लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर
1. क्षतिपूर्ति की संविदा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 124 के अनुसार, क्षतिपूर्ति की संविदा वह संविदा है जिसमें एक पक्ष दूसरे पक्ष को किसी हानि से बचाने का वचन देता है जो किसी तृतीय पक्ष के कार्य या किसी घटना के कारण होती है।
2. क्षतिपूर्तिधारी के अधिकारों को इंगित कीजिए।
उत्तर: क्षतिपूर्तिधारी (Indemnity Holder) को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त होते हैं:
- क्षतिपूर्ति अनुबंध के अनुसार सभी नुकसान की भरपाई प्राप्त करने का अधिकार।
- कानूनी व्यय की प्रतिपूर्ति का अधिकार।
- समुचित देखरेख एवं सुरक्षा का अधिकार।
3. प्रत्याभूति की संविदा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: प्रत्याभूति की संविदा (Contract of Guarantee) वह संविदा है जिसमें एक व्यक्ति (प्रतिभू – Surety) किसी अन्य व्यक्ति (ऋणी – Principal Debtor) के ऋण या दायित्व को पूरा करने का वचन देता है यदि वह ऋणी अपने दायित्व को पूरा करने में असफल रहता है।
4. क्षतिपूर्ति की संविदा तथा प्रत्याभूति की संविदा में क्या अन्तर है?
उत्तर:
| आधार | क्षतिपूर्ति की संविदा | प्रत्याभूति की संविदा |
|———–|——————|——————-|
| पक्षों की संख्या | दो पक्ष (क्षतिपूर्ति प्रदाता और क्षतिपूर्तिधारी) | तीन पक्ष (ऋणी, प्रतिभू, लेनदार) |
| दायित्व | केवल एक पक्ष दायित्व वहन करता है | प्रतिभू द्वितीयक दायित्व वहन करता है |
| हानि की स्थिति | हानि होने पर क्षतिपूर्ति मिलती है | ऋणी की विफलता पर प्रतिभू उत्तरदायी होता है |
5. प्रतिभू के दायित्व का उन्मोचन किस तरह होता है?
उत्तर: प्रतिभू के दायित्व का उन्मोचन निम्नलिखित स्थितियों में होता है:
- ऋणी के दायित्व की पूर्ति होने पर।
- ऋणी और लेनदार के बीच हुए किसी समझौते से।
- प्रतिभू की मृत्यु होने पर (कुछ मामलों में)।
- ऋणदाता द्वारा प्रतिभू को मुक्त करने पर।
6. शर्त और प्रत्याभूति को परिभाषित कीजिए। शर्त और प्रत्याभूति में अन्तर बतलाइए।
उत्तर:
- शर्त (Condition): यह संविदा की एक आवश्यक शर्त होती है, जिसका पालन न होने पर संविदा समाप्त हो सकती है।
- प्रत्याभूति (Warranty): यह संविदा की गौण शर्त होती है, जिसका उल्लंघन होने पर क्षतिपूर्ति तो मिलती है, लेकिन संविदा समाप्त नहीं होती।
7. चलत प्रतिभूति क्या है?
उत्तर: चलत प्रतिभूति (Continuing Guarantee) वह प्रतिभूति होती है जिसमें प्रतिभू किसी विशेष लेन-देन के लिए नहीं, बल्कि भविष्य में होने वाले एक से अधिक लेन-देन के लिए गारंटी देता है।
8. चलत प्रत्याभूति एवं विशिष्ट प्रत्याभूति में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
| आधार | चलत प्रत्याभूति (Continuing Guarantee) | विशिष्ट प्रत्याभूति (Specific Guarantee) |
|———–|——————|——————-|
| प्रयोजन | अनेक लेन-देन के लिए | केवल एक लेन-देन के लिए |
| दायित्व | तब तक जारी रहता है जब तक वापस नहीं लिया जाता | एक बार पूरा होने पर समाप्त हो जाता है |
9. चलत प्रत्याभूति के प्रतिसंहरण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: चलत प्रत्याभूति का प्रतिसंहरण निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है:
- सूचना द्वारा: प्रतिभू लिखित सूचना देकर अपनी गारंटी समाप्त कर सकता है।
- मृत्यु द्वारा: प्रतिभू की मृत्यु होने पर उसका उत्तरदायित्व समाप्त हो जाता है।
- लेन-देन की समाप्ति से: यदि सभी संबंधित लेन-देन पूरे हो गए हों।
10. निक्षेप या उपनिधान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: निक्षेप (Bailment) एक संविदा है जिसमें एक पक्ष (निक्षेपक) अपनी वस्तु को दूसरे पक्ष (निक्षेपधारी) को किसी विशेष उद्देश्य के लिए देता है, और कार्य पूरा होने पर उसे वापस लौटाने का वचन लिया जाता है।
11. उपनिधान के तत्वों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर: उपनिधान (Bailment) के मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं:
- संपत्ति का हस्तांतरण: वस्तु अस्थायी रूप से दूसरे के पास दी जाती है।
- विशिष्ट उद्देश्य: वस्तु किसी विशेष उद्देश्य के लिए दी जाती है।
- वस्तु की वापसी: कार्य पूरा होने पर वस्तु लौटानी होती है।
- सहमति: दोनों पक्षों की सहमति आवश्यक होती है।
- मालिकाना हक: वस्तु के स्वामित्व में कोई परिवर्तन नहीं होता।
12. उपनिधाता एवं उपनिहिती के क्या कर्तव्य हैं?
