लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type Questions)
- विवाद निस्तारण के वैकल्पिक उपाय (Alternative Means of Dispute Redressal)
विवाद निस्तारण के वैकल्पिक उपायों में मध्यस्थता (Mediation), सुलह (Conciliation), पंचाट (Arbitration), लोक अदालतें (Lok Adalat), और वार्ता (Negotiation) शामिल हैं। इन उपायों का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया के बाहर आपसी सहमति से विवादों का समाधान करना है। - अनुकल्पी विवाद निपटारा (ADR) के लाभ
- न्यायालयों का भार कम होता है।
- यह प्रक्रिया त्वरित और किफायती होती है।
- इसमें गोपनीयता बनी रहती है।
- पक्षकारों के संबंध मैत्रीपूर्ण बने रहते हैं।
- प्रक्रिया अधिक लचीली और सरल होती है।
- मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 का संक्षिप्त इतिहास
यह अधिनियम संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून आयोग (UNCITRAL) के मॉडल कानून पर आधारित है। इसे भारतीय कानूनी प्रणाली में मध्यस्थता को सरल, प्रभावी और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने के लिए लागू किया गया था। - मध्यस्थता (Arbitration) का अर्थ
यह एक विवाद निपटान प्रक्रिया है जिसमें पक्षकार एक तटस्थ मध्यस्थ (Arbitrator) नियुक्त करते हैं, जो सुनवाई के बाद एक बाध्यकारी निर्णय देता है। - मध्यस्थता करार (Arbitration Agreement) का अर्थ
यह एक कानूनी समझौता है जिसमें विवाद उत्पन्न होने की स्थिति में इसे अदालत के बजाय मध्यस्थता के माध्यम से सुलझाने की सहमति दी जाती है। - मध्यस्थता करार के आवश्यक तत्व (Essentials of Arbitration Agreement)
- करार लिखित रूप में होना चाहिए।
- विवाद को मध्यस्थता के माध्यम से सुलझाने की स्पष्ट सहमति होनी चाहिए।
- पक्षकार सक्षम होने चाहिए।
- एक मध्यस्थ पर आक्षेप के आधार (Grounds for Challenge of an Arbitrator)
- मध्यस्थ की निष्पक्षता पर संदेह।
- उसका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी पक्ष से संबंध।
- अनुचित प्रभाव या पक्षपात।
- कानूनी योग्यता की कमी।
- मध्यस्थता एवं सुलह (Mediation and Arbitration)
- मध्यस्थता में तटस्थ व्यक्ति कानूनी रूप से बाध्यकारी निर्णय देता है, जबकि सुलह में वह केवल समाधान सुझाता है।
- मध्यस्थता अधिक औपचारिक होती है, जबकि सुलह लचीली होती है।
- मध्यस्थता का स्थान (Place of Arbitration)
मध्यस्थता का स्थान पक्षकारों की सहमति से निर्धारित होता है। यदि कोई सहमति नहीं होती, तो न्यायालय या मध्यस्थ इसे तय कर सकता है। - मध्यस्थ की नियुक्ति (Appointment of Arbitrator)
- मध्यस्थ की नियुक्ति पक्षकारों की सहमति से होती है।
- यदि सहमति न बने, तो न्यायालय मध्यस्थ नियुक्त कर सकता है।
- मध्यस्थ स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए।
- न्यायालय (Court)
न्यायालय एक संस्थान है जो कानूनों के अनुसार विवादों का समाधान करता है और न्याय प्रदान करता है। - मध्यस्थता के प्रकार (Kinds of Arbitration)
- संस्थागत मध्यस्थता (Institutional Arbitration)
- एड-हॉक मध्यस्थता (Ad-Hoc Arbitration)
- घरेलू मध्यस्थता (Domestic Arbitration)
- अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता (International Commercial Arbitration)
- न्यायिक मध्यस्थता (Judicial Arbitration)
- मध्यस्थता करार के पक्षकार (Parties to Arbitration Agreement)
