विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997): कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के दिशा-निर्देश
भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को समानता, गरिमा और स्वतंत्रता का अधिकार देता है। लेकिन लंबे समय तक भारतीय समाज में महिलाओं को कार्यस्थल पर सुरक्षित वातावरण नहीं मिल पाया। यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) की समस्या महिलाओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता, गरिमा और समान अवसर के अधिकार पर सीधा प्रहार करती थी। इस पृष्ठभूमि में विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) का ऐतिहासिक फैसला आया, जिसने भारतीय न्यायिक इतिहास में महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की दिशा में मील का पत्थर स्थापित किया।
इस केस ने न केवल कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए कानूनी सुरक्षा की नींव रखी, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे दिशा-निर्देश दिए जो आगे चलकर यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2013 (POSH Act) का आधार बने।
1. मामले की पृष्ठभूमि
1992 में राजस्थान के भीलवाड़ा ज़िले में भंवरी देवी नामक सामाजिक कार्यकर्ता (साथिन) कार्यरत थीं। वे महिला एवं बाल विकास कार्यक्रमों से जुड़ी थीं और बाल विवाह रोकने का प्रयास करती थीं। एक बाल विवाह रोकने के कारण गांव के कुछ प्रभावशाली लोगों ने उनका विरोध किया और उन पर सामूहिक बलात्कार किया।
यह घटना समाज में गहरे आक्रोश का कारण बनी। भंवरी देवी को न्याय नहीं मिला, लेकिन इस घटना ने महिला संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को एकजुट कर दिया। विशाखा नामक NGO समेत कई महिला संगठनों ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की। उन्होंने तर्क दिया कि कार्यस्थल और सामाजिक जीवन में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित कानूनी प्रावधानों की कमी है।
2. मुख्य प्रश्न
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के सामने निम्नलिखित प्रमुख प्रश्न थे:
- क्या कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए पर्याप्त कानून मौजूद है?
- क्या यौन उत्पीड़न महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है?
- न्यायालय इस समस्या से निपटने के लिए किस प्रकार के उपाय और दिशा-निर्देश जारी कर सकता है?
3. सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (1997)
13 अगस्त 1997 को सर्वोच्च न्यायालय ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
- न्यायालय ने माना कि यौन उत्पीड़न अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (लैंगिक भेदभाव पर रोक), अनुच्छेद 19(1)(g) (किसी भी पेशे को चुनने की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है।
- अदालत ने यह स्पष्ट किया कि जब तक संसद इस विषय पर कानून नहीं बनाती, तब तक न्यायालय द्वारा दिए गए विशाखा दिशा-निर्देश लागू होंगे।
- इस प्रकार न्यायपालिका ने पहली बार कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से जोड़ा।
4. विशाखा दिशा-निर्देश (Vishaka Guidelines)
सर्वोच्च न्यायालय ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित दिशा-निर्देश दिए:
- यौन उत्पीड़न की परिभाषा –
किसी भी प्रकार का शारीरिक संपर्क, अवांछित यौन टिप्पणी, अश्लील इशारे, अश्लील चित्र या पत्र दिखाना, यौन लाभ की मांग करना आदि यौन उत्पीड़न के अंतर्गत आएंगे। - कार्यस्थल पर जिम्मेदारी –
प्रत्येक नियोक्ता/प्रबंधन की जिम्मेदारी होगी कि वह कार्यस्थल पर महिलाओं को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराए। - निवारक उपाय (Preventive Steps) –
- नियोक्ता कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम के लिए नीतियां बनाए।
- सभी कर्मचारियों को इस विषय पर जागरूक किया जाए।
- शिकायत निवारण तंत्र (Complaint Mechanism) –
