शरणार्थियों और प्रवासियों के अधिकार: अंतर्राष्ट्रीय मानकों और भारतीय परिप्रेक्ष्य में मानवाधिकारों की खोज

शीर्षक: शरणार्थियों और प्रवासियों के अधिकार: अंतर्राष्ट्रीय मानकों और भारतीय परिप्रेक्ष्य में मानवाधिकारों की खोज


भूमिका:

विश्व आज एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जहाँ लाखों लोग हिंसा, युद्ध, राजनीतिक उत्पीड़न, प्राकृतिक आपदाओं, या आर्थिक संकट के कारण अपना देश छोड़कर अन्यत्र शरण लेने के लिए विवश हैं। ऐसे लोगों को आम तौर पर “शरणार्थी” (Refugee) और “प्रवासी” (Migrant) कहा जाता है। हालाँकि ये दोनों समूह अलग हैं, लेकिन दोनों के अधिकारों की सुरक्षा और सम्मान, मानवाधिकार की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है। यह लेख शरणार्थियों और प्रवासियों के अधिकारों का विश्लेषण अंतर्राष्ट्रीय कानून, भारतीय संविधान और समकालीन चुनौतियों की रोशनी में करता है।


शरणार्थी और प्रवासी: परिभाषात्मक भेद

1. शरणार्थी (Refugee):

शरणार्थी वह व्यक्ति होता है जिसे अपने देश में धर्म, नस्ल, जाति, राजनीतिक विचार या सामाजिक समूह के कारण उत्पीड़न का भय होता है और वह अपनी सुरक्षा के लिए अन्य देश में शरण मांगता है।

  • परिभाषा:
    1951 का “शरणार्थी सम्मेलन (Refugee Convention)” और उसका 1967 का प्रोटोकॉल शरणार्थियों को अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा प्रदान करने की मूल संधियाँ हैं।

2. प्रवासी (Migrant):

प्रवासी वह व्यक्ति होता है जो स्वेच्छा से एक देश से दूसरे देश जाता है, प्रायः रोजगार, शिक्षा या जीवन स्तर सुधारने के लिए। यह प्रवासन अस्थायी या स्थायी हो सकता है।


शरणार्थियों के अधिकार: अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

1. 1951 Refugee Convention के तहत अधिकार:

  • गैर-निर्वासन का अधिकार (Non-Refoulement – Art. 33):
    किसी भी शरणार्थी को ऐसे देश में नहीं लौटाया जा सकता जहाँ उसे जीवन या स्वतंत्रता का खतरा हो।
  • मौलिक मानवाधिकारों की गारंटी:
    जैसे – जीवन का अधिकार, कार्य का अधिकार, कानूनी संरक्षण, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा।
  • यातना और अमानवीय व्यवहार से सुरक्षा:
    शरणार्थी को उस देश में भी यातना नहीं दी जा सकती जहाँ वह शरण लिए हुए है।

2. संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (UNHCR) की भूमिका:

  • शरणार्थियों की पहचान, सुरक्षा और पुनर्वास में सहायक
  • अंतर्राष्ट्रीय मानवीय सहायता प्रदान करना
  • शरणार्थी नीति निर्माण में मार्गदर्शन देना

प्रवासियों के अधिकार: अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

1. IOM (International Organization for Migration):

  • प्रवासियों की सुरक्षित, व्यवस्थित और सम्मानजनक आवाजाही के लिए कार्य करता है।

2. संयुक्त राष्ट्र की “International Convention on the Protection of the Rights of All Migrant Workers and Members of Their Families, 1990”:

  • श्रमिक प्रवासियों के लिए समान वेतन, स्वास्थ्य सुविधा, न्यायिक संरक्षण, शिक्षा जैसे अधिकार सुनिश्चित करता है।

3. Sustainable Development Goals (SDG-2030):

  • प्रवासन को सुरक्षित और जिम्मेदार बनाने का लक्ष्य।

भारत में शरणार्थियों और प्रवासियों की स्थिति:

भारत शरणार्थी सम्मेलन का पक्षकार नहीं है, फिर भी भारत ने ऐतिहासिक रूप से लाखों शरणार्थियों को मानवीय आधार पर आश्रय दिया है:

  • तिब्बती शरणार्थी (1959)
  • श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी (1983)
  • बांग्लादेशी शरणार्थी (1971)
  • अफगान, म्यांमार (रोहिंग्या), नेपाली, पाकिस्तानी अल्पसंख्यक आदि

कानूनी ढाँचा:

भारत में शरणार्थियों के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है, लेकिन निम्न प्रावधान लागू होते हैं:

  • संविधान का अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार)
  • अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार)
    ➤ सुप्रीम कोर्ट ने NHRC v. State of Arunachal Pradesh (1996) में कहा कि शरणार्थियों को भी अनुच्छेद 21 का संरक्षण प्राप्त है।
  • विदेशी अधिनियम, 1946
    • भारत सरकार को किसी भी विदेशी को निष्कासित करने का अधिकार देता है।
  • पासपोर्ट अधिनियम, 1920 और सीआरपीसी की धारा 144 का प्रयोग कर भारत में शरणार्थियों की स्थिति को नियंत्रित किया जाता है।

प्रमुख चुनौतियाँ:

  1. कानूनी अस्पष्टता:
    भारत में शरणार्थी और प्रवासी कानून की स्पष्ट परिभाषा नहीं होने से उन्हें न्यायिक संरक्षण में कठिनाई होती है।
  2. अमानवीय व्यवहार:
    कई बार हिरासत, निष्कासन, या नफरत के कारण शरणार्थी और प्रवासी सम्मानपूर्वक जीवन नहीं जी पाते।
  3. राजनीतिक मुद्दा बनना:
    शरणार्थियों के प्रश्न को राजनीतिक और सांप्रदायिक मुद्दा बनाकर मानवाधिकार की अनदेखी की जाती है।
  4. रोजगार और नागरिक अधिकारों की कमी:
    शरणार्थी ना तो वोट डाल सकते हैं, ना सरकारी नौकरी पा सकते हैं।
  5. अंतर्राष्ट्रीय दबाव और सामरिक नीति:
    कभी-कभी भारत को सामरिक और कूटनीतिक कारणों से कुछ समुदायों को शरण देने या न देने का निर्णय लेना पड़ता है।

संभावित समाधान और सुझाव:

  1. राष्ट्रीय शरणार्थी कानून का निर्माण:
    भारत को UNHCR दिशानिर्देशों के अनुरूप एक स्पष्ट शरणार्थी नीति और कानून तैयार करना चाहिए।
  2. मानवाधिकारों का सम्मान:
    भले ही कोई व्यक्ति भारत का नागरिक न हो, उसे मूलभूत मानवाधिकार दिए जाने चाहिए।
  3. आधार कार्ड और सेवाओं की सीमित पहुँच:
    शरणार्थियों को पहचान और सीमित सेवाओं के लिए पहचान पत्र उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
  4. स्थानीय समुदायों में समावेशी नीति:
    प्रवासियों और शरणार्थियों को स्थानीय समुदायों में सम्मिलित करने हेतु संवाद और सहयोग की नीति बनाई जाए।
  5. सुरक्षा और मानवीयता के बीच संतुलन:
    जहाँ एक ओर राष्ट्रीय सुरक्षा का ध्यान हो, वहीं दूसरी ओर मानवीय कर्तव्यों की उपेक्षा न हो।

निष्कर्ष:

शरणार्थी और प्रवासी महज आँकड़े या “विदेशी” नहीं होते, वे भी हमारे जैसे मनुष्य हैं – जिनकी आँखों में भविष्य की आशा और दिल में सम्मानपूर्ण जीवन की इच्छा होती है। एक लोकतांत्रिक और सभ्य राष्ट्र के रूप में भारत की जिम्मेदारी है कि वह मानवाधिकारों के सार्वभौमिक सिद्धांतों का पालन करे और शरण की मांग कर रहे लोगों को गरिमा, सुरक्षा और न्याय प्रदान करे।