मध्यस्थता करार के पक्षकार वे व्यक्ति, कंपनियाँ या संस्थाएँ होती हैं जो किसी विवाद को मध्यस्थता के माध्यम से हल करने के लिए सहमत होते हैं। यह पक्षकार कानूनी रूप से सक्षम होने चाहिए और विवाद को मध्यस्थता के अधीन लाने के लिए सहमत होने चाहिए। - मध्यस्थता कार्यवाही (Arbitration Proceeding)
यह एक कानूनी प्रक्रिया है जिसमें मध्यस्थ (Arbitrator) पक्षकारों के तर्कों और साक्ष्यों को सुनता है और एक बाध्यकारी निर्णय (Award) देता है। इसमें लिखित प्रस्तुतियाँ, मौखिक दलीलें और प्रमाणिक साक्ष्य शामिल होते हैं। - मध्यस्थता के लाभ (Advantages of Arbitration)
- यह त्वरित और किफायती होती है।
- इसमें गोपनीयता बनी रहती है।
- यह लचीली और कम औपचारिक होती है।
- पक्षकार स्वयं मध्यस्थ चुन सकते हैं।
- न्यायालयी प्रक्रिया की तुलना में यह कम जटिल होती है।
- मध्यस्थता अधिकरण (Arbitral Tribunal)
यह एक या एक से अधिक मध्यस्थों का समूह होता है जो मध्यस्थता कार्यवाही का संचालन करता है और विवादों को हल करने के लिए अंतिम निर्णय (Award) देता है। - मध्यस्थता अधिकरण के कर्तव्य (Duties of Arbitral Tribunal)
- निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से विवाद का निपटारा करना।
- पक्षकारों को समान अवसर प्रदान करना।
- कार्यवाही को प्रभावी और त्वरित रूप से संचालित करना।
- विवाद को साक्ष्यों और कानून के आधार पर हल करना।
- मध्यस्थता अधिकरण का क्षेत्राधिकार (Jurisdiction of Arbitral Tribunal)
- यह केवल उन विवादों पर निर्णय ले सकता है जो मध्यस्थता करार के तहत आते हैं।
- यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों मामलों में क्षेत्राधिकार रख सकता है।
- यदि कोई विवाद क्षेत्राधिकार से बाहर है, तो न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है।
- मध्यस्थ कौन हो सकता है? (Who can be an Arbitrator?)
- कोई भी स्वतंत्र और निष्पक्ष व्यक्ति जिसे पक्षकार सहमति से चुनें।
- सेवानिवृत्त न्यायाधीश, वकील, उद्योग विशेषज्ञ या अन्य योग्य व्यक्ति।
- किसी व्यक्ति पर पक्षपात या अयोग्यता के आधार पर आपत्ति की जा सकती है।
- (a) घरेलू पंचाट (Domestic Award)
यह वह निर्णय (Award) होता है जो भारत में हुए विवादों के संबंध में भारतीय कानूनों के तहत दिया जाता है।
(b) पंच निर्णय (Award) को समझाइए।
पंच निर्णय (Arbitral Award) वह अंतिम निर्णय होता है जो मध्यस्थता अधिकरण द्वारा विवाद का निपटारा करने के लिए दिया जाता है। यह बाध्यकारी होता है और इसे अदालत में लागू किया जा सकता है।
- विदेशी पंचाट और स्थानीय पंचाट में अंतर (Difference between Foreign and Domestic Award)
- विदेशी पंचाट (Foreign Award): वह निर्णय जो किसी अन्य देश में मध्यस्थता अधिकरण द्वारा दिया गया हो।
- स्थानीय पंचाट (Domestic Award): वह निर्णय जो भारत में भारतीय कानूनों के तहत दिया गया हो।
- विदेशी पंचाट को भारत में लागू करने के लिए अतिरिक्त कानूनी प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
- मध्यस्थता पंचाट का प्रारूप और अंतर्वस्तु (Form and Contents of an Award)
- मध्यस्थों के नाम और निर्णय देने की तारीख।
- विवाद का संक्षिप्त विवरण।
- पक्षकारों के तर्कों और साक्ष्यों का विश्लेषण।
- अंतिम निर्णय और उससे संबंधित कारण।
- यदि लागू हो, तो क्षतिपूर्ति और लागत का विवरण।
- क्या पंचाट अथवा अतिरिक्त पंचाट में संशोधन एवं निर्वचन संभव है? (Is Correction and Interpretation of Award or Additional Award Possible?)
