वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 : एक विस्तृत अध्ययन
प्रस्तावना
मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ औद्योगिकीकरण और शहरीकरण ने पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव डाला है। वायु प्रदूषण आज दुनिया के सामने सबसे बड़ी पर्यावरणीय चुनौतियों में से एक है। भारत में भी औद्योगिक इकाइयों, परिवहन, शहरी गतिविधियों और ऊर्जा उत्पादन ने वायु गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इस समस्या को नियंत्रित करने और नागरिकों को स्वच्छ वायु का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए संसद ने वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 पारित किया। यह अधिनियम भारत के पर्यावरण कानूनों की श्रृंखला में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जिसने वायु प्रदूषण को कानूनी अपराध मानते हुए उसके नियंत्रण और रोकथाम के लिए संस्थागत और कानूनी ढाँचा उपलब्ध कराया।
अधिनियम की पृष्ठभूमि
1972 में स्टॉकहोम सम्मेलन में भाग लेने के बाद भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण हेतु ठोस कदम उठाने का वचन दिया। इसी क्रम में 1974 में जल अधिनियम और 1981 में वायु अधिनियम बनाए गए। उस समय भारत के बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में औद्योगिक धुएँ, वाहन उत्सर्जन और कोयले से चलने वाले बिजलीघरों ने वायु प्रदूषण को गंभीर बना दिया था। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि यदि तुरंत कदम नहीं उठाए गए तो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को अपूरणीय क्षति होगी। इस पृष्ठभूमि में वायु अधिनियम, 1981 अस्तित्व में आया।
अधिनियम का उद्देश्य
इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और कमी करना है। इसमें वायु प्रदूषण को परिभाषित किया गया है और उन स्रोतों को चिह्नित किया गया है जो वायु की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। अधिनियम के तहत केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को वायु प्रदूषण की निगरानी, मानक तय करने और प्रदूषण फैलाने वालों पर कार्यवाही करने का अधिकार दिया गया। साथ ही यह अधिनियम उद्योगों, परिवहन साधनों और ऊर्जा उत्पादन इकाइयों पर पर्यावरणीय मानकों का पालन करने का दायित्व डालता है।
अधिनियम की परिभाषाएँ
अधिनियम में कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ दी गई हैं, जैसे –
- वायु प्रदूषण – वायु में ठोस, तरल या गैसीय पदार्थों का ऐसा सम्मिश्रण जिससे वायु की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े या यह मानव, पशु, पौधों, संपत्ति या पर्यावरण के लिए हानिकारक हो।
- प्रदूषक – वह तत्व, धुआँ, धूल, गैस, रसायन या विकिरण जो वायु की शुद्धता को नष्ट करता है।
- उत्सर्जन स्रोत – औद्योगिक संयंत्र, वाहन, बिजलीघर, दहन इकाइयाँ आदि।
इन परिभाषाओं ने वायु प्रदूषण को केवल वैज्ञानिक समस्या न मानकर कानूनी अपराध घोषित किया।
अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ
- केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना – इन बोर्डों को वायु प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण का कार्य सौंपा गया।
- वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र – राज्य सरकार किसी क्षेत्र को “वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र” घोषित कर सकती है, जहाँ विशेष नियम लागू होंगे।
- औद्योगिक इकाइयों पर नियंत्रण – कोई भी उद्योग राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति के बिना प्रदूषणकारी गतिविधि नहीं कर सकता।
- वाहनों से प्रदूषण पर रोक – परिवहन साधनों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने का अधिकार बोर्ड को दिया गया।
- दंड का प्रावधान – अधिनियम का उल्लंघन करने पर कैद और जुर्माने का प्रावधान है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की भूमिका
- वायु प्रदूषण से संबंधित मानक और दिशा-निर्देश तय करना।