उत्तर:
- उपनिधाता (Bailor) के कर्तव्य:
- वस्तु को सुरक्षित एवं उपयुक्त अवस्था में देना।
- उपनिहिती को सभी आवश्यक जानकारी देना।
- उचित व्यय की प्रतिपूर्ति करना।
- उपनिहिती (Bailee) के कर्तव्य:
- वस्तु की उचित देखभाल करना।
- वस्तु का अनुचित प्रयोग न करना।
- उद्देश्य पूरा होने पर वस्तु वापस लौटाना।
13. उपनिधाता के अधिकारों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
- उपनिहिती से वस्तु की वापसी प्राप्त करने का अधिकार।
- यदि उपनिहिती वस्तु का दुरुपयोग करता है, तो हर्जाना मांगने का अधिकार।
- उपनिधान की शर्तों का पालन न होने पर संविदा समाप्त करने का अधिकार।
14. धारणाधिकार कितने प्रकार का होता है?
उत्तर: धारणाधिकार (Right of Lien) दो प्रकार के होते हैं:
- विशिष्ट धारणाधिकार (Specific Lien): जब कोई वस्तु विशेष कार्य के लिए रखी जाती है और शुल्क न मिलने पर उसे रोकने का अधिकार होता है।
- सामान्य धारणाधिकार (General Lien): जब संपत्ति के स्वामी पर अन्य ऋण बकाया हो और वस्तु को तब तक रोका जाए जब तक पूरा ऋण न चुका दिया जाए।
15. गिरवी की परिभाषा दीजिए तथा इसके आवश्यक तत्व बतलाइये।
उत्तर: भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 172 के अनुसार, गिरवी (Pledge) वह अनुबंध है जिसमें कोई व्यक्ति (गिरवीदाता) अपनी संपत्ति को ऋण प्राप्त करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति (गिरवीधारी) के पास गिरवी रखता है और ऋण चुकाने के बाद संपत्ति को पुनः प्राप्त करने का अधिकार रखता है।
आवश्यक तत्व:
- वस्तु का स्वामित्व गिरवीदाता के पास बना रहता है।
- गिरवीधारी को वस्तु पर केवल हक प्राप्त होता है, स्वामित्व नहीं।
- ऋण न चुकाने की स्थिति में गिरवीधारी को वस्तु बेचने का अधिकार होता है।
16. उपनिधान एवं गिरवी में अन्तर कीजिए।
| आधार | उपनिधान (Bailment) | गिरवी (Pledge) |
|———–|——————|——————-|
| प्रयोजन | वस्तु को विशेष उद्देश्य से दिया जाता है | ऋण के बदले वस्तु गिरवी रखी जाती है |
| स्वामित्व | वस्तु का स्वामित्व उपनिधाता के पास बना रहता है | गिरवीदाता स्वामित्व रखता है लेकिन गिरवीधारी के पास वस्तु का अधिकार होता है |
| वापसी | वस्तु वापस करनी होती है | ऋण न चुकाने पर वस्तु बेची जा सकती है |
17. गुडविल क्या है?
