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“वादा करने के बावजूद विवाह न करना: क्या यह अपराध है?

“वादा करने के बावजूद विवाह न करना: क्या यह अपराध है? — लखनऊ हाईकोर्ट का विस्तृत निर्णय और कानूनी विश्लेषण”

प्रस्तावना

विवाह और प्रेम संबंध केवल व्यक्तिगत जीवन के मुद्दे नहीं हैं, बल्कि ये कानूनी और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। भारतीय समाज में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है, जिसमें विश्वास और वचन का बड़ा महत्व है। लेकिन जब प्रेम संबंध में ‘वादा’ किया जाता है और बाद में विवाह नहीं होता, तो क्या यह एक अपराध या अपराध के रूप में मान्यता प्राप्त होता है?

हाल ही में लखनऊ हाईकोर्ट के एक निर्णय ने इस प्रश्न का स्पष्ट उत्तर दिया है। अदालत ने कहा कि प्रेमी द्वारा विवाह का वादा करने के बाद उसे निभाना न करना किसी भी स्थिति में आपराधिक कृत्य नहीं है, विशेषकर तब जब पीड़िता विवाहिता हो और उसके विवाह का विच्छेद नहीं हुआ हो।

यह निर्णय न केवल व्यक्तिगत मामलों में न्याय को प्रभावित करता है, बल्कि यह समाज में विवाह, प्रेम और कानूनी अधिकारों की सीमाओं पर भी गहन विमर्श खड़ा करता है।


मामले का तथ्यात्मक विवरण

यह मामला नवंबर 2023 में दर्ज एक एफआईआर से शुरू हुआ। पीड़िता ने आरोप लगाया कि सात साल पूर्व उसके और अभियुक्त के बीच प्रेम संबंध स्थापित हुए। इस दौरान दोनों के बीच संबंधों के कारण पीड़िता गर्भवती भी हुई। पीड़िता का दावा था कि अभियुक्त ने दवा देकर उसका गर्भपात कराया और बाद में उसे विवाह का झांसा दिया, लेकिन विवाह नहीं किया।

पीड़िता के जीवन में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह था कि बाद में उसका अन्यत्र विवाह हो गया था और उसका पहला विवाह अभी भी विच्छेद नहीं हुआ था।

पीड़िता ने इस आधार पर सत्र अदालत में अभियुक्त के खिलाफ दुराचार और भ्रूण हत्या के आरोप लगाए। सत्र अदालत ने 2 जून 2025 को अभियुक्त को इन आरोपों से उन्मोचित कर दिया। पीड़िता ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी।


सत्र अदालत का निर्णय

सत्र अदालत ने अपने आदेश में निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले:

  1. दुराचार का आरोप: अदालत ने पाया कि रिकॉर्ड के अनुसार पीड़िता ने पूरी जानकारी के साथ और अपनी मर्जी से अभियुक्त के साथ संबंध बनाए थे। इस लिए दुराचार का आरोप लागू नहीं होता।
  2. भ्रूण हत्या का आरोप: पीड़िता ने अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट पेश की, लेकिन उसमें तिथि अंकित नहीं थी। अदालत ने कहा कि चूंकि पीड़िता शादीशुदा थी, इसलिए संभावना अधिक है कि गर्भावस्था उसके पति से हुई थी, न कि अभियुक्त से। इस कारण भ्रूण हत्या का आरोप प्रमाणित नहीं हुआ।
  3. विवाह का वादा न करना: सत्र अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रेम संबंध में विवाह का वादा एक व्यक्तिगत वचन है, लेकिन इसका अपराध के रूप में संवैधानिक या आपराधिक आधार नहीं है।

हाईकोर्ट का निर्णय

लखनऊ हाईकोर्ट ने सत्र अदालत के आदेश को सही ठहराते हुए कहा कि अभियुक्त को दुराचार और भ्रूण हत्या के आरोपों से उन्मोचित किया जाना न्यायसंगत था। अदालत ने इस मामले में यह टिप्पणी की कि:

“विवाह का वादा करने के बावजूद विवाह न करना किसी भी भारतीय कानून के तहत अपराध नहीं है, विशेष रूप से तब जब पीड़िता पहले से शादीशुदा है और उसका विवाह विच्छेद नहीं हुआ है।”

इस प्रकार, हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि प्रेम संबंध और विवाह का वादा व्यक्तिगत निर्णय हैं और इन्हें आपराधिक अपराध के रूप में नहीं देखा जा सकता।


कानूनी विश्लेषण

1. भारतीय दंड संहिता (IPC) के प्रावधान

भारतीय दंड संहिता में विवाह का वादा न करने से सीधे जुड़ा कोई अपराध नहीं है। IPC की धारा 497, जो व्यभिचार (Adultery) से संबंधित थी, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय (S. Khushboo vs Kanniammal) के बाद असंवैधानिक घोषित कर दी गई है।

