विवाहिता महिला का सहमति से विवाहेतर यौन संबंध ‘अनैतिक’ लेकिन झूठे विवाह के वादे पर बलात्कार नहीं : पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का फैसला
भारतीय न्यायपालिका समय-समय पर ऐसे निर्णय देती रही है, जो सामाजिक, नैतिक और विधिक विमर्श को एक नई दिशा प्रदान करते हैं। हाल ही में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यह स्पष्ट किया कि यदि कोई विवाहिता महिला अपने पति के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति से सहमति पूर्वक यौन संबंध बनाती है, तो यह आचरण भले ही अनैतिक (Immoral) माना जाए, लेकिन इसे झूठे विवाह के वादे पर बलात्कार (Rape on False Promise to Marry) की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। यह फैसला भारतीय दंड संहिता की धारा 375, 376 तथा 90 के प्रावधानों को समझने के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
पृष्ठभूमि
मामला एक विवाहित महिला से जुड़ा था, जिसने आरोप लगाया कि एक पुरुष ने उससे विवाह का झूठा वादा किया और इस वादे के आधार पर उसके साथ कई बार शारीरिक संबंध बनाए। महिला ने इसे बलात्कार (Rape) का अपराध बताया और एफआईआर दर्ज कराई।
हालांकि, सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि शिकायतकर्ता महिला पहले से ही विवाहिता थी और अपने पति के साथ रह रही थी। ऐसे में अदालत के समक्ष यह प्रश्न उठा कि जब महिला का विवाह पहले से ही वैध रूप से हो चुका था और विवाह के बंधन में वह बंधी हुई थी, तो किसी अन्य पुरुष से विवाह करने का वादा विधिक रूप से संभव ही कैसे हो सकता है?
उच्च न्यायालय का तर्क
न्यायमूर्ति हरप्रीत सिंह ब्रार की एकलपीठ ने इस मामले की गहन पड़ताल करते हुए कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं –
- झूठे वादे की असंभावना –
जब कोई महिला पहले से ही विवाहिता है, तो उसके साथ कोई पुरुष विवाह का वादा करे, यह वादा स्वतः ही असंभव और विधिक रूप से अवैध है। ऐसे में महिला यह दावा नहीं कर सकती कि उसने केवल विवाह के वादे के आधार पर सहमति दी। - सहमति (Consent) का महत्व –
यदि महिला ने अपनी मर्जी से और स्वेच्छा से यौन संबंध बनाए हैं, तो इसे बलात्कार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। भारतीय दंड संहिता (IPC) के अनुसार, बलात्कार तभी माना जाएगा जब सहमति का अभाव हो या सहमति धोखे, दबाव या जबरदस्ती से प्राप्त की गई हो। - अनैतिक लेकिन गैर-अपराध –
अदालत ने यह माना कि विवाहित महिला का विवाहेतर यौन संबंध नैतिकता और सामाजिक मर्यादा के विरुद्ध है। इसे अनैतिक आचरण (Immoral Act) जरूर कहा जा सकता है, परंतु दंड विधान की दृष्टि से यह बलात्कार नहीं है। - धारा 90 IPC का प्रयोग –
भारतीय दंड संहिता की धारा 90 यह कहती है कि जब सहमति धोखे या मिथ्या प्रस्तुतीकरण (misrepresentation) से प्राप्त की गई हो, तो वह सहमति वैध नहीं मानी जाएगी। किंतु इस मामले में विवाह का वादा अपने आप में असंभव था, क्योंकि महिला पहले से ही विवाहित थी। अतः यह सहमति अमान्य नहीं कही जा सकती।
न्यायालय का निर्णय
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि –
- विवाहिता महिला का किसी अन्य पुरुष से विवाह करना कानूनी रूप से असंभव है।
- अतः विवाह के वादे को आधार बनाकर सहमति देने का तर्क टिकाऊ नहीं है।
- इस स्थिति में यौन संबंध को बलात्कार नहीं कहा जा सकता।
- हां, यह संबंध सामाजिक और नैतिक दृष्टि से निंदनीय एवं अनैतिक है, परंतु कानून की नजर में यह अपराध नहीं है।
न्यायालय ने आरोपी को राहत देते हुए यह कहा कि झूठे विवाह वादे पर बलात्कार का आरोप इस मामले में लागू नहीं होता।
सामाजिक और विधिक विमर्श
इस निर्णय ने कई महत्वपूर्ण सवालों को जन्म दिया है –
- नैतिकता बनाम विधिकता –
अदालत ने नैतिकता और विधिकता में स्पष्ट अंतर किया। नैतिक दृष्टि से विवाहेतर संबंध समाज में अस्वीकार्य हैं, लेकिन जब यह संबंध सहमति से हो, तो इसे आपराधिक दायरे में नहीं रखा जा सकता। - सहमति की स्वायत्तता –
महिला चाहे विवाहित हो या अविवाहित, उसकी सहमति का महत्व बना रहता है। यदि उसने स्वतंत्र रूप से यौन संबंध बनाए हैं, तो बाद में इसे बलात्कार कहकर आपराधिक मामला नहीं बनाया जा सकता। - झूठे वादे का प्रश्न –
भारतीय न्यायालय पहले भी यह कह चुके हैं कि विवाह के झूठे वादे पर सहमति से बने यौन संबंध को हर स्थिति में बलात्कार नहीं माना जा सकता। यदि यह वादा शुरू से ही धोखाधड़ीपूर्ण था और आरोपी का उद्देश्य केवल शारीरिक शोषण था, तो मामला अलग हो सकता है। परंतु विवाहित महिला के मामले में विवाह का वादा स्वतः ही निरर्थक है। - महिलाओं की सुरक्षा और दुरुपयोग का खतरा –
एक तरफ यह निर्णय पुरुषों को झूठे आरोपों से बचाता है, वहीं दूसरी ओर यह चिंता भी बनी रहती है कि कहीं इस आधार पर असली पीड़ित महिलाओं की आवाज कमजोर न हो जाए।
पूर्ववर्ती न्यायिक दृष्टांत
- उदय बनाम कर्नाटक राज्य (2003) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विवाह का झूठा वादा यदि मात्र प्रेम-प्रसंग का हिस्सा है और इसमें धोखे का ठोस प्रमाण नहीं है, तो इसे बलात्कार नहीं माना जा सकता।
- दीपक गुलाटी बनाम हरियाणा राज्य (2013) – अदालत ने कहा था कि यदि पुरुष की नीयत शुरुआत से ही महिला को धोखा देने की थी और उसने विवाह का नाटक कर केवल शारीरिक संबंध बनाए, तो यह बलात्कार होगा।
- प्रवीण कुमार बनाम कर्नाटक राज्य (2017) – इसमें स्पष्ट किया गया कि विवाहित महिला से विवाह का वादा असंभव है, इसलिए ऐसे मामलों में IPC की धारा 376 लागू नहीं होगी।
निष्कर्ष
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का यह फैसला भारतीय दंड संहिता में सहमति (Consent), विवाह के झूठे वादे और नैतिकता बनाम अपराध की बहस को नई रोशनी देता है।
- कानून की दृष्टि से – विवाहित महिला का सहमति से विवाहेतर यौन संबंध बलात्कार नहीं है।
- नैतिक दृष्टि से – यह आचरण समाज में अस्वीकार्य और अनैतिक है।
- व्यावहारिक दृष्टि से – इस फैसले से न्यायपालिका यह संदेश देती है कि कानून और नैतिकता अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते हैं।
इस प्रकार यह निर्णय न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सहमति की अवधारणा को पुनः परिभाषित करता है, बल्कि समाज को यह भी संकेत देता है कि सभी अनैतिक कृत्य अपराध नहीं होते।