शिर्गुल फिलिंग स्टेशन बनाम कमल शर्मा, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय (08 जुलाई 2025) – धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 के अंतर्गत शिकायत की बनाए रखने की योग्यता पर निर्णय

शिर्गुल फिलिंग स्टेशन बनाम कमल शर्मा, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय (08 जुलाई 2025) – धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 के अंतर्गत शिकायत की बनाए रखने की योग्यता पर निर्णय


प्रस्तावना

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने Shirgul Filling Station v. Kamal Sharma, Crl. Appeal No. 262 of 2010 में एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यह स्पष्ट किया कि धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 के अंतर्गत दायर शिकायत तभी बनाए रखने योग्य है, जब शिकायतकर्ता को “Payee” (प्राप्तकर्ता) के रूप में कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त हो। इस मामले में शिकायत एक व्यक्तिगत नाम से दायर की गई थी, जबकि चेक एक प्रोप्राइटरी फर्म (Shirgul Filling Station) के नाम पर जारी था, और शिकायतकर्ता ने यह साबित नहीं किया कि वह उस फर्म का एकमात्र मालिक (sole proprietor) है।


मामले की पृष्ठभूमि

  1. शिकायत का आधार
    शिकायतकर्ता ने दावा किया कि आरोपी ने उसका पैसा लौटाने के लिए चेक जारी किया, लेकिन बैंक ने उसे “अपर्याप्त धन” के आधार पर अस्वीकार कर दिया।
  2. शिकायत का तरीका
    शिकायत व्यक्तिगत नाम में दर्ज कराई गई, जबकि चेक “Shirgul Filling Station” के नाम पर था।
  3. प्रोप्राइटरशिप साबित करने में विफलता
    शिकायतकर्ता ने कोई ठोस दस्तावेज़ (जैसे GST रजिस्ट्रेशन, बैंक रेकॉर्ड, इनकम टैक्स रिटर्न आदि) पेश नहीं किया जिससे साबित हो कि वह उस फिलिंग स्टेशन का एकमात्र मालिक है।

प्रमुख कानूनी मुद्दा

  • क्या एक व्यक्ति, जो खुद को प्रोप्राइटर बताता है, लेकिन कोई कानूनी प्रमाण पेश नहीं करता, उसे धारा 138 NI Act के तहत “Payee” माना जा सकता है?

प्रासंगिक प्रावधान

  • धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 – चेक dishonour होने पर दंडनीय अपराध और उसकी आवश्यक शर्तें।
  • धारा 142 NI Act – शिकायत केवल “Payee” या “Holder in due course” द्वारा दायर की जा सकती है।
  • Payee की परिभाषा (धारा 7) – वह व्यक्ति जिसके नाम पर चेक जारी किया गया है।

निचली अदालत का निर्णय

  • ट्रायल कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता ने खुद को फर्म का मालिक साबित नहीं किया।
  • चूंकि शिकायत व्यक्तिगत नाम से थी और चेक फर्म के नाम पर था, इसलिए शिकायतकर्ता “Payee” नहीं था।
  • नतीजतन, शिकायत खारिज कर दी गई और आरोपी को बरी कर दिया गया।

हाई कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

  1. प्रोप्राइटरशिप का सबूत जरूरी
    कोर्ट ने कहा कि यदि चेक प्रोप्राइटरी फर्म के नाम पर है, तो शिकायतकर्ता को यह साबित करना अनिवार्य है कि वह उसका एकमात्र मालिक है।
  2. नाम और एंटिटी का फर्क
    फर्म और व्यक्ति का नाम भिन्न होने पर, कानूनी दृष्टि से वे अलग माने जाते हैं। केवल मौखिक बयान से प्रोप्राइटरशिप स्थापित नहीं की जा सकती।
  3. कानूनी मिसालें
    कोर्ट ने पूर्व के कई निर्णयों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया था कि “Payee” वही हो सकता है जिसके नाम पर चेक जारी हो या जिसने कानूनी रूप से उसका अधिकार प्राप्त किया हो
  4. अपील का परिणाम
    ट्रायल कोर्ट के आदेश को सही मानते हुए अपील खारिज कर दी गई।

निर्णय का सार

  • यदि चेक प्रोप्राइटरी फर्म के नाम पर जारी है, तो शिकायत उसी फर्म के नाम से, या फर्म के एकमात्र मालिक द्वारा प्रोप्राइटर के रूप में दायर की जानी चाहिए।
  • शिकायतकर्ता को दस्तावेज़ी प्रमाण पेश करना होगा कि वह फर्म का एकमात्र मालिक है।
  • प्रमाण के अभाव में, उसे Payee नहीं माना जाएगा और धारा 138 NI Act के तहत शिकायत बनाए रखने योग्य नहीं होगी।

महत्व

यह निर्णय उन मामलों के लिए महत्वपूर्ण है जहां चेक प्रोप्राइटरी फर्म के नाम पर जारी होता है, लेकिन शिकायत व्यक्ति अपने व्यक्तिगत नाम से दायर करता है। यह स्पष्ट करता है कि कानूनी स्थिति और एंटिटी का नाम एकदम स्पष्ट और प्रमाणित होना चाहिए, अन्यथा आरोपी बरी हो सकता है।