विधि का शासन (Rule of Law) क्या है? इसकी विशेषताएं, महत्व और भारतीय संविधान में इसका स्थान स्पष्ट कीजिए।
प्रस्तावना
“विधि का शासन” (Rule of Law) एक ऐसी अवधारणा है, जो आधुनिक लोकतांत्रिक और संवैधानिक शासन की आधारशिला मानी जाती है। इसका मूल विचार यह है कि समाज का शासन किसी व्यक्ति की मनमानी से नहीं, बल्कि विधि द्वारा हो। कानून सबसे ऊपर है, और हर व्यक्ति — चाहे वह आम नागरिक हो या कोई शासक — विधि के अधीन है। विधि का शासन स्वतंत्रता, समानता और न्याय का संरक्षण करता है तथा अधिनायकवाद और निरंकुशता को रोकता है।
विधि का शासन (Rule of Law) की परिभाषा
विधि का शासन का अभिप्राय उस सिद्धांत से है जिसके अनुसार राज्य की समस्त शक्तियाँ तथा कार्यकलाप कानून के अधीन होने चाहिए और कानून की सर्वोच्चता को मान्यता दी जानी चाहिए।
ए. वी. डाइस (A. V. Dicey) — जो इस सिद्धांत के प्रमुख प्रवर्तक माने जाते हैं — ने ‘Rule of Law’ की परिभाषा इन शब्दों में दी:
“The Rule of Law means the absolute supremacy or predominance of regular law as opposed to the influence of arbitrary power.”
डाइस के अनुसार विधि का शासन निम्न तीन सिद्धांतों पर आधारित है:
डाइस के तीन सिद्धांत (Three Principles of Rule of Law):
1. विधि की सर्वोच्चता (Supremacy of Law):
राज्य में कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है। शासन मनमाने आदेशों द्वारा नहीं, बल्कि स्थापित विधियों के अनुसार होता है।
2. विधि के समक्ष समता (Equality Before Law):
सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी वर्ग, पद, जाति या धर्म से हों, कानून की दृष्टि में समान हैं और उन पर एक जैसे नियम लागू होते हैं।
3. न्यायिक निर्णयों से अधिकारों का संरक्षण (Predominance of Legal Spirit):
व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षण विधायिका द्वारा नहीं, बल्कि न्यायपालिका द्वारा किया जाना चाहिए। स्वतंत्र न्यायपालिका विधि के शासन का मूल स्तंभ है।
विधि का शासन की विशेषताएँ (Features of Rule of Law):
- कानून की सर्वोच्चता:
कोई भी संस्था या व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है। सभी कार्यकलाप कानून के अनुसार ही होने चाहिए। - न्यायपालिका की स्वतंत्रता:
न्यायपालिका स्वतंत्र और निष्पक्ष होनी चाहिए ताकि वह विधि के शासन को लागू कर सके और कार्यपालिका या विधायिका की मनमानी को रोक सके। - कानून का सार्वभौमिक अनुप्रयोग:
सभी नागरिकों पर एक समान कानून लागू होता है, और किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता। - कानून द्वारा अधिकारों की सुरक्षा:
नागरिकों के मौलिक अधिकार कानून द्वारा संरक्षित होते हैं, और उनके उल्लंघन पर न्यायिक उपाय उपलब्ध होते हैं। - न्याय तक पहुँच का अधिकार:
हर व्यक्ति को न्यायालयों तक पहुंचने और न्याय प्राप्त करने का अवसर मिलना चाहिए। - प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत:
कानून के तहत सभी कार्य निष्पक्ष, पूर्व सूचना और सुनवाई के सिद्धांतों पर आधारित होने चाहिए।
भारतीय संविधान में विधि का शासन (Rule of Law under Indian Constitution):
भारतीय संविधान की मूल भावना में विधि का शासन समाहित है। संविधान के अनेक प्रावधान इस सिद्धांत को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सुदृढ़ करते हैं:
1. प्रस्तावना (Preamble):
संविधान की प्रस्तावना में “न्याय”, “समानता”, और “स्वतंत्रता” जैसे मूल्य विधि के शासन की बुनियाद को स्थापित करते हैं।