- हां, मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 33 के तहत यदि किसी पंच निर्णय में गणनात्मक या प्रपत्रीय त्रुटियाँ हों, तो उन्हें सुधारा जा सकता है।
- पक्षकार अनुरोध कर सकते हैं कि अधिकरण निर्णय की व्याख्या करे या अतिरिक्त पंच निर्णय जारी करे।
- दावे एवं प्रतिरक्षा के कथनों के संबंध में मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 के अंतर्गत क्या प्रावधान हैं? (What Provisions have been made in Arbitration and Conciliation Act, 1996 regarding Statement of Claim and Defence?)
- धारा 23 में यह प्रावधान किया गया है कि पक्षकार लिखित रूप में अपना दावा (Statement of Claim) और प्रतिरक्षा (Statement of Defence) प्रस्तुत करेंगे।
- पक्षकारों को मध्यस्थ द्वारा निर्धारित समय के भीतर अपनी दलीलें प्रस्तुत करनी होती हैं।
- यदि कोई पक्ष प्रतिरक्षा प्रस्तुत नहीं करता, तो मध्यस्थता कार्यवाही एकतरफा (Ex-Parte) जारी रह सकती है।
(ख) निपटारा करार (Settlement Agreement) क्या है? समझाइए।
निपटारा करार वह समझौता है जो पक्षकारों के बीच विवादों के समाधान के लिए किया जाता है। इसमें दोनों पक्ष यह सहमति व्यक्त करते हैं कि वे अपने विवादों को मध्यस्थता या अन्य वैकल्पिक उपायों के माध्यम से हल करेंगे। यह समझौता न्यायिक कार्रवाई से पहले या उसके दौरान हो सकता है और इसे न्यायालय में या बिना किसी न्यायालय हस्तक्षेप के लागू किया जा सकता है।
- सांविधिक मध्यस्थता (Statutory Arbitration) क्या है?
सांविधिक मध्यस्थता वह मध्यस्थता होती है जो किसी विशेष कानूनी प्रावधान या अधिनियम के तहत अनिवार्य रूप से लागू होती है। इसमें संबंधित पक्षों को विवाद के समाधान के लिए न्यायालय की बजाय मध्यस्थता के माध्यम से विवाद निपटाने की आवश्यकता होती है। यह राज्य द्वारा निर्धारित विधिक प्रक्रिया के अनुसार होती है। - मध्यस्थता प्रक्रिया एवं न्यायिक प्रक्रिया में क्या अंतर है? (What is the difference between arbitral proceeding and judicial proceeding?)
- मध्यस्थता प्रक्रिया (Arbitral Proceeding): इसमें विवादों का समाधान तटस्थ मध्यस्थ द्वारा किया जाता है, जो निर्णय देने से पहले पक्षकारों की सुनवाई करता है। यह प्रक्रिया गोपनीय, त्वरित और कम औपचारिक होती है।
- न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Proceeding): इसमें न्यायालय में मुकदमा चलता है, और न्यायाधीश द्वारा निर्णय लिया जाता है। यह औपचारिक प्रक्रिया होती है और इसमें अधिक समय लगता है।
- मध्यस्थ पंचाट को अपास्त करने के लिए कदाचरण (Misconduct) अच्छा आधार है? (Is Misconduct a good ground for setting aside an award?)
