“शादी के नौ साल बाद बिगड़े संबंधों को दहेज उत्पीड़न बताना अविश्वसनीय: इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला”

“शादी के नौ साल बाद बिगड़े संबंधों को दहेज उत्पीड़न बताना अविश्वसनीय: इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला”


भूमिका:
दहेज उत्पीड़न की शिकायतों को लेकर कानून ने पीड़ित महिलाओं को मजबूत सुरक्षा प्रदान की है, लेकिन जब इन कानूनों का दुरुपयोग किया जाए, तो न्यायालयों को सच और झूठ के बीच संतुलन स्थापित करना पड़ता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह कहा कि शादी के नौ साल बाद यदि वैवाहिक संबंध बिगड़ते हैं, तो उसे सीधे दहेज उत्पीड़न से जोड़ना “मनगढ़ंत कहानी” जैसी बात हो सकती है, जब तक इसके ठोस प्रमाण न हों।


प्रकरण का संक्षिप्त विवरण:

  • वादिनी: किरन
  • प्रतिवादी: पति नवीन वर्मा, सास अनारकली, ससुर इंद्रदेव वर्मा
  • स्थान: सिविल लाइंस थाना, प्रयागराज
  • विवाह: वर्ष 2007 में
  • घटनाक्रम:
    • विवाह के बाद दंपति अमेरिका चले गए, जहां दो संतानें हुईं।
    • वर्ष 2014 में भारत लौटे और नोएडा में दो फ्लैट खरीदे।
    • पति नवीन की एक पुरानी महिला मित्र से बातचीत फिर शुरू हुई।
    • पत्नी के आपत्ति जताने पर विवाद बढ़ा, और वह बच्चों सहित प्रयागराज लौट गई।
    • वर्ष 2017 में किरन ने पति, सास-ससुर, और महिला मित्र के खिलाफ धारा 498A IPC व दहेज उत्पीड़न कानून के अंतर्गत एफआईआर दर्ज कराई।

हाईकोर्ट की टिप्पणी:
न्यायमूर्ति अनीस गुप्ता की एकल पीठ ने मामले का विश्लेषण करते हुए कई महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं:

1. दहेज मांग की कहानी अविश्वसनीय:

“पति जिसने अपने खर्च पर सास-ससुर को अमेरिका की यात्रा कराई, उस पर यह आरोप लगाना कि उसने दहेज की मांग की, अविश्वसनीय और मनगढ़ंत है।”

2. रिश्तों में दरार का कारण कुछ और:

“नौ वर्षों के वैवाहिक जीवन और दो बच्चों के बाद दहेज उत्पीड़न का अचानक आरोप संदेहास्पद है। विवाद का कारण पुरानी महिला मित्र को लेकर उत्पन्न संदेह प्रतीत होता है।”

3. भरण-पोषण की जिम्मेदारी निभाई:

प्रतिवादी पति नवीन ने जिला अदालत के आदेशानुसार ₹45 लाख रुपये की राशि भरण-पोषण के लिए अदा की है, जो उसके उत्तरदायित्व निर्वहन को दर्शाता है।

4. POCSO या हिंसा का कोई आरोप नहीं:

कोर्ट ने यह भी देखा कि न तो बच्चों के साथ दुर्व्यवहार का कोई आरोप है और न ही शारीरिक हिंसा या गंभीर मानसिक उत्पीड़न के ठोस प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं।


कोर्ट का निर्णय:

  • 498A और दहेज अधिनियम के तहत पति और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज मुकदमा रद्द कर दिया गया।
  • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “दहेज उत्पीड़न” जैसे गंभीर आरोपों का आधार केवल संदेह या संकीर्ण कारण नहीं हो सकता।

न्यायिक प्रभाव और महत्व:

  • इस फैसले ने 498A IPC के दुरुपयोग पर एक बार फिर चिंता जताई है।
  • अदालतों द्वारा अब ऐसे मामलों में प्राथमिक जांच और संतुलित मूल्यांकन आवश्यक समझा जा रहा है।
  • विवाह के लंबे कालखंड के बाद अचानक उत्पन्न आरोपों की गहराई से जांच करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

निष्कर्ष:
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल निष्पक्ष न्याय की भावना को आगे बढ़ाता है, बल्कि ऐसे मुकदमों में सत्य और दुर्भावना में फर्क करने का मार्ग भी प्रशस्त करता है। यह स्पष्ट संकेत है कि दहेज कानून के दुरुपयोग को अदालतें सहन नहीं करेंगी, और निर्दोष व्यक्तियों की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए सक्रिय हस्तक्षेप करेंगी।