इस मामले में, अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि पीड़िता शादीशुदा है और उसका विवाह विच्छेद नहीं हुआ है, तो उसका अभियुक्त के साथ संबंध व्यक्तिगत और निजी अधिकारों का मामला है, जिसे IPC अपराध के रूप में नहीं मानता।

2. दुराचार और सहमति

IPC की धारा 375 में दुराचार को यौन संबंध के साथ जबरदस्ती या बिना सहमति के किया जाना परिभाषित किया गया है। इस मामले में, सत्र अदालत ने यह पाया कि पीड़िता ने पूरी जानकारी और अपनी मर्जी से संबंध बनाए थे। इसलिए, दुराचार का आरोप मान्य नहीं हुआ।

3. भ्रूण हत्या

IPC की धारा 312 के तहत भ्रूण हत्या अपराध है। लेकिन इस मामले में प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर यह साबित नहीं हुआ कि भ्रूण हत्या अभियुक्त द्वारा की गई थी। अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में तिथि का अभाव और पीड़िता की शादीशुदा स्थिति ने इस आरोप को कमजोर कर दिया।

4. वादा और कानूनी प्रभाव

विवाह का वादा एक सामाजिक और नैतिक प्रतिबद्धता है, लेकिन इसका कानूनी रूप में अपराध नहीं माना जाता। यह निर्णय भारतीय न्याय प्रणाली में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजी जीवन के अधिकार की पुष्टि करता है।


सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण

यह मामला न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और नैतिक सवाल भी उठाता है। प्रेम संबंधों में वादा निभाने की नैतिक जिम्मेदारी होती है। यदि यह वादा टूटता है तो पीड़ित व्यक्ति को मानसिक और सामाजिक आघात होता है।

हालांकि, भारतीय कानून व्यक्तिगत नैतिक दायित्व को आपराधिक अपराध में नहीं बदलता। ऐसे मामलों में पीड़ित व्यक्ति के पास केवल नागरिक उपाय होते हैं, जैसे कि मानहानि का दावा या अनुबंध संबंधी कानूनी कार्रवाई, न कि आपराधिक मुकदमा।


निष्कर्ष

लखनऊ हाईकोर्ट का यह निर्णय स्पष्ट करता है कि प्रेम संबंध में विवाह का वादा करना और उसे निभाना एक नैतिक और व्यक्तिगत विषय है, जिसे भारतीय कानून आपराधिक रूप में नहीं देखता।

यह निर्णय न केवल विवाह और प्रेम संबंधों पर कानूनी दृष्टि प्रस्तुत करता है, बल्कि यह सामाजिक सरोकारों को भी उजागर करता है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि न्याय प्रणाली में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सहमति और निजी जीवन की गरिमा की रक्षा महत्वपूर्ण है।

इस मामले में, अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि निजी मामलों में किसी के खिलाफ गैर-जरूरी आपराधिक आरोप न लगाए जाएँ और केवल ठोस और प्रमाणित साक्ष्यों पर ही न्याय किया जाए।


संक्षेप में:
विवाह का वादा करना एक नैतिक प्रतिबद्धता है, लेकिन भारतीय कानून इसे अपराध के रूप में नहीं मानता। प्रेम संबंध में सहमति, शादीशुदा स्थिति और प्रमाणों की उपस्थिति, ऐसे मामलों में न्याय का आधार होते हैं। लखनऊ हाईकोर्ट का यह निर्णय इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है और भविष्य में ऐसे मामलों के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करता है।

1. इस मामले का मुख्य तथ्य क्या है?

यह मामला एक विवाहित महिला और उसके प्रेमी के बीच हुए विवाद का है। पीड़िता ने आरोप लगाया कि अभियुक्त ने सात साल पहले विवाह का वादा किया, उसके साथ संबंध बनाए, गर्भधारण कराया और बाद में गर्भपात कराया। पीड़िता का यह भी कहना था कि अभियुक्त ने विवाह का झांसा दिया लेकिन विवाह नहीं किया। सत्र अदालत ने अभियुक्त को दुराचार व भ्रूण हत्या के आरोप से उन्मोचित कर दिया। पीड़िता ने इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी। लखनऊ हाईकोर्ट ने सत्र अदालत के आदेश को सही ठहराया और कहा कि वादा करने के बावजूद विवाह न करना किसी भी कानून के तहत अपराध नहीं है।


2. सत्र अदालत ने अभियुक्त को क्यों उन्मोचित किया?

