1. विधि क्या है? (What is Law?)
विधि एक सामाजिक संस्था है जो समाज में व्यवस्था बनाए रखने, विवादों को सुलझाने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा हेतु नियमों का एक समूह होती है। यह राज्य द्वारा प्रवर्तित और लागू की जाती है। विधि का उद्देश्य न्याय, समानता और शांति की स्थापना करना है। यह आचार-संहिता के रूप में कार्य करती है और यदि इसका उल्लंघन होता है तो दंड भी निर्धारित होता है। विधि निरंतर विकसित होती रहती है और समाज की आवश्यकताओं के अनुसार बदलती है।
2. विधि की विशेषताएँ क्या हैं?
विधि की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- यह अनिवार्य होती है और सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होती है।
- विधि लिखित होती है और इसे विधायी निकाय बनाते हैं।
- यह न्याय प्रदान करने के लिए न्यायालयों द्वारा लागू की जाती है।
- विधि का उल्लंघन दंडनीय होता है।
- यह सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने हेतु आवश्यक है।
3. विधि और नैतिकता में अंतर स्पष्ट करें।
विधि और नैतिकता दोनों आचरण के नियम हैं, लेकिन दोनों में अंतर है। विधि राज्य द्वारा प्रवर्तित होती है और उल्लंघन पर कानूनी दंड निर्धारित होता है, जबकि नैतिकता व्यक्ति या समाज की आंतरिक मान्यताओं पर आधारित होती है और इसका उल्लंघन सामाजिक निंदा तक सीमित रहता है। उदाहरणतः चोरी करना कानूनन अपराध है और नैतिक रूप से भी गलत है, परंतु झूठ बोलना नैतिक रूप से गलत हो सकता है लेकिन हमेशा कानूनी अपराध नहीं होता।
4. कानून के स्रोत (Sources of Law) क्या हैं?
कानून के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं:
- विधायन (Legislation) – संसद या विधान मंडल द्वारा बनाए गए कानून।
- न्यायिक निर्णय (Judicial Decisions) – उच्च न्यायालयों व सर्वोच्च न्यायालयों के निर्णय।
- रीति और परंपराएँ (Customs and Usages) – समाज में लंबे समय से प्रचलित व्यवहार।
- धार्मिक ग्रंथ (Religious Texts) – विशेष रूप से पारिवारिक और व्यक्तिगत मामलों में।
- विद्वानों की राय (Juristic Writings) – प्रख्यात विधिवेत्ताओं की रचनाएँ।
5. विधि और न्याय में संबंध क्या है?
विधि और न्याय एक-दूसरे से गहरे जुड़े हैं। विधि का मूल उद्देश्य समाज में न्याय की स्थापना करना है। न्याय वह सिद्धांत है जो सही और गलत में अंतर करता है, जबकि विधि न्याय को लागू करने का औपचारिक साधन है। यदि विधि अन्यायपूर्ण हो जाए, तो उसकी आलोचना होती है और उसे संशोधित करने की माँग उठती है। न्याय के बिना विधि एक कठोर उपकरण बन जाती है।
6. सामान्य विधि (Common Law) क्या है?
सामान्य विधि, इंग्लैंड की परंपरागत न्यायिक प्रणाली से उत्पन्न एक प्रकार की विधि है, जो न्यायालयों के निर्णयों और परंपराओं पर आधारित होती है। यह लिखित विधान के अभाव में न्यायिक निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई। भारत में कई क्षेत्र, जैसे संपत्ति कानून और अनुबंध कानून, सामान्य विधि से प्रभावित हैं।
7. विधान (Legislation) क्या होता है?
विधान वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा संसद या विधानमंडल कोई नया कानून बनाता है या पुराने कानूनों में संशोधन करता है। यह कानून निर्माण का प्राथमिक स्रोत है। विधान तीन प्रकार के होते हैं: (1) अधिनियमित विधान (Enacted Legislation), (2) अधिनियम उपरांत व्याख्या (Delegated Legislation), और (3) संवैधानिक विधान (Constitutional Legislation)।
8. न्यायालय की भूमिका विधि निर्माण में क्या होती है?
यद्यपि मुख्य विधि निर्माण संसद या विधानमंडल द्वारा किया जाता है, परंतु न्यायालयों की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। न्यायालय अपने निर्णयों में व्याख्या (Interpretation) द्वारा विधियों को स्पष्ट करते हैं और जहाँ विधि मौन होती है, वहाँ न्यायिक दृष्टिकोण अपनाकर नये सिद्धांत निर्मित करते हैं। इस प्रकार न्यायालय विधि के विकास में सहायक होते हैं।
9. विधि के उद्देश्य क्या हैं?