उत्तर: गुडविल (Goodwill) व्यवसाय की वह अदृश्य संपत्ति होती है जो उसकी अच्छी प्रतिष्ठा, ब्रांड मूल्य, ग्राहक संतोष और बाजार में उसकी स्थिति के आधार पर बनती है।
18. अभिकर्ता कौन है? विभिन्न प्रकार के अभिकर्ताओं को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अभिकर्ता (Agent) वह व्यक्ति होता है जो किसी अन्य व्यक्ति (प्रधान) की ओर से कार्य करता है और उसे वैध रूप से बाध्य करने का अधिकार रखता है।
प्रमुख प्रकार:
- विशिष्ट अभिकर्ता (Special Agent): किसी विशेष कार्य हेतु नियुक्त किया जाता है।
- सामान्य अभिकर्ता (General Agent): एक से अधिक कार्यों को संभालता है।
- स्थानापन्न अभिकर्ता (Substituted Agent): मूल अभिकर्ता द्वारा नियुक्त किया गया व्यक्ति।
- विक्रय अभिकर्ता (Selling Agent): वस्तुओं को बेचने का कार्य करता है।
19. एक अभिकर्ता के कर्तव्य तथा अधिकार बताइए।
उत्तर:
अभिकर्ता के कर्तव्य:
- प्रधान के प्रति निष्ठावान रहना।
- उचित देखभाल और कौशल के साथ कार्य करना।
- प्रधान को प्राप्त धनराशि का हिसाब देना।
अभिकर्ता के अधिकार:
- कार्य के लिए उचित पारिश्रमिक पाने का अधिकार।
- प्राप्त धन में कटौती करने का अधिकार।
- कार्य करने से मना करने का अधिकार (यदि अनुचित हो)।
20. अभिकर्ता के अवैध कार्यों के लिए दायित्व का उल्लेख करें।
उत्तर: यदि अभिकर्ता प्रधान की अनुमति के बिना कोई अवैध कार्य करता है, तो वह स्वयं उत्तरदायी होता है, लेकिन यदि प्रधान ने अनुमति दी हो, तो प्रधान भी दायित्व वहन कर सकता है।
21. स्थानापन्न अभिकर्ता की परिभाषा दीजिए।
उत्तर: स्थानापन्न अभिकर्ता (Substituted Agent) वह व्यक्ति होता है जिसे मूल अभिकर्ता द्वारा किसी कार्य को पूरा करने के लिए नियुक्त किया जाता है।
22. एजेन्सी की स्थापना के तरीकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
- अनुबंध द्वारा (By Agreement): प्रधान और अभिकर्ता के बीच लिखित या मौखिक समझौते से।
- परिस्थिति द्वारा (By Necessity): जब कोई आपातकालीन स्थिति उत्पन्न हो।
- नियुक्ति द्वारा (By Ratification): प्रधान किसी अवैध कार्य को स्वीकार कर ले।
- न्यायिक आदेश द्वारा (By Law): कानून के तहत नियुक्ति।
23. अभिकरण को परिभाषित कर उसके अवयवों को इंगित कीजिए। क्या एक अवयस्क को अभिकर्ता नियुक्त किया जा सकता है?
उत्तर:
अभिकरण (Agency) वह संबंध होता है जिसमें एक व्यक्ति (अभिकर्ता) किसी अन्य व्यक्ति (प्रधान) की ओर से कार्य करता है।
आवश्यक तत्व:
- प्रधान और अभिकर्ता के बीच सहमति।
- प्रधान का कानूनी अस्तित्व।
- अभिकर्ता द्वारा प्रधान के लिए कार्य करने की मंशा।
क्या अवयस्क को अभिकर्ता नियुक्त किया जा सकता है?
हाँ, लेकिन वह अनुबंध के कानूनी परिणामों के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।
24. प्रत्यापक अभिकर्ता कौन है?
उत्तर: प्रत्यापक अभिकर्ता (Del-Credere Agent) वह अभिकर्ता होता है जो ग्राहक द्वारा भुगतान न करने की स्थिति में स्वयं भुगतान करने की गारंटी देता है।
25. अनुसमर्थन द्वारा अभिकरण का क्या अर्थ है? व्याख्या करें।
उत्तर: यदि कोई व्यक्ति बिना किसी अधिकार के प्रधान की ओर से कार्य करता है और बाद में प्रधान इसे स्वीकार कर लेता है, तो इसे अनुसमर्थन (Ratification) कहते हैं। यह तब प्रभावी होता है जब:
- कार्य प्रधान के लाभ में हो।
- प्रधान कार्य के समय अस्तित्व में हो।
- कार्य कानूनी हो।
26. अभिकरण का पर्यवसान (Termination of Agency)
उत्तर: अभिकरण (Agency) का पर्यवसान निम्नलिखित कारणों से होता है:
- प्रधान या अभिकर्ता की इच्छा से (By Agreement) – जब दोनों पक्ष सहमत होते हैं।
- लक्ष्य की पूर्ति (Completion of Purpose) – जब कार्य पूरा हो जाता है।
- समय समाप्ति (Expiry of Time) – यदि एजेंसी किसी निश्चित समय के लिए थी।
- मृत्यु या दिवालियापन (Death or Insolvency) – प्रधान या अभिकर्ता के दिवालिया या मृत होने पर।
- कानूनी असंभवता (Supervening Impossibility) – यदि एजेंसी अवैध हो जाए।
27. उप-अभिकर्ता किसे कहते हैं? (Who is Sub-Agent?)
उत्तर: उप-अभिकर्ता (Sub-Agent) वह व्यक्ति होता है जिसे मूल अभिकर्ता अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए नियुक्त करता है। वह सीधे प्रधान के प्रति उत्तरदायी नहीं होता, लेकिन अभिकर्ता के प्रति जवाबदेह होता है।
28. अप्रकट स्वामी से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by Undisclosed Principal?)
