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“शिक्षकों पर निर्वाचन कर्तव्यों का सीमितकरण और न्यायसंगत प्रक्रिया: Dr. Sandeep Shukla & Ors. v. State of U.P. का विश्लेषण”

“शिक्षकों पर निर्वाचन कर्तव्यों का सीमितकरण और न्यायसंगत प्रक्रिया: Dr. Sandeep Shukla & Ors. v. State of U.P. का विश्लेषण”


प्रस्तावना

भारतीय संवैधानिक व्यवस्था एवं सेवा कानूनों में यह मान्यता है कि सार्वजनिक सेवकों, विशेष रूप से शिक्षकों, को केवल वही दायित्व सौंपा जाए जो उनके मूल कार्य (शिक्षण) को प्रभावित न करें, और अतिरिक्त कार्य तब ही कमी से हो जब अन्य विकल्प Exhaust किए गए हों। चुनाव या निर्वाचन कार्यों के सन्दर्भ में, शिक्षक को BLO (Booth Level Officer) या अन्य चयनित चुनाव-ड्यूटी देना न्याय-क्षेत्र में विवादों का विषय रहा है।

Dr. Sandeep Shukla & Others v. State of U.P. मामला इसी विषय से जुड़ा है। इस फैसले में Allahabad उच्च न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिए कि शिक्षक सिर्फ अवकाश या गैर-पाठ्य समय (after teaching hours / holidays) में चुनाव-ड्यूटी सौंपे जाएँ, अन्य कर्मी उपलब्ध हों तो उन्हें पहले प्रयोग किया जाए, और यदि शिक्षक को चुनावी सूची (BLO सूची) में नामित किया गया है तो पुनर्समीक्षा हो, और जहाँ संभव हो उनकी नियुक्ति को समायोजित किया जाए। नीचे इस मामले के विवरण, तर्क, अधिरक्षा, और निहितार्थ दिए जा रहे हैं।


तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

  1. याचिकाकर्ता (Petitioners)
    • Dr. Sandeep Shukla और अन्य — जो कि सहायक अध्यापक (Assistant Teachers) हैं।
    • याचिका में कहा गया कि इन्हें BLO (Booth Level Officer) की चुनाव-ड्यूटी सौंपी गई है।
  2. प्रतिवादी (Respondents)
    • राज्य-उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग, जिला अधिकारी / जिलाधिकारी / निर्वाचन प्राधिकारी एवं अन्य सरकारी अधिकारी।
  3. आदेश और कार्रवाई
    • 04 जून 2025 को एक आदेश जारी हुआ, जिसमें याचिकाकर्ताओं को चुनाव-ड्यूटी दे दी गई थी।
    • बाद में, याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एक अन्य आदेश 18 अगस्त 2025 को क्षेत्रीय शिक्षा अधिकारी या ब्लॉक शिक्षा अधिकारी द्वारा भेजी गई सिफारिश पर उन्हें एक वृद्धि (increment) रोके जाने (withholding of one increment) की सजा लगाने की स्वीकृति देने की सिफारिश की गई।
  4. याचिकाकर्ताओं की आपत्तियाँ
    • कि चुनाव-ड्यूटी देना ठीक है लेकिन उसे शिक्षा समय, अवकाश या गैर-पाठ्य समय तक सीमित होना चाहिए।
    • अन्य कर्मी उपलब्ध हों तो शिक्षक को प्राथमिकता न दी जाए।
    • कि सजा (increment withholding) का आदेश बिना उचित प्रक्रिया (due process) और बिना विधिक अधिरक्षा (statutory/legal power) के नहीं दिया जाना चाहिए।
  5. निर्णय तिथि और न्यायाधीश
    • यह मामला Allahabad High Court में सुना गया। न्यायाधीशों में एक जज Hon’ble Abdul Moin, J. शामिल थे।
    • आदेश अंतिम रूप से September 2025 में पारित हुआ।

न्यायालय का तर्क और फैसला

न्यायालय ने निम्नलिखित प्रमुख तर्कों और निर्देशों के आधार पर निर्णय किया:

  1. निर्देशों (Guidelines) की भूमिका
    • राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित Guidelines No. 1.2 और Guidelines No. 1.5d जो चुनाव-ड्यूटी हेतु कर्मचारियों की श्रेणियाँ निर्धारित करते हैं, न्यायालय ने देखा कि उन दिशानिर्देशों में अन्य श्रेणियों के कर्मचारियों को प्राथमिकता दी गई है, शिक्षक के बाद।
    • शिक्षक को चुनावी कर्तव्यों / BLO के रूप में नामित करना “last resort” (अंतिम उपाय) होना चाहिए, जब अन्य श्रेणियों के कर्मचारियों को प्रयोग करना संभव न हो।
  2. शिक्षण समय एवं अवकाश का महत्व
    • न्यायालय ने कहा कि शिक्षक का मूल दायित्व पाठ्य समय में विद्यार्थियों को शिक्षण देना है, जिसके बाद नि:शुल्क समय (free time), अवकाश या गैर-पाठ्य समय (after teaching hours / holidays) में ही अतिरिक्त कर्तव्यों को सौंपा जाना चाहिए।
    • अगर शिक्षक को BLO सूची में नामित किया गया हो, तब भी वेतन या सेवा के अन्य नुकसान न हो; और वे शिक्षा कार्यों को प्रभावित न करें।
  3. रिफिक्स करना (Refix Deployment) और समायोजन (Adjustment)
    • न्यायालय ने निर्देश दिया कि राज्य / संबंधित प्राधिकारी तीन महीनों के भीतर BLO / अन्य चुनाव-ड्यूटी हेतु शिक्षक की नियुक्ति की पुनर्समीक्षा करें।
    • यदि अन्य कर्मी उपलब्ध हों, तो पहले उन्हें प्रयोग किया जाए और शिक्षक को प्राथमिक विकल्प न बनाया जाए।
    • जब तक पुनरावृत्ति/पुनर्समीक्षा हो, तब तक शिक्षक चुनाव-ड्यूटी को अवकाश या पाठ्य समय के बाद / छुट्टियों में ही करें।
  4. सजा / वेतन कटौती / वृद्धि रोकना (Increment Withholding)
    • न्यायालय ने यह भी विचार किया कि एक शिक्षक के खिलाफ increment रोकने की सिफारिश की गई है क्योंकि उन्होंने नियुक्त BLO-ड्यूटी पूरी नहीं की।
    • न्यायालय ने इस तरह की सजा का आदेश देने से पहले यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया कि आदेश न्यायसंगत हो, प्रक्रिया पूरी हो, और शिक्षक को जवाब देने का अवसर मिला हो।
  5. निर्णय एवं निर्देश (Final Directions)

न्यायालय ने निम्नलिखित निर्देश दिए:

क्र. निर्देश
i. चुनाव-ड्यूटी सौंपने की पुनर्समीक्षा (refix deployment) की जाए।
ii. यदि अन्य श्रेणियों के कर्मचारी उपलब्ध हों, तो उन्हें पहले प्रयोग किया जाए; शिक्षक केवल “last resort” हों।
iii. शिक्षक को चुनाव-ड्यूटी अवकाश/छुट्टियों या गैर-पाठ्य समय में ही सौंपा जाए जब तक पुनर्समीक्षा पूरी न हो।
iv. जब तक पुनर्समीक्षा हो, सूची (list) जो पहले से प्रकाशित हो चुकी है, वह लागू हो लेकिन उसके अनुरूप शिक्षक की पाठ्य और अवकाश गतिविधियों का ध्यान रखा जाए।

कानूनी और संवैधानिक आधार

यह निर्णय कई संवैधानिक और कानूनी सिद्धांतों एवं पूर्वनिर्णयों पर आधारित है:

  1. Guidelines / दिशा-निर्देशों की विधिक मान्यता
    • राज्य निर्वाचन आयोग और अन्य संवैधानिक संस्थाएँ चुनाव-संबंधी दिशानिर्देश जारी करती हैं, जो अनुशासन और सार्वजनिक हित को सुनिश्चित करने हेतु विधिसम्मत आधार बनाने में सहायक हैं। यहाँ Guideline No. 1.5d एवं 1.2 ने यह व्यवस्था की कि शिक्षक चयन प्राथमिकता सूची में नीचे हों, जब अन्य कर्मचारी उपलब्ध हों।
  2. शिक्षा का अधिकार, विद्यार्थी हित और सार्वजनिक नीति
    • शिक्षक यदि चुनाव कार्यों में लगे रहते हैं, तो उनके मूल कार्य – शिक्षण – प्रभावित हो सकता है, जिससे शिक्षा के अधिकार (Right to Education) और शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है। न्यायालय ने यह विचार किया कि सार्वजनिक नीति के अनुरूप यह सुनिश्चित होना चाहिए कि शिक्षा कार्य बाधित न हो।
  3. न्यायसंगत प्रक्रिया (Due Process) और सेवा कानून सिद्धांत
    • किसी भी दंडात्मक कार्रवाई जैसे increment रोकने या वेतन से जुड़ी कार्रवाई से पहले शिक्षक को जवाब देने का अवसर मिलना चाहिए, आदेश लिखित होना चाहिए, प्राधिकारी ने अपनी स्वतंत्र समीक्षा (application of mind) की होनी चाहिए।
    • अदालती समीक्षा में यह देखा गया कि ब्लॉक शिक्षा अधिकारी और BSA आदि ने आदेशों में पर्याप्त विवेक प्रयोग किया हो, या प्रेरणा (recommendation) के लिए पर्याप्त तर्क मौजूद हों।
  4. अनुपात (Proportionality) सिद्धांत
    • चुनाव ड्यूटी देना एक अतिरिक्त कार्य है, न कि मूल शिक्षक के कर्तव्यों का हिस्सा (विशेष रूप से पाठ्य समय में)। इसका दायरा सीमित होना चाहिए। यदि शिक्षक की सेवा/शिक्षण पर प्रभाव पड़े, तो वह अनुपातहीन होगा। न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया कि चुनाव-ड्यूटी अवकाश एवं पाठ्य समय के बाहर ही हो।
  5. पूर्वनिर्णय (Precedent) और Surya Pratap Singh मामला
    • इस मामले में न्यायालय ने Surya Pratap Singh नामक पहले के निर्णय का अनुसरण किया जिसमें चुनाव ड्यूटी के संदर्भ में शिक्षक की भूमिका की सीमाएँ निर्धारित की गई थीं।
    • Surya Pratap Singh मामले की दिशा-निर्देशों को इस फैसले में लागू करते हुए यह सुनिश्चित किया गया कि शिक्षक पर बोझ न डाला जाए जब अन्य विकल्प मौजूद हों।

तुलना एवं सवाल-उत्तर (Comparative Aspects)

इस निर्णय की तुलना अन्य मामलों से और कुछ संभावित प्रश्न:

तुलना विवरण
Yatendra & Others v. State of U.P. वहाँ न्यायालय ने माना कि वेतन रोकने का आदेश अधिकार-विहीन था क्योंकि कोई कानून नहीं था जो BLO न करने पर वेतन रोके जाने की अनुमति देता हो। Dr. Sandeep Shukla मामले में इसी तरह की संवेदनशीलता है लेकिन यहाँ सजा का मुद्दा (increment withholding) और चुनाव-ड्यूटी सौंपने की प्रक्रिया पर ध्यान।
Kailash Babu & Another v. State of U.P. वहाँ भी BSA को वेतन रोकने का अधिकार नहीं माना गया। Dr. Sandeep Shukla मामले में सजा की सीमा और चुनाव-ड्यूटी की समय सीमा पर अधिक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया गया।

कई सवाल उठ सकते हैं:

  • क्या BLO सूची में नामित होना स्वचालित रूप से कार्य सौंपी जाने का मतलब है? न्यायालय ने कहा कि सूची योग्यता के आधार पर हो सकती है लेकिन कार्य सौंपा जाना / सजा देना अलग बात है।
  • क्या सजा-निर्णय के लिए oral आदेश पर्याप्त है? नहीं — न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कोई कार्रवाई करने से पहले लिखित निर्णय, पर्याप्त सूचना, जवाब देने का अवसर आदि होना चाहिए।
  • क्या शिक्षक को पूरी तरह से चुनाव-ड्यूटी से राहत मिल सकती है अगर अन्य कर्मचारियों की संख्या पर्याप्त है? हाँ — वह न्यायालय ने निर्देश दिया है कि अन्य श्रेणियों के कर्मचारियों का उपयोग पहले हो।