विधि के मुख्य उद्देश्य हैं:
- समाज में शांति एवं व्यवस्था बनाए रखना।
- व्यक्ति एवं राज्य के अधिकारों और कर्तव्यों को परिभाषित करना।
- अपराधों को नियंत्रित करना और न्याय प्रदान करना।
- विवादों का समाधान करना।
- सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना।
10. न्याय का सिद्धांत क्या है?
न्याय का सिद्धांत सत्य, निष्पक्षता और समानता पर आधारित है। यह हर व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के समान अधिकार देने की बात करता है। भारत का संविधान न्याय को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप में सुनिश्चित करने का प्रयास करता है। न्यायालय इस सिद्धांत को व्याख्या एवं निर्णयों के माध्यम से लागू करते हैं।
11. विधिशास्त्र (Jurisprudence) क्या है?
विधिशास्त्र विधि का दर्शन है। यह विधि की प्रकृति, स्रोत, उद्देश्य और सिद्धांतों का अध्ययन करता है। यह प्रश्न करता है कि “विधि क्या है?”, “विधि क्यों आवश्यक है?” आदि। विधिशास्त्र विधि को समझने, उसकी आलोचना करने और उसे विकसित करने में सहायक होता है।
12. विधिक यथार्थवाद (Legal Realism) क्या है?
विधिक यथार्थवाद एक आधुनिक सिद्धांत है जो मानता है कि विधि केवल लिखित नियमों तक सीमित नहीं है, बल्कि न्यायाधीशों के व्यवहार, सामाजिक प्रभाव और व्यावहारिक निर्णयों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। यह न्यायिक निर्णयों की व्यावहारिकता और सामाजिक संदर्भ पर बल देता है।
13. भारतीय विधिक प्रणाली की विशेषताएँ क्या हैं?
भारतीय विधिक प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ हैं:
- संविधान आधारित लोकतांत्रिक ढांचा।
- लिखित कानूनों की प्रधानता।
- स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका।
- मूल अधिकारों की रक्षा।
- विधिक व्याख्या का विकासशील स्वरूप।
14. विधिक पद्धति (Legal Method) क्या होती है?
विधिक पद्धति का तात्पर्य है कानून को पढ़ने, समझने, विश्लेषण करने, और लागू करने की प्रक्रिया। इसमें कानून के स्रोतों की व्याख्या, निर्णयों की समीक्षा, और कानूनी तर्कशक्ति का विकास शामिल होता है। यह विधि की पढ़ाई का मूल आधार होती है और विधिवेत्ताओं के लिए अनिवार्य है।
15. विधि की व्याख्या (Interpretation of Law) क्यों आवश्यक है?
कभी-कभी कानून की भाषा अस्पष्ट, व्यापक या बहु-अर्थीय होती है। ऐसी स्थिति में न्यायालय कानून की भावना और उद्देश्य के अनुसार उसकी व्याख्या करते हैं। यह प्रक्रिया न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। व्याख्या के विभिन्न सिद्धांतों जैसे शाब्दिक व्याख्या, उद्देश्यवादी व्याख्या आदि का प्रयोग किया जाता है।
16. भारत में विधायिका की भूमिका क्या है?
भारत में विधायिका का मुख्य कार्य कानून बनाना है। यह दो सदनों – लोकसभा और राज्यसभा – के माध्यम से कार्य करती है। विधायिका न केवल नये कानून बनाती है, बल्कि पुराने कानूनों में संशोधन तथा निरसन भी करती है। इसके अतिरिक्त यह कार्यपालिका की जिम्मेदारी तय करने, बजट पारित करने और जनहित के मुद्दों पर चर्चा के माध्यम से लोकतांत्रिक शासन सुनिश्चित करती है। विधायिका विधिक प्रक्रिया का प्रमुख स्तंभ है।
17. भारतीय न्यायपालिका की संरचना क्या है?
भारतीय न्यायपालिका त्रिस्तरीय है:
- सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) – भारत का सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण।
- उच्च न्यायालय (High Courts) – प्रत्येक राज्य/राज्यों के समूह के लिए।
- निचली अदालतें (Subordinate Courts) – जिला न्यायालय, सत्र न्यायालय, मजिस्ट्रेट अदालत आदि।
यह संरचना नागरिकों को न्याय सुलभ कराने में सहायता करती है।
18. विधि का वर्गीकरण कैसे किया जाता है?