उत्तर: जब कोई अभिकर्ता प्रधान के नाम का खुलासा किए बिना उसके लिए कार्य करता है, तो इसे अप्रकट स्वामी (Undisclosed Principal) कहा जाता है। इस स्थिति में, तृतीय पक्ष को यह ज्ञात नहीं होता कि वास्तविक स्वामी कौन है।
29. अभिकर्ता के रूप में पत्नी पर संक्षिप्त नोट लिखें। (Write short note on the wife as Agent)
उत्तर: सामान्यतः, पत्नी अपने पति की अभिकर्ता नहीं होती, लेकिन यदि पति-पत्नी एक साथ रहते हैं और पत्नी घरेलू आवश्यकताओं के लिए सामान खरीदती है, तो इसे एक अनुबंध माना जा सकता है और पति को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
30. अभिकर्ता एवं स्वतन्त्र ठेकेदार में अन्तर स्पष्ट करें। (Distinguish between Agent and Independent Contractor)
| आधार | अभिकर्ता (Agent) | स्वतंत्र ठेकेदार (Independent Contractor) |
|———–|——————|——————-|
| नियंत्रण | प्रधान का नियंत्रण रहता है | ठेकेदार अपने अनुसार कार्य करता है |
| उत्तरदायित्व | प्रधान उत्तरदायी होता है | ठेकेदार स्वयं उत्तरदायी होता है |
| संविदात्मक संबंध | प्रधान की ओर से कार्य करता है | स्वयं के नाम से कार्य करता है |
31. भागीदारी से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by Partnership?)
उत्तर: भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 4 के अनुसार, भागीदारी वह संबंध है जिसमें दो या अधिक व्यक्ति किसी व्यवसाय को चलाने और उसमें लाभ बांटने के लिए सहमत होते हैं।
32. भागीदारी के आवश्यक तत्वों को विवेचित कीजिए। (Discuss the essential elements of Partnership.)
उत्तर:
- दो या अधिक व्यक्ति: कम से कम दो व्यक्ति आवश्यक हैं।
- सहमति: सभी भागीदारों के बीच आपसी सहमति होनी चाहिए।
- व्यवसाय का संचालन: कोई कानूनी व्यवसाय होना चाहिए।
- लाभ का साझा करना: सभी भागीदार लाभ में हिस्सेदार होते हैं।
- परस्पर अभिकरण: प्रत्येक भागीदार अन्य भागीदारों का अभिकर्ता होता है।
33. भागीदारों के अधिकारों की चर्चा करें। (Discuss the rights of Partners.)
उत्तर:
- लाभ एवं हानि में समान हिस्सेदारी।
- व्यापार के संचालन में भाग लेने का अधिकार।
- अन्य भागीदारों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार।
- संविदा का परित्याग करने का अधिकार।
34. भागीदारी के विभिन्न प्रकार बतलाइये। (Explain the different kinds of partnership.)
उत्तर:
- सामान्य भागीदारी (General Partnership) – सभी भागीदार समान अधिकार और दायित्व रखते हैं।
- सीमित भागीदारी (Limited Partnership) – इसमें कुछ भागीदार केवल पूंजी निवेश करते हैं और उनके दायित्व सीमित होते हैं।
- निश्चित अवधि की भागीदारी (Partnership for a Fixed Period) – एक निश्चित समय के लिए बनाई गई भागीदारी।
- इच्छाधीन भागीदारी (Partnership at Will) – जब तक भागीदार चाहें, तब तक चलती है।
35. विवक्षित प्राधिकार के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by the principle of implied authority?)
उत्तर: जब कोई भागीदार व्यवसाय के संचालन में ऐसा कार्य करता है जो आमतौर पर उस व्यवसाय में किया जाता है, तो यह माना जाता है कि उसे अन्य भागीदारों की ओर से यह कार्य करने का विवक्षित प्राधिकार (Implied Authority) प्राप्त है।
36. “भागीदारी का निर्माण संविदा द्वारा होता है न कि प्रास्थिति द्वारा।” (Relationship of partnership arises from a contract and not from status. Discuss.)
उत्तर: भागीदारी केवल अनुबंध द्वारा बनती है, यह जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होता। कोई भी व्यक्ति जन्म से भागीदार नहीं बनता, बल्कि उसे अन्य व्यक्तियों के साथ संविदा करनी होती है।
37. ‘फर्म’ से क्या तात्पर्य है? (What do you mean by Firm?)
उत्तर: फर्म वह इकाई होती है जो भागीदारों के समूह द्वारा व्यापार करने के लिए बनाई जाती है। इसका कोई अलग कानूनी अस्तित्व नहीं होता, यह केवल भागीदारों का समूह होती है।
38.
