“विशेष निष्पादन का दावा खारिज: खरीदार की वित्तीय अक्षमता और अनुचित विलंब पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”

शीर्षक: “विशेष निष्पादन का दावा खारिज: खरीदार की वित्तीय अक्षमता और अनुचित विलंब पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”


परिचय:

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने Dan Sahai एवं अन्य बनाम Bal Kishan [PbHr 2025 (RSA-2320-1993, O & M)] में एक महत्वपूर्ण निर्णय पारित करते हुए यह स्पष्ट किया कि विलंब और खरीदार की वित्तीय अक्षमता के आधार पर “Agreement to Sell” (बिक्री अनुबंध) का विशेष निष्पादन (Specific Performance) नहीं दिया जा सकता। यह निर्णय उन मामलों के लिए दिशा-निर्देशक है, जहाँ खरीदार अपने अनुबंधित कर्तव्यों को पूरा करने में विफल रहते हैं और फिर भी न्यायालय से बाध्यकारी राहत की मांग करते हैं।


मामले की पृष्ठभूमि:

  • पक्षकारों के बीच कुल विक्रय मूल्य ₹1,50,000/- पर संपत्ति की बिक्री के लिए एक समझौता हुआ था।
  • इसमें से ₹15,000/- को अग्रिम धनराशि (earnest money) के रूप में भुगतान किया गया था।
  • शेष राशि ₹1,35,000/- का भुगतान भविष्य में किया जाना था।
  • वादकर्ता (Plaintiff) ने इस राशि के भुगतान के लिए तीन वर्षों तक प्रतीक्षा की और उसके पश्चात ही विशेष निष्पादन (Specific Performance) की मांग के लिए वाद दायर किया।

अदालत के प्रमुख अवलोकन और निष्कर्ष:

  1. अनुचित विलंब पर आपत्ति:
    • अदालत ने वादी द्वारा तीन वर्षों तक मुकदमा दायर न करने के कारण को न बताने को गंभीर माना।
    • यह विलंब अनुबंध की गंभीरता और उसकी निष्पक्षता पर प्रश्न उठाता है।
  2. वित्तीय साधनों की कमी:
    • वादी यह सिद्ध नहीं कर सका कि उसके पास शेष राशि ₹1,35,000/- के साथ-साथ स्टाम्प ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क चुकाने के पर्याप्त साधन थे।
    • उसने यह भी नहीं बताया कि उसने यह धन कहाँ से उधार लिया या कौन व्यक्ति इसमें सहायता कर रहे थे।
    • यह सब “adverse inference” का कारण बना, जिससे यह साबित हुआ कि वादी ने अनुबंध पूरा करने की ईमानदार कोशिश नहीं की।
  3. निष्पादन के लिए आवश्यक तत्वों की अनुपस्थिति:
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विशेष निष्पादन के लिए आवश्यक है कि वादी यह दिखाए कि वह अनुबंध की शर्तें पूरी करने के लिए “तैयार और सक्षम” था।
    • इस मामले में वादी ने न तो भुगतान के प्रयास दिखाए, न ही कोई कानूनी या वास्तविक बाधा प्रमाणित की।
  4. केवल अग्रिम धनवापसी की अनुमति:
    • चूंकि वादी ने ₹15,000/- अग्रिम धनराशि दी थी, न्यायालय ने ब्याज सहित ₹20,000/- की वसूली का डिक्री (decree for recovery) पारित किया।

कानूनी सिद्धांत और प्रभाव:

  1. विशेष निष्पादन न्यायिक विवेक पर आधारित राहत है:
    • यह कोई स्वाभाविक अधिकार नहीं है, बल्कि न्यायालय अपने विवेक से तब देता है जब यह साबित हो कि पक्ष ईमानदारी से कार्य कर रहा है।
  2. “Time is of the essence” सिद्धांत:
    • संपत्ति के लेन-देन में समय का अत्यधिक महत्व होता है। लंबा विलंब संकेत करता है कि पक्ष गंभीर नहीं था।
  3. धारा 16, विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 (Specific Relief Act):
    • यह धारा मांग करती है कि वादी हमेशा अनुबंध पूरा करने को तैयार और सक्षम हो, अन्यथा विशेष निष्पादन अस्वीकृत किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

इस निर्णय में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि केवल बिक्री का अनुबंध होना विशेष निष्पादन के लिए पर्याप्त नहीं है। यदि वादी वित्तीय दृष्टि से सक्षम नहीं है या वह अनुबंध को निष्पादित करने के लिए आवश्यक प्रयास नहीं करता, तो न्यायालय उसे बाध्यकारी राहत नहीं देगा। इस निर्णय से न्यायिक विवेक, समय की महत्ता, और आर्थिक साधनों की प्रमाणिकता जैसे तत्वों पर जोर दिया गया है। यह अन्य खरीदारों के लिए भी एक चेतावनी है कि विशेष निष्पादन की मांग करने से पहले उन्हें कानूनी और आर्थिक तैयारी पूरी करनी चाहिए।