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विधिक व्यक्तित्व (Legal Personality) का सिद्धांत – विस्तृत विवेचन

विधिक व्यक्तित्व (Legal Personality) का सिद्धांत – विस्तृत विवेचन

भूमिका :
विधि (Law) का उद्देश्य केवल व्यक्तियों के बीच अधिकार और कर्तव्यों का निर्धारण करना ही नहीं है, बल्कि उन संस्थाओं, संगठनों और समूहों को भी अधिकार एवं दायित्व प्रदान करना है, जो वास्तव में “जीवित मानव” नहीं होते। विधिक प्रणाली ऐसे अमानवीय (non-human) इकाइयों को भी “कृत्रिम व्यक्तित्व” (Artificial Person) के रूप में मान्यता देती है, ताकि वे विधि के क्षेत्र में अपने हितों की रक्षा कर सकें। इस प्रकार विधिक व्यक्तित्व (Legal Personality) वह अवधारणा है, जिसके अंतर्गत विधि किसी इकाई को अधिकारों और कर्तव्यों का धारक मान लेती है।


विधिक व्यक्तित्व की परिभाषाएँ

  1. सलमंड (Salmond):
    “A legal person is any being to whom the law attributes legal personality.”
    अर्थात्, विधिक व्यक्ति वह है, जिसे विधि अधिकार और कर्तव्यों का धारक मान ले।
  2. जेनिंग्स (Jennings):
    “Legal personality is a creation of law. It is not natural but artificial in many cases.”
  3. सामान्य परिभाषा :
    विधिक व्यक्तित्व का अर्थ है—वह स्थिति, जिसके अंतर्गत कोई इकाई विधिक अधिकारों और विधिक कर्तव्यों की धारक बन जाती है, चाहे वह मनुष्य हो या कृत्रिम संस्था।

विधिक व्यक्तित्व के प्रकार

  1. प्राकृतिक व्यक्ति (Natural Person):
    • वह व्यक्ति जो जन्म से लेकर मृत्यु तक अधिकारों और कर्तव्यों का धारक होता है।
    • जैसे – सामान्य मानव।
    • यह विधिक व्यक्तित्व “प्राकृतिक” होता है।
  2. कृत्रिम/जुरिस्टिक व्यक्ति (Artificial or Juristic Person):
    • यह वह इकाई है, जिसे विधि ने “व्यक्ति” का दर्जा दिया है, यद्यपि वह वास्तव में जीवित मानव नहीं है।
    • जैसे – कंपनी, ट्रस्ट, सोसायटी, विश्वविद्यालय, नगर निगम, धार्मिक संस्था आदि।
    • इसे “फिक्शनल पर्सनालिटी” (Fictional Personality) भी कहते हैं।

विधिक व्यक्तित्व का आधार

  • विधिक व्यक्तित्व का आधार “विधिक मान्यता” (Legal Recognition) है।
  • जब तक विधि किसी इकाई को अधिकारों और दायित्वों का धारक नहीं मानती, तब तक वह विधिक व्यक्ति नहीं कहलाती।
  • उदाहरण – कोई कंपनी तब तक विधिक व्यक्ति नहीं मानी जाएगी, जब तक कि उसका पंजीकरण न हो जाए।

विधिक व्यक्तित्व पर सिद्धांत

(1) फिक्शन थ्योरी (Fiction Theory) – सैविग्नी (Savigny)

  • इस सिद्धांत के अनुसार केवल मनुष्य ही वास्तविक व्यक्ति (Real Person) है।
  • अन्य सभी संस्थाएँ (जैसे कंपनी, ट्रस्ट, निगम) मात्र कानूनी कल्पना (Legal Fiction) हैं।
  • विधि सुविधा हेतु उन्हें व्यक्तित्व प्रदान करती है, अन्यथा वे वास्तविक अस्तित्व नहीं रखतीं।
  • आलोचना : व्यावहारिक दृष्टि से कंपनियाँ और संस्थाएँ भी अधिकारों व दायित्वों को निभाती हैं, अतः केवल “फिक्शन” कहना अधूरा है।

(2) रियलिस्ट थ्योरी (Realist Theory) – गियरके (Gierke)

  • इस सिद्धांत के अनुसार केवल मनुष्य ही वास्तविक व्यक्ति नहीं है, बल्कि निगम, संस्था, यूनियन आदि भी वास्तविक अस्तित्व रखते हैं।
  • इन्हें “कलेक्टिव पर्सनालिटी” (Collective Personality) कहा जाता है।
  • जैसे – कंपनी स्वतंत्र रूप से अनुबंध कर सकती है, संपत्ति खरीद सकती है, मुकदमा दायर कर सकती है।
  • अतः यह “वास्तविक व्यक्ति” है।

(3) कंसेशन थ्योरी (Concession Theory)