(क) इच्छाधीन भागीदारी (Partnership at Will) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जब किसी भागीदारी के समाप्ति की कोई निश्चित अवधि तय नहीं की जाती और यह भागीदारों की इच्छा पर निर्भर करता है, तो इसे इच्छाधीन भागीदारी कहते हैं।
(ख) निष्क्रिय भागीदार (Sleeping Partner) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: वह भागीदार जो व्यवसाय के दैनिक कार्यों में भाग नहीं लेता, लेकिन लाभ और हानि में हिस्सेदार होता है, उसे निष्क्रिय भागीदार कहते हैं।
39. व्यपदेशन (प्रदर्शन) के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए। (Explain the doctrine of holding out.)
उत्तर: यदि कोई व्यक्ति स्वयं को भागीदार के रूप में प्रस्तुत करता है और तृतीय पक्ष इस पर विश्वास कर लेता है, तो वह कानूनी रूप से उस व्यक्ति के कार्यों के लिए उत्तरदायी होगा, भले ही वह वास्तव में भागीदार न हो।
40. दिवालिया भागीदार से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by Insolvent Partner?)
उत्तर: जब किसी भागीदार की संपत्ति और देनदारियों के बीच ऋण अधिक हो जाता है और वह अपने ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ हो जाता है, तो उसे दिवालिया भागीदार कहा जाता है।
41. भागीदारी एवं संयुक्त हिन्दू परिवार के कारोबार में अन्तर कीजिए।
| आधार | भागीदारी (Partnership) | संयुक्त हिन्दू परिवार (Joint Hindu Family Business) |
|———–|——————|——————-|
| गठन | संविदा द्वारा | जन्म से |
| प्रबंधन | सभी भागीदार | ‘कARTA’ द्वारा |
| उत्तरदायित्व | सभी भागीदार उत्तरदायी होते हैं | केवल कARTA की असीमित जिम्मेदारी होती है |
| सदस्यता | नया सदस्य सहमति से जोड़ा जाता है | परिवार में जन्म लेने से सदस्यता मिलती है |
42. ‘फर्म के कार्य’ को परिभाषित कीजिए। (Define “Act of Firm”)
उत्तर: जब कोई भागीदार साझेदारी व्यवसाय के संचालन में सामान्य व्यापारिक कार्य करता है और यह कार्य साझेदारी फर्म के उद्देश्य के अंतर्गत आता है, तो इसे “फर्म का कार्य” (Act of Firm) कहा जाता है। यह कार्य सभी भागीदारों को बाध्य करता है, जब तक कि अन्यथा प्रकट न किया गया हो।
43. फर्म से बाहर जाने वाले भागीदार के दायित्व। (Duties of an outgoing Partner)
उत्तर:
- पूर्व ऋणों के लिए उत्तरदायित्व: फर्म छोड़ने से पहले के सभी ऋणों के लिए उत्तरदायी रहेगा, जब तक कि नया समझौता न हो।
- गोपनीयता बनाए रखना: फर्म की संवेदनशील जानकारी का दुरुपयोग नहीं कर सकता।
- प्रतिस्पर्धा न करना: यदि कोई अनुबंध न हो, तो वह फर्म के व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा कर सकता है, लेकिन ग्राहक नहीं खींच सकता।
44. एक पंजीकृत फर्म के लाभ। (Advantages of a Registered Firm)
उत्तर:
- न्यायिक सुरक्षा: फर्म कानूनी तौर पर मुकदमा कर सकती है।
- ऋण प्राप्त करने में सुविधा: पंजीकृत फर्म को बैंक और अन्य संस्थानों से ऋण मिलना आसान होता है।
- भागीदारों के अधिकार: भागीदार कानूनी तौर पर अपने अधिकारों को लागू कर सकते हैं।
- फर्म की विश्वसनीयता: ग्राहकों और निवेशकों का विश्वास बढ़ता है।
45. साझेदारी फर्म के पंजीकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। (Discuss the procedure of registration of a Partnership firm)
उत्तर:
- आवेदन पत्र तैयार करना: सभी भागीदारों की जानकारी, फर्म का नाम और व्यवसाय का पता शामिल होता है।
- आवेदन पत्र को रजिस्ट्रार के पास जमा करना: राज्य के संबंधित पंजीयक (Registrar of Firms) के पास आवेदन भेजा जाता है।
- पंजीकरण शुल्क का भुगतान: सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क जमा करना होता है।
- प्रमाण पत्र जारी करना: सत्यापन के बाद पंजीकरण प्रमाण पत्र दिया जाता है।
46. विशिष्ट भागीदारी एवं इच्छाधीन भागीदारी में अंतर। (Differentiate between Particular Partnership and Partnership at Will)
| आधार | विशिष्ट भागीदारी (Particular Partnership) | इच्छाधीन भागीदारी (Partnership at Will) |
|———–|———————————|——————————–|
| उद्देश्य | किसी विशिष्ट कार्य के लिए बनाई जाती है। | अनिश्चितकाल के लिए होती है। |
| समाप्ति | कार्य पूरा होते ही स्वतः समाप्त हो जाती है। | जब तक भागीदार चाहें, तब तक चलती है। |
| संविदा | कार्य विशेष के लिए लिखित या मौखिक अनुबंध होता है। | कोई विशेष अनुबंध आवश्यक नहीं। |
47. अवयस्क का लाभार्थी के रूप में भागीदारी में सम्मिलित होना। (Admission of minor as a beneficiary in a Partnership)
उत्तर:
- भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 के अनुसार, अवयस्क (Minor) पूर्ण भागीदार नहीं बन सकता, लेकिन उसे लाभार्थी भागीदार (Beneficiary Partner) के रूप में शामिल किया जा सकता है।
- वह फर्म के लाभों का हिस्सा प्राप्त कर सकता है लेकिन उसके दायित्व सीमित होते हैं।
- 18 वर्ष की आयु पूरी होने पर वह पूर्ण भागीदार बनने या फर्म छोड़ने का निर्णय ले सकता है।
48. विक्रय की परिभाषा एवं आवश्यक तत्व। (Define sale and give essential elements of sale.)
