल आपूर्ति, स्वच्छता, वेंटिलेशन, शौचालय सुविधाएं, और अन्य आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं शामिल हैं। यह उपबन्ध कर्मचारियों को सुरक्षित और स्वस्थ कार्य वातावरण प्रदान करने के उद्देश्य से किए जाते हैं।
  1. महिलाओं और अल्पवय के कारखाना में नियोजित करने के संदर्भ में क्या प्रतिबन्ध है?
    कारखाना अधिनियम, 1948 के तहत, महिलाओं और अल्पवय के व्यक्तियों के लिए विशेष प्रतिबंध हैं। महिलाओं को रात के समय (समय सीमा के अनुसार) खतरनाक कारखानों में काम करने से प्रतिबंधित किया गया है। इसके अलावा, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी कारखाने में काम करने से पूरी तरह प्रतिबंधित किया गया है, जबकि 15 से 18 वर्ष के किशोरों के लिए विशेष सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होती है।
  2. सुरक्षा की प्राथमिकता कारखाना अधिनियम का मूल तंत्र है। समझाइए।
    कारखाना अधिनियम में सुरक्षा को उच्च प्राथमिकता दी जाती है। इसका उद्देश्य कर्मचारियों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और भलाई की रक्षा करना है। यह अधिनियम कारखानों में उचित सुरक्षा उपायों, संरचनात्मक सुरक्षा, दुर्घटनाओं से बचाव, उचित प्रशिक्षण और उपकरणों के उपयोग के लिए प्रावधान करता है ताकि कर्मचारी खतरनाक परिस्थितियों से सुरक्षित रहें।
  3. कल्याणाधिकारी (Welfare Officer)
    कल्याणाधिकारी वह अधिकारी होता है जिसे कारखाने में कर्मचारियों की भलाई और उनके कल्याण के लिए नियुक्त किया जाता है। यह अधिकारी कर्मचारियों की सामाजिक, मानसिक और शारीरिक भलाई के लिए विभिन्न कार्यक्रमों को लागू करने का कार्य करता है, जैसे कि उचित आवास, पोषण, चिकित्सा सुविधाएं आदि।
  4. साप्ताहिक छुट्टियाँ (Weekly Holidays)
    साप्ताहिक छुट्टियाँ वह दिन होते हैं जब कारखानों में कामकाजी कर्मचारी को छुट्टी दी जाती है। यह छुट्टी सामान्यत: सप्ताह में एक दिन होती है, और इसे कारखाना अधिनियम के तहत कर्मचारियों के लिए सुनिश्चित किया गया है। यदि कर्मचारी को साप्ताहिक छुट्टी पर काम करना पड़ता है, तो उसे अतिरिक्त वेतन (ओवरटाइम) दिया जाता है।
  5. खतरनाक संक्रिया से आप क्या समझते हैं?
    खतरनाक संक्रिया से तात्पर्य उन प्रक्रियाओं से है जो कर्मचारियों के जीवन और स्वास्थ्य के लिए जोखिमपूर्ण हो सकती हैं। ये प्रक्रियाएँ आमतौर पर उच्च तापमान, ज्वलनशील रसायन, मशीनों या भारी उपकरणों के साथ जुड़ी होती हैं। इन प्रक्रियाओं में काम करते समय कर्मचारियों को सुरक्षा उपकरणों का उपयोग करना अनिवार्य होता है।

बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 (The Payment of Bonus Act, 1965)

  1. बोनस अदायगी अधिनियम के अन्तर्गत ‘उपलब्ध बचत’ की व्याख्या कीजिए।
    ‘उपलब्ध बचत’ से तात्पर्य उस बचत से है जो कंपनी के कुल लाभ से कर्मचारियों को बोनस देने के बाद बच जाती है। यह बचत उन खर्चों और दायित्वों को घटाने के बाद बची राशि को दर्शाती है, जिसे कंपनी को बोनस अदायगी के लिए प्रस्तुत किया जाता है।
  2. एक व्यक्ति बोनस पाने के लिए कब अयोग्य होता है?
    एक व्यक्ति निम्नलिखित परिस्थितियों में बोनस पाने के लिए अयोग्य हो सकता है:
  • यदि वह किसी अपराध में लिप्त होता है और उसे सजा दी जाती है।
  • यदि कर्मचारी ने जानबूझकर या अनुशासनहीनता के कारण काम में लापरवाही की हो।
  • यदि कर्मचारी ने किसी वित्तीय वर्ष में कम से कम 30 दिन काम नहीं किया हो।
  1. बोनस अधिनियम, 1965 के अन्तर्गत बोनस की गणना का क्या तरीका है? गणना में कार्य दिवस संख्या का आगणन कैसे किया जायेगा?
    बोनस की गणना कार्यकर्ता की वार्षिक मजदूरी और कंपनी के लाभ के आधार पर की जाती है। कार्य दिवसों की संख्या का आगणन उस वर्ष में कुल कार्य दिवसों के आधार पर किया जाता है, और बोनस के लिए एक कर्मचारी को कम से कम 30 दिन काम करना अनिवार्य होता है। यदि किसी कर्मचारी ने 30 दिन से कम कार्य किया है, तो वह बोनस के पात्र नहीं होगा।

कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम, 1923 (Employees’ Compensation Act, 1923)

  1. कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम के उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
    कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम, 1923 का उद्देश्य कर्मचारियों को कार्य के दौरान दुर्घटनाओं या बीमारियों के कारण होने वाली हानि के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करना है। इस अधिनियम के तहत, कर्मचारियों को उनकी शारीरिक क्षति, मृत्यु, या विकलांगता के लिए मुआवजा दिया जाता है, ताकि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति पर असर न पड़े।
  2. कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम, 1923 के अन्तर्गत ‘कर्मचारी’ को परिभाषित कीजिए।
    कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम, 1923 के तहत ‘कर्मचारी’ वह व्यक्ति होता है जो किसी उद्योग या व्यवसाय में कार्य करता है और जो किसी दुर्घटना या बीमारी के कारण शारीरिक हानि या मृत्यु से प्रभावित हो जाता है। इसमें नियमित, अस्थायी और ठेका कर्मचारियों को भी शामिल किया जाता है, बशर्ते उनका काम प्रत्यक्ष रूप से उद्योग से संबंधित हो।
  3. आश्रित से क्या अभिप्रेत है?
    आश्रित से तात्पर्य उस व्यक्ति से है जो कर्मचारी की मृत्यु या विकलांगता के बाद उनके भरण-पोषण के लिए निर्भर होता है। यह व्यक्ति सामान्यत: कर्मचारी का पति/पत्नी, बच्चे, या अन्य पारिवारिक सदस्य हो सकता है, जो कर्मचारी पर निर्भर रहता है।
  4. आंशिक निर्योग्यता से आप क्या समझते हैं?
    आंशिक निर्योग्यता से तात्पर्य उस स्थिति से है जिसमें कर्मचारी का शरीर किसी दुर्घटना या बीमारी के कारण आंशिक रूप से अक्षम हो जाता है, लेकिन वह पूरी तरह से काम करने में असमर्थ नहीं होता। यह स्थायी या अस्थायी हो सकती है, और इसमें कर्मचारियों को आंशिक मुआवजा दिया जाता है।
  5. पूर्ण निर्योग्यता से आप क्या समझते हैं?
    पूर्ण निर्योग्यता से तात्पर्य उस स्थिति से है जब कर्मचारी की शारीरिक या मानसिक क्षमता पूरी तरह से खत्म हो जाती है और वह किसी भी कार्य को करने में सक्षम नहीं होता। इसमें कर्मचारी को पूरी तरह से मुआवजा दिया जाता है, और यह स्थिति स्थायी हो सकती है।
  1. कर्मचारी की क्षतिपूर्ति की मात्रा का निर्धारण सम्बन्धी विधि का उल्लेख कीजिए।
    कर्मचारी की क्षतिपूर्ति का निर्धारण कर्मचारी की शारीरिक क्षति की गंभीरता, आयु, और कार्य क्षमता के आधार पर किया जाता है। इस विधि के तहत, क्षति के प्रकार के अनुसार एक निश्चित दर पर मुआवजा दिया जाता है। यदि कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी पत्नी/पति और अन्य आश्रितों को तय सीमा के भीतर मुआवजा दिया जाता है। आंशिक और पूर्ण विकलांगता के लिए अलग-अलग मुआवजा दरें निर्धारित की जाती हैं।
  2. क्या विधुर भी आश्रित की श्रेणी में माना जाएगा?
    जी हाँ, विधुर को भी आश्रित की श्रेणी में माना जा सकता है, बशर्ते वह मृत कर्मचारी पर आर्थिक रूप से निर्भर हो। यह स्थिति तब लागू होती है जब विधुर ने कर्मचारी के भरण-पोषण पर निर्भर रहने की स्थिति में मुआवजे का दावा किया हो।
  3. आंशिक निर्योग्यता एवं पूर्ण निर्योग्यता में अन्तर स्पष्ट करें।
    आंशिक निर्योग्यता वह स्थिति है जिसमें कर्मचारी का एक या अधिक अंग काम करने के लिए आंशिक रूप से असमर्थ हो जाता है, लेकिन वह किसी अन्य प्रकार के काम को करने में सक्षम होता है। वहीं, पूर्ण निर्योग्यता वह स्थिति है जब कर्मचारी का शारीरिक या मानसिक रूप से पूरी तरह से विकलांग हो जाता है और वह किसी भी कार्य को करने के लिए असमर्थ हो जाता है।
  4. कर्मकार प्रतिकार अधिनियम के अन्तर्गत प्रतिकर को परिभाषित कीजिए।
    कर्मकार प्रतिकार अधिनियम के अन्तर्गत, प्रतिकर वह मुआवजा है जो कर्मचारी को किसी दुर्घटना के कारण होने वाली हानि के लिए प्रदान किया जाता है। यह मुआवजा उसके कार्यों के दौरान दुर्घटना या बीमारी के कारण होने वाली मृत्यु, विकलांगता, या आंशिक क्षति के लिए होता है।
  5. प्रतिकर के लिए नियोजक के दायित्व की विवेचना कीजिए।
    नियोजक का दायित्व है कि वह अपने कर्मचारियों को किसी दुर्घटना या कार्य के दौरान बीमारी के कारण मुआवजा प्रदान करे। यह दायित्व तब उत्पन्न होता है जब कर्मचारी का कार्यस्थल पर कोई दुर्घटना होती है या वह किसी बीमारी से प्रभावित होता है। नियोजक को मुआवजा का भुगतान करना अनिवार्य होता है, बशर्ते वह दुर्घटना कर्मचारी के कार्य से जुड़ी हो और उसमें किसी अन्य कारण से लापरवाही न हो।
  6. दुर्घटना क्या है?