हां, मध्यस्थता पंचाट को अपास्त करने के लिए कदाचरण एक अच्छा आधार हो सकता है। यदि मध्यस्थ ने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए पक्षपाती या अनुशासनहीन व्यवहार किया हो, तो यह अपास्त करने का एक वैध कारण हो सकता है। - क्या पक्षकार की मृत्यु होने पर मध्यस्थता करार उन्मोचित हो जाता है? (Whether Arbitration Agreement is discharged by death of the Party?)
सामान्यतः, मध्यस्थता करार की समाप्ति केवल पक्षकार की मृत्यु से नहीं होती, यदि मध्यस्थता करार में कोई ऐसी शर्त नहीं है जो इसे मृत्यु के बाद समाप्त होने का कारण बनाए। फिर भी, मृत्यु के बाद करार के निष्पादन के लिए उत्तराधिकारी के साथ सहमति या न्यायालय की अनुमोदन की आवश्यकता हो सकती है। - विधिक सेवा पाने के लिए क्या औपचारिकताएँ आवश्यक हैं? (What formalities are required for entitlement of legal services?)
- विधिक सेवा पाने के लिए एक पात्र व्यक्ति को भारत सरकार द्वारा निर्धारित पात्रता मानदंडों को पूरा करना चाहिए।
- आवेदन पत्र भरना और आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करना।
- न्यायालय में कानूनी सहायता के लिए आवेदन करना।
- विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा पात्रता जांच और अनुमोदन।
- वर्तमान न्याय परिदान व्यवस्था के दोषों को स्पष्ट कीजिए। (State the defects of the existing justice delivery system.)
- न्यायिक प्रक्रिया धीमी और जटिल है, जिससे लंबा समय लगता है।
- न्यायालयों में भारी मामले लंबित हैं, जिससे मुकदमों का निपटारा समय पर नहीं हो पाता।
- उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में संसाधनों की कमी होती है।
- कुछ मामलों में भ्रष्टाचार और पक्षपाती निर्णयों की समस्या।
- अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता (International Commercial Arbitration)
यह एक प्रकार की मध्यस्थता है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से जुड़े विवादों का समाधान एक मध्यस्थ द्वारा किया जाता है। इसमें कई देशों के व्यापारिक हित शामिल होते हैं, और यह सामान्यतः व्यापारियों, कंपनियों और देशों के बीच होता है। - पक्षकार के दिवालिया होने के प्रभाव (Effect of Insolvency of Party)
यदि पक्षकार दिवालिया हो जाता है, तो उसकी संपत्ति का प्रशासन कूरक्शन (Insolvency) प्रक्रिया द्वारा किया जाता है। यह मध्यस्थता प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि दिवालिया पक्ष के पास देय राशि का भुगतान करने की क्षमता नहीं रहती। - मध्यस्थता अधिकरण के आदेशों के विरुद्ध अपील (Appeal against the order of Arbitral Tribunal)
सामान्यतः, मध्यस्थता के आदेशों के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती, क्योंकि यह एक वैकल्पिक विवाद समाधान प्रक्रिया है। हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में जैसे कि यदि आदेश न्यायिक व्यवस्था के खिलाफ हो, तो अपील की जा सकती है। - किन परिस्थितियों में मध्यस्थता कार्यवाही में न्यायिक हस्तक्षेप अपेक्षित है? (Under what circumstances judicial interference is required under Arbitration Proceeding?)
