“शारीरिक संबंधों से दीर्घकालिक दूरी और मानसिक क्रूरता: दिल्ली हाई कोर्ट ने तलाक का दिया अतिरिक्त आधार”

लेख शीर्षक:
“शारीरिक संबंधों से दीर्घकालिक दूरी और मानसिक क्रूरता: दिल्ली हाई कोर्ट ने तलाक का दिया अतिरिक्त आधार”


भूमिका:
भारतीय वैवाहिक कानून में विवाह की सफलता केवल सामाजिक या धार्मिक अनुबंध नहीं, बल्कि एक संवेदनशील और भावनात्मक संबंध भी है। जब यह संबंध अपने मूल तत्वों — जैसे प्रेम, विश्वास, सह-अस्तित्व और शारीरिक-भावनात्मक निकटता — से रहित हो जाए, तो अदालतें इस स्थिति को गंभीरता से लेती हैं। इसी संदर्भ में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि यदि पति-पत्नी के बीच दीर्घकालिक शारीरिक संबंधों की अनुपस्थिति हो, तो उसे तलाक का अतिरिक्त आधार माना जा सकता है, विशेषकर जब अन्य क्रूरता के प्रमाण भी उपलब्ध हों।


मामले की पृष्ठभूमि:

  • मामला: पति द्वारा पत्नी के विरुद्ध तलाक की अर्जी
  • शादी की तिथि: 28 मार्च 2011, सिख रीति-रिवाजों के अनुसार
  • दंपती की स्थिति: पिछले 12 वर्षों से अधिक समय से अलगाव
  • महिला की अपील: पारिवारिक अदालत के तलाक देने के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती
  • कोर्ट का निष्कर्ष: पारिवारिक अदालत का निर्णय उचित और साक्ष्यों पर आधारित

महत्वपूर्ण टिप्पणियां (कोर्ट द्वारा):

  1. 🟢 शारीरिक संबंधों की अनुपस्थिति
    • कोर्ट ने कहा कि वर्ष 2014-15 से पति-पत्नी के बीच कोई वैवाहिक संबंध नहीं रहा।
    • यह स्थिति, यदि स्वैच्छिक सहमति या चिकित्सकीय कारणों के बिना हो, तो वैवाहिक जीवन की निरर्थकता और असहनीयता को दर्शाती है।
  2. 🟢 मानसिक और शारीरिक क्रूरता के साक्ष्य
    • पत्नी द्वारा की गई मानसिक और शारीरिक क्रूरता के कई प्रमाण रिकॉर्ड पर थे।
    • पति ने सिद्ध किया कि वैवाहिक जीवन तनाव, अपमान और दूरी से ग्रस्त था।
  3. 🟢 रितेश बब्बर बनाम किरण बब्बर (Supreme Court Case)
    • इस निर्णय में कटुता और पुनर्मिलन की असंभवता को तलाक का आधार माना गया था।
    • दिल्ली हाई कोर्ट ने इस केस को मूल्यवान दृष्टांत के रूप में प्रस्तुत किया।
  4. 🟢 चिकित्सकीय आधारों को खारिज किया गया
    • पत्नी द्वारा बताई गई स्वास्थ्य समस्याओं को अदालत ने अपर्याप्त और असिद्ध माना।

न्यायालय का निष्कर्ष:

ऐसे विवाह को जारी रखना न केवल एक औपचारिकता है, बल्कि दोनों पक्षों के लिए मानसिक यंत्रणा का कारण बनता है। विवाह का उद्देश्य सह-अस्तित्व है, और जब यह पूरी तरह समाप्त हो चुका हो, तो उसे औपचारिक रूप से समाप्त करने में ही न्याय है।


इस निर्णय का महत्व:

  • तलाक कानून की व्याख्या में स्पष्टता:
    अब यह स्पष्ट है कि शारीरिक संबंधों की अनुपस्थिति, यदि दीर्घकालिक हो, तो वह ‘क्रूरता’ की परिधि में आ सकती है।
  • मानव गरिमा और मानसिक शांति को प्राथमिकता:
    विवाह केवल एक विधिक अनुबंध नहीं, बल्कि मानव गरिमा और मानसिक संतुलन का माध्यम भी है।
  • दूसरी शादी का संदर्भ:
    यह निर्णय यह भी दिखाता है कि दूसरी शादी होने के बावजूद, यदि जीवन में स्थायित्व और सम्मान न हो, तो कानून राहत दे सकता है।

निष्कर्ष:
दिल्ली हाई कोर्ट का यह निर्णय एक बार फिर यह बताता है कि भारतीय न्यायपालिका विवाह के सामाजिक मूल्य को मान्यता देने के साथ-साथ व्यक्तिगत अधिकारों और मानसिक स्वास्थ्य को भी समान महत्व देती है। दीर्घकालिक दूरी, शारीरिक और मानसिक क्रूरता — ये सभी ऐसे कारक हैं जो वैवाहिक जीवन को असहनीय बना सकते हैं, और कानून ऐसे पीड़ित पक्ष को न्याय देने के लिए सजग है।