शरणार्थियों के संरक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की भूमिका तथा CARRP और UNHCR की भूमिका :
प्रस्तावना:
शरणार्थी (Refugees) वे व्यक्ति होते हैं जिन्हें अपने देश में उत्पीड़न, युद्ध, हिंसा या मानवाधिकारों के उल्लंघन के कारण अपने घर से पलायन करने पर विवश होना पड़ता है। शरणार्थियों के संरक्षण का प्रश्न अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार, मानवतावादी दृष्टिकोण, और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का महत्वपूर्ण पहलू बन चुका है। इसी संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है, जो शरणार्थियों के अधिकारों की रक्षा करने तथा उन्हें आवश्यक सुरक्षा देने हेतु रूपरेखा प्रदान करते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की भूमिका:
- 1951 का शरणार्थी सम्मेलन (Refugee Convention, 1951):
यह सम्मेलन शरणार्थी शब्द की परिभाषा तय करता है और यह स्पष्ट करता है कि कौन व्यक्ति शरणार्थी कहलाएगा। इसके अंतर्गत “जो व्यक्ति अपने देश में उत्पीड़न (जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, राजनीतिक विचार या किसी विशेष सामाजिक समूह से जुड़ाव) के कारण अपनी सुरक्षा हेतु अन्य देश में शरण लेता है”, वह शरणार्थी कहलाता है।यह सम्मेलन निम्नलिखित अधिकार प्रदान करता है:
- शरणार्थियों को निष्कासन से सुरक्षा (Non-refoulement)
- आवास, शिक्षा, कार्य का अधिकार
- कानूनी सहायता व न्यायिक प्रक्रिया का अधिकार
- 1967 का प्रोटोकॉल (Protocol Relating to the Status of Refugees, 1967):
यह प्रोटोकॉल 1951 सम्मेलन की भौगोलिक और काल-सीमाओं को समाप्त करता है, जिससे यह विश्वव्यापी रूप से लागू हो गया। - मानवाधिकार का सार्वभौम घोषणा-पत्र, 1948 (UDHR):
अनुच्छेद 14 में कहा गया है कि “हर व्यक्ति को उत्पीड़न से बचने के लिए अन्य देशों में शरण लेने और वहाँ शरण पाने का अधिकार है।” - ICCPR (International Covenant on Civil and Political Rights):
यह वाचा शरणार्थियों को जीवन, स्वतंत्रता, और सुरक्षा के अधिकार की गारंटी देता है। - अन्य क्षेत्रीय समझौते:
- OAU कन्वेंशन (Organization of African Unity, 1969)
- कार्टाजेना घोषणा (Cartagena Declaration, 1984 – लैटिन अमेरिका हेतु)
UNHCR की भूमिका (United Nations High Commissioner for Refugees):
स्थापना:
UNHCR की स्थापना 1950 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की गई थी। इसका प्रमुख उद्देश्य शरणार्थियों के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें दीर्घकालिक समाधान प्रदान करना है।
मुख्य भूमिकाएँ:
- संरक्षण (Protection):
- शरणार्थियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना
- गैर-वापसी (Non-refoulement) सिद्धांत का पालन
- कानूनी सहायता प्रदान करना
- पुनर्वास (Resettlement):
- ऐसे शरणार्थी जो अपने मूल देश वापस नहीं जा सकते या जहाँ वे शरण लिए हैं वहाँ नहीं रह सकते, उन्हें तीसरे देश में पुनर्वास की व्यवस्था करना।
- मानवीय सहायता (Humanitarian Assistance):
- आश्रय, भोजन, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करना।
- नीतिगत सहयोग:
- सदस्य राष्ट्रों के साथ मिलकर शरणार्थियों के लिए बेहतर नीति तैयार करना।
- जागरूकता फैलाना और धन जुटाना।
- राष्ट्रीय सरकारों और NGOs के साथ साझेदारी:
UNHCR विभिन्न देशों की सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों और अन्य संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के साथ मिलकर काम करता है।
CARRP की भूमिका (Comprehensive Approach to Refugee Protection):
CARRP यानी “शरणार्थी संरक्षण हेतु समग्र दृष्टिकोण” एक नवीन पहल है जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर शरणार्थी संकट के समाधान के लिए बहु-आयामी रणनीति को अपनाना है।
मुख्य विशेषताएँ:
- समन्वित प्रयास (Comprehensive and Coordinated Efforts):
- CARRP यह मानता है कि केवल कुछ देशों पर शरणार्थी संकट का बोझ डालना अनुचित है। इसमें सभी राष्ट्र, अंतर्राष्ट्रीय संगठन और नागरिक समाज को साथ लाकर एक साझा समाधान विकसित किया जाता है।
- तीन-स्तरीय समाधान:
- स्वदेश वापसी (Voluntary Repatriation)
- स्थानीय एकीकरण (Local Integration)
- पुनर्वास (Resettlement in Third Country)
- संघर्ष की जड़ पर ध्यान:
CARRP शरणार्थी संकट को केवल मानवीय नहीं, बल्कि राजनीतिक और विकास संबंधी मुद्दा मानता है। इसलिए यह संघर्ष की जड़ों को समाप्त करने की रणनीति पर बल देता है। - UNHCR के साथ सहयोग:
CARRP, UNHCR और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के माध्यम से नीति निर्धारण और क्रियान्वयन को अधिक प्रभावी बनाता है।
निष्कर्ष:
शरणार्थियों का संरक्षण न केवल मानवीय कर्तव्य है, बल्कि यह अंतर्राष्ट्रीय न्याय और विश्व शांति का भी अभिन्न अंग है। 1951 शरणार्थी सम्मेलन, 1967 प्रोटोकॉल, मानवाधिकार घोषणाएं, UNHCR तथा CARRP जैसी पहलें यह सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य कर रही हैं कि कोई भी व्यक्ति उत्पीड़न, युद्ध या अन्य भय के कारण अपने जीवन और गरिमा से वंचित न हो।
हालांकि चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं — जैसे, राज्यों की सीमित राजनीतिक इच्छाशक्ति, संसाधनों की कमी और बढ़ती वैश्विक प्रवासन समस्याएँ — लेकिन अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संस्थाओं की निरंतर सक्रियता शरणार्थियों को सम्मानजनक जीवन की ओर ले जाने का प्रयास करती है।