- यदि मध्यस्थता कार्यवाही में पक्षपात या अनुशासनहीनता हो।
- यदि मध्यस्थ का निर्णय न्यायिक मानकों के खिलाफ हो।
- यदि न्यायालय के आदेश के तहत मध्यस्थता प्रक्रिया में कोई अड़चन उत्पन्न हो।
- मध्यस्थता कार्यवाही के समापन के आधार (Grounds for termination of Arbitration Proceeding)
- मध्यस्थता कार्यवाही के दौरान पक्षकारों द्वारा सहमति से समाप्ति।
- मध्यस्थता कार्यवाही का पूरा होने पर निर्णय या समझौते की प्राप्ति।
- यदि कार्यवाही में कोई कानूनी रुकावट उत्पन्न हो।
- मध्यस्थ पंचाट को अपास्त करने के आधार (Grounds for setting aside of Arbitration Award)
- यदि मध्यस्थ ने निष्पक्षता का उल्लंघन किया हो।
- यदि निर्णय न्यायिक प्रक्रिया के विरुद्ध हो।
- यदि मध्यस्थता करार की शर्तों का उल्लंघन हुआ हो।
- यदि कोई पक्ष ग़लत सूचना या छल के आधार पर फैसला कराया गया हो।
- मध्यस्थ और अभिनिर्णायक (Arbitrator and Referee) में अंतर
- मध्यस्थ (Arbitrator): मध्यस्थ एक तटस्थ व्यक्ति होता है जो विवादों का हल निर्धारित करता है और निर्णय (Award) देता है। यह निर्णय पक्षकारों के लिए बाध्यकारी होता है।
- अभिनिर्णायक (Referee): अभिनिर्णायक आमतौर पर एक विशेषज्ञ होता है जिसे किसी विशेष मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए नियुक्त किया जाता है, लेकिन उसका निर्णय पूरी प्रक्रिया के अंत में अंतिम नहीं होता।
- मध्यस्थता प्राधिकरण के समक्ष उपस्थित होने के लिए न्यायालय द्वारा आदेश जारी करने की शक्ति
न्यायालय के पास यह शक्ति होती है कि वह मध्यस्थता कार्यवाही के दौरान किसी पक्ष को मध्यस्थता अधिकरण के समक्ष उपस्थित होने का आदेश दे सकता है। यदि कोई पक्ष मध्यस्थता कार्यवाही में सम्मिलित होने से मना करता है या प्रक्रिया में भाग नहीं लेता, तो न्यायालय उसे सम्मन जारी कर सकता है। - मध्यस्थता अधिकरण साक्ष्य लेने में कब न्यायालय की सहायता ले सकता है?
मध्यस्थता अधिकरण साक्ष्य लेने के लिए न्यायालय से सहायता ले सकता है, जब पक्षकारों से साक्ष्य प्रस्तुत नहीं हो पा रहे होते हैं या जब मध्यस्थता अधिकरण के पास साक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति नहीं होती। न्यायालय से यह सहायता धारा 27 के तहत ली जा सकती है। - क्या विवाद आपसी सुलह के द्वारा निपटाये जा सकते हैं?
हां, बहुत से विवादों को आपसी सुलह (Mediation) या समझौते के माध्यम से हल किया जा सकता है। यदि दोनों पक्ष सहमत होते हैं, तो वे बिना अदालत में जाने अपने विवादों को सुलझा सकते हैं। यह तरीका त्वरित, किफायती और अधिक मैत्रीपूर्ण होता है। - मध्यस्थता करार के प्रकार (Kinds of an Arbitration Agreement)
- संस्थागत मध्यस्थता करार (Institutional Arbitration Agreement): जब पक्षकार किसी संस्थान द्वारा संचालित मध्यस्थता प्रक्रिया को स्वीकार करते हैं।
- एड-हॉक मध्यस्थता करार (Ad-Hoc Arbitration Agreement): जब मध्यस्थता के लिए कोई स्थायी संस्थान नहीं होता, और पक्षकारों द्वारा अपनी इच्छानुसार मध्यस्थ नियुक्त किए जाते हैं।
- घरेलू मध्यस्थता करार (Domestic Arbitration Agreement): यह करार राष्ट्रीय स्तर पर विवादों के समाधान के लिए होता है।
- अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता करार (International Arbitration Agreement): यह करार देशों के बीच व्यापारिक विवादों को हल करने के लिए होता है।
- मध्यस्थता पंचाट के विरुद्ध उपलब्ध उपचार (Remedies available against Arbitral Award)
- पंचाट आदेश को अपास्त करना (Setting aside the Award): यदि पंचाट का निर्णय अनुचित, पक्षपाती, या न्यायिक मानकों के खिलाफ हो तो उसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
