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विवाहित पुत्री को भी मिलेगा कृषि भूमि में हिस्सा: उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक संशोधन की दिशा में कदम

विवाहित पुत्री को भी मिलेगा कृषि भूमि में हिस्सा: उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक संशोधन की दिशा में कदम

भारत में लंबे समय से संपत्ति के अधिकार को लेकर पुरुष और महिला के बीच असमानता की चर्चा होती रही है। विशेष रूप से ग्रामीण भारत में विवाह के बाद बेटियों को परिवार की संपत्ति से वंचित कर दिया जाता है। इस असमानता को समाप्त करने की दिशा में उत्तर प्रदेश सरकार एक बड़ा कदम उठाने जा रही है। उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 108 की उपधारा (2) में संशोधन कर विवाहित पुत्रियों को भी कृषि भूमि में समान हिस्सा देने का प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है। यह प्रस्ताव महिला सशक्तीकरण, आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक समानता की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है।


1. वर्तमान कानूनी स्थिति और उसकी सीमाएँ

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 108 में भूमि के उत्तराधिकार का नियम निर्धारित है। वर्तमान में यदि किसी पुरुष भूमिधर का निधन हो जाता है तो भूमि का अधिकार मुख्यतः उसकी विधवा, पुत्र और अविवाहित पुत्री के नाम दर्ज होता है। यदि ये न हों तो क्रमशः मृतक के माता-पिता, विवाहित पुत्री, भाई और अविवाहित बहन आदि को अधिकार दिया जाता है। यहाँ स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि विवाह की स्थिति के आधार पर पुत्रियों को भूमि अधिकार से अलग कर दिया गया है।

यह व्यवस्था पारंपरिक सोच का परिणाम है जिसमें यह माना जाता रहा कि विवाह के बाद बेटी दूसरे परिवार की हो जाती है। लेकिन यह दृष्टिकोण आधुनिक संवैधानिक मूल्यों और महिलाओं की समान भागीदारी के खिलाफ है। संपत्ति से वंचित होने के कारण महिलाओं को आर्थिक निर्भरता, मानसिक तनाव और पारिवारिक असमानता का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही कई बार उन्हें न्याय पाने के लिए लंबी और जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।


2. प्रस्तावित संशोधन – क्या बदलेगा?

राजस्व परिषद ने प्रस्ताव तैयार कर लिया है कि धारा 108 की उपधारा (2) में ‘विवाहित’ और ‘अविवाहित’ जैसे शब्दों को हटाकर सभी पुत्रियों को समान अधिकार दिया जाएगा। संशोधन लागू होने के बाद:

  • विवाहिता और अविवाहित पुत्रियों में कोई भेद नहीं रहेगा।
  • भूमि का उत्तराधिकार केवल नातेदारी के आधार पर तय होगा।
  • विवाह के आधार पर किसी भी पुत्री को उसके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकेगा।
  • मृतक के भाई और बहन को उत्तराधिकार में शामिल करने के क्रम में भी विवाह की स्थिति का फर्क समाप्त होगा।

यह प्रस्ताव शासन स्तर पर परीक्षण के बाद कैबिनेट में रखा जाएगा और इसके लिए विधानसभा तथा विधान परिषद दोनों की स्वीकृति आवश्यक होगी। विधायी प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद ही यह संशोधन प्रभावी होगा।


3. अन्य राज्यों का अनुभव

मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में यह कानून पहले से लागू है। वहाँ विवाहिता और अविवाहित पुत्रियों को समान अधिकार दिया गया है। वहाँ के अनुभव बताते हैं कि:

  • महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
  • परिवार में विवाद कम हुए हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में महिला स्व-सहायता समूहों की संख्या बढ़ी है।
  • भूमि पर अधिकार मिलने से महिलाएँ खेती और उद्यमशीलता में सक्रिय भूमिका निभाने लगी हैं।

उत्तर प्रदेश इस दिशा में कदम उठाकर अन्य राज्यों से सीख लेते हुए महिलाओं को समान अधिकार देने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा है।


4. महिला सशक्तीकरण की दिशा में इसका महत्व

(i) आर्थिक आत्मनिर्भरता

भूमि का अधिकार महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है। इससे वे अपने जीवन के लिए आवश्यक संसाधन स्वयं जुटा सकती हैं। आर्थिक निर्भरता कम होने से परिवार और समाज में उनकी आवाज़ मजबूत होगी।

(ii) सामाजिक समानता

जब विवाह के आधार पर पुत्रियों को संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा, तो समाज में पुत्र और पुत्री के बीच समानता का संदेश जाएगा। इससे लिंग आधारित भेदभाव कम होगा।

(iii) मानसिक और पारिवारिक तनाव में कमी

कई परिवारों में संपत्ति के बंटवारे को लेकर विवाद होते हैं। विवाहिता होने के कारण बेटी को हिस्सा न देने पर तनाव उत्पन्न होता है। समान अधिकार मिलने से ऐसे विवादों में कमी आएगी और पारिवारिक सौहार्द बढ़ेगा।

(iv) ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी

कृषि भूमि में हिस्सा मिलने से महिलाएँ खेती के कार्यों में भागीदारी कर सकेंगी। इससे उत्पादन बढ़ेगा और महिलाएँ ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सक्रिय हिस्सा बनेंगी।


