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“शत्रुतापूर्ण (Hostile) गवाह की पूरी गवाही नकारना न्यायसंगत नहीं”—सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय और न्यायिक दृष्टिकोण का विस्तृत विश्लेषण

“शत्रुतापूर्ण (Hostile) गवाह की पूरी गवाही नकारना न्यायसंगत नहीं”—सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय और न्यायिक दृष्टिकोण का विस्तृत विश्लेषण

     भारतीय न्याय प्रणाली में गवाह की भूमिका अदालत के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक है। लेकिन जब कोई गवाह अपने पूर्व बयान से मुकर जाता है—अर्थात् शत्रुतापूर्ण (hostile) घोषित किया जाता है—तब क्या उसकी पूरी गवाही को अप्रासंगिक मान लिया जाना चाहिए?
इस प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट ने 8 दिसंबर को एक ऐतिहासिक, सुस्पष्ट और सिद्धांतिक निर्णय सुनाते हुए कहा कि—

“सिर्फ hostile घोषित होने के कारण गवाह की पूरी गवाही को खारिज नहीं किया जा सकता। गवाह की गवाही के संगत, विश्वसनीय एवं स्वतंत्र रूप से पुष्ट भागों को अदालत स्वीकार कर सकती है।”

       न्यायमूर्तिदीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने यह निर्णय उस मामले में दिया जिसमें दोषियों को IPC की धारा 323, 354, तथा SC/ST (Prevention of Atrocities) Act की धारा 3(1)(xi) के तहत दोषसिद्ध किया गया था।
इस प्रकरण में एक गवाह शत्रुतापूर्ण घोषित कर दिया गया था, फिर भी निचली अदालत और हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष का पक्ष मजबूत मानते हुए दोषसिद्धि कायम रखी थी, जिस पर अब दोषियों की अपील सुप्रीम कोर्ट में पहुंची।

      यह निर्णय भारतीय साक्ष्य विधि (Indian Evidence Act) की धारा 154, 155 तथा साक्ष्य मूल्यांकन के सिद्धांतों को पुनर्स्थापित करता है और यह स्पष्ट करता है कि hostile होने का अर्थ यह नहीं कि गवाह झूठा है

नीचे इस महत्वपूर्ण निर्णय का विस्तृत, विश्लेषणात्मक और विधिक अध्ययन प्रस्तुत है।


1. प्रकरण का संक्षिप्त तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

मामला मध्य प्रदेश से संबंधित था, जहां अभियोजन के अनुसार:

  • आरोपीगण ने पीड़िता का दुपट्टा खींचा,
  • उसके भाई के साथ मारपीट की,
  • और यह कृत्य इस जानकारी के साथ किया कि पीड़िता SC/ST वर्ग से संबंधित है।

अपराध का आरोप IPC की ये धाराओं में था:

  • IPC 354 (महिला की गरिमा भंग करना)
  • IPC 323 (साधारण चोट पहुंचाना)

साथ ही SC/ST Act, 1989 की धारा:

  • Section 3(1)(xi) – किसी अनुसूचित जाति/जनजाति की महिला की गरिमा भंग करने हेतु अनुचित स्पर्श या अपराध करना।

ट्रायल कोर्ट ने सभी आरोपियों को दोषी माना।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भी इस निर्णय की पुष्टि की।

लेकिन अपील में मुख्य तर्क यह था कि—
अभियोजन पक्ष का एक मुख्य गवाह hostile हो चुका था, इसलिए उस पर दोषसिद्धि आधारित नहीं हो सकती।

इसी विवाद ने सुप्रीम कोर्ट को hostile गवाहों के साक्ष्य मूल्य पर विस्तृत कानून स्थापित करने का अवसर दिया।


2. होस्टाइल गवाह कौन होता है?—कानूनी परिभाषा और महत्व

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 154 न्यायालय को अधिकार देती है कि वह अभियोजन पक्ष को अपने ही गवाह से “cross-examination” करने की अनुमति दे सके—
यानी जब—