- पुनर्विचार (Review): यदि किसी ग़लती के कारण निर्णय गलत हो तो पुनः विचार की प्रक्रिया हो सकती है।
- न्यायालय में अपील (Appeal): कुछ विशेष परिस्थितियों में, उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
- मध्यस्थता या बीच-बचाव (Mediation) को परिभाषित कीजिए।
मध्यस्थता (Mediation) एक वैकल्पिक विवाद निवारण प्रक्रिया है, जिसमें एक तटस्थ और निष्पक्ष तीसरी पार्टी (मध्यस्थ) दोनों पक्षों के बीच संवाद स्थापित करती है और उन्हें समाधान तक पहुंचने में मदद करती है। मध्यस्थ का कोई निर्णय नहीं होता, लेकिन वह पक्षकारों को आपसी समझौते पर पहुंचने के लिए मार्गदर्शन करता है। - विदेशी पंचाट (Foreign Award)
विदेशी पंचाट वह निर्णय होता है जो एक देश के बाहर हुए मध्यस्थता कार्यवाही के बाद दिया गया हो। यदि यह निर्णय किसी अंतरराष्ट्रीय विवाद से संबंधित है, तो उसे भारतीय न्यायालय द्वारा मान्यता दी जा सकती है, बशर्ते वह भारतीय कानूनों के अनुसार हो। - समझौता अधिकारी (Conciliation Officer) को परिभाषित कीजिए।
समझौता अधिकारी वह व्यक्ति होता है जो सुलह या मध्यस्थता प्रक्रिया में मदद करता है। इसका कार्य पक्षों के बीच सामंजस्य स्थापित करना और विवाद का समाधान प्राप्त करने के लिए दोनों पक्षों को एक साथ लाना है। - लोक अदालत के बारे में आप क्या जानते हैं? (What do you know about Lok Adalat?)
लोक अदालत एक वैकल्पिक विवाद समाधान मंच है जहां विवादों को बिना न्यायालय में जाने हल किया जाता है। इसमें पक्षकारों के बीच समझौता कराया जाता है और इसके निर्णय न्यायिक रूप से बंधनकारी होते हैं। लोक अदालतें सरकारी तंत्र के तहत संचालित होती हैं और यह लोगों को सस्ता और त्वरित न्याय प्रदान करती हैं। - सुलहकर्ता की नियुक्ति के सम्बन्ध में विधि के प्रावधानों की व्याख्या कीजिए।
सुलहकर्ताओं की नियुक्ति एक निष्पक्ष और तटस्थ प्रक्रिया होती है। सामान्यतः, सुलहकर्ता को पक्षकारों की सहमति से नियुक्त किया जाता है। यदि पक्षकारों के बीच कोई विवाद हो, तो मध्यस्थता या सुलह प्रक्रिया के लिए न्यायालय सुलहकर्ता की नियुक्ति कर सकता है। - सुलह कार्यवाही का प्रारम्भ (Beginning of Conciliation Proceedings)
सुलह कार्यवाही का प्रारम्भ उस समय होता है जब पक्षकारों के बीच विवाद को हल करने के लिए समझौता अधिकारी को नियुक्त किया जाता है। पक्षकार एक दूसरे से संवाद स्थापित करने के लिए तैयार होते हैं और सुलहकर्ता उन्हें संवाद का मार्गदर्शन प्रदान करता है। - सुलहकर्ताओं की भूमिका (Role of Conciliators)
सुलहकर्ताओं का मुख्य कार्य विवादों को हल करने के लिए पक्षकारों के बीच संवाद और समझौता स्थापित करना है। वे निष्पक्ष और तटस्थ रहते हुए दोनों पक्षों के दृष्टिकोण को समझते हैं और उन्हें समाधान के लिए प्रेरित करते हैं।
- सुलहकर्ताओं की संख्या (Number of Conciliators)
सामान्यत: सुलहकर्ता की संख्या एक होती है। हालांकि, यदि आवश्यक हो तो एक से अधिक सुलहकर्ता भी नियुक्त किए जा सकते हैं, परंतु यह पक्षों की सहमति पर निर्भर करता है। - अन्य कार्यवाहियों में सुलहकर्ता की भूमिका (Role of Conciliator in other modes of settlement of dispute)
सुलहकर्ता की भूमिका अन्य विवाद समाधान प्रक्रियाओं में भी महत्वपूर्ण होती है। उदाहरण के लिए, मध्यस्थता में सुलहकर्ता पक्षों के बीच सामंजस्य बनाने की कोशिश करते हैं, जबकि न्यायिक मध्यस्थता में वे पक्षकारों को अदालत से बाहर समाधान पर पहुँचाने में मदद करते हैं। - अपीलीय आदेश कौन-कौन से होते हैं? (What are the Appealable Orders?)
