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“विवाह से असंबद्ध मांग को दहेज नहीं माना जा सकता – धारा 304B के अंतर्गत दोषसिद्धि असंवैधानिक”: सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया

“विवाह से असंबद्ध मांग को दहेज नहीं माना जा सकता – धारा 304B के अंतर्गत दोषसिद्धि असंवैधानिक”: सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया

प्रस्तावना

       भारतीय दंड कानून में दहेज मृत्यु (Dowry Death) एक अत्यंत गंभीर और संवेदनशील अपराध है, जिसे भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 304B के अंतर्गत दंडनीय बनाया गया है। इस प्रावधान का उद्देश्य विवाह के बाद महिलाओं के साथ दहेज के कारण होने वाली क्रूरता, उत्पीड़न और मृत्यु को रोकना है।

       हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने एक महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रभाव डालने वाला निर्णय देते हुए यह स्पष्ट किया है कि—

“ऐसी कोई भी मांग जो विवाह से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी न हो, उसे ‘दहेज’ नहीं माना जा सकता, और ऐसी मांग के आधार पर धारा 304B IPC के तहत दोषसिद्धि नहीं की जा सकती।”

       यह निर्णय न केवल दहेज कानून की व्याख्या को स्पष्ट करता है, बल्कि निचली अदालतों को यह भी संदेश देता है कि दहेज मृत्यु के मामलों में कानून का यांत्रिक प्रयोग नहीं होना चाहिए


धारा 304B IPC : विधिक पृष्ठभूमि

        धारा 304B के अंतर्गत किसी महिला की मृत्यु को दहेज मृत्यु घोषित करने के लिए निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक है—

  1. महिला की मृत्यु जलने, शारीरिक चोट या असामान्य परिस्थितियों में हुई हो
  2. मृत्यु विवाह के सात वर्ष के भीतर हुई हो
  3. महिला को मृत्यु से कुछ समय पूर्व
  4. उसके पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा
  5. दहेज की मांग को लेकर
  6. क्रूरता या उत्पीड़न किया गया हो

इन सभी शर्तों का एक साथ पूरा होना अनिवार्य है।


मामले की पृष्ठभूमि (संक्षेप में)

विवेच्य मामले में अभियोजन पक्ष का आरोप था कि—

  • मृतका के पति एवं ससुराल पक्ष ने उससे कुछ आर्थिक मांगें की थीं
  • बाद में महिला की असामान्य परिस्थितियों में मृत्यु हो गई
  • निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने इसे दहेज मृत्यु मानते हुए दोषसिद्धि कर दी

हालाँकि, बचाव पक्ष का तर्क था कि—

  • जिन मांगों का उल्लेख किया गया है, वे विवाह के समय या विवाह के कारण नहीं थीं
  • वे मांगें व्यवसाय, व्यक्तिगत लेन-देन या घरेलू खर्चों से संबंधित थीं
  • उन्हें दहेज नहीं कहा जा सकता

सुप्रीम कोर्ट का प्रमुख विधिक प्रश्न

क्या ऐसी मांग, जो विवाह से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी न हो, ‘दहेज’ की परिभाषा में आएगी?


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा—

“दहेज वह मांग है जो विवाह के समय, विवाह से पूर्व या विवाह के परिणामस्वरूप की जाती है। विवाह से असंबद्ध कोई भी मांग, चाहे वह कितनी भी अनुचित क्यों न हो, धारा 304B के अंतर्गत दहेज नहीं कही जा सकती।”

महत्वपूर्ण अवलोकन

  1. दहेज और अन्य मांगों में अंतर
    • हर आर्थिक मांग = दहेज नहीं
    • दहेज का सीधा संबंध विवाह से होना चाहिए
  2. धारा 304B एक दंडात्मक प्रावधान है
    • इसका कठोर और सावधानीपूर्वक प्रयोग होना चाहिए
    • केवल सहानुभूति या अनुमान के आधार पर दोषसिद्धि नहीं की जा सकती
  3. “Soon before death” की व्याख्या
    • उत्पीड़न और मृत्यु के बीच स्पष्ट, जीवंत और निकट संबंध होना चाहिए
  4. धारा 113B, साक्ष्य अधिनियम
    • अनुमान तभी लगाया जा सकता है जब
      • दहेज की मांग सिद्ध हो
      • और वह मांग विवाह से जुड़ी हो

दहेज की वैधानिक परिभाषा

सुप्रीम कोर्ट ने पुनः स्मरण कराया कि दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 2 के अनुसार—

“दहेज” का अर्थ है कोई भी संपत्ति या मूल्यवान वस्तु जो

  • विवाह के समय
  • विवाह से पहले
  • या विवाह के बाद
    विवाह के प्रतिफल के रूप में दी जाए या मांगी जाए।

इस परिभाषा से स्पष्ट है कि विवाह से संबंध अनिवार्य तत्व है


न्यायालय की चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों को आगाह करते हुए कहा—

  • दहेज कानूनों का दुरुपयोग भी न्याय की अवधारणा को कमजोर करता है
  • हर वैवाहिक विवाद को दहेज मृत्यु का रंग देना कानून की मंशा के विपरीत है
  • अदालतों को भावनाओं से नहीं, साक्ष्यों से निर्णय करना चाहिए

पूर्ववर्ती निर्णयों का संदर्भ

न्यायालय ने अपने निर्णय में पूर्व के कई मामलों का उल्लेख करते हुए कहा कि—

  • केवल सामान्य आरोप
  • अस्पष्ट मांगें
  • या विवाह से असंबद्ध आर्थिक विवाद

धारा 304B के लिए पर्याप्त नहीं हैं।


निर्णय का प्रभाव

1. अभियोजन पर प्रभाव

  • अब अभियोजन को यह स्पष्ट रूप से सिद्ध करना होगा कि
    • मांग दहेज थी
    • और वह विवाह से जुड़ी थी

2. निचली अदालतों के लिए मार्गदर्शन

  • यांत्रिक ढंग से दोषसिद्धि से बचना होगा
  • हर मामले में तथ्यों का सूक्ष्म विश्लेषण आवश्यक

3. समाज पर प्रभाव

  • वास्तविक पीड़ित महिलाओं को न्याय मिलेगा
  • साथ ही झूठे या बढ़ा-चढ़ाकर लगाए गए मामलों पर अंकुश लगेगा

आलोचनात्मक दृष्टि

हालाँकि यह निर्णय विधिक दृष्टि से संतुलित है, परंतु—

  • यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि
    • दहेज की मांग कई बार छुपे हुए रूपों में होती है
  • इसलिए अदालतों को अत्यधिक संकीर्ण दृष्टिकोण भी नहीं अपनाना चाहिए

निष्कर्ष

       सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय दहेज मृत्यु कानून की स्पष्ट, न्यायसंगत और संतुलित व्याख्या प्रस्तुत करता है।

दहेज कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए हैं, न कि निर्दोषों को दंडित करने के लिए।

यह फैसला एक महत्वपूर्ण न्यायिक संदेश देता है कि—

  • हर मांग दहेज नहीं है
  • हर असामान्य मृत्यु दहेज मृत्यु नहीं है
  • और न्याय तभी होगा जब कानून का प्रयोग विवेक और प्रमाण के साथ किया जाए