“वास्तविक आवश्यकता के आधार पर मकान मालिक को बेदखली का अधिकार: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय”
मामला का शीर्षक
Ram Niwas S/o Mohan Lal v. Gobind Lal Malik (C.R. No. 3350 of 2013), पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट।
तथ्य-परिचय
- मकान मालिक (याचिकाकर्ता) का नाम राम निवास था। उसने किरायेदार ग़ोबिन्द लाल मलिक के विरुद्ध निर्वासन की याचिका दायर की थी।
- मकान मालिक ने दावा किया कि वह उस चिकित्सित वाणिज्यिक परिसर (या दुकान) को अपने व्यवसाय अथवा कार्यालय प्रयोजन के लिए चाहता है, और इसलिए किरायेदार को खाली करना चाहिए।
- किरायेदार ने किंचित प्रतिवाद किया कि मकान मालिक के पिता व परिवार के अन्य-सदस्य के नाम से एक अन्य वाणिज्यिक संपत्ति पहले से ही उसी शहरी क्षेत्र में है, अतः मकान मालिक की “बोनाफाइड व्यक्तिगत आवश्यकता” की दलील सही नहीं है।
- मकान मालिक ने यह स्वीकार किया कि उसके पास चार-कमरों का अपार्टमेंट है उसी शहरी क्षेत्र में और उसकी पत्नी के नाम से भी बंगला है, परन्तु उसने तर्क दिया कि उसकी आवश्यकता उस किरायेदारी-दुकान को अपने बेटे के मैस्ल कार्यालय के लिए लेने की है।
कानून-प्रावधान
- यह मामला पुराने **East Punjab Urban Rent Restriction Act, 1949 / हरियाणा से संबंधित किराया–कंट्रोल कानून के अंतर्गत था।
- मकान मालिक द्वारा किरायेदार को निकालने की अनुमति-दायिनी अवस्था यह है कि मकान मालिक को “स्वयं के पयोग” अथवा “परिवार के किसी सदस्य के उपयोग” के लिए उक्त भवन की वास्तविक आवश्यकता (bona fide requirement) होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, मकान मालिक के पास उसी शहरी क्षेत्र में दूसरी उपयुक्त उत्तमविकल्प संपत्ति नहीं होनी चाहिए या यदि है भी, तो वह उसे अविलंब खाली कर शासन करने वाला हो।
- मकान मालिक की आवश्यकता तभी स्वीकार्य मानी जाती है यदि वह बोनाफाइड (ईमानदारी से) और व्यावहारिक रूप से हो।
निर्णय में दिए गए मुख्य बिंदु
- न्यायालय ने माना कि मकान मालिक की आवश्यकता “बोनाफाइड” है — क्योंकि उसने बताया कि वह उस दुकान-स्थान को अपने बेटे के कानूनी अभ्यास (office) के लिए आवश्यक मानता है।
- किरायेदार द्वारा प्रस्तुत तथ्य कि मकान मालिक के पिता नाम से एक अन्य वाणिज्यिक संपत्ति पहले से मौजूद है — न्यायालय ने इसे मकान मालिक की आवश्यकता को स्वतः अस्वीकार करने का कारण नहीं माना। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि स्वामी के पिता की संपत्ति मकान मालिक के अधिकारों के अधीन “दूसरी उपयुक्त संपत्ति” के रूप में नहीं देखी जाती जो निष्कासन का प्रतिबंधक हो।
- न्यायालय ने यह कहा कि मकान मालिक की स्वयं की अपार्टमेंट या पत्नी के बंगले का होना भी निष्कासन की सुविधा को स्वतः खारिज नहीं करता—मकान मालिक चयन कर सकता है कि किस संपत्ति को कार्यालय के उपयोग में ले।
- अंततः, न्यायालय ने किरायेदार की याचिका खारिज की और मकान मालिक के पक्ष में निर्वासन का आदेश दिया।
हिंदी में तकनीकी-विश्लेषण
(i) “दूसरी संपत्ति” का प्रश्न
- किरायेदार ने तर्क दिया कि मकान मालिक या उसके पिता के नाम पर दूसरी वाणिज्यिक संपत्ति पहले से मौजूद होने से मकान मालिक की निवास-आवश्यकता संदिग्ध हो जाती है।
- परन्तु न्यायालय ने कहा कि किराया कानून में यह स्वत: निष्कासन नहीं करता कि मकान मालिक के परिवार के अन्य सदस्य नाम से किसी अन्य संपत्ति में हैं। विशेष रूप से: “Ownership of property belonging to spouse is not contemplated under Section 13(1)(b) as disentitling a landlord for possession of another building.”