अपीलीय आदेश वे आदेश होते हैं जिन्हें उच्च न्यायालय या अन्य उपयुक्त न्यायालयों में अपील की जा सकती है। इनमें वे आदेश शामिल होते हैं जो न्यायालय या मध्यस्थता अधिकरण द्वारा दिए गए निर्णयों, फैसलों या आदेशों के खिलाफ होते हैं, और जिनका पुनरीक्षण करने की आवश्यकता हो। - मध्यस्थता एवं मूल्यांकन में अंतर स्पष्ट करें (Difference between Arbitration and Valuation)
- मध्यस्थता (Arbitration): यह एक वैकल्पिक विवाद समाधान प्रक्रिया है जिसमें तटस्थ मध्यस्थ किसी विवाद का समाधान करते हैं।
- मूल्यांकन (Valuation): मूल्यांकन एक प्रक्रिया है जिसमें किसी संपत्ति, वस्तु या सेवा के मूल्य का निर्धारण किया जाता है। मूल्यांकन का उद्देश्य किसी विवाद के समाधान के लिए उचित मूल्य निर्धारित करना है।
- केंद्र सरकार की नियम बनाने की शक्ति क्या है? (What are the Powers of the Central Government to make rules?)
केंद्र सरकार के पास मध्यस्थता और सुलह संबंधित मामलों में नियम बनाने की शक्ति है, ताकि प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और पारदर्शी बनाया जा सके। यह शक्ति मध्यस्थता कानून, 1996 के तहत केंद्र सरकार को प्रदान की गई है, और इसका उद्देश्य वैकल्पिक विवाद समाधान प्रक्रिया को बढ़ावा देना है। - क्या सुलहकर्ता एवं पक्षकारों के मध्य संचार की प्रकृति गोपनीय होती है? (Whether the communication between conciliator and parties are confidential in nature?)
हां, सुलहकर्ता और पक्षकारों के बीच सभी संवाद गोपनीय होते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि पक्षकार बिना किसी भय के अपने विचार और चिंताओं को साझा कर सकें, और सुलह प्रक्रिया का सफलतापूर्वक संचालन हो सके। - क्या सुलहकर्ता दीवानी प्रक्रिया संहिता या साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों को मानने के लिए बाध्य है? (Whether Conciliator is bound to observe the provisions of C.P.C. or Evidence Act?)
नहीं, सुलहकर्ता को दीवानी प्रक्रिया संहिता (C.P.C.) या साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं होता है। सुलह प्रक्रिया एक वैकल्पिक विधिक प्रक्रिया है, जिसमें पक्षकारों के बीच समाधान की अधिक लचीलापन होती है। - क्या सुलहकर्ता को कथन पेश करना पड़ता है? (Whether the statement has to be submitted to Conciliator?)