- हर संस्था में शिकायत समिति (Complaints Committee) गठित की जाए।
- समिति में अधिकांश सदस्य महिलाएँ हों और एक सदस्य किसी NGO से लिया जाए।
- समिति स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करे।
- कार्रवाई और दंड –
यदि कोई कर्मचारी दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी। - जागरूकता अभियान –
नियोक्ता यह सुनिश्चित करें कि कर्मचारियों को यौन उत्पीड़न से संबंधित नीतियों और अधिकारों की जानकारी हो।
5. निर्णय का महत्व
(क) महिलाओं की गरिमा की सुरक्षा
न्यायालय ने माना कि कार्यस्थल पर महिलाओं की गरिमा और सम्मान की रक्षा करना राज्य और समाज का दायित्व है।
(ख) कानूनी शून्य की पूर्ति
उस समय तक कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकने के लिए कोई विशेष कानून नहीं था। विशाखा निर्णय ने इस कानूनी शून्य को भरा।
(ग) मौलिक अधिकारों की रक्षा
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यौन उत्पीड़न केवल आपराधिक अपराध ही नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के मौलिक अधिकारों का भी हनन है।
6. आलोचना
- कुछ विद्वानों का मानना था कि न्यायपालिका ने संसद का काम किया और नीति-निर्धारण की सीमा को पार किया।
- दिशा-निर्देशों के लागू होने के बावजूद कई संस्थाओं ने उन्हें गंभीरता से नहीं अपनाया।
7. आगे का विकास
- इस फैसले के बाद कई वर्षों तक “विशाखा दिशा-निर्देश” ही कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा का आधार रहे।
- अंततः संसद ने यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2013 (POSH Act) पारित किया, जिसमें विशाखा दिशा-निर्देशों को ही कानूनी रूप दिया गया।
- अब यह अधिनियम प्रत्येक सरकारी, गैर-सरकारी, निजी और सार्वजनिक कार्यस्थल पर लागू है।
8. आज के संदर्भ में प्रासंगिकता
आज भी यह फैसला महिलाओं की सुरक्षा का मूल आधार है। कार्यस्थलों पर Internal Complaints Committee (ICC) का गठन, शिकायत निवारण प्रक्रिया और दंडात्मक प्रावधान इसी के कारण संभव हुए हैं।
डिजिटल युग में ऑनलाइन कार्यस्थलों और वर्चुअल प्लेटफार्मों पर भी यौन उत्पीड़न की समस्या सामने आ रही है, और POSH अधिनियम को इसके लिए भी लागू किया जा रहा है।
9. निष्कर्ष
विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) का फैसला भारतीय न्यायपालिका की प्रगतिशील सोच और न्यायिक सक्रियता का उदाहरण है। इसने यह सुनिश्चित किया कि कार्यस्थल महिलाओं के लिए सुरक्षित, सम्मानजनक और समान अवसर प्रदान करने वाले हों।
इस निर्णय ने महिलाओं के सम्मानजनक जीवन और समान अवसर के अधिकार को एक नई मजबूती दी और भारतीय समाज को लैंगिक समानता की ओर अग्रसर किया। यह फैसला हमेशा भारतीय न्यायपालिका के सुनहरे अध्याय के रूप में याद किया जाएगा।
विशाखा दिशा-निर्देश (Vishaka Guidelines) – संक्षिप्त सारांश
| क्रमांक | दिशा-निर्देश | संक्षिप्त विवरण |
|---|---|---|
| 1. | यौन उत्पीड़न की परिभाषा | शारीरिक संपर्क, अवांछित यौन टिप्पणी, अश्लील इशारे, यौन लाभ की मांग, अश्लील सामग्री दिखाना आदि उत्पीड़न माने जाएंगे। |
| 2. | कार्यस्थल की जिम्मेदारी | नियोक्ता/प्रबंधन पर यह दायित्व है कि वह कार्यस्थल को सुरक्षित बनाए। |
| 3. | निवारक उपाय (Preventive Steps) | नीतियां बनाना, कर्मचारियों को जागरूक करना और सुरक्षित माहौल तैयार करना। |
| 4. | शिकायत निवारण तंत्र (Complaint Mechanism) | प्रत्येक संस्था में शिकायत समिति (ICC) का गठन, जिसमें अधिकांश सदस्य महिलाएँ हों और एक सदस्य NGO से हो। |
| 5. | निष्पक्ष जांच और कार्रवाई | शिकायत समिति को निष्पक्ष रूप से जांच करनी होगी और दोषी पाए जाने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी। |
| 6. | जागरूकता अभियान | सभी कर्मचारियों को यौन उत्पीड़न के खिलाफ नीतियों और अधिकारों की जानकारी दी जानी चाहिए। |
| 7. | नियोक्ता की जवाबदेही | यदि नियोक्ता उचित कदम नहीं उठाता है तो वह भी जिम्मेदार माना जाएगा। |