- राज्य बोर्डों के कार्यों का समन्वय करना।
- वायु गुणवत्ता पर निगरानी रखना और उसकी रिपोर्ट प्रकाशित करना।
- अनुसंधान एवं जागरूकता कार्यक्रम चलाना।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCBs) की भूमिका
- अपने-अपने राज्यों में वायु प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण की नीतियाँ लागू करना।
- उद्योगों को अनुमति प्रदान करना और नियमित निरीक्षण करना।
- प्रदूषणकारी इकाइयों पर जुर्माना और अन्य कार्रवाई करना।
- जनता से शिकायतें प्राप्त कर उनका निस्तारण करना।
दंडात्मक प्रावधान
इस अधिनियम का उल्लंघन करने पर कठोर दंड निर्धारित किया गया है –
- पहली बार अपराध – 3 माह तक की कैद या 10,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों।
- लगातार अपराध – प्रत्येक दिन 5,000 रुपये का अतिरिक्त जुर्माना।
- गंभीर अपराध – 7 वर्ष तक की कैद।
इन प्रावधानों का उद्देश्य उद्योगों और संस्थाओं को वायु प्रदूषण नियंत्रण के प्रति जिम्मेदार बनाना है।
न्यायपालिका की भूमिका
न्यायपालिका ने इस अधिनियम को प्रभावी बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
- M.C. Mehta बनाम भारत संघ (ताज ट्रेपेजियम मामला, 1996) – सुप्रीम कोर्ट ने आगरा के पास प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को बंद करने या प्राकृतिक गैस का प्रयोग करने का आदेश दिया।
- Delhi Vehicular Pollution Case (1998) – सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के सभी सार्वजनिक परिवहन वाहनों को CNG में परिवर्तित करने का निर्देश दिया।
- इन निर्णयों से स्पष्ट है कि न्यायपालिका ने वायु अधिनियम, 1981 को लागू करने और इसे जनहित से जोड़ने में सक्रिय भूमिका निभाई।
अधिनियम की उपलब्धियाँ
- कई शहरों में वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन स्थापित हुए।
- उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाए गए।
- दिल्ली जैसे शहरों में CNG वाहनों की शुरुआत हुई।
- जनता में वायु प्रदूषण के प्रति जागरूकता बढ़ी।
- राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) तैयार किया गया।
अधिनियम की सीमाएँ और चुनौतियाँ
- प्रभावी क्रियान्वयन की कमी – बोर्डों के पास संसाधन और तकनीकी साधनों की कमी।
- जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण – बढ़ती जनसंख्या और गाड़ियों ने प्रदूषण नियंत्रण की चुनौती को और कठिन बना दिया।
- राजनीतिक हस्तक्षेप – कई बार उद्योगों पर कार्यवाही करने में राजनीतिक दबाव आड़े आता है।
- जन-जागरूकता की कमी – लोग अभी भी व्यक्तिगत स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण के प्रति गंभीर नहीं हैं।
वर्तमान समय में अधिनियम का महत्व
आज भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में गिना जाता है। दिल्ली, पटना, लखनऊ और कानपुर जैसे शहर वायु प्रदूषण की दृष्टि से गंभीर स्थिति में हैं। इस पर नियंत्रण के लिए वायु अधिनियम, 1981 अत्यंत प्रासंगिक है। इसके आधार पर सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) शुरू किया है, जिसका उद्देश्य 2024 तक 20–30% प्रदूषण कम करना है। न्यायपालिका और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) भी इस अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग कर प्रदूषण फैलाने वालों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही कर रहे हैं।
निष्कर्ष
वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 भारत में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। इसने वायु प्रदूषण को एक कानूनी अपराध घोषित किया और इसके नियंत्रण हेतु संस्थागत ढाँचा दिया। यद्यपि क्रियान्वयन और संसाधनों की कमी के कारण इसकी सफलता सीमित रही है, फिर भी यह अधिनियम भविष्य के लिए आशा की किरण है। यदि सरकार, न्यायपालिका और जनता मिलकर इसके प्रावधानों का कड़ाई से पालन करें तो आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ और सुरक्षित वायु सुनिश्चित की जा सकती है।
प्रश्न 1. वायु अधिनियम, 1981 बनाने की पृष्ठभूमि क्या थी?
