लेख शीर्षक:
“वादी अपने वकील पर दोष मढ़कर मुकदमा बहाल नहीं कर सकती : पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट”
मामला:
SMT. Shashi Gupta बनाम Narinder Kumar Sood
सिविल पुनर्स्थापन याचिका (CR-7210-2019, O&M)
निर्णय वर्ष: 2025
अदालत: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय
⚖️ मामले की पृष्ठभूमि:
वादिनी शशि गुप्ता द्वारा दायर सिविल मुकदमा Order 9 Rule 8 CPC के अंतर्गत डिफॉल्ट (अनुपस्थिति) के कारण खारिज कर दिया गया था।
उसके 2 वर्ष 3 महीने बाद उन्होंने मुकदमा पुनर्स्थापित करने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया, जिसमें यह तर्क दिया गया कि उन्हें अपने वकील द्वारा मुकदमे की कार्यवाही की जानकारी नहीं दी गई थी।
🏛️ न्यायालय का अवलोकन एवं निर्णय:
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पुनर्स्थापन याचिका को खारिज करते हुए कहा कि:
“वादिनी 12 फरवरी 2002 से नियमित रूप से अदालत में पेश हो रही थीं। ऐसे में यह दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता कि उन्हें ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही की जानकारी नहीं थी।”
न्यायालय ने आगे कहा:
- यह हर पक्षकार की व्यक्तिगत जिम्मेदारी होती है कि वह अपने मुकदमे की कार्यवाही पर नज़र रखे।
- कोई भी वादी केवल वकील पर दोष डालकर खुद को जिम्मेदारी से मुक्त नहीं कर सकता, खासकर जब वह स्वयं कार्यवाही में सक्रिय रूप से भाग ले रहा हो।
- याचिकाकर्ता द्वारा विलंब के लिए कोई न्यायसंगत या पर्याप्त कारण नहीं प्रस्तुत किया गया, जिससे पुनर्स्थापन योग्य हो।
अतः पुनर्स्थापन याचिका को बिना मेरिट के मानते हुए खारिज कर दिया गया।
🔍 मुख्य बिंदु संक्षेप में:
- मुकदमा अनुपस्थिति में खारिज हुआ – Order 9 Rule 8 CPC के तहत
- पुनर्स्थापन याचिका 2 वर्ष 3 महीने बाद दाखिल
- वादिनी नियमित रूप से अदालत में उपस्थित थी — जानकारी न होने का दावा अस्वीकार्य
- केवल वकील को दोष देकर पुनर्स्थापन की अनुमति नहीं दी जा सकती
- याचिका खारिज
📌 न्यायिक महत्व:
यह निर्णय पुनः स्पष्ट करता है कि न्यायिक प्रक्रिया में प्रत्येक पक्षकार को सतर्क और उत्तरदायी होना आवश्यक है। यदि वादी कार्यवाही से अनभिज्ञ होने का दावा करती है, तो उसे ठोस और विश्वसनीय कारण प्रस्तुत करने होंगे। केवल वकील की विफलता को कारण बताकर पुनर्स्थापन की अनुमति देना न्यायिक अनुशासन को प्रभावित कर सकता है।