  • इस सिद्धांत के अनुसार, केवल राज्य ही व्यक्तित्व प्रदान कर सकता है।
  • कोई संस्था केवल तब विधिक व्यक्तित्व धारण करती है जब राज्य उसे मान्यता प्रदान करता है।
  • अर्थात्, विधिक व्यक्तित्व “राज्य की कृपा” (Concession of State) है।

(4) उद्देश्य सिद्धांत (Purpose Theory) – सलमंड

  • इसके अनुसार, विधिक व्यक्तित्व प्रदान करने का उद्देश्य होता है—
    • सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति,
    • संस्थाओं की कार्यक्षमता बढ़ाना,
    • सामूहिक हितों की रक्षा करना।
  • जैसे – ट्रस्ट, सोसायटी और कंपनी को विधिक व्यक्तित्व इसलिए दिया गया ताकि वे अपने-अपने कार्य कर सकें।

विधिक व्यक्तित्व की विशेषताएँ

  1. अधिकार एवं दायित्वों का धारक होना।
  2. विधिक मान्यता प्राप्त होना।
  3. कानून के अनुसार स्वतंत्र अस्तित्व।
  4. संपत्ति धारण करने की क्षमता।
  5. विधिक संबंधों का निर्माण।

विधिक व्यक्तित्व और मानव व्यक्तित्व का अंतर

आधार प्राकृतिक व्यक्ति विधिक/कृत्रिम व्यक्ति
अस्तित्व जन्म से मृत्यु तक विधिक मान्यता से आरंभ, समाप्ति विधिक नियम से
स्वरूप वास्तविक (Real) कृत्रिम (Artificial)
क्षमता स्वाभाविक अधिकार व कर्तव्य विधिक मान्यता के आधार पर अधिकार व कर्तव्य
उदाहरण मनुष्य कंपनी, ट्रस्ट, सोसायटी, विश्वविद्यालय

विधिक व्यक्तित्व का महत्त्व

  1. व्यावसायिक क्षेत्र में:
    कंपनियों को विधिक व्यक्तित्व प्रदान करने से वे संपत्ति धारण कर सकती हैं, अनुबंध कर सकती हैं, अपने नाम से मुकदमा कर सकती हैं।
  2. सामाजिक क्षेत्र में:
    धार्मिक संस्थाएँ, ट्रस्ट, सोसायटी आदि को विधिक व्यक्तित्व प्राप्त होने से सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति होती है।
  3. न्यायिक क्षेत्र में:
    विधिक व्यक्तित्व से न्यायालयों में व्यक्तियों और संस्थाओं के अधिकारों की रक्षा संभव होती है।
  4. राजनीतिक क्षेत्र में:
    नगर निगम, ग्राम पंचायत, विश्वविद्यालय आदि संस्थाओं को विधिक व्यक्तित्व देकर उन्हें कार्य करने की क्षमता प्रदान की जाती है।

भारतीय विधि में विधिक व्यक्तित्व

भारतीय विधिक प्रणाली में भी अनेक अमानवीय इकाइयों को विधिक व्यक्तित्व प्राप्त है, जैसे –

  1. कंपनी (Company):
    कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत पंजीकृत कंपनी विधिक व्यक्ति मानी जाती है।
  2. नगर निगम व पंचायतें:
    संविधान व विधिक मान्यता के तहत ये भी विधिक व्यक्ति हैं।
  3. धार्मिक संस्थाएँ व देवता:
    भारतीय न्यायालयों ने कई निर्णयों में मंदिर और देवता को विधिक व्यक्तित्व माना है।

    • जैसे – प्रभु श्री जगन्नाथ बनाम प्रभु श्री रामचंद्र जी का मामला (SC)
    • इसमें देवता को संपत्ति का स्वामी और विधिक व्यक्ति माना गया।

आलोचना

  • विधिक व्यक्तित्व की अवधारणा कृत्रिम है, इसका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं।
  • यह राज्य या विधि पर निर्भर है, अतः स्वतंत्र नहीं।
  • कभी-कभी इसका दुरुपयोग कंपनियों द्वारा धोखाधड़ी करने हेतु किया जाता है।

निष्कर्ष

विधिक व्यक्तित्व (Legal Personality) विधि का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। यह सिद्धांत मान्यता देता है कि केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि कृत्रिम इकाइयाँ भी अधिकारों और कर्तव्यों की धारक हो सकती हैं। इससे न केवल व्यापार और उद्योग का विकास हुआ है, बल्कि धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक संस्थाओं को भी स्वतंत्र अस्तित्व मिला है। अतः कहा जा सकता है कि विधिक व्यक्तित्व सामाजिक न्याय, संगठनात्मक कार्यक्षमता और विधिक व्यवस्था का अनिवार्य अंग है।