2. अनुच्छेद 14 – विधि के समक्ष समानता:
“राज्य भारत के क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधियों के समक्ष समानता से वंचित नहीं करेगा।”
यह डाइस के दूसरे सिद्धांत का प्रत्यक्ष समर्थन करता है।
3. मौलिक अधिकार (Part III):
अनुच्छेद 19, 21 और 22 जैसे अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्यायिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।
विशेष रूप से, अनुच्छेद 21: “किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार विधिवत रूप से वंचित किए बिना उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।”
4. न्यायपालिका की स्वतंत्रता:
अनुच्छेद 50 और 124-147 में न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित की गई है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट कानून के संरक्षक हैं।
5. अनुच्छेद 32 और 226:
ये अनुच्छेद नागरिकों को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के विरुद्ध प्रत्यक्ष न्यायालयों में याचिका दायर करने का अधिकार देते हैं — जो विधि के शासन की प्रभावशीलता का प्रमाण है।
6. मनमानी और अनुचित कानूनों पर रोक:
भारतीय न्यायपालिका ने कई मामलों में विधि के शासन की रक्षा की है और कार्यपालिका की मनमानी पर रोक लगाई है।
महत्त्व (Importance of Rule of Law):
- लोकतंत्र की नींव:
विधि का शासन लोकतंत्र को टिकाऊ और उत्तरदायी बनाता है। यह लोगों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं की रक्षा करता है। - मनमानी पर नियंत्रण:
शासन की शक्ति सीमित और उत्तरदायी होती है, जिससे सत्ता का दुरुपयोग रोका जा सकता है। - न्याय का संरक्षण:
सभी नागरिकों को निष्पक्ष न्याय की गारंटी मिलती है। राज्य का प्रत्येक अंग विधि के अधीन होता है। - विश्वास और स्थिरता:
जब कानून सभी पर एक समान लागू होता है, तब समाज में विश्वास, शांति और स्थिरता बनी रहती है। - मानवाधिकारों की सुरक्षा:
यह सिद्धांत नागरिकों के जीवन, स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा को प्रभावी सुरक्षा प्रदान करता है।
विधि का शासन से संबंधित प्रमुख न्यायिक दृष्टांत (Landmark Cases):
- A.K. Gopalan v. State of Madras (1950):
प्रारंभिक व्याख्या में “Due Process” की आवश्यकता को नकारा गया। - Maneka Gandhi v. Union of India (1978):
इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 का अर्थ केवल “विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया” नहीं, बल्कि “न्यायोचित, युक्तिसंगत और निष्पक्ष विधि” है। यह विधि के शासन का महत्वपूर्ण विकास था। - Kesavananda Bharati v. State of Kerala (1973):
इस केस में सर्वोच्च न्यायालय ने “संविधान की मूल संरचना” सिद्धांत की स्थापना की, जिसमें Rule of Law को मूल तत्व माना गया। - Indira Nehru Gandhi v. Raj Narain (1975):
इस मामले में कोर्ट ने कहा कि Rule of Law संविधान की आधारभूत विशेषता है और इसे हटाया नहीं जा सकता।
निष्कर्ष
विधि का शासन केवल एक सैद्धांतिक अवधारणा नहीं है, बल्कि एक जीवंत मूल्य है जो लोकतंत्र, समानता, न्याय और स्वतंत्रता के संरक्षण का माध्यम है। भारतीय संविधान ने इसे अपने ढांचे में केंद्रीय स्थान दिया है, और भारतीय न्यायपालिका ने समय-समय पर इसके संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विधि का शासन उस सभ्य समाज की पहचान है जिसमें कानून सर्वोपरि होता है, और सभी नागरिकों को समान अधिकार और न्याय की गारंटी प्राप्त होती है।