    दुर्घटना से तात्पर्य किसी अप्रत्याशित घटना या स्थिति से है, जो कर्मचारी के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। यह घटना कार्यस्थल पर किसी खतरनाक स्थिति के कारण, जैसे मशीन की चपेट में आना, रसायन से संपर्क होना, या गिरकर चोट लगना आदि, हो सकती है।
  7. “भावात्मक प्रसार” से आप क्या समझते हैं?
    “भावात्मक प्रसार” (Notional extension) एक कानूनी अवधारणा है, जिसका मतलब है कि कार्यस्थल पर घटना की स्थितियों को उनके भौतिक स्थान से बढ़ाकर, कर्मचारी के कार्यों के संदर्भ में घटना की कड़ी को समझना। यह तब लागू होता है जब कर्मचारी कार्यस्थल से बाहर भी अपने कार्य से संबंधित कार्य कर रहा होता है और उसे उस दौरान किसी दुर्घटना का सामना करना पड़ता है।
  8. आयुक्त को परिभाषित करें।
    आयुक्त वह अधिकारी होता है जो कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम के तहत कर्मचारी के मुआवजे के मामलों को सुनने और निपटाने के लिए नियुक्त किया जाता है। आयुक्त मुआवजा संबंधी मामलों का निस्तारण करता है और कर्मचारियों को उनके अधिकारों के लिए न्याय दिलाने में मदद करता है।
  9. प्रबन्ध अभिकर्ता को परिभाषित करें।
    प्रबन्ध अभिकर्ता वह व्यक्ति होता है जिसे नियोजक द्वारा किसी कार्य के संचालन की जिम्मेदारी दी जाती है। यह व्यक्ति कार्यस्थल पर कर्मचारियों के प्रबंधन, उनके कार्य, शर्तों और लाभों को नियंत्रित करता है।
  10. अवयस्क से आप क्या समझते हैं?
    अवयस्क वह व्यक्ति होता है जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम होती है। भारतीय श्रम कानूनों के तहत अवयस्कों को विशेष सुरक्षा दी जाती है, जैसे कि खतरनाक कार्यों से उन्हें बाहर रखा जाता है और उनके लिए कार्य करने का समय सीमित होता है।
  11. मजदूरी को परिभाषित करें।
    मजदूरी से तात्पर्य उस भुगतान से है जो किसी कर्मचारी को उसकी सेवा के बदले में दिया जाता है। इसमें मूल वेतन, भत्ते, और अन्य वित्तीय लाभ शामिल हो सकते हैं जो कर्मचारी को काम करने के बदले में मिलते हैं।
  12. स्थायी आदेश के प्रमाणीकरण की क्या प्रक्रिया है?
    स्थायी आदेश के प्रमाणीकरण की प्रक्रिया में एक प्राधिकृत अधिकारी द्वारा कारखाने या उद्योग के स्थायी आदेशों की जांच की जाती है और उन्हें वैधता प्रदान की जाती है। यह प्रमाणीकरण यह सुनिश्चित करता है कि कंपनी के कर्मचारी संबंधी नियम और शर्तें कानून के अनुरूप हैं और कर्मचारियों के हितों की रक्षा करते हैं।
  13. किन परिस्थितियों में नियोजक अपने दायित्वों से मुक्ति पा सकता है?
    नियोजक अपने दायित्वों से तब मुक्ति पा सकता है जब कर्मचारी की दुर्घटना या बीमारी की स्थिति नियोजक की लापरवाही या गलत व्यवहार के कारण न हो, जैसे कि कर्मचारी ने स्वयं अपनी लापरवाही से दुर्घटना की स्थिति उत्पन्न की हो। इसके अलावा, यदि दुर्घटना कर्मचारी के अपने कार्य के दायरे से बाहर हुई हो तो भी नियोजक को मुआवजा देने से छूट मिल सकती है।
  14. हड़ताल एवं तालाबन्दी में विभेद कीजिए?
    हड़ताल तब होती है जब कर्मचारी अपने अधिकारों या मांगों के लिए कार्यस्थल पर काम बंद कर देते हैं। वहीं, तालाबन्दी तब होती है जब नियोजक अपने कर्मचारियों के खिलाफ किसी विवाद या असहमति के कारण कार्यस्थल को बंद कर देता है। दोनों में अंतर यह है कि हड़ताल कर्मचारियों द्वारा की जाती है, जबकि तालाबन्दी नियोजक द्वारा।
  15. किन परिस्थितियों में हड़ताल गैर कानूनी होगी?
    हड़ताल तब गैर कानूनी होगी जब यह किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना की जाती है, जैसे कि नियोजक को पूर्व सूचना दिए बिना हड़ताल करना, या यदि यह हड़ताल निहित शर्तों और अनुबंधों के खिलाफ की जाती है। इसके अलावा, अगर हड़ताल युद्ध, महामारी या राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में हो तो भी यह गैर कानूनी मानी जाती है।
  1. ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 के अन्तर्गत किन परिस्थितियों में ग्रेच्युटी का भुगतान देय होता है?
    ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 के तहत ग्रेच्युटी का भुगतान कर्मचारियों को निम्नलिखित परिस्थितियों में देय होता है:
  • 1.जब कर्मचारी का कार्यकाल 5 वर्ष या उससे अधिक हो।
  • 2. कर्मचारियों के निधन, बीमारी, विकलांगता, या अवकाश के कारण ग्रेच्युटी का भुगतान किया जा सकता है।
  • 3. जब कर्मचारी स्वेच्छा से अपनी सेवा समाप्त करता है, तो भी ग्रेच्युटी का भुगतान किया जाता है (यदि यह 5 साल से कम सेवा है तो अपवाद हो सकता है)।
  • 4. कार्यस्थल पर किसी दुर्घटना या बीमारी के कारण कर्मचारी का निधन होता है तो उसके परिवार को ग्रेच्युटी मिलती है।

