“वाहनों के लिए ‘स्टार-रेटिंग’ लागू करने की मांग पर Supreme Court of India का मना-फरमान: नज़रिए, प्रभाव एवं आगे की राह”
प्रस्तावना
दक्षिण एशिया के देश भारत में वायु-प्रदूषण एक जटिल एवं बहुआयामी समस्या बन चुकी है। वर्ष 2021 में प्रकाशित आकलनों के अनुसार, देश में करीब 21 लाख लोगों की मृत्यु वायु-प्रदूषण से जुड़ी परिस्थितियों के कारण हुई थी। इस संदर्भ में, वाहनों से उत्सर्जित धूलकण (विशेष रूप से PM₂.₅) और कार्बन-डाइऑक्साइड (CO₂) जैसी गैसें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ऐसे में सार्वजनिक हित में दायर एक याचिका के माध्यम से यह प्रस्ताव सामने आया कि देश भर में वाहनों के लिए एक “स्टार-रेटिंग” व्यवस्था लागू की जाए, जिससे उपभोक्ता यह जान सकें कि कोई वाहन कितनी ऊर्जा खपत करता है, कितनी CO₂/PM₂.₅ उत्सर्जित करता है, और इसके आधार पर “हरा” विकल्प चुन सकें।
हालाँकि, 27 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इस लेख में हम इस फैसले का विश्लेषण करेंगे — याचिका क्या थी, कोर्ट ने क्यों इनकार किया, इसके पीछे नीति-विधान की चुनौतियाँ क्या हैं, इस निर्णय का संभावित प्रभाव क्या होगा, और आगे कैसे चलना चाहिए।
याचिका की पृष्ठभूमि एवं प्रमुख तर्क
याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत तर्क
- याचिकाकर्ता थे Sanjay Kulshresthra (एक बाल रोग विशेषज्ञ) जिन्होंने एक सार्वजनिक हित याचिका (PIL) दायर की।
- उन्होंने सुझाव दिया कि वाहन उद्योग में एक स्टार-रेटिंग सिस्टम लागू किया जाए — जैसे भारत में घरेलू उपकरणों (रेफ्रीजरेटर, एसी) के लिए ऊर्जा-रेटिंग होती है — जिससे यह हो सके कि वाहन खरीदते समय उपभोक्ता यह जान सके कि यह वाहन कितने प्रदूषक उत्सर्जित करेगा।
- याचिका में यह तर्क भी था कि अनेक विकसित देशों में यह व्यवस्था मौजूद है और भारत को भी इस दिशा में कदम उठाना चाहिए।
- उन्होंने यह भी बताया कि भारत में वाहनों से निकलने वाले PM₂.₅ का योगदान मृत्यु-प्रमुखता में बहुत अधिक है; “21 लाख लोग प्रति वर्ष मरते हैं, 60 % उनकी मौतों के पीछे वाहनों से निकलने वाला PM₂.₅ है” — जैसे स्वास्थ्य-तर्क पेश किए गए।
- याचिका ने यह भी उठाया कि भारत में Bharat New Car Assessment Programme (BNCAP) नामक वाहन सुरक्षा एवं मूल्यांकन का मसौदा जुलाई 2023 से पेंडिंग है।
नीति-प्रासंगिक पृष्ठभूमि
- भारत में वाहन-प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न नियम बने हैं: जैसे उत्सर्जन-मान (Bharat Stage – BS) के स्तर, ईंधन-गुणवत्ता में सुधार, वाहन सेक्रापिंग पालिसी आदि।
- स्टार-रेटिंग का विचार खास तौर पर उपभोक्ता-चेतना बढ़ाने, बाजार में “हरित वाहन” को प्रोत्साहित करने और उद्योग को प्रतिस्पर्धात्मक दबाव देने के विकल्प के रूप में देखा जाता रहा है।
