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“विरोध प्रदर्शन जनता की सेवा के लिए हों, न कि मनोरंजन के लिए: मद्रास हाईकोर्ट का राजनीतिक दलों को दो टूक संदेश”

“विरोध प्रदर्शन जनता की सेवा के लिए हों, न कि मनोरंजन के लिए: मद्रास हाईकोर्ट का राजनीतिक दलों को दो टूक संदेश”

भूमिका:
भारतीय लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन (Protest) एक महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकार है। लेकिन जब इस अधिकार का उपयोग व्यक्तिगत या राजनीतिक स्वार्थ, सार्वजनिक असुविधा, या “मनोरंजन” के लिए किया जाने लगे, तब न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना पड़ता है। हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट ने एक ऐसे ही मामले में राजनीतिक दलों को फटकार लगाते हुए कहा कि विरोध प्रदर्शन जनता की समस्याओं का समाधान खोजने के लिए होने चाहिए, न कि सस्ती लोकप्रियता और अव्यवस्था फैलाने के लिए।


मामले का विवरण:
यह याचिका एक राजनीतिक पार्टी द्वारा प्रस्तावित रैली और प्रदर्शन को लेकर दायर की गई थी, जो एक व्यस्त शहरी क्षेत्र में आयोजित किया जाना था। याचिका में कहा गया कि यह प्रदर्शन जनता के लिए यातायात और जनजीवन में भारी विघ्न उत्पन्न करेगा।

प्रशासन ने प्रदर्शन को अनुमति दी थी, लेकिन उससे पहले स्थानीय नागरिकों और व्यवसायियों ने कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें इस तरह के बार-बार होने वाले प्रदर्शनों पर नियंत्रण की मांग की गई थी।


याचिकाकर्ताओं की दलीलें:

  • रोज़-रोज़ प्रदर्शन और रैली से नागरिकों का सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
  • यातायात, स्कूल, अस्पताल, और आपात सेवाएं प्रभावित होती हैं।
  • राजनीतिक दल बिना वैकल्पिक स्थान की तलाश किए मनमाने तरीके से मुख्य सड़कों को जाम कर देते हैं।

हाईकोर्ट की टिप्पणी:
माननीय न्यायमूर्ति एस.एम. सुब्रमण्यम की पीठ ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा:

“विरोध प्रदर्शन कोई तमाशा या मनोरंजन नहीं है। यह जनता के गंभीर मुद्दों को उठाने का संवैधानिक साधन है। इसे राजनीतिक स्टंट या शोभायात्रा में नहीं बदला जा सकता।”

कोर्ट ने आगे कहा:

  • “राजनीतिक दल यह न समझें कि उन्हें मनमानी करने की छूट है। सड़कें उनकी बपौती नहीं हैं।”
  • “जब प्रदर्शन का उद्देश्य केवल ध्यान आकर्षित करना और अस्त-व्यस्तता फैलाना हो, तो कोर्ट को दखल देना होगा।”
  • “आम नागरिकों के मौलिक अधिकार (जैसे जीवन, यातायात, स्वास्थ्य सुविधा तक पहुंच) राजनीतिक अधिकारों से ऊपर हैं।”

कानूनी आधार:

  • अनुच्छेद 19(1)(b) संविधान के तहत शांतिपूर्ण सभा का अधिकार प्राप्त है।
  • लेकिन यह अनुच्छेद 19(3) के अधीन है, जो “लोक व्यवस्था, नैतिकता और राज्य की सुरक्षा” के लिए सीमित किया जा सकता है।
  • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जनहित और सार्वजनिक व्यवस्था सबसे प्राथमिक है।

कोर्ट के निर्देश:

  • राजनीतिक दलों को निर्देश दिया गया कि वे प्रदर्शन के लिए पूर्व अनुमति लें और सार्वजनिक स्थानों की बजाय वैकल्पिक स्थानों (जैसे ग्राउंड, मैदान, या सार्वजनिक हॉल) का उपयोग करें।
  • प्रशासन को यह निर्देश भी दिया गया कि वह प्रदर्शन की अनुमति देने से पहले स्थानीय प्रभाव का मूल्यांकन करे
  • कोर्ट ने यह भी कहा कि बार-बार प्रदर्शन करने वाली पार्टियों का रिकॉर्ड रखा जाए, और नियम उल्लंघन करने पर भविष्य में अनुमति देने से इनकार किया जा सकता है।

न्यायिक दृष्टिकोण का महत्व:
यह निर्णय बताता है कि विरोध का अधिकार नियमबद्ध और उत्तरदायी होना चाहिए। यह आदेश सिर्फ मद्रास हाईकोर्ट क्षेत्र के लिए ही नहीं, बल्कि सभी राज्यों के प्रशासनिक और राजनीतिक दलों के लिए चेतावनी और मार्गदर्शन है।


निष्कर्ष:
मद्रास हाईकोर्ट का यह निर्णय स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि लोकतंत्र में अधिकारों के साथ कर्तव्य भी जुड़ा होता है। विरोध प्रदर्शन, जन-असुविधा और कानून-व्यवस्था की कीमत पर नहीं हो सकता।
राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि विरोध का अधिकार ‘जनता की सेवा’ के लिए है, ‘मनोरंजन या तमाशे’ के लिए नहीं।