5. संभावित चुनौतियाँ

हालाँकि यह संशोधन स्वागत योग्य है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में कई चुनौतियाँ आ सकती हैं:

(i) सामाजिक मानसिकता

ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी यह धारणा है कि बेटी विवाह के बाद दूसरे घर चली जाती है, इसलिए उसे संपत्ति का हिस्सा नहीं मिलना चाहिए। इस मानसिकता को बदलने में समय लगेगा।

(ii) प्रशासनिक प्रक्रिया

भूमि रिकॉर्ड में बदलाव, उत्तराधिकार प्रमाणपत्र का पुनः निर्माण और विवाद निवारण की प्रक्रिया में लंबा समय लग सकता है। अधिकारियों को प्रशिक्षित करना आवश्यक होगा।

(iii) पारिवारिक विवाद

भूमि के बंटवारे को लेकर विवाद बढ़ सकते हैं। कई बार भाई और अन्य परिजनों द्वारा विरोध की संभावना होगी।

(iv) कानूनी जागरूकता की कमी

महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं होगी। उन्हें कानूनी सहायता और परामर्श की आवश्यकता होगी।


6. समाधान और आगे की रणनीति

  1. जागरूकता अभियान
    ग्राम पंचायतों, स्वयं सहायता समूहों, स्कूलों और महिला संगठनों के माध्यम से विवाहिता और अविवाहित पुत्रियों के समान अधिकार पर जनजागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए।
  2. कानूनी सहायता केंद्र
    प्रत्येक जिले में महिला अधिकार केंद्र स्थापित किए जाएँ जहाँ महिलाएँ अपने भूमि अधिकार से संबंधित शिकायत दर्ज कर सकें और आवश्यक परामर्श ले सकें।
  3. प्रशासनिक प्रशिक्षण
    तहसील और राजस्व विभाग के अधिकारियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वे संशोधन को सही तरीके से लागू कर सकें।
  4. विवाद निवारण तंत्र
    स्थानीय स्तर पर विवाद समाधान समितियाँ गठित की जाएँ ताकि पारिवारिक विवादों का समाधान सरलता से हो सके।
  5. डिजिटल रिकॉर्डिंग प्रणाली
    भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण कर उत्तराधिकार का रिकॉर्ड पारदर्शी बनाया जाए। इससे भ्रष्टाचार और विवाद कम होंगे।

7. संविधान और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

भारत का संविधान अनुच्छेद 14 और 15 के तहत समानता और भेदभाव न करने का अधिकार प्रदान करता है। विवाह के आधार पर किसी भी व्यक्ति को संपत्ति से वंचित करना अनुच्छेद 15 का उल्लंघन माना जा सकता है। इस दृष्टि से यह संशोधन संविधान की भावना के अनुरूप है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वीकृत ‘सतत विकास लक्ष्य’ (SDGs) में लैंगिक समानता को प्राथमिकता दी गई है। महिलाओं को आर्थिक संसाधनों तक पहुँच दिलाना उनके सशक्तीकरण का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उत्तर प्रदेश का यह कदम वैश्विक स्तर पर महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में भी महत्वपूर्ण योगदान होगा।


8. परिवार और समाज में बदलाव की आवश्यकता

कानून लागू होने के बाद भी समाज को इसे अपनाने के लिए मानसिक रूप से तैयार करना आवश्यक है। परिवारों में संवाद, शिक्षा और समझ बढ़ाकर यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि बेटी को उसका उचित हिस्सा मिले। माता-पिता को अपनी संपत्ति का न्यायपूर्ण वितरण करना चाहिए ताकि बेटियों को अपने अधिकार के लिए संघर्ष न करना पड़े।

महिला संगठन, शिक्षण संस्थान, धार्मिक संस्थाएँ और मीडिया इस परिवर्तन को व्यापक स्तर पर स्वीकार्यता दिलाने में भूमिका निभा सकते हैं। यदि महिलाएँ अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होंगी तो वे स्वयं अपनी भूमिका निभाकर समाज में बदलाव ला सकती हैं।


9. निष्कर्ष

उत्तर प्रदेश में विवाहित पुत्री को कृषि भूमि में हिस्सा देने का प्रस्ताव केवल एक कानूनी संशोधन नहीं है, बल्कि यह महिलाओं की गरिमा, आत्मनिर्भरता और समानता का प्रतीक है। यह कदम संविधान प्रदत्त अधिकारों को सशक्त बनाने के साथ-साथ ग्रामीण समाज में बदलाव लाने का माध्यम बनेगा। अन्य राज्यों के सकारात्मक अनुभव और महिलाओं की भागीदारी को ध्यान में रखते हुए यह प्रस्ताव सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा।

हालाँकि इसमें प्रशासनिक और सामाजिक चुनौतियाँ रहेंगी, लेकिन उचित नीति, जनजागरूकता, प्रशिक्षण और समर्थन तंत्र से इन चुनौतियों का समाधान संभव है। यह संशोधन आने वाले समय में महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाएगा और समाज में पारिवारिक सौहार्द तथा समानता की भावना को बढ़ावा देगा। विवाह के आधार पर किसी भी बेटी को अधिकार से वंचित नहीं करना न्यायसंगत है—यह परिवर्तन समय की माँग है और इसे लागू कर उत्तर प्रदेश देश में महिलाओं के अधिकारों की एक नई मिसाल स्थापित कर सकता है।