विवाह में प्राप्त स्वर्ण आभूषण और नकदी स्त्रीधन हैं: केरल हाईकोर्ट ने महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को पुनः प्रतिष्ठित किया

शीर्षक: विवाह में प्राप्त स्वर्ण आभूषण और नकदी स्त्रीधन हैं: केरल हाईकोर्ट ने महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को पुनः प्रतिष्ठित किया


परिचय:

केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह दोहराया कि विवाह के समय वधू को उपहार स्वरूप दिए गए स्वर्ण आभूषण और नकद राशि ‘स्त्रीधन’ (Sreedhan) माने जाते हैं, जो महिला की निजी और विशिष्ट संपत्ति (exclusive property) होती है। यह निर्णय न केवल भारतीय पारिवारिक और वैवाहिक व्यवस्था में महिलाओं के अधिकारों को स्पष्ट करता है, बल्कि एक महिला की संपत्ति पर किसी भी अन्य व्यक्ति के स्वामित्व के दावे को अवैध ठहराता है।


स्त्रीधन की कानूनी अवधारणा:

  • ‘स्त्रीधन’ एक प्राचीन हिंदू विधिक संकल्पना है, जो विवाह के समय महिला को दिए गए उपहारों और संपत्तियों को उसकी व्यक्तिगत संपत्ति के रूप में मान्यता देता है।
  • हिंदू विवाह अधिनियम, दहेज निषेध अधिनियम (Dowry Prohibition Act, 1961), और भारतीय दंड संहिता की धारा 406 के अंतर्गत, यदि कोई व्यक्ति स्त्रीधन को वापस करने से इनकार करता है, तो यह आपराधिक विश्वासभंग (criminal breach of trust) माना जाता है।

मामले की पृष्ठभूमि:

  • इस प्रकरण में एक महिला ने दावा किया कि विवाह के समय उसे जो सोने के आभूषण और नकद धनराशि मिली थी, वह ससुराल पक्ष द्वारा अपने पास रख लिए गए और बाद में वापस करने से इनकार कर दिया गया।
  • निचली अदालत में यह विवाद उत्पन्न हुआ कि क्या वह संपत्ति स्त्रीधन के रूप में मानी जा सकती है और क्या पति या ससुराल पक्ष उसे लौटाने के लिए बाध्य हैं।
  • मामला केरल हाईकोर्ट पहुंचा जहाँ इस पर स्पष्ट निर्णय दिया गया।

केरल उच्च न्यायालय का निर्णय:

  1. स्त्रीधन की परिभाषा और अधिकार:
    • न्यायालय ने कहा कि विवाह के समय दिए गए सोने के आभूषण, नकद, उपहार आदि महिला के लिए ‘स्त्रीधन’ हैं और वह इन पर पूर्ण स्वामित्व रखती है।
    • यह संपत्ति केवल महिला की होती है, न तो पति, न ससुराल, और न ही कोई अन्य व्यक्ति उस पर स्वामित्व का दावा कर सकता है।
  2. स्त्रीधन की वापसी का दायित्व:
    • यदि स्त्रीधन महिला से जबरन छीन लिया गया हो, या उसे वापस करने से मना किया गया हो, तो संबंधित व्यक्ति पर आपराधिक विश्वासभंग के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
  3. महिला के अधिकारों की रक्षा:
    • कोर्ट ने यह भी कहा कि स्त्रीधन की रक्षा केवल नैतिक दायित्व नहीं, बल्कि एक कानूनी बाध्यता भी है। महिला को उसका स्त्रीधन वापस मिलना संवैधानिक और कानूनी अधिकार है।
  4. न्यायालय की चेतावनी:
    • न्यायालय ने यह भी चेतावनी दी कि यदि कोई पति या उसके रिश्तेदार विवाह के समय प्राप्त स्त्रीधन को अपनी संपत्ति मानकर उपयोग करते हैं, तो यह स्पष्ट रूप से अपराध की श्रेणी में आता है।

महत्व और प्रभाव:

  • यह निर्णय भारत में महिलाओं के संपत्ति अधिकारों की रक्षा और जागरूकता को प्रोत्साहित करता है।
  • यह उस आम धारणा को खंडित करता है कि विवाह के बाद महिला की संपत्ति पर ससुराल का नियंत्रण हो सकता है।
  • यह निर्णय विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए कानूनी समर्थन और सुरक्षा प्रदान करता है जो विवाहोपरांत उत्पीड़न का शिकार होती हैं।

निष्कर्ष:

केरल हाईकोर्ट का यह ऐतिहासिक निर्णय महिलाओं के स्त्रीधन पर स्वामित्व को न केवल स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी स्थापित करता है कि विवाह का अर्थ यह नहीं कि महिला अपनी संपत्ति का अधिकार खो दे। यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका की स्त्री-सशक्तिकरण के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

महिलाओं को चाहिए कि वे अपने स्त्रीधन से जुड़े अधिकारों को जानें, उसका रिकॉर्ड रखें, और यदि आवश्यकता हो तो न्यायालय से सहायता लेने में संकोच न करें।