विधि को दो मुख्य श्रेणियों में बाँटा जाता है:
- सार्वजनिक विधि (Public Law) – जो राज्य और नागरिकों के बीच संबंधों को नियंत्रित करती है, जैसे – संवैधानिक विधि, आपराधिक विधि।
- निजी विधि (Private Law) – जो नागरिकों के आपसी अधिकारों और दायित्वों से संबंधित होती है, जैसे – अनुबंध विधि, संपत्ति विधि।
इसके अतिरिक्त, लिखित एवं अलिखित, दैवी और मानवीय विधियों का वर्गीकरण भी होता है।
19. संविधान क्या है और यह क्यों आवश्यक है?
संविधान किसी देश की सर्वोच्च विधिक दस्तावेज होता है, जो शासन की रूपरेखा, सरकार के अंगों की शक्तियाँ, नागरिकों के अधिकार एवं कर्तव्य और विधि के शासन के सिद्धांतों को निर्धारित करता है। यह लोकतंत्र और विधि के शासन को सुनिश्चित करता है। भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ और यह विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है।
20. मौलिक अधिकार क्या हैं?
मौलिक अधिकार संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किए गए वे विशेष अधिकार हैं जो लोकतंत्र की आत्मा माने जाते हैं। भारत में संविधान के भाग-III में छह प्रकार के मौलिक अधिकार दिए गए हैं, जैसे – समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार आदि। ये अधिकार न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय हैं और किसी भी नागरिक के लिए संरक्षण की गारंटी प्रदान करते हैं।
21. विधिक अनुसंधान (Legal Research) क्या है?
विधिक अनुसंधान वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी विधिक समस्या का समाधान खोजने के लिए विधियों, न्यायिक निर्णयों, विद्वतापूर्ण लेखों और अन्य कानूनी स्रोतों का अध्ययन किया जाता है। यह विधिवेत्ताओं, विधि छात्रों और न्यायाधीशों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। विधिक अनुसंधान न केवल किसी मामले की तैयारी में सहायक होता है, बल्कि विधि विकास में भी योगदान देता है।
22. विधिक भाषा (Legal Language) का महत्व क्या है?
विधिक भाषा न्यायालयों, वकीलों, कानून छात्रों एवं प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा प्रयोग की जाने वाली विशिष्ट भाषा है, जो तकनीकी और सटीक होती है। इसमें लैटिन शब्द, कानूनी शब्दावली और परंपरागत वाक्यांशों का प्रयोग होता है। विधिक भाषा का ज्ञान विधिक पद्धति, मसौदा तैयार करने और तर्क प्रस्तुत करने में सहायक होता है।
23. विधिक तर्कशास्त्र (Legal Reasoning) क्या होता है?
विधिक तर्कशास्त्र वह प्रक्रिया है जिसमें विधिक नियमों और तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष तक पहुँचा जाता है। यह न्यायाधीशों और वकीलों के लिए निर्णय करने और तर्क प्रस्तुत करने का आधार होता है। विधिक तर्क दो प्रकार के होते हैं: न्यायानुकरण (Deductive Reasoning) और अनुगामी (Inductive Reasoning)। यह विधिक शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग है।
24. न्यायिक व्याख्या (Judicial Interpretation) के प्रकार क्या हैं?
न्यायिक व्याख्या विधियों की समझ और उसका न्यायिक दृष्टिकोण से विश्लेषण है। इसके मुख्य प्रकार हैं:
- शाब्दिक व्याख्या (Literal Rule)
- स्वर्ण नियम (Golden Rule)
- उद्देश्यवादी व्याख्या (Mischief Rule / Purposive Rule)
इनके माध्यम से न्यायालय यह निर्धारित करता है कि विधायिका का उद्देश्य क्या था।
25. विधिक नैतिकता (Legal Ethics) क्या है?
विधिक नैतिकता अधिवक्ताओं, न्यायाधीशों और अन्य विधिक पेशेवरों के लिए आचरण के नियम हैं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्याय प्रणाली निष्पक्ष, पारदर्शी और नैतिक हो। जैसे – मुवक्किल की गोपनीयता बनाए रखना, झूठे तथ्य प्रस्तुत न करना, न्यायालय का सम्मान करना आदि। यह विधि के सम्मान और विश्वास को बनाए रखने में सहायक होता है।
26. न्यायपालिका की स्वतंत्रता क्यों आवश्यक है?
