विवाह के एक साल के भीतर भी संभव है तलाक: हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय
एक ऐतिहासिक निर्णय में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई दम्पति असाधारण कठिनाइयों या उत्पीड़न का सामना कर रहा हो, तो वे हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 14 के सामान्य प्रतिबंध के बावजूद विवाह के एक वर्ष के भीतर भी तलाक की अर्जी दाखिल कर सकते हैं।
प्रकरण का विवरण:
यह मामला अम्बेडकर नगर निवासी एक पति द्वारा दाखिल अपील से संबंधित है। अपीलकर्ता का विवाह 3 सितम्बर 2024 को हुआ था। विवाह के कुछ ही समय बाद पति-पत्नी के बीच गंभीर मतभेद और विवाद उत्पन्न हो गए, जिसके कारण दोनों ने आपसी सहमति से विवाह समाप्त करने का निर्णय लिया।
इसके अनुरूप दोनों ने परिवार न्यायालय में तलाक की अर्जी दाखिल की। किन्तु, न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 14 का हवाला देते हुए याचिका यह कहकर खारिज कर दी कि विवाह को एक वर्ष पूरा नहीं हुआ है, अतः तलाक याचिका विचारणीय नहीं है।
हाईकोर्ट की टिप्पणी:
पति द्वारा इस आदेश के विरुद्ध हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में अपील की गई। न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की खंडपीठ ने यह कहते हुए अपील स्वीकार की कि:
“हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 14 में यह प्रावधान अवश्य है कि विवाह के एक वर्ष के भीतर तलाक की याचिका दाखिल नहीं की जा सकती, परंतु यदि याचिकाकर्ता यह सिद्ध कर दे कि उसे असाधारण कठिनाइयों या अत्याचार का सामना करना पड़ रहा है, तो न्यायालय धारा 14 के तहत याचिका पर विचार कर सकता है।”
खंडपीठ ने यह भी जोड़ा कि तलाक की अर्जी आपसी सहमति से दाखिल की गई थी, और दोनों पक्षों ने विवाह जारी रखने की कोई संभावना न होने की बात स्पष्ट रूप से कही थी।
विधिक महत्व:
इस निर्णय का कानून जगत में विशेष महत्व है, क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि जहां कानून ने कुछ समयसीमाएं निर्धारित की हैं, वहीं असाधारण परिस्थितियों में न्यायालय के पास विवेकाधिकार भी है, ताकि पीड़ित व्यक्ति को राहत मिल सके।
निष्कर्ष:
यह निर्णय उन दम्पतियों के लिए मार्ग प्रशस्त करता है जो विवाह के बाद तत्काल उत्पीड़न, हिंसा या मानसिक तनाव जैसी विकट परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं और जिनके लिए एक वर्ष तक प्रतीक्षा करना न केवल अव्यवहारिक बल्कि मानसिक पीड़ा को बढ़ाने वाला हो सकता है।