- यहाँ गौरतलब है कि “दूसरी संपत्ति” का अर्थ है कि मकान मालिक उक्त शहरी क्षेत्र में और उपयुक्त रूप से उस उपयोग के लिए एक विकल्प संपत्ति रखता हो जिसे वह वर्तमान किराये की संपत्ति से हासिल करना चाहता। यदि ऐसा विकल्प न हो या विकल्प श्रेणी में न हो, तो निर्वासन की अनुमति मिल सकती है।
(ii) मकान मालिक की आवश्यकता – “बोनाफाइड” होना
- मकान मालिक ने स्पष्ट किया कि वह उस दुकान-स्थान को बेटे के कार्यालय के लिए लेना चाहता है। यह दर्शाता है कि वह इसका उपयोग नहीं केवल व्यक्तिगत रहने के लिए बल्कि व्यावसायिक प्रयोजन के लिए करना चाहता है।
- न्यायालय ने माना कि यह कारण वैध है—क्योंकि किराया-कंट्रोल कानून में “स्वयं-उपयोग” की स्थिति न सिर्फ आवासीय बल्कि वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए भी स्वीकार्य हो सकती है (जब कानूनी प्रावधान दें)।
- अभिनेता की आवश्यकता केवल “इच्छा” से नहीं होनी चाहिए; बल्कि “निष्पादन योग्य”, “अन्य विकल्पों से बाहर” और “वास्तविक” होनी चाहिए।
(iii) निष्कासन का आदेश
- न्यायालय ने देखा कि मकान मालिक ने उतरदायित्व लिया है कि उसके पास उस शहरी क्षेत्र में कोई उत्तम विकल्प नहीं है (या नहीं था) और उसने किरायेदार को समय से खाली करवाने का प्रयास किया है।
- इसलिए, किरायेदार को निर्देश दिया गया कि वह उक्त दुकान-स्थान खाली करे और मकान मालिक को कब्जा सौंपे।
- इस तरह, मकान मालिक की याचिका स्वीकृत हुई और निर्वासन का आदेश जारी हुआ।
English (Concise Summary)
Case: Ram Niwas vs Gobind Lal Malik – Punjab & Haryana High Court
Facts: Landlord sought eviction of tenant for his own office-use of commercial premises. Tenant pointed out the landlord’s father owned other commercial property in same urban area, arguing this undermined landlord’s bona fide requirement.
Issue: Whether the existence of another property in the name of landlord-family (father) automatically bars eviction under rent control law, and whether landlord’s bona fide requirement for the premises is to be accepted.
Held:
- Ownership by spouse or other family member (father) of another property does not ipso facto prevent eviction under the statute.
- Landlord’s bona fide requirement for the premises was accepted, as it was a real office-need, and he did not have alternative suitable premises in the urban area.
- Eviction petition allowed; tenant directed to vacate the property.
Significance: The judgment clarifies that the mere existence of other family-properties in same urban area does not disqualify the landlord’s right to seek eviction where statutory conditions are otherwise satisfied.
परीक्षा-उपयोगी बिंदु (Important for Exams)
- धारा-का प्रावधान: किरायेदार को निकालने के लिए मकान मालिक को ‘स्वयं-उपयोग’ या ‘परिवार-उपयोग’ की आवश्यकता साबित करनी होती है, और उस शहरी क्षेत्र में कोई उपयुक्त दूसरी संपत्ति न होनी चाहिए।
- दूसरी संपत्ति का अर्थ-व्यवस्था: यदि मकान मालिक के नाम पर दूसरी उपयुक्त संपत्ति न हो, तो निष्कासन याचिका स्वीकार हो सकती है। सिर्फ पत्नी/पिता नाम की संपत्ति होना स्वतः निष्कासन को रोकने वाला कारण नहीं है।
- बोनाफाइड आवश्यकता: मकान मालिक की आवश्यकता केवल इच्छा-आधारित नहीं होनी चाहिए, बल्कि व्यावहारिक और प्रमाणित होनी चाहिए।
- चयन-स्वतंत्रता: मकान मालिक यह चुन सकता है कि किस संपत्ति को उपयोग में लाए—अपना अपार्टमेंट या किराए की जगह।
- कानूनी-व्याख्या: निर्णय में कहा गया है कि “ownership” और “occupation” दोनों भिन्न हैं; मिटिंग, कार्यालय आदि उपयोग में लेने के लिए भी कानून अनुमति देता है।
- नोट-बिंदु: यदि मकान मालिक के पास उचित विकल्प मौजूद हो और वह उसे उपयोग करने लगा हो, तो वह मामला निष्कासन योग्य नहीं होगा।
निष्कर्ष
इस प्रकार, Ram Niwas निर्णय बताता है कि मकान मालिक की दूसरी-संपत्ति का तथ्य स्वतः किरायेदार को राहत देने वाला कारण नहीं है, बशर्ते मकान मालिक ने अपनी आवश्यकता bona fide तरह से साबित की हो और उस शहरी क्षेत्र में कोई अन्य उपयुक्त और उपयोग में लायी जा सकने वाली संपत्ति न रखी हो। यह निर्णय किराया-कंट्रोल कानून की प्रवृत्ति को स्पष्ट करता है कि मकान मालिक को एक सीमित आधार पर अपनी संपत्ति का उपयोग बदलने की अनुमति है, बशर्ते कानून की शर्तें पूरी हों।