विकलांग बच्चों के लिए कानूनी संरक्षण और शिक्षा के अधिकार

विकलांग बच्चों के लिए कानूनी संरक्षण और शिक्षा के अधिकार


प्रस्तावना

विकलांग (Divyang) बच्चे हमारे समाज का अभिन्न हिस्सा हैं। उनकी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी क्षमताओं में भिन्नता होने के बावजूद वे समान अवसर, सम्मान और अधिकार पाने के हकदार हैं। लेकिन लंबे समय तक उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और सामाजिक भागीदारी के अवसरों से वंचित रखा गया। भारत में संविधान, विभिन्न अधिनियमों और अंतर्राष्ट्रीय संधियों के माध्यम से विकलांग बच्चों के लिए विशेष कानूनी संरक्षण और शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित किया गया है।

यह लेख विकलांग बच्चों के अधिकारों, कानूनी प्रावधानों और शिक्षा के क्षेत्र में लागू की गई व्यवस्थाओं पर विस्तृत प्रकाश डालता है।


विकलांगता की परिभाषा

‘विकलांगता’ का तात्पर्य ऐसी दीर्घकालिक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी कमी से है, जो व्यक्ति की पूर्ण और प्रभावी सामाजिक भागीदारी में बाधा उत्पन्न करती है।
भारत में ‘विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016’ (RPwD Act) के तहत विकलांगता की 21 श्रेणियों को मान्यता दी गई है, जिनमें दृष्टिबाधित, श्रवणबाधित, मस्तिष्काघात, बौद्धिक विकलांगता, मानसिक रोग, ऑटिज़्म, थैलेसीमिया आदि शामिल हैं।


संवैधानिक प्रावधान

  1. अनुच्छेद 14 – समानता का अधिकार: विकलांग बच्चों के साथ किसी प्रकार का भेदभाव निषिद्ध है।
  2. अनुच्छेद 15(1) और 15(2) – धर्म, जाति, लिंग या विकलांगता के आधार पर भेदभाव पर रोक।
  3. अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार, जिसमें सम्मानजनक जीवन और शिक्षा का अधिकार शामिल है।
  4. अनुच्छेद 21A – 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार, जिसमें विकलांग बच्चे भी शामिल हैं।
  5. अनुच्छेद 41 – विकलांग और अशक्त व्यक्तियों के लिए सार्वजनिक सहायता, शिक्षा और रोज़गार के अवसर सुनिश्चित करने का दायित्व।
  6. अनुच्छेद 46 – कमजोर वर्गों की शिक्षा और आर्थिक हितों का विशेष संरक्षण।

प्रमुख कानूनी प्रावधान और अधिनियम

1. विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016)

  • 21 प्रकार की विकलांगताओं को मान्यता।
  • शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य और सामाजिक जीवन में समान अवसर।
  • 6 से 18 वर्ष के विकलांग बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान।
  • सरकारी और सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में कम से कम 5% सीटें विकलांग बच्चों के लिए आरक्षित।
  • विद्यालयों में विशेष सुविधाएँ: रैम्प, ब्रेल किताबें, श्रवण यंत्र, विशेष शिक्षक।

2. शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE Act)

  • धारा 3(2): विकलांग बच्चों के लिए 6 से 18 वर्ष तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा।
  • समावेशी शिक्षा (Inclusive Education) का प्रावधान – विकलांग बच्चों को सामान्य स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार।

3. राष्ट्रीय बाल नीति और बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम

  • NCPCR और राज्य बाल अधिकार आयोग (SCPCR) विकलांग बच्चों के अधिकारों की निगरानी और सुरक्षा करते हैं।

4. मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017

  • मानसिक रोग या बौद्धिक विकलांगता से पीड़ित बच्चों के लिए गरिमापूर्ण देखभाल और पुनर्वास का अधिकार।

5. राष्ट्रीय ट्रस्ट अधिनियम, 1999

  • ऑटिज़्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहु-विकलांगता वाले बच्चों के लिए सामाजिक सुरक्षा और पुनर्वास योजनाएँ।

अंतर्राष्ट्रीय कानूनी ढांचा

भारत संयुक्त राष्ट्र विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अभिसमय (UNCRPD), 2006 का हस्ताक्षरकर्ता है।

  • विकलांग बच्चों के लिए समान शिक्षा, स्वास्थ्य और सहभागिता का अधिकार।
  • भेदभाव रहित और समावेशी शिक्षा व्यवस्था।
  • व्यक्तिगत गरिमा और स्वतंत्रता की गारंटी।

इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार अभिसमय (UNCRC), 1989 भी विकलांग बच्चों के विशेष संरक्षण की बात करता है।


विकलांग बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार

1. समावेशी शिक्षा (Inclusive Education)

