व्यक्तिगत दिवालियापन (Personal Insolvency) और कॉर्पोरेट दिवालियापन (Corporate Insolvency) – एक विस्तृत तुलना
दिवालियापन (Insolvency) एक ऐसी स्थिति है जिसमें कोई व्यक्ति या संस्था अपने ऋणों का समय पर भुगतान करने में असमर्थ हो जाती है। भारत में यह स्थिति इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 (IBC) द्वारा नियंत्रित की जाती है। इस कोड के अंतर्गत दिवालियापन को दो व्यापक श्रेणियों में बाँटा गया है:
- व्यक्तिगत दिवालियापन (Personal Insolvency)
- कॉर्पोरेट दिवालियापन (Corporate Insolvency)
इन दोनों प्रक्रियाओं का मूल उद्देश्य लेनदारों को उनकी बकाया राशि दिलाना और कर्जदार को एक वैधानिक समाधान प्रदान करना है, परंतु दोनों की प्रक्रिया, न्यायिक मंच, कानूनी धाराएँ और प्रभाव अलग-अलग होते हैं।
1. व्यक्तिगत दिवालियापन क्या है?
व्यक्तिगत दिवालियापन वह प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति, हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) या साझेदारी फर्म अपने ऊपर लिए गए ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ होता है।
प्रमुख विशेषताएँ:
- इसकी प्रक्रिया IBC की धारा 94 से 120 के अंतर्गत आती है।
- आवेदन ऋणदाता, कर्जदार स्वयं, या गृह न्यायालय में किया जा सकता है।
- व्यक्तिगत दिवालियापन प्रक्रिया का संचालन Debt Recovery Tribunal (DRT) द्वारा किया जाता है।
- इसमें कर्जदार की व्यक्तिगत संपत्ति को सूचीबद्ध कर उसे बेचा जाता है ताकि ऋण चुकाया जा सके।
- इसमें Resolution Professional की नियुक्ति होती है, जो एक समाधान योजना बनाता है।
उदाहरण:
एक व्यक्ति “अमित” ने बैंक से ₹30 लाख का पर्सनल लोन लिया, लेकिन बेरोजगारी या बीमारी के कारण वह उसे चुकाने में असमर्थ है। ऐसी स्थिति में बैंक, या अमित स्वयं व्यक्तिगत दिवालियापन की कार्यवाही शुरू कर सकता है।
2. कॉर्पोरेट दिवालियापन क्या है?
कॉर्पोरेट दिवालियापन उस स्थिति को दर्शाता है जब कोई कंपनी (जैसे कि प्राइवेट लिमिटेड या पब्लिक लिमिटेड कंपनी) अपने कर्जों का भुगतान नहीं कर पाती।
प्रमुख विशेषताएँ:
- यह प्रक्रिया IBC की धारा 6 से 32 तक चलती है।
- आवेदन कॉर्पोरेट कर्जदार, वित्तीय लेनदार, या परिचालन लेनदार कर सकते हैं।
- न्यायिक मंच: नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT)।
- Resolution Professional को नियुक्त कर कंपनी का संचालन अपने हाथ में लिया जाता है।
- कंपनी के ऋणों के निपटारे के लिए Committee of Creditors (CoC) गठित होती है।
- यदि समाधान योजना नहीं बनती, तो कंपनी को विलय, विक्रय, या परिसमापन (liquidation) की ओर ले जाया जाता है।
उदाहरण:
“XYZ Pvt. Ltd.” नामक कंपनी पर ₹50 करोड़ का बैंकों से लिया गया ऋण है। कंपनी लगातार घाटे में है और ऋण चुकाने की स्थिति में नहीं है। बैंक NCLT में कंपनी के विरुद्ध कॉर्पोरेट दिवालियापन की याचिका दायर करते हैं।
3. प्रमुख अंतर:
क. प्रकृति:
- व्यक्तिगत दिवालियापन व्यक्ति आधारित होता है।
- कॉर्पोरेट दिवालियापन संस्था या कंपनी आधारित।
ख. न्यायिक मंच:
- व्यक्तिगत मामलों में DRT कार्यवाही करता है।
- कॉर्पोरेट मामलों में NCLT।
ग. समाधान प्रक्रिया:
- व्यक्तिगत दिवालियापन में समाधान योजना आमतौर पर व्यक्ति की भविष्य की आय या संपत्तियों के पुनर्विन्यास पर आधारित होती है।
- कॉर्पोरेट दिवालियापन में संपत्तियों की बिक्री, पुनर्गठन, या निवेशकों के माध्यम से समाधान किया जाता है।
घ. सामाजिक और आर्थिक प्रभाव:
- व्यक्तिगत दिवालियापन का असर केवल व्यक्ति और उसके परिवार तक सीमित होता है।
- कॉर्पोरेट दिवालियापन में कर्मचारियों, आपूर्तिकर्ताओं, निवेशकों और बाजार पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।
ङ. उद्देश्य:
- व्यक्तिगत दिवालियापन में उद्देश्य होता है व्यक्ति को ईमानदारी से ऋणमुक्त करना और आर्थिक पुनःस्थापन करना।
- कॉर्पोरेट दिवालियापन का उद्देश्य होता है कंपनी को पुनर्जीवित करना या उसके परिसमापन द्वारा ऋणदाताओं की अधिकतम वसूली।
4. ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
भारत में पहले व्यक्तिगत दिवालियापन प्रवर्तन अधिनियम, 1920 और प्रांतीय दिवालियापन अधिनियम, 1909 द्वारा नियंत्रित था।
लेकिन IBC के लागू होने के बाद इसे एक एकीकृत और समयबद्ध प्रक्रिया के रूप में लाया गया।
हालाँकि व्यक्तिगत दिवालियापन की कार्यान्वयन प्रक्रिया अभी भी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है, परंतु कॉर्पोरेट दिवालियापन को लेकर NCLT और NCLAT के माध्यम से कई निर्णय दिए जा चुके हैं जिनसे इसकी प्रक्रिया सुव्यवस्थित हो चुकी है।
निष्कर्ष:
दोनों ही प्रकार के दिवालियापन का उद्देश्य आर्थिक अस्थिरता की स्थिति में न्यायिक समाधान देना है, परंतु व्यक्तिगत दिवालियापन मानव-सम्मान और पुनःस्थापन पर केंद्रित होता है, जबकि कॉर्पोरेट दिवालियापन आर्थिक दक्षता, लेनदारों की सुरक्षा और व्यावसायिक पुनर्गठन को केंद्र में रखता है।
इन दोनों प्रक्रियाओं के माध्यम से IBC ने भारतीय वित्तीय प्रणाली में पारदर्शिता, समयबद्धता और न्यायिक संतुलन की नींव को और मजबूत किया है।