शीर्षक: शारीरिक अक्षमता के निष्पक्ष मूल्यांकन हेतु सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: Kabir Paharia v. National Medical Commission & Others में AIIMS को पांच सदस्यीय मेडिकल बोर्ड गठित करने का आदेश
परिचय:
सुप्रीम कोर्ट ने Kabir Paharia v. National Medical Commission & Others मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (AIIMS) को निर्देश दिया है कि वह पांच डॉक्टरों का एक विशेषज्ञ मेडिकल बोर्ड गठित करे, जिसमें एक लोकोमोटर डिसएबिलिटी विशेषज्ञ और एक न्यूरो-फिजिशियन अवश्य शामिल हों। यह निर्देश मेडिकल स्नातक पाठ्यक्रम (MBBS) के एक आवेदक कबीर पहाड़िया की शारीरिक अक्षमता के निष्पक्ष और वैज्ञानिक मूल्यांकन के उद्देश्य से दिया गया है।
मामले की पृष्ठभूमि:
- याचिकाकर्ता कबीर पहाड़िया एक MBBS प्रवेश के आकांक्षी हैं, जो शारीरिक अक्षमता (locomotor disability) से पीड़ित हैं।
- उन्होंने अदालत में यह दलील दी कि उनकी अक्षमता का समुचित मूल्यांकन नहीं हुआ है, और यह उनके शैक्षणिक अधिकारों और समान अवसर को प्रभावित करता है।
- याचिकाकर्ता ने पहले की दो महत्वपूर्ण निर्णयों का उल्लेख किया:
- Om Rathod v. Director General of Health Sciences (2024)
- Anmol v. Union of India & Ors (2025)
इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि शारीरिक अक्षमता के मूल्यांकन में विशेषज्ञता और निष्पक्षता अनिवार्य है।
अदालत का आदेश:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:
- AIIMS नई दिल्ली एक पांच सदस्यीय मेडिकल बोर्ड का गठन करेगा।
- इस बोर्ड में विशेष रूप से:
- एक लोकोमोटर डिसएबिलिटी विशेषज्ञ, और
- एक न्यूरो-फिजिशियन
का सम्मिलित होना आवश्यक है।
- यह बोर्ड याचिकाकर्ता की अक्षमता का स्वतंत्र और वैज्ञानिक आधार पर मूल्यांकन करेगा।
- मूल्यांकन पूर्ववर्ती न्यायिक निर्णयों के आलोक में किया जाएगा, जिनमें संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) के संदर्भ में दृष्टिकोण अपनाया गया था।
न्यायिक महत्व:
यह निर्णय भारत में विशेष रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए शिक्षा में समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि:
- शारीरिक अक्षमता का मूल्यांकन केवल एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह आकांक्षी की गरिमा और जीवन के अधिकार से जुड़ा हुआ विषय है।
- मेडिकल मूल्यांकन की प्रक्रिया में विशेषज्ञता और संवेदनशीलता अनिवार्य है, ताकि किसी योग्य विद्यार्थी को उसकी अक्षमता के कारण अन्याय का सामना न करना पड़े।
- पूर्ववर्ती फैसलों के अनुपालन को सुनिश्चित करना भी न्यायपालिका की एक बुनियादी जिम्मेदारी है।
निष्कर्ष:
Kabir Paharia v. National Medical Commission & Others में सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय शिक्षा में समावेशन (inclusion) और विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह आदेश न केवल याचिकाकर्ता को न्याय दिलाने की ओर बढ़ता है, बल्कि देश भर के उन सभी छात्रों के लिए प्रेरणास्रोत है जो शारीरिक बाधाओं के बावजूद डॉक्टरी जैसे कठिन पाठ्यक्रमों में दाखिला लेकर सेवा करने का सपना देखते हैं।