68. मातृत्व हित लाभ क्या है?

मातृत्व हित लाभ एक प्रकार का सामाजिक सुरक्षा लाभ है जो गर्भवती महिलाओं को उनके प्रसव के बाद आराम और देखभाल के लिए दिया जाता है। यह लाभ प्रायः उनके रोजगार से संबंधित होता है और यह उन्हें प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर अवकाश की अवधि के दौरान वेतन का भुगतान सुनिश्चित करता है। यह अधिनियम महिलाओं को कार्यस्थल पर समान अवसर और सुरक्षा प्रदान करने का उद्देश्य रखता है।

69. मातृत्व हित लाभ अधिनियम में स्त्री की मृत्यु की दशा में मातृत्व हित लाभ के भुगतान के सम्बन्ध में क्या प्रावधान है?

मातृत्व हित लाभ अधिनियम के तहत, यदि एक गर्भवती महिला की मृत्यु प्रसव के दौरान होती है, तो उसके परिवार को उसके मातृत्व हित लाभ का भुगतान किया जाता है। इसका भुगतान उस महिला के आश्रितों को किया जाता है, और यह लाभ महिला की मृत्यु के समय तक के लिए होता है, जैसा कि उसकी सेवा या कानूनी अधिकारों के तहत निर्धारित किया गया हो।

70. समस्यायें।

समस्याएं विभिन्न श्रमिक विधियों और उनके प्रावधानों के लागू होने में उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे कि:

  • कर्मचारियों के अधिकारों और लाभों का सही ढंग से पालन न होना।
  • वेतन, बोनस, या छुट्टियों से संबंधित विवाद।
  • श्रमिकों को उचित सुरक्षा और स्वास्थ्य मानकों से संबंधित समस्याएं।
  • कामकाजी महिलाओं के अधिकारों, जैसे मातृत्व लाभ और समान वेतन से जुड़ी समस्याएं।
  • कार्यस्थल पर कर्मचारियों को दुर्घटनाओं से संबंधित कानूनी सुरक्षा की कमी।
  • कर्मचारियों के अधिकारों को लेकर नियोजकों और श्रमिक संघों के बीच विवाद।

इन समस्याओं का समाधान करने के लिए श्रम विभाग और न्यायालयों में उचित उपायों की आवश्यकता होती है।