उत्तर: वायु अधिनियम, 1981 की पृष्ठभूमि में 1972 का स्टॉकहोम सम्मेलन प्रमुख कारण था, जिसमें भारत ने पर्यावरण संरक्षण हेतु ठोस कदम उठाने का वचन दिया। 1970 के दशक में भारत के बड़े शहरों में औद्योगिक धुएँ, कोयला-आधारित बिजलीघर और बढ़ते वाहनों से वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ा। इससे न केवल पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ा, बल्कि मानव स्वास्थ्य भी प्रभावित हुआ। श्वसन रोग, अस्थमा और आँखों की बीमारियाँ सामान्य हो गईं। इस गंभीर समस्या को रोकने और एक संस्थागत ढाँचा तैयार करने के लिए संसद ने 1981 में वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम पारित किया। यह कानून वायु प्रदूषण को अपराध मानते हुए उसकी रोकथाम और नियंत्रण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
प्रश्न 2. वायु अधिनियम, 1981 का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर: इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वायु प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण करना है। यह अधिनियम वायु की गुणवत्ता को सुरक्षित और बेहतर बनाए रखने के लिए उद्योगों, परिवहन साधनों और ऊर्जा उत्पादन इकाइयों पर विशेष नियंत्रण स्थापित करता है। अधिनियम का उद्देश्य न केवल प्रदूषणकारी स्रोतों को नियंत्रित करना है, बल्कि वायु प्रदूषण की निगरानी करना, मानक तय करना और उल्लंघन करने वालों को दंडित करना भी है। इसके तहत केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को आवश्यक अधिकार दिए गए हैं। यह अधिनियम जनस्वास्थ्य की रक्षा, पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने और सतत विकास की दिशा में एक कानूनी आधार प्रदान करता है।
प्रश्न 3. वायु अधिनियम, 1981 में वायु प्रदूषण की परिभाषा क्या दी गई है?
उत्तर: अधिनियम के अनुसार, वायु प्रदूषण का अर्थ है – वायु में किसी भी ठोस, तरल या गैसीय पदार्थ का ऐसा सम्मिश्रण जिससे वायु की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े। यदि वायु का उपयोग मानव, पशु, पौधों या संपत्ति के लिए हानिकारक हो जाए, तो वह प्रदूषित मानी जाएगी। इस परिभाषा के अंतर्गत औद्योगिक धुआँ, रासायनिक गैसें, धूल-कण, ध्वनि और विकिरण तक को प्रदूषण के रूप में शामिल किया गया है। यह परिभाषा व्यापक है और इसने वायु प्रदूषण को केवल वैज्ञानिक समस्या न मानकर कानूनी अपराध घोषित किया, जिससे इसके विरुद्ध कार्रवाई संभव हो सकी।
प्रश्न 4. वायु अधिनियम, 1981 के अंतर्गत किन संस्थाओं का गठन किया गया है?
उत्तर: इस अधिनियम के तहत दो प्रमुख संस्थाएँ गठित की गईं –
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB): इसका कार्य राष्ट्रीय स्तर पर वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए मानक तय करना, नीतियाँ बनाना और राज्य बोर्डों को दिशा-निर्देश देना है।
- राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCBs): राज्यों में वायु प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के लिए यह कार्यरत हैं। ये उद्योगों को अनुमति देते हैं, निरीक्षण करते हैं और प्रदूषण नियंत्रण नियम लागू करते हैं।
इनके अलावा वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं की स्थापना का भी प्रावधान है, ताकि वायु गुणवत्ता का परीक्षण किया जा सके।
प्रश्न 5. इस अधिनियम के अंतर्गत उद्योगों पर क्या नियंत्रण लगाया गया है?
उत्तर: वायु अधिनियम, 1981 के अंतर्गत किसी भी उद्योग या कारखाने को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति के बिना प्रदूषणकारी गतिविधि करने की अनुमति नहीं है। उद्योगों को अपने संयंत्रों में प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाना अनिवार्य है। यदि कोई उद्योग बोर्ड द्वारा तय मानकों का पालन नहीं करता, तो उसकी अनुमति रद्द की जा सकती है और दंडात्मक कार्यवाही भी की जा सकती है। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकार किसी क्षेत्र को वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र घोषित कर सकती है, जहाँ उद्योगों को विशेष मानकों का पालन करना होता है। इस प्रावधान का उद्देश्य औद्योगिक विकास और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन बनाना है।
प्रश्न 6. वाहन प्रदूषण नियंत्रण में इस अधिनियम की क्या भूमिका है?
