विशेष निष्पादन वाद में पक्षकार जोड़े जाने पर केरल उच्च न्यायालय का निर्णय
(CPC की धारा 96, आदेश 41 नियम 1 और साक्ष्य अधिनियम की धारा 65(ब))
🔷 भूमिका:
केरल उच्च न्यायालय ने एक विशेष निष्पादन वाद (Suit for Specific Performance) में पक्षकार बनाए जाने (Impleadment of Parties) के मुद्दे पर विचार करते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। यह मामला केवल पक्षकार जोड़ने तक सीमित नहीं था, बल्कि अनुबंध की वैधता, साक्ष्य की विश्वसनीयता और निष्पादन प्रक्रिया पर भी केंद्रित था।
🔷 मामले की पृष्ठभूमि:
वादी (Plaintiff) ने प्रतिवादी (Defendant) के साथ संपत्ति के क्रय के लिए एक समझौते (Agreement) के आधार पर विशेष निष्पादन की मांग की थी। वादी का दावा था कि उसने प्रतिवादी को ₹3.5 लाख अग्रिम रूप में दिए थे। यह राशि वादी द्वारा लिए गए ऋण के माध्यम से दी गई थी।
🔍 मुख्य बिंदु जिन पर न्यायालय ने ध्यान दिया:
1. समझौते की विसंगतियाँ (Anomalies in Agreement):
- तीन पृष्ठों पर रिक्त स्थान (Gaps) पाए गए।
- अलग-अलग स्याही (Ink) से हस्ताक्षर और लेखन किया गया था।
- इससे यह संकेत मिला कि खाली हस्ताक्षरित कागज पर समझौता बाद में टाइप या भरा गया हो सकता है।
2. साक्ष्य अधिनियम की धारा 65(ब):
- डिजिटल या द्वितीयक साक्ष्य की वैधता को लेकर प्रश्न उठा।
- न्यायालय ने माना कि वादी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य से समझौते की उचित निष्पादन प्रक्रिया (Due Execution) सिद्ध नहीं होती।
3. मुख्य गवाह की अनुपस्थिति:
- वादी का बहनोई, जिसने कथित रूप से बिक्री मूल्य अदा किया था, उसे गवाह के रूप में पेश नहीं किया गया।
- इससे न्यायालय ने संदेह व्यक्त किया कि पूरा सौदा वास्तविक नहीं था।
4. पक्षकार बनाए जाने की मांग:
- न्यायालय ने कहा कि जब मूल अनुबंध की निष्पादन प्रक्रिया ही संदिग्ध है, तो पक्षकार जोड़े जाने की मांग न्यायोचित नहीं ठहरती।
🧑⚖️ न्यायालय का निष्कर्ष:
- ट्रायल कोर्ट द्वारा वादी का दावा खारिज किया जाना उचित और साक्ष्यों पर आधारित था।
- हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय में हस्तक्षेप करने से इंकार किया।
- अपील खारिज कर दी गई, और ट्रायल कोर्ट के आदेश को संपूर्ण रूप से बरकरार रखा गया।
📌 कानूनी महत्व:
- यह निर्णय स्पष्ट करता है कि विशेष निष्पादन वाद में केवल लिखित समझौते का होना पर्याप्त नहीं है।
- समझौते की निष्पादन प्रक्रिया, साक्ष्य की विश्वसनीयता, और आवश्यक गवाहों की उपस्थिति अत्यंत आवश्यक है।
- साक्ष्य अधिनियम की धारा 65(ब) के अंतर्गत द्वितीयक साक्ष्य तब तक मान्य नहीं जब तक उनकी प्रामाणिकता सिद्ध न हो जाए।
📝 निष्कर्ष:
इस निर्णय से यह सिद्ध होता है कि अनुबंध की पारदर्शिता और साक्ष्य की पूर्णता विशेष निष्पादन जैसे गंभीर मामलों में आवश्यक है। केवल आरोपों और कथनों के आधार पर न तो पक्षकार जोड़ा जा सकता है और न ही विशेष निष्पादन का आदेश दिया जा सकता है।