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शादी से पहले बीमारी छिपाना मानसिक क्रूरता: हाई कोर्ट ने पत्नी की अपील खारिज की | पति को तलाक व 5 लाख रुपये देने का आदेश हाई कोर्ट

शादी से पहले बीमारी छिपाना मानसिक क्रूरता: हाई कोर्ट ने पत्नी की अपील खारिज की | पति को तलाक व 5 लाख रुपये देने का आदेश हाई कोर्ट (बिलासपुर) का विस्तृत निर्णय — फैमिली कोर्ट के तलाक निर्णय को बरकरार रखा गया


प्रस्तावना

        वैवाहिक संबंध विश्वास, पारदर्शिता और सहमति पर आधारित पवित्र बंधन है। यदि विवाह से पहले किसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या, मानसिक स्थिति या शारीरिक स्थिति को जानबूझकर छुपाया जाए, तो यह न केवल विवाह की नींव को कमजोर करता है बल्कि कानून की दृष्टि में भी इसे “मानसिक क्रूरता” माना जा सकता है। बिलासपुर हाई कोर्ट में सुने गए एक महत्वपूर्ण मामले में यही सवाल केंद्र में था—क्या पत्नी द्वारा शादी से पहले अपने पीरियड्स न आने (Amenorrhea) जैसी गंभीर चिकित्सीय स्थिति को छुपाना पति के साथ मानसिक क्रूरता है?

        इस मामले में फैमिली कोर्ट ने पति के पक्ष में तलाक का आदेश दिया था। पत्नी ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच ने सभी तथ्यों का विस्तार से अध्ययन करने के बाद पत्नी की अपील खारिज करते हुए कहा कि—“दंपती के बीच वैवाहिक संबंधों का पुनः स्थापित होना संभव नहीं है। पति के साथ जानकारी छिपाने और लंबे समय तक अलग रहने के कारण तलाक उचित है।”

       इसके साथ ही कोर्ट ने पति को यह आदेश दिया कि वह पत्नी को चार महीने के भीतर 5 लाख रुपये एकमुश्त स्थायी भरण-पोषण (Permanent Alimony) प्रदान करे।


मामले की पृष्ठभूमि (Case Background)

       पति-पत्नी की शादी कुछ वर्ष पहले विधि-विधान से हुई थी। विवाह के बाद पति को पता चला कि पत्नी को पीरियड्स न आने की गंभीर समस्या है, जो विवाह से पहले से थी। पति का आरोप था कि:

  1. पत्नी ने जानबूझकर यह बीमारी उससे छिपाई।
  2. यह समस्या गंभीर थी, जिससे दांपत्य संबंध, प्रजनन क्षमता और वैवाहिक जीवन की सामान्य अपेक्षाएँ प्रभावित हो सकती थीं।
  3. यह जानकारी यदि पहले से दी जाती, तो वह विवाह के बारे में निर्णय अलग तरीके से ले सकता था।

पति ने इसे “धोखा” और “मानसिक क्रूरता” बताया, और यही तलाक का आधार बना।


पति के आरोप (Husband’s Allegations)

पति ने अदालत में निम्नलिखित मुख्य आरोप लगाए:

1. बीमारी छिपाना मानसिक क्रूरता है

पत्नी ने जिस बीमारी को छुपाया वह सामान्य नहीं थी—यह हॉर्मोनल डिसऑर्डर और Amenorrhea जैसी स्थिति थी, जिसका प्रभाव:

  • वैवाहिक संबंधों पर,
  • शारीरिक स्वास्थ्य पर,
  • गर्भधारण की क्षमता पर
    सीधे पड़ सकता था।

2. पत्नी ने धोखे से विवाह किया

पति के अनुसार, यदि उसे यह जानकारी पहले मिल जाती, तो वह विवाह के संबंध में अपनी सहमति देने पर पुनर्विचार कर सकता था। इसलिए उसने कहा कि यह “फ्रॉड” के समान है।

