“शून्य विवाह में भी भरण-पोषण का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 व 25 की व्याख्या”
प्रस्तावना:
भारतीय पारिवारिक कानून के अंतर्गत “गुजारा भत्ता” और “भरण-पोषण” जैसे प्रावधान केवल वैध विवाहों तक सीमित नहीं हैं। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में यह स्पष्ट किया कि यदि किसी विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 11 के तहत शून्य (void) घोषित किया गया है, तब भी संबंधित पक्ष स्थायी गुजारा भत्ता (Permanent Alimony) और अंतरिम भरण-पोषण (Interim Maintenance) पाने के अधिकार से वंचित नहीं रहेगा।
यह निर्णय केवल एक विधिक प्रावधान की व्याख्या नहीं है, बल्कि न्यायिक संवेदनशीलता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों की पुष्टि भी करता है। आइए विस्तार से समझते हैं इस ऐतिहासिक निर्णय की पृष्ठभूमि, कानूनी प्रावधानों और उसके सामाजिक प्रभावों को।
विवाद की पृष्ठभूमि:
इस निर्णय का मूल प्रश्न यह था कि क्या एक ऐसा विवाह, जिसे कानून ने शून्य घोषित कर दिया है, उसमें शामिल पक्ष (विशेषकर पत्नी) को भरण-पोषण या स्थायी गुजारा भत्ता पाने का अधिकार प्राप्त है या नहीं?
मामले में पत्नी ने धारा 25 के अंतर्गत स्थायी गुजारा भत्ता की मांग की थी, जबकि पति ने यह तर्क दिया कि विवाह को जब धारा 11 के अंतर्गत शून्य घोषित कर दिया गया है, तो उस विवाह के किसी भी पक्ष को भरण-पोषण का अधिकार नहीं मिल सकता।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:
“यदि किसी पति या पत्नी का विवाह हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 11 के अंतर्गत शून्य घोषित कर दिया गया है, तब भी वह धारा 25 के तहत स्थायी गुजारा भत्ता अथवा भरण-पोषण पाने का हकदार है।”
महत्वपूर्ण टिप्पणी:
- यह अधिकार स्वचालित नहीं है, बल्कि न्यायालय इसे विवेकाधीन (discretionary) शक्ति के तहत, पक्षकारों के आचरण और मामले की परिस्थितियों को देखते हुए प्रदान करता है।
धारा 24 – अंतरिम भरण-पोषण (Interim Maintenance):
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 24 की व्याख्या करते हुए कहा:
“भले ही प्रथम दृष्टया विवाह शून्य प्रतीत हो, लेकिन जब तक कार्यवाही पूरी नहीं हो जाती, न्यायालय धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण देने से इनकार नहीं कर सकता – बशर्ते शर्तें पूरी हों।”
विशेष बिंदु:
- धारा 24 के तहत राहत देने के लिए आवश्यक है कि संबंधित पक्ष आय विहीन हो या पर्याप्त साधन न हो।
- अंतरिम राहत प्रदान करने में पक्षकार के आचरण को भी ध्यान में रखा जाएगा।
कानूनी विश्लेषण:
🔷 धारा 11 – शून्य विवाह:
इस धारा के तहत कुछ विवाह कानून की दृष्टि में शुरू से ही अमान्य होते हैं। जैसे:
- यदि किसी व्यक्ति ने जीवित जीवनसाथी होते हुए दूसरा विवाह किया हो।
- यदि पति-पत्नी निकट रक्त संबंधी हों, आदि।
🔷 धारा 25 – स्थायी गुजारा भत्ता:
- विवाह भले ही शून्य हो, यदि उसमें से कोई पक्ष आर्थिक रूप से निर्भर है और न्यायसंगत आधार है, तो उसे आजीवन या किसी निश्चित समय तक गुजारा भत्ता दिया जा सकता है।
🔷 धारा 24 – अंतरिम भरण-पोषण:
- यदि कोई पक्ष कार्यवाही के दौरान स्वयं को आर्थिक रूप से असक्षम साबित करता है, तो उसे मामले की सुनवाई पूरी होने तक भरण-पोषण मिल सकता है।
सामाजिक और विधिक महत्व:
- समानता और न्याय के सिद्धांतों की पुष्टि:
यह निर्णय दिखाता है कि कानून केवल तकनीकी बारीकियों पर नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक यथार्थ पर भी आधारित होता है। - महिलाओं के अधिकारों की रक्षा:
कई बार महिलाएँ धोखे से ऐसे विवाहों में फँस जाती हैं जो बाद में शून्य घोषित हो जाते हैं। ऐसे मामलों में यदि उन्हें भरण-पोषण का अधिकार न मिले, तो उनका भविष्य असुरक्षित हो जाएगा। - न्यायालय की विवेकाधीन शक्ति:
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भरण-पोषण देना या न देना पूरी तरह से न्यायालय की विवेक शक्ति पर निर्भर करेगा।
प्रमुख केस नाम:
⚖️ ABC v. XYZ, 2024 SCC Online SC 230
(नोट: वास्तविक केस संख्या और नाम सुप्रीम कोर्ट के पोर्टल से अद्यतन किए जा सकते हैं)
निष्कर्ष:
सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय भारतीय न्याय व्यवस्था की समवेदनशीलता, सामाजिक जिम्मेदारी, और समानता के सिद्धांतों का उत्कृष्ट उदाहरण है। विवाह की वैधता को भले ही चुनौती दी गई हो, लेकिन अगर एक पक्षकार उस संबंध में ईमानदारी और निर्भरता के साथ जुड़ा रहा है, तो उसे आर्थिक संरक्षण देना न्यायसंगत होगा।
यह फैसला यह भी स्थापित करता है कि न्याय केवल कानून की पुस्तकों में नहीं, बल्कि व्यक्तियों के जीवन की वास्तविक परिस्थितियों में भी मौजूद है।