न्यायपालिका की स्वतंत्रता लोकतंत्र की रक्षा के लिए अनिवार्य है। यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक अधिकारी बिना किसी राजनीतिक दबाव या हस्तक्षेप के निष्पक्ष निर्णय ले सकें। यह मूल अधिकारों की रक्षा, विधायिका व कार्यपालिका की शक्तियों की समीक्षा और न्याय का निष्पक्ष प्रशासन संभव बनाता है।
27. विधिक सहायता (Legal Aid) क्या है?
विधिक सहायता वह सेवा है जिसके अंतर्गत आर्थिक रूप से कमजोर और असहाय व्यक्तियों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान की जाती है, ताकि वे न्यायालय में अपना पक्ष रख सकें। भारत में यह सेवा संविधान के अनुच्छेद 39-A और विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अंतर्गत दी जाती है।
28. कानून का शासन (Rule of Law) क्या है?
कानून का शासन वह सिद्धांत है जिसके अनुसार राज्य का प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह सामान्य नागरिक हो या अधिकारी, कानून के अधीन होता है। यह समानता, न्याय और मनमानी शासन से मुक्ति का प्रतीक है। भारत में इसका आधार संविधान का अनुच्छेद 14 है।
29. विधिक दृष्टांत (Legal Precedent) क्या होते हैं?
विधिक दृष्टांत वे न्यायिक निर्णय होते हैं जो भविष्य के समान मामलों में मार्गदर्शक होते हैं। doctrine of stare decisis के अंतर्गत निम्न न्यायालय उच्च न्यायालयों के निर्णयों का पालन करते हैं। इससे न्याय में स्थिरता और एकरूपता आती है।
30. विधिक अधिकार (Legal Rights) क्या होते हैं?
विधिक अधिकार वे अधिकार हैं जो राज्य द्वारा विधिक रूप से मान्यता प्राप्त होते हैं और यदि उनका उल्लंघन हो तो व्यक्ति न्यायालय की शरण ले सकता है। उदाहरण – संपत्ति का अधिकार, संवैधानिक अधिकार, अनुबंध के अधिकार आदि। ये अधिकार व्यक्ति को कानूनी सुरक्षा प्रदान करते हैं।
31. विधिक व्यक्ति (Legal Person) किसे कहते हैं?
विधिक व्यक्ति वह इकाई होती है जिसे कानून द्वारा अधिकार और कर्तव्य निभाने की मान्यता दी जाती है। जैसे – कंपनी, संस्था, निगम आदि। इनका अस्तित्व वैधानिक होता है और ये अनुबंध कर सकती हैं, मुकदमा कर सकती हैं या उनके विरुद्ध मुकदमा किया जा सकता है।
32. न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court) क्या है?
जब कोई व्यक्ति न्यायालय की गरिमा, आदेश या कार्यवाही का अपमान करता है या न्याय प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करता है, तो उसे अवमानना कहा जाता है। यह दो प्रकार की होती है – नागरिक अवमानना और आपराधिक अवमानना। इसके लिए भारतीय न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 लागू होता है।
33. विधिक कल्पनाएँ (Legal Fictions) क्या होती हैं?
विधिक कल्पनाएँ ऐसे मान्य सिद्धांत होते हैं जिन्हें विधि वास्तविक मानती है, भले ही वे तथ्यतः सत्य न हों। जैसे – कोई व्यक्ति मृत घोषित हो जाए जब वह सात वर्ष से अधिक समय से लापता हो। यह विधि को व्यावहारिक और न्यायसंगत बनाने में सहायक होती है।
34. विधिक कल्पना और वास्तविकता में अंतर क्या है?