निहितार्थ एवं सुझाव

यह निर्णय शिक्षा विभागों, राज्य सरकारों, निर्वाचन आयोगों, और शिक्षक समुदाय के लिए महत्वपूर्ण संकेत हैं। नीचे कुछ निहितार्थ एवं सुझाव:

  1. शिक्षा विभाग तथा राज्य प्राधिकारी
    • शिक्षक को चुनाव-कार्य सौंपते समय यह सुनिश्चित किया जाए कि समय, श्रम एवं शिक्षा कार्य पर प्रभाव की पूर्व-जांच हो।
    • Guidelines की अनुपालना सुनिश्चित करना चाहिए, विशेष रूप से यह कि अन्य श्रेणियों के कर्मचारी प्रयोग में लाएँ जाएँ।
    • शिक्षक के कार्य सौंपने के आदेश लिखित हों, स्पष्ट हों, जवाब देने का अवसर हो, तथा सजा-विधियाँ उचित और संवैधानिक हों।
  2. निर्वाचन आयोग / राज्य निर्वाचन आयोग
    • अपने दिशानिर्देश (“guidelines”) में स्पष्ट रखें कि किस क्रम में कर्मचारियों का प्रयोग होगा, शिक्षक कब LAST RESORT होंगे।
    • शिक्षक कार्यकाल और पाठ्य समय के बाहर / अवकाश / छुट्टियों में काम सौंपने की सीमा निर्धारित करें।
  3. शिक्षक व शिक्षक संघों की जागरूकता
    • यदि शिक्षक को चुनाव-कार्य सौंपा जाए जो शिक्षा कार्यों को प्रभावित करे, तो वह विरोध कर सकते हैं और उच्च न्यायालय का सहारा ले सकते हैं।
    • अपने कार्य समय, पाठ्य समय, अवकाश आदि का रिकॉर्ड रखें ताकि ऐसी ड्यूटी या सजा के विरोध में दस्तावेज़ी साक्ष्य हो।
  4. न्यायालयों की भूमिका
    • न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सार्वजनिक छात्र हित और शिक्षा कार्य की अनुकूलता बनी रहे।
    • फैसले मामलों में सजा-विधियों की समीक्षा हो और अधिकारी की प्रक्रिया और विवेक प्रयोग का परीक्षण किया जाए।
  5. नीति में सुधार
    • सरकारों को एक ऐसी नीति तैयार करनी चाहिए जहाँ चुनाव-कर्मियों / BLOs की पर्याप्त संख्या उपलब्ध हो ताकि शिक्षक पर दबाव न पड़े।
    • यदि शिक्षक BLO की सूची में नामित हों, तो सेवा की स्थिति, वेतन, पदोन्नति आदि पर उनके नामांकन का नकारात्मक प्रभाव न पड़े; समायोजन (adjustment) किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

Dr. Sandeep Shukla & Ors. v. State of U.P. का निर्णय एक संतुलित, न्यायसंगत एवं संवैधानिक दृष्टिकोण की मिसाल है जहाँ न्यायालय ने:

  • यह सुनिश्चित किया कि शिक्षक की मूल भूमिका (पाठ्य शिक्षण) प्रभावित न हो,
  • चुनाव-कार्य (जैसे BLO) सिर्फ उन परिस्थितियों में सौंपा जाए जब अन्य विकल्प Exhaust हो चुके हों,
  • शिक्षक को सजा या विवादित कार्रवाई से पहले उचित प्रक्रिया मिले, और
  • शिक्षक की नियुक्ति या सूची में नामांकन की पुनर्समीक्षा एवं समायोजन की व्यवस्था हो।

इस फैसले से यह स्पष्ट हुआ कि सार्वजनिक प्राधिकरणों को शिक्षा के अधिकार, शिक्षक की गरिमा, और संवैधानिक सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए ही चुनाव-ड्यूटी सौंपनी चाहिए। जहाँ ऐसा न हो, वहाँ न्यायालय राज्यहित और शिक्षक-हित के बीच संतुलन साधने का माध्यम बनेगा।