- लेकिन वर्तमान में भारत में ऐसा व्यवस्थित, अनुपालन योग्य वाहन-स्टार-रेटिंग सिस्टम व्यापक रूप से लागू नहीं है — याचिकाकर्ता ने इसे प्रमुख कमी के रूप में प्रस्तुत किया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय एवं कारण-व्याख्या
मुख्य निर्णय
- 27 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट की पीठ (मुख्य न्यायाधीश B. R. Gavai व न्यायमूर्ति K. Vinod Chandran) ने यह याचिका स्वीकार करने से इंकार कर दिया।
- कोर्ट ने कहा कि यह मामला नीति-निर्धारण (policy-making) के अंतर्गत आता है, और कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं कर रहा। उन्होंने याचिकाकर्ता को सुझाव दिया कि वे अपने सुझाव को केंद्र सरकार के समक्ष एक प्रतिनिधि (representation) के रूप में प्रस्तुत करें।
- विश्लेषण यह कि “चूंकि यह राज्य-क्षेत्र (domain) का मामला है, हम हस्तक्षेप नहीं करना चाहेंगे; परन्तु आप केंद्र सरकार को प्रतिनिधि कर सकते हैं जिसे वह अपने मेरिटपर विचार करेगा।”
कोर्ट द्वारा उठाए गए कारण
- नीति-निर्धारण का दायरा: कोर्ट ने माना कि ऐसे निर्णय जिसमें उद्योग-मानदंड और उपभोक्ता-चेतना सृजन जैसे विषय शामिल हों, वे कार्यपालिका एवं विधानमंडल के दायरे में आते हैं, न कि न्यायपालिका में।
- संदर्भ-अपर्याप्तता: संभवतः याचिका में नीति-वैकल्पिक विकल्पों, लागत-लाभ विश्लेषण, उद्योग एवं सरकार की तैयारियों आदि का पर्याप्त विवरण नहीं था जिससे कोर्ट मजबूती से निर्देश दे सके।
- वैकल्पिक उपाय-रास्ता: कोर्ट ने उत्तेजित नहीं किया कि सरकार तुरंत ऐसा करे, बल्कि याचिकाकर्ता को प्रशासनिक प्रक्रियाओं — जैसे प्रतिनिधि प्रस्तुत करना — अपनाने के लिए कहा।
- अदालती विवेक-सीमा: यह संकेत भी था कि न्यायालय स्वतंत्र रूप से नहीं कह सकता कि “यानि तुरंत लागू करो”, क्योंकि इससे कार्यपालिका और विधायी अंगों की भूमिका कम हो जाती।
इस निर्णय के प्रभाव एवं चुनौतियाँ
सकारात्मक दृष्टिकोण
- यह स्पष्ट हुआ कि वाहन-प्रदूषण नियंत्रण में उपभोक्ता-चेतना बढ़ाना एक महत्वपूर्ण कड़ी हो सकती है — चाहे स्टार-रेटिंग रूप में हो या अन्य रूप से।
- याचिका ने पुनः गूंज पैदा की कि वाहन उद्योग को सिर्फ उत्सर्जन-मान तक सीमित न रखना चाहिए, बल्कि उपभोक्ता-सूचना, विज्ञापन-मानक, ऊर्जा-प्रभाव जैसे पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए।
- सरकार एवं उद्योग को संकेत मिलेगा कि इस दिशा में दायर याचिका-विचार मौजूद हैं — संभवतः भविष्य में नीति-निर्माता सक्रिय हों।
नकारात्मक या चिंताजनक पक्ष
- उपभोक्ताओं को वह सूचना-प्लेटफॉर्म अभी भी नहीं मिला जिससे वे वाहन खरीदते समय “उर्जा-प्रदूषण प्रभाव” को समझ सकें — उदाहरण स्वरूप स्टार-रेटिंग।
- यदि ऐसा निर्देशात्मक सितारा-रूप नहीं मिलता, तो वाहन-निर्माताओं पर पर्यावरण-प्रदूषण कम कराने का दबाव कम रह सकता है।