उत्तर:
परिभाषा: भारतीय माल विक्रय अधिनियम, 1930 के अनुसार, “विक्रय” (Sale) वह प्रक्रिया है जिसमें विक्रेता स्वामित्व के अधिकार को क्रेता को पैसे के बदले स्थायी रूप से हस्तांतरित करता है।
आवश्यक तत्व:
- कम से कम दो पक्षों का होना (Seller & Buyer)
- माल (Goods) का अस्तित्व
- मूल्य का भुगतान (Price Consideration)
- स्वामित्व का हस्तांतरण (Transfer of Ownership)
49. आश्वासन क्या है? (What is Warranty?)
उत्तर: विक्रय अधिनियम, 1930 के अनुसार, आश्वासन (Warranty) एक गौण (Secondary) शर्त होती है जो माल की गुणवत्ता और प्रदर्शन से संबंधित होती है, लेकिन यदि यह शर्त पूरी न हो तो क्रेता केवल हर्जाना मांग सकता है, विक्रय को रद्द नहीं कर सकता।
50.
(क) शर्त एवं वारण्टी में अंतर। (Distinguish between Condition and Warranty.)
| आधार | शर्त (Condition) | वारंटी (Warranty) |
|———–|—————-|—————-|
| परिभाषा | यह अनुबंध की मूलभूत शर्त होती है। | यह एक गौण शर्त होती है। |
| उल्लंघन का प्रभाव | विक्रय को रद्द किया जा सकता है। | केवल हर्जाना (Damages) प्राप्त किया जा सकता है। |
| उदाहरण | “कार की इंजन क्षमता 2000cc होनी चाहिए।” | “कार की पेंटिंग उत्तम गुणवत्ता की होनी चाहिए।” |
(ख) हक के अंतरण का अर्थ। (What is meant by Transfer of Title?)
उत्तर: जब विक्रेता माल का स्वामित्व (Ownership) क्रेता को वैध तरीके से हस्तांतरित करता है, तो इसे “हक का अंतरण” कहा जाता है।
माल विक्रय अधिनियम के प्रावधान:
- विक्रेता को वैध स्वामी होना चाहिए।
- स्वामित्व का स्पष्ट और बिना शर्त हस्तांतरण होना चाहिए।
51. क्रेता सावधान के नियमों की व्याख्या कीजिए। (Describe rules of Caveat Emptor.)
उत्तर: “Caveat Emptor” का अर्थ है “क्रेता सावधान रहे।” इसका तात्पर्य है कि क्रेता को माल खरीदने से पहले उसकी गुणवत्ता और उपयुक्तता की जांच करनी चाहिए, क्योंकि बाद में वह विक्रेता पर दोष नहीं डाल सकता।
52. ‘क्रेता सावधान’ नियम के अपवाद। (Explain any one exception to the rule of ‘Caveat Emptor.’)
उत्तर: यदि विक्रेता जानबूझकर माल में छिपी हुई दोषपूर्ण वस्तु बेचता है और क्रेता को इसके बारे में जानकारी नहीं देता, तो यह “क्रेता सावधान” नियम का अपवाद होगा।
53. ‘Nemo dat quod non habet’ का सिद्धांत। (What is doctrine of “Nemo dat quod non habet”?)
उत्तर: इसका अर्थ है “कोई भी व्यक्ति उससे अधिक अधिकार नहीं दे सकता जितना उसके पास स्वयं है।” यानी, यदि कोई व्यक्ति कानूनी मालिक नहीं है, तो वह किसी अन्य को स्वामित्व नहीं दे सकता।
54. अवक्रय करार से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by Hire Purchase Agreement?)
