वाद पत्र की अस्वीकृति का मानदंड – केवल देरी के आधार पर Order 7 Rule 11 CPC के तहत नहीं की जा सकती: राजस्थान उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय

शीर्षक: वाद पत्र की अस्वीकृति का मानदंड – केवल देरी के आधार पर Order 7 Rule 11 CPC के तहत नहीं की जा सकती: राजस्थान उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय

प्रकरण:
LAWS(RAJ)-2023-12-125
न्यायालय: राजस्थान उच्च न्यायालय
वर्ष: 2023


📜 मामले का सारांश:

इस वाद में प्रतिवादी ने यह याचिका दायर की कि वादी का वाद पत्र (plaint) Order 7 Rule 11 CPC के अंतर्गत अस्वीकार कर दिया जाए क्योंकि उसमें देर से दायर करने का स्पष्ट आधार नहीं है।

प्रतिवादी का तर्क था कि वादी ने जो दावा किया है, वह समयसीमा के भीतर नहीं है, अतः उसे प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज कर दिया जाना चाहिए।


⚖️ राजस्थान उच्च न्यायालय का निर्णय:

न्यायालय ने इस याचिका को अस्वीकार कर दिया और एक महत्वपूर्ण विधिक सिद्धांत स्थापित किया, जो निम्न प्रकार से है:

  1. Order 7 Rule 11 CPC के तहत केवल इस आधार पर कि वाद “देरी से” दायर किया गया है, वाद पत्र (plaint) को खारिज नहीं किया जा सकता।
  2. वाद में उल्लिखित कारणों को जांचने के लिए यह आवश्यक है कि:
    • दोनों पक्षों को सबूत प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाए,
    • तथ्यों की जांच हो,
    • और उसके बाद ही न्यायालय यह तय कर सकता है कि देरी न्यायोचित (justified) थी या नहीं।
  3. यदि वादी ने किसी पावर ऑफ अटॉर्नी धारक (Power of Attorney Holder) के माध्यम से वाद दायर किया है, तो यह प्रश्न कि क्या वादी को वैधानिक रूप से वाद दायर करने का अधिकार है या नहीं, मिश्रित प्रश्न (mixed question) है – तथ्य और विधि दोनों का।
    अतः इसे भी Order 7 Rule 11 के तहत नहीं निपटाया जा सकता।
  4. न्यायालय ने कहा कि इन सभी प्रश्नों का निराकरण मूल सुनवाई (trial) के बाद, मुद्दों के निर्धारण (framing of issues) और साक्ष्य के आधार पर किया जाना चाहिए।

📌 Order 7 Rule 11 CPC – संक्षेप में:

Order 7 Rule 11 वाद पत्र को प्रारंभिक स्तर पर अस्वीकार करने की प्रक्रिया से संबंधित है, जब:

  • वाद पत्र में कारण नहीं बनता हो,
  • वाद समयबद्ध न हो (time-barred),
  • या कोर्ट फीस अदा न की गई हो आदि।

लेकिन यह नियम तभी लागू होता है जब उक्त दोष स्पष्ट रूप से वाद पत्र से ही परिलक्षित हो, न कि उस पर बहस और साक्ष्य की आवश्यकता पड़े।


🧩 न्यायिक विश्लेषण:

इस निर्णय के माध्यम से राजस्थान उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि:

  • न्याय का तकाज़ा यह है कि पक्षकारों को अपना पक्ष रखने, सबूत प्रस्तुत करने और उचित सुनवाई का अवसर मिले।
  • प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकना आवश्यक है, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया की जल्दबाज़ी में वाद पत्र को नष्ट करना न्यायिक अनुचितता हो सकती है।

📚 निष्कर्ष:

LAWS(RAJ)-2023-12-125 के इस निर्णय में राजस्थान उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि केवल “देरी” के आधार पर वाद पत्र को Order 7 Rule 11 CPC के तहत खारिज करना उचित नहीं है।
वाद की वैधता, देरी का औचित्य, और वादी की पात्रता – ये सभी ऐसे मुद्दे हैं जो तथ्य और विधि दोनों पर आधारित होते हैं, और इनका निर्णय केवल मुकदमे की पूरी सुनवाई के बाद ही उचित रूप से हो सकता है।