3. लंबे समय से अलग रहना

दोनों लंबे समय से अलग रहते थे, और उनके बीच किसी प्रकार के पुनर्मिलन (Reconciliation) की संभावना नहीं थी।

4. पत्नी का विवाहोपरांत व्यवहार कठोर था

पति ने कहा कि बीमारी का खुलासा होने के बाद पत्नी का व्यवहार असहयोगपूर्ण हो गया, और उसने marital obligations निभाने से परहेज किया।


पत्नी की ओर से दलीलें (Wife’s Submissions)

पत्नी ने अपनी अपील में कई तर्क प्रस्तुत किए। उसके मुख्य तर्क थे:

  1. बीमारी गंभीर नहीं, बल्कि उपचार योग्य थी।
  2. उसने “जानबूझकर” कोई जानकारी नहीं छिपाई।
  3. यह कहना कि वह माँ नहीं बन सकती — “अत्युक्ति” है।
  4. पति ने विवाह बचाने का प्रयत्न नहीं किया।
  5. तलाक फैमिली कोर्ट ने गलत तरीके से दिया।

हालाँकि, इन दलीलों को हाई कोर्ट ने पर्याप्त नहीं माना।


फैमिली कोर्ट का निर्णय (Family Court’s Findings)

फैमिली कोर्ट ने:

  • चिकित्सीय रिपोर्ट
  • डॉक्टरों की गवाही
  • पति-पत्नी के बयानों
  • विवाहोपरांत परिस्थितियों

का अध्ययन कर यह पाया कि—

  • पत्नी की चिकित्सीय समस्या विवाह से पहले से थी।
  • इस तथ्य को पत्नी और उसके परिवार ने जानबूझकर छिपाया
  • यह छिपाव पति के साथ मानसिक क्रूरता के समान है।
  • दोनों कई वर्षों से अलग हैं—विवाह का वास्तविक उद्देश्य समाप्त हो चुका है।

इस आधार पर अदालत ने तलाक मंजूर किया था।


हाई कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय (High Court Judgment)

जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच ने फैमिली कोर्ट के आदेश की पूरी फाइल का विस्तृत परीक्षण किया। कोर्ट ने अपने निर्णय में कई महत्वपूर्ण कानूनी बिंदुओं पर चर्चा की:


1. बीमारी छिपाना ‘मानसिक क्रूरता’ है

कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि—

“विवाह जीवन का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय है। यदि एक पक्ष अपनी ऐसी चिकित्सीय स्थिति छिपाता है जिसका प्रभाव वैवाहिक संबंधों पर पड़ता है, तो यह मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है।”

यह ‘गंभीर तथ्य’ था, जिसे जानना पति का अधिकार था।


2. जानकारी को छिपाना धोखे की श्रेणी में आता है

कोर्ट ने कहा कि:

  • विवाह में सहमति फ्री कंसेंट (Free Consent) होती है।
  • जब किसी महत्वपूर्ण तथ्य को छिपाकर विवाह किया जाए, तो यह प्रभावित सहमति (Vitiated Consent) कहलाती है।

यानी सहमति धोखे से ली गई थी।


3. दंपती के बीच संबंध सुधरने की कोई संभावना नहीं

कोर्ट ने विवाहोपरांत घटनाओं का विश्लेषण किया और पाया:

  • दोनों कई वर्षों से अलग रह रहे हैं
  • पति-पत्नी में न तो भावनात्मक और न ही शारीरिक संबंध शेष हैं
  • पत्नी ने भी पति के साथ रहने की कोई ठोस इच्छा प्रदर्शित नहीं की

इसलिए कोर्ट ने कहा:

“इस विवाह को जारी रखना केवल दो व्यक्तियों के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के लिए भी एक औपचारिक ढांचा भर होगा। इसमें वास्तविक वैवाहिक जीवन का अस्तित्व समाप्त हो चुका है।”


4. फैमिली कोर्ट के निष्कर्ष सही थे

हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के निर्णय को “तथ्यों और कानून के अनुरूप” बताया और कहा:

  • निचली अदालत ने पर्याप्त साक्ष्यों पर आधारित निर्णय दिया
  • चिकित्सीय निष्कर्ष विश्वसनीय थे
  • पति की शिकायतें वास्तविक व प्रमाणित थीं
  • पत्नी की अपील में कोई दम नहीं है

इसलिए हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि—

“पत्नी की अपील खारिज की जाती है। फैमिली कोर्ट का तलाक निर्णय बरकरार रखा जाता है।”


आर्थिक सहायता का आदेश — 5 लाख रुपये स्थायी भरण-पोषण

हाई कोर्ट ने ध्यान में रखा कि:

  • पत्नी अब पति के साथ नहीं रहेगी
  • विवाह टूट चुका है
  • पत्नी की आगे की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करनी आवश्यक है

इसी आधार पर कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह:

चार महीने के भीतर
5,00,000 रुपये
एकमुश्त स्थायी भरण-पोषण (Permanent Alimony)
दे।

यह राशि पत्नी की मूलभूत आर्थिक सुरक्षा को ध्यान में रखकर तय की गई।


कानूनी दृष्टि से यह निर्णय क्यों महत्वपूर्ण है?

1. विवाह में पारदर्शिता अनिवार्य है

यह निर्णय बताता है कि शादी से पहले किसी गंभीर चिकित्सीय समस्या को छिपाना:

  • धोखा
  • मानसिक क्रूरता
  • और तलाक का उचित आधार

माना जाएगा।

2. मानसिक क्रूरता की आधुनिक व्याख्या

अदालतें अब मानसिक क्रूरता को केवल शारीरिक हिंसा तक सीमित नहीं मानतीं।
जानकारी का छिपाव भी मानसिक यातना है।

3. ‘Irretrievable Breakdown of Marriage’ का सिद्धांत

हालाँकि यह सिद्धांत भारतीय विवाह कानूनों में सीधे नहीं लिखा है, परंतु सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट इसे तलाक का आधार मानते आ रहे हैं।

यहाँ भी अदालत ने कहा कि रिश्ता पूरी तरह टूट चुका है।

4. महिला के अधिकारों की सुरक्षा

तलाक कायम रखते हुए भी कोर्ट ने पत्नी को उचित आर्थिक सहायता दी, ताकि वह भविष्य में आर्थिक कठिनाई का सामना न करे।


अन्य महत्वपूर्ण प्रेक्षण (Important Observations)

  • दंपती के बीच विश्वास का पूर्ण ह्रास हो चुका था।
  • अदालत ने कहा कि विवाह “दो व्यक्तियों के बीच आजीवन साझेदारी” है, लेकिन यह तभी संभव है जब दोनों पक्ष पूरी ईमानदारी से रिश्ते में प्रवेश करें।
  • मानसिक क्रूरता केवल “व्यवहार” से नहीं, “छिपाव” से भी उत्पन्न हो सकती है।

निष्कर्ष

इस महत्वपूर्ण केस में हाई कोर्ट ने स्पष्ट रूप से माना कि:

“शादी से पहले चिकित्सीय समस्या छिपाना मानसिक क्रूरता है।”

पत्नी द्वारा अपनी बीमारी छिपाना, दांपत्य जीवन में असहयोग, और दोनों का वर्षों से अलग रहना—ये सब तलाक के लिए पर्याप्त आधार थे।

अदालत ने निचली अदालत के निर्णय को यथावत रखा और पत्नी की अपील खारिज कर दी।
साथ ही पति को पत्नी को 5 लाख रुपये स्थायी भरण-पोषण देने का निर्देश दिया।

यह फैसला समाज और कानून दोनों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि:

  • विवाह में ईमानदारी अनिवार्य है
  • किसी भी गंभीर तथ्य को छिपाना अपराध की तरह है
  • अदालतें पीड़ित पक्ष को न्याय देने से पीछे नहीं हटेंगी