वास्तविकता सच्चाई पर आधारित होती है, जबकि विधिक कल्पना विधि द्वारा मानी गई कृत्रिम सच्चाई होती है। विधिक कल्पनाएँ न्याय को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रयोग में लाई जाती हैं। उदाहरणतः एक निगम को “कृत्रिम व्यक्ति” मानना, जबकि वास्तव में वह जीवित व्यक्ति नहीं होता।
35. विधिक भाषा और सामान्य भाषा में अंतर स्पष्ट करें।
विधिक भाषा तकनीकी और विशिष्ट शब्दों से युक्त होती है, जिसका प्रयोग कानून, न्यायालयों और विधिवेत्ताओं द्वारा किया जाता है। इसमें शब्दों का अर्थ सामान्य भाषा से अलग हो सकता है। सामान्य भाषा सहज और साधारण होती है, जबकि विधिक भाषा अधिक परिशुद्ध, औपचारिक और नियमबद्ध होती है।
यहाँ “विधि का परिचय (Introduction to Law / Legal Method)” विषय से संबंधित प्रश्न संख्या 36 से 50 तक के 150 से 200 शब्दों वाले संक्षिप्त उत्तर (Short Answer Type Questions in Hindi) दिए गए हैं:
36. विधिक कल्पना (Legal Fiction) का उदाहरण स्पष्ट करें।
विधिक कल्पना एक कृत्रिम स्थिति होती है जिसे कानून वास्तविक मान लेता है, भले ही वह वस्तुतः सत्य न हो। इसका उद्देश्य न्याय को सुविधाजनक और प्रभावी बनाना है। एक प्रमुख उदाहरण है – निगम (Company) को “कृत्रिम व्यक्ति” माना जाता है। यद्यपि कंपनी स्वयं बोल नहीं सकती, चल नहीं सकती, लेकिन कानून उसे व्यक्ति की भांति मानता है जो अनुबंध कर सकती है, संपत्ति रख सकती है, और मुकदमा कर सकती है। इसी प्रकार, यदि कोई व्यक्ति सात वर्षों से लापता हो, तो उसे मृत मान लिया जाता है – यह भी एक विधिक कल्पना है।
37. विधिक न्याय और प्राकृतिक न्याय में अंतर स्पष्ट करें।
विधिक न्याय वह है जो कानून के अनुसार दिया जाता है जबकि प्राकृतिक न्याय वह है जो नैतिकता, निष्पक्षता और उचित प्रक्रिया पर आधारित होता है। प्राकृतिक न्याय के दो प्रमुख सिद्धांत हैं:
- कोई भी व्यक्ति स्वयं अपने मामले का न्यायाधीश नहीं हो सकता
- दोनों पक्षों को सुनना आवश्यक है
कई बार विधिक न्याय कठोर हो सकता है, लेकिन प्राकृतिक न्याय का उद्देश्य मानवीयता और तर्कसंगतता को बनाए रखना होता है।
38. विधि और धर्म में अंतर स्पष्ट करें।
विधि राज्य द्वारा बनाई जाती है और इसका उल्लंघन करने पर कानूनी दंड दिया जाता है। धर्म आस्था और नैतिकता पर आधारित होता है तथा इसका उल्लंघन धार्मिक या सामाजिक निंदा का कारण बनता है। विधि बाध्यकारी होती है जबकि धर्म वैकल्पिक होता है। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म का प्रभाव कुछ व्यक्तिगत कानूनों में देखा जा सकता है, परंतु विधि सार्वभौमिक होती है।
39. विधिक यथार्थवाद और विधिक सकारात्मकता में अंतर स्पष्ट करें।
विधिक यथार्थवाद (Legal Realism) यह मानता है कि न्यायिक निर्णय केवल कानून के अनुसार नहीं, बल्कि न्यायाधीशों की सोच, अनुभव और सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार भी होते हैं।
विधिक सकारात्मकता (Legal Positivism) कहता है कि विधि वही है जो विधायिका द्वारा बनाई गई है, चाहे वह नैतिक हो या नहीं। यथार्थवाद व्यावहारिकता पर ज़ोर देता है जबकि सकारात्मकता विधिक स्वरूप पर ज़ोर देती है।
40. न्याय की धारणा का विकास कैसे हुआ?
प्रारंभ में न्याय का आधार ईश्वरीय या नैतिक व्यवस्था थी। समय के साथ, समाज में संगठित राज्य व्यवस्था बनी और न्याय को कानूनी रूप में अपनाया गया। प्राचीन भारत में धर्मशास्त्र, यूनान में प्लेटो व अरस्तु जैसे विचारकों ने न्याय पर विचार किया। आधुनिक युग में न्याय का रूप विधिक और संवैधानिक हुआ, जो आज नागरिकों को अधिकारों की सुरक्षा और समानता सुनिश्चित करता है।
41. विधि का सामाजिक उद्देश्य क्या है?
विधि का मुख्य सामाजिक उद्देश्य समाज में शांति, सुरक्षा, समानता और न्याय की स्थापना करना है। यह समाज के सभी वर्गों को उनके अधिकारों की गारंटी देती है और उनके कर्तव्यों को परिभाषित करती है। विधि सामाजिक नियंत्रण का एक सशक्त माध्यम है जो समाज के विकास और व्यवस्था को सुनिश्चित करता है।
42. कानून की निश्चितता (Certainty of Law) का महत्व क्या है?
