विवाहित महिला के शारीरिक स्वायत्तता का संरक्षण: धारा 377 आईपीसी के अंतर्गत अप्राकृतिक यौन संबंध पर न्यायिक दृष्टिकोण

शीर्षक: विवाहित महिला के शारीरिक स्वायत्तता का संरक्षण: धारा 377 आईपीसी के अंतर्गत अप्राकृतिक यौन संबंध पर न्यायिक दृष्टिकोण

प्रस्तावना:

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 एक समय पर समलैंगिक संबंधों और अप्राकृतिक यौन कृत्यों को दंडनीय अपराध मानती थी। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय Navtej Singh Johar v. Union of India (2018) में समलैंगिक संबंधों को वैध घोषित किया गया, लेकिन धारा 377 अब भी बलात्कृत अप्राकृतिक यौन संबंधों के मामलों में लागू होती है, विशेषतः जब ये सहमति के बिना किए जाएँ। यह स्थिति तब और अधिक संवेदनशील हो जाती है जब ऐसा अपराध पति द्वारा पत्नी के साथ किया जाए।

विवाहित महिला की सहमति और शारीरिक स्वायत्तता:

भारतीय न्यायपालिका ने यह स्पष्ट किया है कि विवाह, किसी महिला की शारीरिक स्वायत्तता और सहमति के अधिकार को समाप्त नहीं करता। चाहे स्त्री विवाहित हो या नहीं, उसकी सहमति के बिना कोई भी यौन कृत्य, चाहे वह प्राकृतिक हो या अप्राकृतिक, कानूनन अपराध माना जाएगा। यह विचार हाल की न्यायिक व्याख्याओं में स्पष्ट हुआ है, जहाँ पति द्वारा पत्नी के साथ बिना सहमति के अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए जाने को धारा 377 के तहत दंडनीय ठहराया गया है।

धारा 375 और वैवाहिक बलात्कार अपवाद:

धारा 375 आईपीसी, जो बलात्कार की परिभाषा प्रदान करती है, उसमें ‘वैवाहिक बलात्कार’ को अपवाद स्वरूप रखा गया है, अर्थात् पति द्वारा 18 वर्ष से अधिक आयु की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने को बलात्कार नहीं माना जाता, भले ही वह बिना सहमति के हो। यह अपवाद लंबे समय से विवादास्पद रहा है और इसे लैंगिक समानता व महिला अधिकारों के विरुद्ध माना जाता है।

धारा 377 और विवाहित स्त्रियाँ:

हालांकि धारा 375 में वैवाहिक बलात्कार का अपवाद है, परंतु धारा 377 में ऐसा कोई अपवाद नहीं है। यदि पति द्वारा पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध — जैसे कि गुदा मैथुन (anal sex) या ओरल सेक्स — उसकी सहमति के बिना किया गया है, तो यह धारा 377 के तहत अपराध माना जाएगा।

न्यायालयों की भूमिका:

न्यायालयों ने अनेक मामलों में यह माना है कि विवाह की संस्था पत्नी के स्वायत्तता के अधिकार को समाप्त नहीं करती। हाल के एक निर्णय में न्यायालय ने कहा कि:

“A woman’s marital status does not extinguish her right to bodily integrity or autonomy. Forced non-consensual unnatural sexual acts, even by a husband, are punishable under Section 377 IPC.”

यह दृष्टिकोण यह दर्शाता है कि न्यायपालिका महिलाओं के यौन अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा हेतु तत्पर है, भले ही संसद द्वारा वैवाहिक बलात्कार को अपराध न ठहराया गया हो।

निष्कर्ष:

यह स्पष्ट है कि भारतीय विधि व्यवस्था धीरे-धीरे महिलाओं की गरिमा, स्वायत्तता और यौन स्वतंत्रता की ओर संवेदनशील हो रही है। विवाह अब पति को यह अधिकार नहीं देता कि वह पत्नी की इच्छा के विरुद्ध किसी भी प्रकार का यौन कृत्य करे। धारा 377 आईपीसी इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण औजार बनकर उभरी है, जो विवाहित महिलाओं को भी कानूनी सुरक्षा प्रदान करती है।

सुझाव:

भारत में अब समय आ गया है कि वैवाहिक बलात्कार को भी कानूनन अपराध घोषित किया जाए। साथ ही, महिलाओं की सहमति और आत्मनिर्णय के अधिकार का हर स्थिति में सम्मान होना चाहिए, चाहे वह विवाह के भीतर हो या बाहर।