  • विकलांग बच्चों को अलग-थलग रखने के बजाय मुख्यधारा की शिक्षा में शामिल करना।
  • आवश्यकतानुसार विशेष सहायक उपकरण और शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराना।

2. विशेष स्कूल और संसाधन केंद्र

  • गंभीर विकलांगता वाले बच्चों के लिए विशेष स्कूलों की व्यवस्था।
  • संसाधन केंद्रों में फिजियोथेरेपी, स्पीच थेरेपी, काउंसलिंग।

3. शिक्षकों का प्रशिक्षण

  • विशेष शिक्षकों की नियुक्ति।
  • सामान्य शिक्षकों को समावेशी शिक्षा के लिए प्रशिक्षित करना।

4. डिजिटल और तकनीकी सहायता

  • ई-लर्निंग सामग्री, स्क्रीन रीडर सॉफ़्टवेयर, सांकेतिक भाषा वीडियो।
  • दृष्टिहीन बच्चों के लिए ब्रेल पुस्तकें और ऑडियो लेसन।

सरकारी योजनाएँ और कार्यक्रम

  1. समग्र शिक्षा अभियान – विकलांग बच्चों के लिए सहायक उपकरण, विशेष प्रशिक्षण, परिवहन भत्ता।
  2. दिव्यांग जन सशक्तिकरण विभाग – छात्रवृत्ति, विशेष शिक्षा अनुदान, कौशल प्रशिक्षण।
  3. राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल (NSP) – विकलांग छात्रों के लिए विशेष छात्रवृत्ति योजनाएँ।
  4. ADIP योजना – सहायक उपकरण जैसे व्हीलचेयर, श्रवण यंत्र, ब्रेल किट प्रदान करना।

न्यायालय का दृष्टिकोण

  • सौम्या घोष बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2010) – कलकत्ता उच्च न्यायालय ने विकलांग बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए राज्य सरकार को निर्देश दिए।
  • National Federation of Blind बनाम भारत संघ (2013) – सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में 3% आरक्षण को लागू करने पर ज़ोर दिया, जो शिक्षा क्षेत्र में भी प्रेरणास्रोत है।
  • अमर सिंह बनाम भारत संघ (2011) – विकलांग बच्चों के लिए विद्यालयों में रैम्प और अन्य सुविधाओं का प्रावधान अनिवार्य।

चुनौतियाँ

  1. भौतिक अवसंरचना की कमी – कई स्कूलों में रैम्प, लिफ्ट, शौचालय जैसी सुविधाओं का अभाव।
  2. शिक्षकों की कमी – विशेष शिक्षकों और प्रशिक्षित स्टाफ की कमी।
  3. सामाजिक दृष्टिकोण – विकलांग बच्चों के प्रति भेदभाव और संवेदनशीलता की कमी।
  4. तकनीकी संसाधनों का अभाव – सहायक उपकरण और तकनीकी सामग्री सभी तक नहीं पहुँच पाती।
  5. डेटा और निगरानी – विकलांग बच्चों की वास्तविक संख्या और उनकी ज़रूरतों का सही आकलन नहीं।

रोकथाम और सुधार की रणनीतियाँ

  • अवसंरचना सुधार – सभी विद्यालयों को दिव्यांग-अनुकूल बनाना।
  • शिक्षक प्रशिक्षण – समावेशी शिक्षा पद्धतियों और सहायक उपकरणों के उपयोग का प्रशिक्षण।
  • सामाजिक जागरूकता – विकलांग बच्चों को मुख्यधारा में स्वीकार करने के लिए समाज में सकारात्मक सोच।
  • तकनीकी सहायता – ई-लर्निंग, सांकेतिक भाषा ऐप, स्क्रीन रीडर का व्यापक उपयोग।
  • कानूनी प्रवर्तन – RPwD Act और RTE Act का सख्ती से पालन।

निष्कर्ष

विकलांग बच्चों के लिए शिक्षा और कानूनी संरक्षण केवल अधिकार का विषय नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय का भी प्रश्न है। कानून और नीतियाँ तभी सफल होंगी जब समाज में संवेदनशीलता और समानता का भाव हो। एक समावेशी और सहयोगी शिक्षा व्यवस्था न केवल विकलांग बच्चों को अवसर देती है, बल्कि पूरे समाज को मानवीय मूल्यों से समृद्ध बनाती है।

यदि हम चाहते हैं कि कोई भी बच्चा अपनी क्षमताओं की कमी के कारण पीछे न रह जाए, तो हमें कानूनी प्रावधानों का कठोर अनुपालन, बेहतर अवसंरचना, प्रशिक्षित शिक्षक और सहायक तकनीकों का उपयोग सुनिश्चित करना होगा।