उत्तर: यह एक समझौता है जिसमें क्रेता किस्तों में भुगतान करता है और अंतिम किस्त के बाद ही स्वामित्व प्राप्त करता है।
55. असंदत्त विक्रेता के अधिकार। (Discuss the rights of an unpaid seller.)
उत्तर:
- माल को रोकने का अधिकार (Right of Lien)
- माल वापस लेने का अधिकार (Right of Stoppage in Transit)
- पुनः बिक्री का अधिकार (Right of Resale)
56. विक्रय एवं विक्रय के करार में अंतर। (Distinguish between Sale and Agreement to Sale.)
| आधार | विक्रय (Sale) | विक्रय का करार (Agreement to Sale) |
|———–|—————-|—————-|
| स्वामित्व का हस्तांतरण | तुरंत हो जाता है | भविष्य में होगा |
| कानूनी अधिकार | क्रेता पूर्ण मालिक बन जाता है | क्रेता को केवल भविष्य का अधिकार मिलता है |
57. नमूने द्वारा विक्रय को वर्णित कीजिए। (Explain the sale by sample.)
उत्तर: नमूने द्वारा विक्रय (Sale by Sample) भारतीय माल विक्रय अधिनियम, 1930 के अंतर्गत आता है, जिसमें विक्रेता क्रेता को नमूना दिखाकर विक्रय करता है। विक्रय की शर्त यह होती है कि संपूर्ण माल उसी नमूने के अनुरूप होगा। यदि माल नमूने के अनुरूप नहीं है, तो क्रेता विक्रय को अस्वीकार कर सकता है।
58. माल से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by Goods?)
उत्तर: भारतीय माल विक्रय अधिनियम, 1930 के अनुसार, “माल” (Goods) में प्रत्येक प्रकार की मूर्त संपत्ति शामिल है, जो स्थावर संपत्ति (जैसे भूमि) और अमूर्त संपत्ति (जैसे बौद्धिक संपदा) के अतिरिक्त होती है। इसमें कृषि उत्पाद, मशीनरी, कच्चा माल, उपभोक्ता वस्तुएं आदि शामिल हैं।
59. “सम्पत्ति के साथ जोखिम प्रथमदृष्टया हस्तान्तरित हो जाता है” व्याख्या कीजिए। (“Risk prima facie passes with the Property.” Discuss.)
उत्तर: इसका अर्थ है कि जब माल का स्वामित्व (Property) क्रेता को हस्तांतरित हो जाता है, तो उस माल से संबंधित जोखिम (Risk) भी क्रेता पर चला जाता है। अर्थात, यदि माल के स्वामित्व हस्तांतरण के बाद कोई क्षति होती है, तो उसका दायित्व क्रेता का होगा, न कि विक्रेता का।
60. ‘अ’ तथा ‘ब’ ने भागीदारी में एक टैक्सी कार खरीदी। एक साल बाद ‘अ’ ने ‘ब’ को बताये बगैर टैक्सी बेच दी। ‘ब’ अपना भाग प्राप्त करने के लिए ‘अ’ पर वाद लाया। ‘अ’ ने अपने बचाव में यह कहा कि फर्म रजिस्टर्ड नहीं करवायी गयी थी। क्या ‘ब’ अपना भाग प्राप्त कर सकेगा, कारण सहित बताइए।
उत्तर: भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 के अनुसार, यदि फर्म पंजीकृत नहीं है तो फर्म या उसके भागीदार किसी तृतीय पक्ष के खिलाफ दावा नहीं कर सकते। लेकिन, भागीदारों के आपसी विवाद के मामले में पंजीकरण आवश्यक नहीं होता। अतः ‘ब’ अपने हिस्से के लिए ‘अ’ पर वाद ला सकता है और उसे अपना भाग प्राप्त करने का अधिकार है, भले ही फर्म रजिस्टर्ड न हो।
61. ‘ब’ को पहली मार्च को 5,000 रुपये उधार देने की संविदा ‘स’ करता है। ‘अ’ उस ऋण के प्रतिसंदाय की प्रत्याभूति करता है। ‘स’ 5,000 रुपये ‘ब’ को पहली जनवरी को दे देता है। क्या ‘अ’ अपने दायित्व से उन्मोचित हो गया? यदि हाँ तो क्यों? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: प्रत्याभूति (Guarantee) के अनुसार, ‘अ’ ने केवल पहली मार्च को दिए गए ऋण के लिए गारंटी दी थी। चूंकि ‘स’ ने ऋण पहली जनवरी को दे दिया, यह अनुबंध की शर्त का उल्लंघन है। अतः ‘अ’ अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है क्योंकि ऋण अनुबंधित समय पर नहीं दिया गया।