सत्र अदालत ने पाया कि पीड़िता ने पूरी जानकारी और अपनी मर्जी से अभियुक्त के साथ संबंध बनाए। इस वजह से दुराचार का आरोप सिद्ध नहीं हुआ। भ्रूण हत्या के आरोप पर, पेश की गई अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में तिथि अंकित नहीं थी और पीड़िता शादीशुदा थी, जिससे अदालत ने माना कि गर्भावस्था उसके पति से हुई होगी। इसलिए, भ्रूण हत्या का आरोप भी प्रमाणित नहीं हुआ।


3. हाईकोर्ट ने विवाह का वादा न करने पर क्या टिप्पणी दी?

लखनऊ हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि विवाह का वादा करना एक व्यक्तिगत और नैतिक मामला है, न कि आपराधिक अपराध। किसी भी व्यक्ति द्वारा वादा करने के बावजूद विवाह न करना भारतीय कानून के अंतर्गत अपराध नहीं माना जाता, विशेषकर तब जब पीड़िता पहले से विवाहिता हो और उसका विवाह विच्छेद नहीं हुआ हो।


4. IPC में विवाह का वादा न करने का कोई प्रावधान है?

भारतीय दंड संहिता (IPC) में विवाह का वादा न करने से जुड़ा कोई विशेष अपराध नहीं है। धारा 497 (व्यभिचार) को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित कर दिया है। इस कारण, प्रेम संबंध में विवाह का वादा करना और उसे निभाना कानूनी अपराध नहीं है। यह एक निजी और नैतिक जिम्मेदारी है, जिसे आपराधिक रूप में लागू नहीं किया जा सकता।


5. दुराचार का इस मामले में क्या महत्व है?

IPC की धारा 375 के अनुसार दुराचार तभी成立 होता है जब यौन संबंध जबरदस्ती, धोखे या बिना सहमति के किया गया हो। इस मामले में, अदालत ने पाया कि पीड़िता ने अपनी मर्जी से संबंध बनाए। इसलिए, दुराचार का आरोप साबित नहीं हुआ और अभियुक्त को इस आरोप से उन्मोचित किया गया।


6. भ्रूण हत्या का आरोप क्यों खारिज हुआ?

भ्रूण हत्या (IPC धारा 312) में यह साबित होना आवश्यक है कि गर्भपात जानबूझकर और अवैध तरीके से किया गया। इस मामले में पेश किए गए अल्ट्रासाउंड में तिथि का अभाव था। साथ ही, पीड़िता शादीशुदा थी, जिससे संभावना है कि गर्भावस्था उसके पति से हुई। इसलिए अदालत ने भ्रूण हत्या का आरोप मान्य नहीं किया।


7. इस मामले का सामाजिक महत्व क्या है?

यह मामला व्यक्तिगत संबंध, विवाह का वादा और निजी स्वतंत्रता के बीच संतुलन का प्रतीक है। यह निर्णय बताता है कि व्यक्तिगत संबंधों में सहमति और नैतिक जिम्मेदारी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन कानूनी दृष्टि से विवाह का वादा अपराध नहीं बनाता। यह समाज में प्रेम, विवाह और नैतिक मूल्यों पर विचार करने की प्रेरणा देता है।


8. हाईकोर्ट का निर्णय भविष्य के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

यह निर्णय स्पष्ट दिशा देता है कि प्रेम संबंध में विवाह का वादा न करना कानूनी अपराध नहीं है। इससे भविष्य में ऐसे मामलों में कानूनी दिशानिर्देश स्पष्ट होंगे। यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सहमति के महत्व को भी स्थापित करता है।


9. क्या पीड़िता के पास कोई कानूनी उपाय है?

विवाह का वादा टूटने पर पीड़िता के पास आपराधिक शिकायत करने का अधिकार नहीं है, लेकिन वह नागरिक उपायों का उपयोग कर सकती है। इसमें अनुबंध उल्लंघन, मानहानि या अन्य निजी कानूनी दावे शामिल हो सकते हैं। न्यायालय ऐसे मामलों में नैतिक और सामाजिक दृष्टि से निर्णय देता है, लेकिन इसे आपराधिक अपराध नहीं मानता।


10. इस मामले से क्या शिक्षा मिलती है?

इस मामले से स्पष्ट होता है कि व्यक्तिगत संबंधों में सहमति, नैतिक जिम्मेदारी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान आवश्यक है। कानून व्यक्तिगत वादों को अपराध नहीं मानता, बल्कि ऐसे मामलों में नैतिक समाधान और नागरिक उपाय ही मुख्य मार्ग होते हैं। न्यायपालिका ने इस मामले में व्यक्तिगत अधिकारों और सामाजिक मूल्य का संतुलन स्थापित किया है।