सुलहकर्ता के समक्ष पक्षकारों को उनके विवादों और तथ्यों के बारे में खुलकर प्रस्तुत करना होता है। हालांकि, यह निर्भर करता है कि सुलहकर्ता की प्रक्रिया कैसी है। सुलहकर्ता पक्षों से कथन प्राप्त कर सकता है ताकि समाधान की दिशा में मार्गदर्शन किया जा सके। - सुलह कार्यवाहियों में खर्चा लगाने सम्बन्धी नियमों को बतलाइए। (Give the rules regarding the costs in conciliation proceedings)
सुलह कार्यवाही में खर्चा सामान्यत: उन गतिविधियों पर निर्भर करता है जो कार्यवाही के दौरान की जाती हैं, जैसे सुलहकर्ता की फीस, स्थल का किराया, आदि। इन खर्चों को पक्षकारों के बीच बराबरी से बांटा जा सकता है, जब तक कि कोई अन्य समझौता न हो। - सुलहकर्ता के साथ पक्षकारों का सहयोग (Co-operation of parties with Conciliator)
पक्षकारों को सुलहकर्ता के साथ पूरी तरह से सहयोग करना चाहिए ताकि सुलह प्रक्रिया में सफलता मिल सके। उन्हें अपनी समस्याओं को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना और सुलहकर्ता द्वारा सुझाए गए समाधान पर विचार करना चाहिए। - अंतिम पंचाट (Final Award)
अंतिम पंचाट वह निर्णय होता है जो मध्यस्थता प्रक्रिया के अंत में लिया जाता है। यह निर्णय दोनों पक्षों के लिए बाध्यकारी होता है, और यदि कोई पक्ष इसे स्वीकार नहीं करता है, तो यह न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। - सुलह कार्यवाही की समाप्ति (Termination of Conciliation Proceedings)
सुलह कार्यवाही तब समाप्त होती है जब पक्षकार एक समझौते पर पहुंच जाते हैं या यदि किसी कारणवश कार्यवाही जारी नहीं रखी जा सकती। सुलहकर्ता कार्यवाही समाप्ति का नोटिस जारी कर सकते हैं। - लघु विचारण (Mini Trials) से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by Mini Trials?)
लघु विचारण एक वैकल्पिक विवाद समाधान प्रक्रिया है जिसमें पक्षकारों को एक सीमित समय में अपने मामले को संक्षेप में प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाता है। यह प्रक्रिया पारंपरिक मुकदमेबाजी से अधिक त्वरित और किफायती होती है, और इसे समझौते तक पहुँचने के लिए एक कदम के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
- वृत्तिक सहायता (Professional Assistance) क्या है? (What is Professional Assistance?)
वृत्तिक सहायता का तात्पर्य ऐसे पेशेवरों से मदद प्राप्त करने से है, जो किसी विशेष क्षेत्र में विशेषज्ञ होते हैं, जैसे वकील, सलाहकार, या अन्य विशेषज्ञ। यह सहायता व्यक्तियों को उनके कानूनी, व्यापारिक, या अन्य तकनीकी मुद्दों को हल करने में मदद करती है। यह सहायता अक्सर उनके व्यवसाय या पेशेवर कार्यों को कुशलता से संपादित करने के लिए ली जाती है। - विधिक प्रतिनिधि से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by Legal Representative?)
विधिक प्रतिनिधि वह व्यक्ति होता है जो किसी अन्य व्यक्ति (जैसे मृतक, नाबालिग, या मानसिक रूप से अक्षम व्यक्ति) का कानूनी रूप से प्रतिनिधित्व करता है। यह प्रतिनिधि उस व्यक्ति की ओर से कानूनी कार्रवाई करता है, उसके अधिकारों का संरक्षण करता है, और उसे न्याय दिलवाने के लिए जिम्मेदार होता है। विधिक प्रतिनिधि का चुनाव अदालत द्वारा किया जा सकता है या परिवार द्वारा किया जा सकता है। -
समस्याएँ (Problems):
इस वाक्य का संदर्भ नहीं दिया गया है, लेकिन सामान्यत: “समस्याएँ” का मतलब है ऐसे कानूनी या अन्य मुद्दे जिनका समाधान किया जाना आवश्यक है। अगर यह किसी विशेष संदर्भ में है, तो उसे स्पष्ट किया जा सकता है।