62. ‘अ’ ने ‘ब’ नामक दुकानदार से पैन्ट के नीचे पहने जाने वाला एक ऊनी गर्म पायजामा क्रय किया। पायजामा पहनने के दो दिन बाद ‘अ’ डर्मेटाइटिस नामक बीमारी से ग्रस्त हो गया। पायजामा बनाये जाने की प्रक्रिया के दौरान प्रयुक्त रसायन को ठीक से निकाला नहीं गया जिसके परिणामस्वरूप ‘अ’ डर्मेटाइटिस से ग्रस्त हो गया। कारण सहित बताइए कि क्या ‘ब’ ने क्रेता के विशिष्ट प्रयोजन के लिए माल के उपयुक्त होने की शर्त को भंग किया।
उत्तर:
शर्त का भंग (Breach of Condition): भारतीय माल विक्रय अधिनियम, 1930 के अनुसार, जब क्रेता विक्रेता को विशिष्ट प्रयोजन बताता है और विक्रेता उस प्रयोजन के लिए उपयुक्त माल प्रदान करने का वादा करता है, तो विक्रेता की यह शर्त होती है कि माल उस प्रयोजन के लिए उपयुक्त होगा।
चूंकि ‘अ’ ने पायजामा पहनने के लिए खरीदा था और पायजामा के कारण ‘अ’ को डर्मेटाइटिस हो गया, इसका तात्पर्य है कि ‘ब’ ने क्रेता के विशिष्ट प्रयोजन के लिए माल के उपयुक्त होने की शर्त का भंग किया है। अतः ‘अ’ विक्रेता ‘ब’ से हर्जाना (Damages) मांग सकता है।
63. ‘प’ ने ‘ड’ से दूध खरीदा। दूध टायफायट कीटाणुओं से युक्त था। ‘प’ की पत्नी ने जब दूध का सेवन किया तो वह संक्रमित हो गई जिसके परिणामस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई। निर्णीत कीजिए कि क्या ‘प’, ‘ड’ से कोई भी प्रतिकर पा सकता है?
उत्तर:
यह मामला “बिक्री की शर्तों (Condition of Sale)” और “क्रेता के स्वास्थ्य की सुरक्षा” से संबंधित है। भारतीय माल विक्रय अधिनियम, 1930 के तहत, यदि कोई विक्रेता उपभोक्ता को ऐसे सामान बेचता है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और विक्रेता ने इसे उपयुक्त तरीके से जांचे बिना बेचा है, तो वह इसके लिए उत्तरदायी होगा।
- दूध में टायफायड के कीटाणु होना गुणवत्ता की शर्त (Condition as to Quality) का उल्लंघन है।
- यदि विक्रेता ‘ड’ को दूध की अशुद्धता की जानकारी थी, तो यह धोखाधड़ी (Fraud) के अंतर्गत आएगा।
- यदि विक्रेता ने दूध की गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं दी थी, लेकिन यह स्वाभाविक रूप से उपभोग के लिए सुरक्षित माना जाता है, तब भी ‘ड’ उत्तरदायी होगा, क्योंकि यह निहित शर्त (Implied Condition) का उल्लंघन है।
निष्कर्ष:
‘प’ ड’ से प्रतिकर (Damages) प्राप्त कर सकता है क्योंकि विक्रेता ने खराब दूध बेचा जिससे जान को खतरा हुआ। यह विक्रेता की लापरवाही और अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन है।
64. ‘अ’ अपनी साइकिल बिना ताला बंद किए साइकिल स्टैंड में रखता है। साइकिल गायब हो जाती है। क्या ठेकेदार उत्तरदायी है?
उत्तर:
यह मामला उपनिधान (Bailment) और ठेकेदार (Bailee) के कर्तव्य से संबंधित है। भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के अनुसार:
- यदि साइकिल स्टैंड का ठेकेदार एक शुल्क (Fee) लेकर सेवा प्रदान करता है, तो यह एक बेलमेंट (Bailment) का अनुबंध माना जाएगा और ठेकेदार (Bailee) को वस्तु की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।
- यदि ‘अ’ ने साइकिल को स्टैंड में रखने के बदले शुल्क नहीं दिया और यह एक सार्वजनिक स्थान था, तो यह बेलमेंट का अनुबंध नहीं होगा, और ठेकेदार उत्तरदायी नहीं होगा।
- यदि साइकिल बिना ताले के थी, तो यह आंशिक रूप से ‘अ’ की लापरवाही मानी जाएगी, लेकिन यदि ठेकेदार ने सुरक्षा का आश्वासन दिया था, तो वह उत्तरदायी रहेगा।
निष्कर्ष:
- यदि साइकिल स्टैंड सशुल्क था, तो ठेकेदार उत्तरदायी होगा।
- यदि स्टैंड निशुल्क था, तो ठेकेदार उत्तरदायी नहीं होगा।
- यदि ‘अ’ ने लापरवाही (बिना ताला लगाए) की, तो ठेकेदार की जिम्मेदारी कम हो सकती है।