IndianLawNotes.com

“विवाहित पुत्री मृतक माता-पिता पर आश्रित नहीं मानी जाएगी जब तक कि इसके विपरीत प्रमाण न हो: ‘दीप शिखा बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी’ मामला – मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत मुआवजा निर्धारण”

🔷 लेख शीर्षक:

“विवाहित पुत्री मृतक माता-पिता पर आश्रित नहीं मानी जाएगी जब तक कि इसके विपरीत प्रमाण न हो: ‘दीप शिखा बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी’ मामला – मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत मुआवजा निर्धारण”

🔶 प्रस्तावना:

मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के अंतर्गत सड़क दुर्घटनाओं में पीड़ित व्यक्तियों या उनके परिजनों को मुआवजा देने का प्रावधान किया गया है। इस अधिनियम के तहत न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि मृत्यु या चोट के मामलों में पीड़ित पक्ष को न्याय मिले। परंतु, मुआवजा निर्धारण के समय यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि पीड़ित पर कौन आश्रित था। इसी संदर्भ में दीप शिखा एवं अन्य बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के निर्णय ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया—क्या एक विवाहित पुत्री को मृतक माता-पिता पर आश्रित माना जा सकता है?

दीप शिखा एवं अन्य बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (Deep Shikha & Anr. vs National Insurance Co. Ltd.) का यह निर्णय पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab and Haryana High Court) द्वारा दिया गया था।

✅ न्यायालय का नाम: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय
✅ मामला: दीप शिखा एवं अन्य बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
✅ मुख्य मुद्दा: विवाहित पुत्री की मृतक माता-पिता पर आर्थिक निर्भरता
✅ निर्णय का सार: विवाहित पुत्री को मृतक माता-पिता पर आर्थिक रूप से आश्रित नहीं माना जाएगा जब तक कि इसके समर्थन में ठोस प्रमाण प्रस्तुत न किए जाएं।


🔶 तथ्य संक्षेप:

इस मामले में याचिकाकर्ता दीप शिखा और अन्य ने अपने मृतक माता-पिता की सड़क दुर्घटना में मृत्यु के पश्चात मुआवजे की मांग की। उनका तर्क था कि वे माता-पिता पर आर्थिक रूप से आश्रित थीं, और इसलिए उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए।

प्रतिवादी पक्ष, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी, ने यह तर्क दिया कि याचिकाकर्ता विवाहित पुत्री हैं और स्वयंपूर्ण जीवन जी रही हैं। इसलिए उन्हें मृतक पर आश्रित नहीं माना जा सकता जब तक कि यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित न किया जाए।


🔶 न्यायालय का निर्णय:

न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि:

“एक विवाहित पुत्री को मृतक माता-पिता पर आश्रित नहीं माना जा सकता जब तक कि यह तथ्य पर्याप्त साक्ष्य के माध्यम से सिद्ध न किया जाए।”

  • न्यायालय ने कहा कि सिर्फ रिश्ते की निकटता यह साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि व्यक्ति आर्थिक रूप से आश्रित था।
  • विवाहित पुत्री सामान्यतः पति या अपने परिवार के साथ रहती है और यदि वह नौकरी कर रही है या पति की आय पर निर्भर है, तो यह मानना तर्कसंगत नहीं होगा कि वह मृतक माता-पिता पर निर्भर थी।

🔶 विधिक विश्लेषण:

  • मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के तहत मुआवजा का दावा तब किया जा सकता है जब मृतक पर आर्थिक निर्भरता स्पष्ट हो।
  • “Ashwinbhai Jayantilal Modi v. Ramkaran Ramchandra Sharma” तथा “National Insurance Co. Ltd. v. Birender” जैसे मामलों में भी यही स्थापित किया गया कि केवल पारिवारिक संबंध से आर्थिक निर्भरता सिद्ध नहीं होती।

🔶 प्रभाव और महत्व:

  • यह निर्णय मोटर वाहन दावों में आश्रित की अवधारणा को स्पष्ट करता है।
  • यह स्पष्ट करता है कि विवाहित संतानों को मुआवजे का लाभ लेने के लिए यह साबित करना आवश्यक है कि वे आर्थिक रूप से मृतक पर आश्रित थे।
  • इससे बीमा कंपनियों को दावों की समीक्षा करते समय उचित मापदंड अपनाने की दिशा मिलती है।

🔶 निष्कर्ष:

दीप शिखा बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी मामला भारतीय मोटर वाहन क्षतिपूर्ति कानून में एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है कि केवल पारिवारिक नाते या संबंध से मुआवजे का दावा सिद्ध नहीं किया जा सकता। आर्थिक निर्भरता के स्पष्ट प्रमाण आवश्यक हैं, विशेषकर तब जब दावेदार विवाहित हैं। यह निर्णय न्यायिक विवेक, आर्थिक तर्क और मुआवजे की प्रक्रिया में संतुलन का प्रतीक है।