किसी भी विधि की विश्वसनीयता उसके स्पष्ट, स्थिर और पूर्वानुमेय होने में निहित होती है। जब कानून निश्चित होता है, तो नागरिक जानते हैं कि कौन-सा कार्य वैध है और कौन-सा नहीं। इससे विधिक प्रक्रिया में विश्वास बढ़ता है और न्याय की सुसंगतता बनी रहती है। अनिश्चित कानून भ्रम और मनमानी निर्णयों का कारण बनता है।
43. न्याय में निष्पक्षता (Impartiality) का क्या महत्व है?
न्याय तभी सार्थक होता है जब वह निष्पक्ष हो। इसका अर्थ है कि न्यायाधीश अपने निर्णय में किसी प्रकार का व्यक्तिगत, राजनीतिक या सामाजिक पक्षपात न करे। निष्पक्षता न्यायपालिका की विश्वसनीयता का आधार है और यह नागरिकों को कानून के प्रति विश्वास दिलाती है कि सभी को समान अवसर मिलेगा।
44. विधिक शिक्षा (Legal Education) का उद्देश्य क्या है?
विधिक शिक्षा का उद्देश्य समाज को योग्य, नैतिक और सक्षम विधिज्ञ प्रदान करना है। यह विधि की समझ, व्याख्या, अनुसंधान और व्यावहारिक प्रयोग की क्षमता विकसित करती है। इसके माध्यम से छात्र संविधान, विधिक अधिकार, न्यायपालिका और विधिक संस्थाओं के कार्य से परिचित होते हैं।
45. भारत में विधिक शिक्षा की चुनौतियाँ क्या हैं?
भारत में विधिक शिक्षा के समक्ष अनेक चुनौतियाँ हैं, जैसे:
- व्यावहारिक प्रशिक्षण की कमी,
- अनुसंधान की दुर्बलता,
- पाठ्यक्रम में अद्यतन विषयों की अनुपस्थिति,
- गुणवत्ता वाले शिक्षक की कमी।
इन समस्याओं के समाधान हेतु नैक, बीसीआई और यूजीसी जैसी संस्थाएँ लगातार प्रयासरत हैं।
46. विधि और राज्य में क्या संबंध है?
राज्य विधि का निर्माता और प्रवर्तक होता है। विधि राज्य के शासन का उपकरण है और राज्य के तीन अंग – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका – विधि के अनुसार कार्य करते हैं। विधि राज्य के अस्तित्व, संरचना और दायित्वों को परिभाषित करती है। बिना विधि के राज्य मनमाना और निरंकुश हो सकता है।
47. विधिक चेतना (Legal Awareness) क्यों आवश्यक है?
विधिक चेतना नागरिकों को उनके अधिकारों, कर्तव्यों और कानूनी उपायों की जानकारी देती है। इससे वे कानून के उल्लंघन से बचते हैं और अन्याय के विरुद्ध कानूनी संरक्षण प्राप्त करते हैं। विधिक जागरूकता लोकतंत्र का आधार है और यह समाज को सशक्त बनाती है।
48. विधिक प्रणाली (Legal System) क्या होती है?
विधिक प्रणाली उस समग्र व्यवस्था को कहते हैं जिसके अंतर्गत किसी देश में कानून बनता है, लागू होता है और न्याय का संचालन होता है। इसमें विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका, अधिवक्ता, पुलिस और न्याय-सहायक संस्थाएँ शामिल होती हैं। भारत की विधिक प्रणाली संविधान आधारित, लोकतांत्रिक और सामान्य विधि (Common Law) पर आधारित है।
49. न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) क्या है?
न्यायिक सक्रियता वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत न्यायालय जनहित के मुद्दों पर स्वतः संज्ञान लेकर या याचिकाओं के आधार पर सरकार को दिशा-निर्देश देता है। यह तब आवश्यक होती है जब विधायिका या कार्यपालिका निष्क्रिय हो। भारत में पी.आई.एल. (PIL) इसका प्रमुख उदाहरण है।
50. भारत में पी.आई.एल. (Public Interest Litigation) का महत्व क्या है?
पी.आई.एल. वह विधिक यंत्र है जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति किसी जनहित के मुद्दे पर न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है, भले ही वह पीड़ित न हो। यह न्याय को गरीब, अशिक्षित और वंचित वर्ग तक पहुँचाने का सशक्त माध्यम है। भारत में पी.आई.एल. के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण, मानव अधिकारों की रक्षा, और प्रशासनिक पारदर्शिता को बढ़ावा मिला है।