“विलंब, वित्तीय अस्पष्टता और विशिष्ट निवर्तन: Dan Sahai बनाम Bal Kishan केस विश्लेषण”

शीर्षक: “विलंब, वित्तीय अस्पष्टता और विशिष्ट निवर्तन: Dan Sahai बनाम Bal Kishan केस विश्लेषण”


प्रस्तावना:
न्यायिक प्रक्रिया में “विशिष्ट निवर्तन” (Specific Performance) एक ऐसा उपाय है, जिसके अंतर्गत वादी न्यायालय से अनुबंध की शर्तों के अनुसार प्रतिवादी को बाध्य करने की याचना करता है। परंतु इस राहत की प्राप्ति हेतु वादी को न्यायालय को यह विश्वास दिलाना होता है कि वह स्वयं अनुबंध की शर्तों को पूरा करने के लिए तत्पर और सक्षम था। Dan Sahai एवं अन्य बनाम Bal Kishan केस, PbHr 2025 (RSA-2320-1993, O & M) में उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय ने स्पष्ट कर दिया कि यदि वादी अनुबंध के शेष दायित्वों को निभाने की तैयारी और योग्यता साबित नहीं कर पाता है, तो विशिष्ट निवर्तन का दावा सफल नहीं हो सकता।


मामले के तथ्य:

  • पक्षकारों के मध्य रु. 1,50,000/- में एक Agreement to Sell (बिक्री अनुबंध) हुआ।
  • वादी ने रु. 15,000/- अग्रिम धनराशि के रूप में दिए।
  • शेष रु. 1,35,000/- का भुगतान बाद में किया जाना था।
  • वादी ने अनुबंध के निष्पादन हेतु तीन वर्ष से अधिक की अवधि के बाद वाद दायर किया, परंतु इस विलंब का कोई ठोस कारण नहीं बताया।
  • इसके अतिरिक्त वादी यह साबित करने में विफल रहा कि उसके पास शेष राशि, स्टाम्प शुल्क और पंजीकरण शुल्क चुकाने की वित्तीय क्षमता थी।

न्यायालय का निर्णय:
उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित आधारों पर वादी की विशिष्ट निवर्तन की याचिका खारिज की:

  1. विलंब का उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया गया:
    • वादी ने यह नहीं बताया कि तीन वर्ष से अधिक समय तक वह निष्क्रिय क्यों रहा।
    • विलंब को न्यायालय ने अनुचित माना।
  2. वित्तीय संसाधनों का अभाव:
    • वादी यह नहीं बता पाया कि वह शेष रकम कहां से लाएगा।
    • जिन लोगों से उसने धन उधार लिया, उनके नाम या सबूत नहीं दिए गए।
    • न्यायालय ने प्रतिकूल अनुमान (Adverse Inference) लगाया कि वादी के पास आवश्यक धन नहीं था।
  3. केवल अग्रिम राशि की वसूली:
    • न्यायालय ने केवल रु. 20,000/- की वसूली का डिक्री पारित की, जिसमें संभवतः अग्रिम धन और ब्याज सम्मिलित रहा।

कानूनी सिद्धांत और विश्लेषण:
यह निर्णय विशिष्ट निवर्तन अधिनियम, 1963 की धारा 16(c) के अनुरूप है, जो कहती है कि वादी को यह प्रमाणित करना होता है कि वह अनुबंध की अपनी शर्तों को निभाने के लिए “तत्पर और सक्षम” (ready and willing) था।

यदि वादी न तो धन जुटा सका और न ही निष्पादन हेतु पहल की, तो न्यायालय उसे राहत नहीं दे सकता।


निष्कर्ष:
Dan Sahai बनाम Bal Kishan प्रकरण न्यायिक सिद्धांतों का महत्वपूर्ण उदाहरण है, जिसमें निष्क्रियता, वित्तीय अस्पष्टता और अनुबंधीय निष्पादन में लापरवाही के कारण वादी को न्यायिक राहत नहीं मिल सकी। यह केस स्पष्ट करता है कि विशिष्ट निवर्तन एक इक्विटी आधारित राहत है, और इसे केवल उसी पक्ष को दी जा सकती है जो निष्पक्ष, तत्पर और सक्षम हो।