  • गवाह अपने पूर्व बयान से मुकर जाए
  • अभियोजन को नुकसान होने लगे
  • गवाह विरोधाभासी बयान देने लगे

ऐसे गवाह को hostile, adverse, या unfavourable कहा जाता है।

लेकिन ध्यान रहे:
“Hostile” शब्द की कोई विधिक परिभाषा भारतीय साक्ष्य अधिनियम में नहीं है।

यह केवल न्यायालय द्वारा आकलन है कि—
गवाह अब सत्य खोजने में सहायक नहीं रह गया है।


3. सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण अवलोकन: hostile ≠ worthless

पीठ ने स्पष्ट कहा कि:

“किसी गवाह का hostile घोषित होना उसकी पूरी गवाही को अविश्वसनीय नहीं बनाता। केवल वे हिस्से अस्वीकार किए जाते हैं जो विरोधाभासी, असंगत या असत्य हों। बाकी गवाही न्यायालय स्वीकार कर सकती है।”

कोर्ट ने यह भी कहा:

  • Hostile गवाह की गवाही विभाज्य (severable) होती है।
  • विश्वसनीय हिस्से उपयोग में लिए जा सकते हैं।
  • यदि कोई हिस्सा अन्य साक्ष्यों के साथ मेल खाता है, तो उसे स्वीकार किया जा सकता है।

यह साक्ष्य कानून का एक स्थापित doctrine है—

“Falsus in uno, falsus in omnibus does not apply in India.”

(एक बात में झूठ बोलने वाला हर बात में झूठा नहीं माना जाता)

इस सिद्धांत को एक बार फिर न्यायालय ने मजबूत किया।


4. ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने hostile गवाह के बावजूद दोष क्यों कायम रखा?

दोनों अदालतों ने यह पाया था कि—

  • पीड़िता की गवाही विश्वसनीय, संगत और बिना किसी बड़ी विसंगति के थी।
  • मेडिकल सबूत चोटों की पुष्टि करते थे।
  • प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही एक-दूसरे के साथ सामंजस्य में थी।
  • Hostile गवाह के जिन हिस्सों का उल्लेख अभियोजन ने किया था, वे घटना का समर्थन करते थे।

आरोपी यह सिद्ध नहीं कर पाए कि—
गवाही में किस कारण से अविश्वास होना चाहिए।


5. सुप्रीम कोर्ट: Hostile गवाह की आंशिक विश्वसनीयता—कानून क्या कहता है?

न्यायालय ने कई महत्वपूर्ण मिसालों का हवाला देते हुए कहा:

(A) Sat Paul v. Delhi Administration (1976)

Hostile गवाह की साक्ष्य को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता।

(B) Rameshbhai Mohanbhai Koli v. State of Gujarat (2011)

Cross-examined hostile गवाह की गवाही का कोई भी सुदृढ़ भाग स्वीकार्य है।

(C) Koli Lakhmanbhai Chanabhai v. State of Gujarat (1999)

Hostile गवाह भी prosecution के लिए लाभकारी हो सकता है यदि उसकी गवाही के हिस्से अन्य साक्ष्यों से मेल खाते हों।

इन सभी निर्णयों का मूल सिद्धांत यह है कि—

“साक्ष्य की विश्वसनीयता उसकी सामग्रिक सत्यता पर निर्भर है, न कि गवाह की निष्ठा पर।”


6. सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया निर्णय: अभियुक्तों की अपील खारिज

खंडपीठ ने पाया कि—

  • trial और उच्च न्यायालय ने तथ्यों का सही परीक्षण किया था;
  • hostile गवाह होने के बावजूद अभियोजन साक्ष्य मजबूत, तर्कसंगत और प्रमाणित था;
  • पीड़िता की गवाही स्पष्ट और घटनाओं के अनुरूप थी;
  • हमला, दुपट्टा खींचना, भाई की मारपीट और SC/ST Act के तत्व सिद्ध थे।

इसलिए अदालत ने कहा:

“अभियुक्त यह सिद्ध नहीं कर पाए कि उनके खिलाफ दोषसिद्धि गलत है, केवल hostile गवाह का होना पर्याप्त आधार नहीं।”

