“शोपलिफ्टिंग अब साधारण चोरी नहीं: भा.ना.सं. 2023 की धारा 112 के तहत संगठित अपराध माना जाएगा, 7 साल तक की सजा संभव”
परिचय
भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में ऐतिहासिक बदलाव लाते हुए भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) को लागू किया गया है। इस नई संहिता ने न केवल अपराधों की परिभाषा को आधुनिक संदर्भ में ढाला है, बल्कि डिजिटल युग और शहरी जीवन में पनप रहे नए अपराधों को भी विधिक स्वरूप प्रदान किया है।
इन्हीं में से एक है शोपलिफ्टिंग (Shoplifting) — जो अब केवल एक साधारण चोरी नहीं, बल्कि एक “Petty Organised Crime” के रूप में चिन्हित किया गया है। धारा 112 के तहत यह गंभीर अपराध माना जाएगा, और इसमें 7 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है।
क्या है शोपलिफ्टिंग?
शोपलिफ्टिंग वह अपराध है जिसमें कोई व्यक्ति जान-बूझकर किसी दुकान, सुपरमार्केट, मॉल या अन्य वाणिज्यिक स्थान से बिना भुगतान किए सामान चुराता है। यह चोरी की एक विशिष्ट किस्म है, जो विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलती है। कई बार यह अकेले व्यक्ति द्वारा किया जाता है, लेकिन कई मामलों में यह एक संगठित गिरोह (gang) की करतूत होती है, जो विभिन्न दुकानों में बार-बार चोरी करते हैं।
भा.ना.सं. 2023 की धारा 112: एक नवाचार
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 112 के अंतर्गत शोपलिफ्टिंग को “Petty Organised Crime” के अंतर्गत लाया गया है। इसका उद्देश्य यह है कि जो अपराध छोटे दिखते हैं लेकिन संगठित तरीके से बार-बार किए जाते हैं, उन्हें भी गंभीरता से लिया जाए।
प्रमुख बिंदु (धारा 112 के अंतर्गत):
- गैंग बनाकर बार-बार शोपलिफ्टिंग करना – यदि कोई व्यक्ति एक संगठित समूह के रूप में इस तरह का अपराध करता है, तो यह केवल चोरी नहीं बल्कि संगठित अपराध माना जाएगा।
- अधिकतम सजा – 7 वर्ष तक की कैद – यह दर्शाता है कि सरकार और न्यायिक प्रणाली अब इस अपराध को हल्के में नहीं ले रही।
- मॉल्स और दुकानों की सुरक्षा को कानूनी समर्थन – इससे व्यापारिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को मजबूत कानूनी संरक्षण मिलेगा।
- अपराध के पैटर्न पर आधारित सजा – यदि एक ही व्यक्ति बार-बार ऐसा अपराध करता है, तो उसकी प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए कठोर दंड दिया जाएगा।
सामाजिक और कानूनी प्रभाव
- बढ़ती निगरानी: मॉल्स और दुकानों में सीसीटीवी और सुरक्षा प्रोटोकॉल का विस्तार अब कानूनी रूप से भी समर्थित होगा।
- व्यापारियों को राहत: व्यापारियों को अब यह भरोसा मिलेगा कि बार-बार की शोपलिफ्टिंग एक संगठित अपराध मानी जाएगी और पुलिस इसे गंभीरता से लेगी।
- किशोर अपराधियों के लिए चेतावनी: कई बार युवा वर्ग, विशेषकर किशोरवय लोग शोपलिफ्टिंग को एक ‘मजाक’ समझते हैं। अब कानून के दायरे में आने पर उन्हें भी गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
न्याय प्रणाली की आधुनिक दृष्टि
शोपलिफ्टिंग जैसे छोटे लेकिन बार-बार होने वाले अपराधों को संगठित अपराध मानना भारतीय न्याय प्रणाली के आधुनिक दृष्टिकोण को दर्शाता है। यह दृष्टिकोण केवल गंभीर और हिंसक अपराधों पर ही नहीं, बल्कि उन सूक्ष्म अपराधों पर भी केंद्रित है, जो समाज में असुरक्षा की भावना उत्पन्न करते हैं।
निष्कर्ष
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 112 के तहत शोपलिफ्टिंग को “Petty Organised Crime” के रूप में परिभाषित करना एक साहसिक और प्रगतिशील कदम है। यह न केवल कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अधिक अधिकार प्रदान करता है, बल्कि व्यापारिक प्रतिष्ठानों और उपभोक्ताओं को भी सुरक्षा का भाव देता है।
अब यह स्पष्ट संदेश है — “छोटा अपराध भी बड़ा परिणाम ला सकता है, यदि वह बार-बार और संगठित रूप से किया जाए।”