- पूरे देश में एक मानकीकृत व्यवस्था न होने से विभिन्न राज्यों/उद्योग में असामंजस्य बना रहेगा — उपभोक्ता भ्रम के शिकार हो सकते हैं।
- पेट्रोल-डीजल (वर्तमान दबाव वाले ईंधन) आधारित वाहन-सेक्टर में प्रतिस्पर्धा तेज है; अगर पर्यावरण-चेतना वाली अतिरिक्त व्यवस्था न हो, तो “सस्ते” अधिक प्रदूषक विकल्पों को चुनने की प्रवृत्ति बनी रहेगी।
आगे की चुनौतियाँ
- वाहन-स्टार-रेटिंग की प्रक्रिया में मापदंड-निर्धारण की जटिलता है — ऊर्जा खपत, CO₂ उत्सर्जन, PM₂.₅ उत्सर्जन, वाहन वजन-इंजन-मानदंड आदि।
- उद्योग-प्रभाव का आकलन: यदि स्टार-रेटिंग लागू होती है, तो वाहन-निर्माताओं को लागत बढ़ सकती है — यह उद्योग एवं सरकार के बीच नीति-संवाद का विषय है।
- उपभोक्ता-सूचना के लिए प्रचार-प्रसार, उपभोक्ता-शिक्षा और भरोसेमंद लेबलिंग व्यवस्था विकसित करना होगा।
- राज्य-स्तरीय इम्प्लीमेंटेशन: भारत में विभिन्न राज्यों का परिवहन-प्रांगण अलग-अलग है — केंद्र–राज्य समन्वय आवश्यक होगा।
- निगरानी-तंत्र एवं पालन-यकीनीकरण: सिर्फ स्टार-रेटिंग तय कर लेना पर्याप्त नहीं; उसे सख्ती से लागू करना भी जरूरी है — जैसे उपकरणों में energy-rating की तरह।
इस मामले में नीति-विधान एवं अंतर्राष्ट्रीय अनुभव
अंतर्राष्ट्रीय दृष्टांत
- कई विकसित देशों में वाहन-ऊर्जा-प्रदर्शन लेबलिंग कार्यक्रम चल रहे हैं, जिनमें उपभोक्ताओं को वाहन खरीदने से पहले ऊर्जा-खपत, CO₂ उत्सर्जन आदि की जानकारी मिलती है।
- उदाहरणस्वरूप, यूरोपीय यूनियन में वाहन CO₂ उत्सर्जन लेबलिंग, अमेरिका में “EPA fuel economy labels”, ऑस्ट्रेलिया/न्यूज़ीलैंड में वाहन ऊर्जा-रैंकिंग आदि। ऐसे अनुभवों से सीख मिलती है कि लेबलिंग-प्रणाली से उपभोक्ता विकल्प बदल सकते हैं, वाहन-निर्माताओं को सुधारने का दबाव मिल सकता है।
- लेकिन इन प्रणालियों को लागू करने में समय-लगाव, उद्योग-अपनाने की चुनौतियाँ, उपभोक्ता-साक्षरता, लेबलिंग-मानक आदि मुद्दे सामने आए हैं।
भारत-विशेष नीति-स्थिति
- भारत में आतंरिक प्रक्रिया यह रही कि वाहन सुरक्षा एवं क्रैश-टेस्टिंग के लिए Bharat New Car Assessment Programme (BNCAP) नामक कार्यक्रम तैयार किया गया है, लेकिन यह अब तक पूर्ण रूप से लागू नहीं हुआ है। याचिकाकर्ता ने इसे मुख्य कमी के रूप में उठाया।
- इसके अतिरिक्त, भारत में ऊर्जा-उपकरणों (जैसे रेफ्रीजरेटर, एसी) के लिए स्टार-रैंकिंग व्यवस्था पहले से है; याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि वाहन के लिए यह क्यों नहीं हो सकती।
- वाहन-उद्योग एवं उपभोक्ता-बाज़ार को बदलने के लिए भारत में पहले से उत्सर्जन-मान (Bharat Stage) और ईंधन-गुणवत्ता सुधार की दिशा में कदम उठाए गए हैं — लेकिन स्टार-रेटिंग जैसे उपभोक्ता-उन्मुख उपाय अभी व्यापक नहीं हैं।
आगे की राह — सुझाव एवं विचार
- सरकारी प्रतिनिधि प्रस्तुत करना और कानूनी उपाय अपनाना
- जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने सुझाया, याचिकाकर्ता या अन्य नागरिक समूह इसे केंद्र सरकार को प्रतिनिधि के माध्यम से प्रस्तुत कर सकते हैं — यह कदम प्रक्रिया-प्रारंभ के रूप में उपयोगी हो सकता है।
- इसके साथ-साथ, विधायी मार्ग से या राज्य-पालिकों के माध्यम से एक प्रस्ताव तैयार किया जा सकता है जिसमें वाहन-स्टार-रेटिंग को शामिल किया जाए।
- पायलट-प्रोजेक्ट एवं चरण-बद्ध कार्यान्वयन
- पूरे देश में तुरंत लागू करने के बजाय, एक या दो राज्यों में पायलट-प्रोजेक्ट के रूप में स्टार-रेटिंग लागू किया जा सकता है। उस पायलट-प्रोजेक्ट में डेटा संग्रह, उपभोक्ता-प्रतिक्रिया, उद्योग-प्रभाव आदि का अध्ययन हो सकता है।
- पायलट सफल होने के बाद उसे देशव्यापी किया जाए।
- मानक-निर्धारण एवं निगरानी-तंत्र की स्थापना
- लेबलिंग-मानक (उदा. CO₂ से कितना कम करके वाहन “5-स्टार” कहे जाएंगे), परीक्षण-प्रोटोकॉल, लेबल-डिज़ाइन, उपभोक्ता-सूचना फॉर्मेट आदि तैयार करना होगा।
- एक विश्वसनीय निगरानी-तंत्र होना चाहिए ताकि निर्धारित मानकों के अनुरूप न होने पर प्रतिबंधित किया जा सके।
- उद्योग-प्रोत्साहन एवं उपभोक्ता-शिक्षा
- उद्योग को प्रेरित करना होगा कि वे “हरित वाहन” दिशा में निवेश करें – टैक्स-उपाय, सब्सिडी, कम-उत्सर्जन वाहन के लिए प्रोत्साहन आदि।
- उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता बढ़ाना होगा — उदाहरण के लिए “यह वाहन इस लेबल के कारण कम प्रदूषण करता है” — ताकि वे खरीद-निर्णय में पर्यावरण-प्रभाव को ध्यान में रखें।
- राज्य-केन्द्र समन्वय व सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP)
- परिवहन-नीति एवं वाहन-पंजीकरण का मामला अधिकांशतः राज्य सरकारों के अंतर्गत है — इसलिए केंद्र एवं राज्य सरकारों का समन्वय आवश्यक है।
- निजी वाहन-उद्योग, उपभोक्ता-संगठन, शोध-संस्थान आदि के साथ मिलकर कार्य करना उतना ही आवश्यक होगा।
निष्कर्ष
भोर का सौदा तो नहीं हुआ — लेकिन दिशा तय हो गई। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि वाहन-स्टार-रेटिंग जैसे उपभोक्ता-प्रेरित सूचना-उपाय एक प्रश्न है जिसे सीधे न्यायिक आदेश से नहीं, बल्कि नीति-निर्धारण प्रक्रिया के माध्यम से उठाना होगा।
याचिका स्वीकार न होना एक बाधा हो सकती है, पर यह मतलब नहीं कि पहल बंद हो गई हो — बल्कि सरकार, उद्योग एवं नागरिक समाज के बीच संवाद का मौका है। यदि समय रहते यह विषय सक्रिय रूप से उठे, सही मानकों के साथ लागू किया जाए और उपभोक्ताओं को सशक्त बनाया जाए, तो यह वाहन-उद्योग एवं वायु-प्रदूषण नियंत्रण दोनों के लिए एक गेम-चेंजर सिद्ध हो सकता है।
वायु-प्रदूषण की चुनौतियाँ तेज़ गति से बढ़ रही हैं — इस समय पर उपभोक्ता-सक्षम उपायों की आवश्यकता है। “स्टार-रेटिंग” का विचार इस दिशा में एक साधन हो सकता है — फिर चाहे उसे तुरंत लागू करना हो या क्रमशः।