उत्तर: वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत मोटर वाहन हैं। इस अधिनियम के तहत राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वाहनों के उत्सर्जन की निगरानी और मानक तय करने का अधिकार दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली वाहन प्रदूषण मामला (1998) में इस अधिनियम का उपयोग करते हुए दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन को CNG आधारित बनाने का आदेश दिया। इसके परिणामस्वरूप वाहन प्रदूषण में कमी आई। आज भी वाहनों के लिए PUC (Pollution Under Control) प्रमाणपत्र इसी अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत जारी किए जाते हैं।
प्रश्न 7. इस अधिनियम में दंडात्मक प्रावधान क्या हैं?
उत्तर: वायु अधिनियम, 1981 में कठोर दंड का प्रावधान है। यदि कोई व्यक्ति या उद्योग अधिनियम का उल्लंघन करता है, तो उसे 3 माह तक की कैद या 10,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। यदि अपराध लगातार जारी रहता है, तो प्रत्येक दिन के लिए 5,000 रुपये का अतिरिक्त जुर्माना लगाया जा सकता है। गंभीर मामलों में यह सजा बढ़कर 7 वर्ष तक की कैद हो सकती है। इन प्रावधानों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग और संस्थाएँ कानून का पालन करें।
प्रश्न 8. न्यायपालिका ने इस अधिनियम को लागू करने में क्या योगदान दिया है?
उत्तर: भारतीय न्यायपालिका ने इस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन में सक्रिय भूमिका निभाई। M.C. Mehta बनाम भारत संघ (ताज ट्रेपेजियम मामला, 1996) में सुप्रीम कोर्ट ने ताजमहल को बचाने के लिए आगरा के पास प्रदूषणकारी उद्योगों को प्राकृतिक गैस पर स्थानांतरित करने का आदेश दिया। इसी प्रकार, दिल्ली वाहन प्रदूषण मामले में अदालत ने सार्वजनिक परिवहन वाहनों को CNG में बदलने का निर्देश दिया। न्यायालयों ने “Polluter Pays Principle” और “Right to Clean Air” को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देकर वायु अधिनियम की प्रासंगिकता को और मजबूत किया।
प्रश्न 9. वायु अधिनियम, 1981 की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं?
उत्तर: इस अधिनियम की वजह से भारत में वायु प्रदूषण नियंत्रण के कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए। (1) CPCB और SPCBs की स्थापना से प्रदूषण नियंत्रण का प्रशासनिक ढाँचा मजबूत हुआ। (2) उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाए गए। (3) दिल्ली और अन्य शहरों में CNG वाहनों की शुरुआत हुई। (4) वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन स्थापित हुए और राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) तैयार किया गया। (5) न्यायपालिका और NGT ने अधिनियम का उपयोग करते हुए प्रदूषण फैलाने वालों पर कठोर कार्यवाही की। ये उपलब्धियाँ अधिनियम की प्रासंगिकता को दर्शाती हैं।
प्रश्न 10. वर्तमान समय में वायु अधिनियम, 1981 का महत्व क्यों बढ़ गया है?
उत्तर: आज भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में से एक है। दिल्ली, पटना, कानपुर, लखनऊ जैसे शहर विश्व के प्रदूषित शहरों में गिने जाते हैं। वायु प्रदूषण से लाखों लोग श्वसन रोग और कैंसर जैसी बीमारियों से प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे समय में वायु अधिनियम, 1981 का महत्व और बढ़ गया है। इसके आधार पर सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) शुरू किया है। न्यायपालिका और NGT भी इस अधिनियम का उपयोग कर प्रदूषण नियंत्रण पर जोर दे रहे हैं। यदि इस कानून का सख्ती से पालन किया जाए तो भविष्य की पीढ़ियों को स्वच्छ वायु उपलब्ध कराई जा सकती है।