अपील खारिज कर दी गई और दोषसिद्धि कायम रखी गई।


7. SC/ST Act को लेकर न्यायालय का दृष्टिकोण

न्यायालय ने कहा कि:

  • आरोपी इस तथ्य से अवगत थे कि पीड़िता अनुसूचित जाति से है।
  • महिला की गरिमा भंग करने का कृत्य, विशेषकर दुपट्टा खींचना, SC/ST Act की धारा 3(1)(xi) के अंतर्गत गंभीर अपराध है।
  • यह अपराध केवल “छेड़छाड़” नहीं बल्कि दलित महिला के सम्मान पर सीधा हमला था।

SC/ST Act का उद्देश्य अनुसूचित जाति/जनजाति की महिलाओं को सामाजिक उत्पीड़न और अपमानजनक व्यवहार से बचाना है।
न्यायालय ने इस संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए सख्ती दिखाई।


8. Hostile गवाह क्यों होता है?—न्यायालय की सामाजिक टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने अप्रत्यक्ष रूप से यह भी माना कि—

  • भय
  • दबाव
  • धमकी
  • स्थानीय राजनीति
  • सामाजिक संबंध
  • रिश्वत
  • पुलिस की ढिलाई

ये सभी कारण गवाहों को hostile होने पर मजबूर करते हैं।

इसलिए अदालतों को ऐसे मामलों में:

  • साक्ष्य का समग्र मूल्यांकन
  • गवाही के संगत हिस्सों की पहचान
  • corroboration का परीक्षण

इन्हें अत्यधिक सावधानी से करना चाहिए।


9. इस निर्णय का भविष्य पर प्रभाव—कानूनी और सामाजिक दृष्टि से

(A) अभियोजन पक्ष को राहत

Hostile गवाहों के कारण अक्सर आपराधिक मुकदमे कमजोर हो जाते हैं।
यह निर्णय prosecution को मजबूती देता है।

(B) यौन अपराध, घरेलू हिंसा, जातीय अत्याचार मामलों में सहायक

इन मामलों में गवाह अक्सर दबाव में hostile हो जाते हैं।
अब अदालतें उनके साक्ष्य के विश्वसनीय अंश को स्वीकार कर सकेंगी।

(C) पुलिस और अभियोजन के लिए चेतावनी

Hostile होने के कारणों की जांच करनी होगी।
गवाह संरक्षण (Witness Protection Scheme) का महत्व बढ़ता है।

(D) न्यायिक स्थिरता

यह निर्णय भारतीय न्याय प्रणाली की वह परंपरा मजबूत करता है जिसमें सत्य की खोज प्राथमिक लक्ष्य है—
ना कि प्रक्रिया के तकनीकी दोषों पर अपराधी को बच निकलने देना।


10. निष्कर्ष : यह निर्णय न्यायिक संतुलन, साक्ष्य अधिनियम और सामाजिक यथार्थ का प्रतिरूप

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में यह मूल सिद्धांत स्थापित किया कि—

“गवाही के सत्य अंश, भले ही hostile गवाह से आए हों, न्यायालय के लिए अमूल्य होते हैं—क्योंकि साक्ष्य उसका सार है, न कि गवाह की निष्ठा।”

यह निर्णय भारतीय न्यायशास्त्र में एक महत्वपूर्ण precedent है।
यह उन हजारों मामलों में मार्गदर्शन देगा जहां गवाह hostile हो जाते हैं, लेकिन अपराध के सत्य और पीड़ित के न्याय को पूरी तरह मिटाया नहीं जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया है कि—

  • न्याय सत्य पर आधारित होगा,
  • सत्य साक्ष्य से निकलेगा,
  • और साक्ष्य का मूल्यांकन समग्रता में होगा—
    सिर्फ उसके स्रोत के आधार पर नहीं।

यह फैसला न्यायिक संवेदनशीलता, सामाजिक वास्तविकता और विधिक सिद्धांत—तीनों का उत्कृष्ट संतुलन प्रस्तुत करता है।